चलें, दौड़ें नहीं
मैं उसे हर दिन सुबह का स्वागत करते हुए देखता हूँ l वह हमारी स्थानीय तेज गति से चलनेवाली(power walker) थी l जब मैं अपने बच्चों को स्कूल ले जाता था, वह सड़क के किनारे होती थी l एक बड़ा हेडफ़ोन लगाई हुई और घुटने तक ऊँचे, रंगीन मोज़े, पहनी हुई वह हाथों और पैरों को बारी-बारी से चलाती हुई, और हमेशा एक पैर को धरती के संपर्क में रखते हुए चलती थी l यह खेल दौड़ने या धीरे-धीरे दौड़ने(jogging) से अलग है l पावर वॉकिंग में जानबूझकर संयम, दौड़ने के लिए शरीर के स्वाभाविक इच्छा पर प्रबल होना शामिल है l हालाँकि यह ऐसा नहीं लगता है, लेकिन दौड़ने या जॉगिंग करने में जितनी ऊर्जा, फोकस और शक्ति शामिल है, उतनी ही इसमें है l लेकिन यह नियंत्रण में है l
ताकत नियंत्रण में─यही कुंजी है l बाइबल की विनम्रता, पावर वॉकिंग की तरह, अक्सर कमजोरी के रूप में देखी जाती है l सच यह है, यह वैसी नहीं है l विनम्रता हमारी ताकत या क्षमताओं को कम करना नहीं है, बल्कि उन्हें सुबह-सुबह चलने वाले पावर वॉकर के दिमाग द्वारा निर्देशित बाहों और टांगों और पैरों की तरह बहुत अधिक नियंत्रित करने की अनुमति देता है l
मीका के शब्द “नम्रता से” चलना परमेश्वर के आगे जाने की हमारे प्रवृत्ति पर लगाम लगाने के लिए एक आह्वान हैं l वह कहता है, “तू न्याय से काम करे, और कृपा से प्रीति रखे” (6:8), और वह अपने साथ कुछ करने की और जल्दी करने की इच्छा उत्पन्न कर सकता है l यह न्यायसंगत है क्योंकि हमारे संसार में दैनिक अन्याय अत्यधिक अभिभूत करने वाला है l लेकिन हम परमेश्वर द्वारा नियंत्रित और निर्देशित हों l हमारा लक्ष्य यह है कि इस धरती पर उसके राज्य के आगमन में उसकी इच्छा और उद्देश्य पूरे हों l
जो कुछ वह कर सकी, उसने किया
उसने वाहक पट्टा(conveyor belt) पर कपकेक के प्लास्टिक के डिब्बे को रखकर खजांची की ओर भेजा l इसके बाद जन्मदिन कार्ड और चिप्स के विभिन्न पैकेट थे l उसके बाल पोनीटेल(ponytail) से बाहर, उसके थके माथे पर फैले हुए थे l उसका नन्हा बच्चा ध्यान देने के लिए चिल्ला रहा था l क्लर्क ने कुल जोड़ बताया और माँ का चेहरा उतर गया l “ओह, मुझे लगता है कि मुझे कुछ वापस करना होगा l लेकिन ये उसकी पार्टी के लिए हैं, उसने अपने बच्चे को देखते और अफ़सोस जताते हुए गहरी साँस ली l
उसके पीछे लाइन में खड़े, एक अन्य ग्राहक ने इस माँ के दर्द को पहचान लिया l यह दृश्य बैतनिय्याह की मरियम के लिए यीशु के शब्दों में जाना-पहचाना है : “जो कुछ वह कर सकी, उसने किया” (मरकुस 14:8) l मरियम ने उसकी मृत्यु और गाड़े जाने से पहले बहुमूल्य इत्र से उसका अभिषेक किया, जिसके बाद शिष्यों ने उसका उपहास किया l यीशु ने उसके द्वारा किये गए कार्यों का जश्न मनाकर अपने शिष्यों को सुधारा l उसने यह नहीं कहा, "उसने वह सब किया जो वह कर सकती थी,” बल्कि, उसने कहा, “जो कुछ वह कर सकी, उसने किया l” इत्र की अत्यधिक लागत उसका मतलब नहीं था l यह मरियम के प्रेम का उसके कार्य द्वारा दर्शशाया जाना था जो मायने रखता था l यीशु के साथ रिश्ता प्रतिक्रिया में परिणित होता है l
