Month: अक्टूबर 2021

बोलने का समय

तीस वर्षों तक, उसने एक बड़ी वैश्विक सेवा में ईमानदारी से काम किया l फिर भी जब उसने साम्प्रदायिक अन्याय के बारे में सहकर्मियों से बात करने की कोशिश की, तो चुप्पी से उसका सामना हुआ l हालाँकि, आखिरकार, 2020 के