उसी क्षण, माँ के एतराज करने से पहले, दूसरा ग्राहक आगे झुककर अपने क्रेडिट कार्ड को कार्ड रीडर में डालकर, खरीद के लिए भुगतान कर दिया l यह एक बड़ा खर्च नहीं था, और उस महीने उसके पास अतिरिक्त धन था l लेकिन उस माँ के लिए, यह सब कुछ था l शुद्ध प्रेम का एक भाव-प्रदर्शन उसकी आवश्यकता के क्षण में प्रगट हो गया l
अंधकार का सामना
1960 के दशक के मध्य में, दो लोगों ने मानव मानस पर अंधेरे के प्रभावों पर शोध में भाग लिया l उन्होंने अलग-अलग गुफाओं में प्रवेश किया, जबकि शोधकर्ताओं ने उनके खाने और सोने की आदतों पर नज़र रखी l एक 88 दिनों तक, दूसरा 126 दिनों तक पूर्ण अंधेरे में रहा l प्रत्येक ने अनुमान लगाया कि वे कितने समय तक अंधेरे में रह सकते हैं और महीनों तक परे रहे l एक ने सोचा कि वह केवल एक झपकी ले रहा था, केवल यह जानने के लिए कि वह 30 घंटे तक सोया l अंधेरा गुमराह करता है l
परमेश्वर के लोगों ने खुद को आसन्न निर्वासन के अंधेरे में पाया l इस बात से अनिश्चित रहकर, उन्होंने इंतजार किया कि क्या होनेवाला था l यशायाह ने उनके भटकाव के लिए रूपक के तौर पर और परमेश्वर के न्याय के बारे में बोलने के तरीके के रूप में अंधेरे का उपयोग किया (यशायाह 8:22) l इससे पहले, मिस्रियों पर एक महामारी के रूप में अंधेरा आया था (निर्गमन 10:2129) l अब इस्राएल ने खुद को अंधेरे में पाया l
लेकिन एक रोशनी आनेवाली थी l “जो लोग अंधियारे में चल रहे थे उन्होंने बड़ा उजियाला देखा; और जो लोग घोर अन्धकार से भरे हुए मृत्यु के देश में रहते थे, उन पर ज्योति चमकी” (यशायाह 9:2) l उत्पीड़न समाप्त होनेवाला था, और भटकाव खत्म होनेवाला था l एक बालक सब कुछ बदलने और एक नया दिन लाने के लिए आनेवाला था─क्षमा और छुटकारे का दिन (पद. 6) l
सचमुच यीशु आया! और यद्यपि संसार का अंधकार गुमराह करनेवाला हो सकता है, हम मसीह में मिलने वाले क्षमा, छुटकारा, और ज्योति में आराम का अनुभव करें l
प्रेम द्वारा पीछा किया गया
अंग्रेजी के कवि फ्रांसिस थॉम्पसन की प्रसिद्ध कविता “द हाउंड ऑफ हैवन” की आरंभिक पंक्तियाँ “मैं रात को और दिन को उसका पीछा करता रहा” हैं l थॉम्पसन यीशु द्वारा अनवरत पीछा करने का वर्णन करता है─परमेश्वर से उसके छिपने का प्रयास, या यहां तक कि भाग जाने के उसके प्रयासों के बावजूद l कवि अंत करता है, “मैं वह हूँ जिसे तू ढूढ़ता है!”
परमेश्वर का पीछा करने वाला प्रेम, योना की किताब का एक केंद्रीय विषय है l नबी को नीनवे के लोगों (इस्राएल के कुख्यात दुश्मन) को ईश्वर की ओर मुड़ने की आवश्यकता के बारे में बताने के लिए एक काम मिला, लेकिन इसके बजाय “योना यहोवा के सम्मुख से . . . भाग जाने के लिए उठा” (योना 1:3) l उसने नीनवे के विपरीत दिशा में जानेवाले एक जहाज पर स्थान सुरक्षित किया, लेकिन एक प्रचंड आंधी से जहाज जल्द ही टूटने लगा l जहाज के मांझियों को बचाने के लिए, इससे पूर्व कि योना को एक बड़ी मछली निगल जाए, उसे जहाज पर से समुद्र में फेंक दिया गया (1: 15–17) l
अपनी खूबसूरत कविता में, योना ने याद किया कि परमेश्वर से दूर भागने की उसकी पूरी कोशिश के बावजूद, परमेश्वर ने उसका पीछा किया l जब योना अपनी स्थिति से पराजित हो गया और उसे बचाए जाने की ज़रूरत पड़ी, तो उसने प्रार्थना में परमेश्वर को पुकारा और उसके प्यार की ओर मुड़ा (2:2, 8) l परमेश्वर ने उत्तर दिया और न केवल योना के लिए, बल्कि उसके अश्शुर के दुश्मनों के लिए भी बचाव प्रदान किया (3:10) l
जैसा कि दोनों कविताओं में वर्णित है, हमारे जीवनों में ऐसे समय आ सकते हैं जब हम ईश्वर से भागने की कोशिश करते हैं l तब भी यीशु हमसे प्यार करता है और हमारे रिश्ते को अपने साथ पुनर्स्थापित करने के लिए काम करता है (1 यूहन्ना 1:9) l
दोष और क्षमा
अपनी पुस्तक ह्यूमन यूनिवर्सल्स में, मानवविज्ञानी डोनाल्ड ब्राउन ने चार सौ से अधिक व्यवहारों को सूचीबद्ध किया है जिन्हें वह मानवता के बीच आम मानते हैं l वह खिलौने, चुटकुले, नृत्य, और कहावत, सांपों की सतर्कता और डंक वाली चीजों को बांधने जैसी चीजें शामिल करता है! इसी तरह, उनका मानना है कि सभी संस्कृतियों में सही और गलत की अवधारणाएं हैं, जहाँ उदारता की प्रशंसा की जाती है, वादों को महत्व दिया जाता है और नीचता और हत्या जैसी चीजों को गलत समझा जाता है l हम जहाँ से भी हैं, हम सभी में विवेक की भावना है l
प्रेरित पौलुस ने कई शताब्दी पहले एक ऐसा ही बिंदु बताया था l जबकि ईश्वर ने यहूदी लोगों को गलत और सही के बीच स्पष्टीकरण के लिए दस आज्ञाएँ दीं, पौलुस ने उल्लेख किया कि चूंकि गैरयहूदी लोग अपने विवेक का पालन करके सही कर सकते थे, इसलिए परमेश्वर के कानून निसंदेश उनके दिलों पर लिखे गए थे (रोमियों 2:14-15) l लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि लोगों ने हमेशा वही किया जो सही था l अन्यजातियों ने अपने विवेक (1:32) के खिलाफ विद्रोह किया, यहूदियों ने व्यवस्था तोड़ी (2:17–24), जिससे दोनों दोषी ठहरे l लेकिन यीशु में विश्वास के द्वारा, परमेश्वर मृत्युदंड को हटा देता है जो हमारे सभी नियम-तोड़ने का परिणाम था (3:23-26; 6:23) l
चूंकि परमेश्वर ने सभी मनुष्यों को सही और गलत की भावना के साथ बनाया है, इसलिए हममें से प्रत्येक को एक बुरी चीज पर कुछ अपराधबोध महसूस होगा जो हमने किया है या एक अच्छी चीज जो हम करने में विफल रहे हैं l जब हम उन पापों को स्वीकार करते हैं, तो परमेश्वर अपराधबोध मिटा देता है जैसे कि एक सफेद बोर्ड साफ़ कर दिया गया हो l बस इतना करना है कि हम उससे बोलें─चाहे हम जो भी हों, जहाँ से भी हों l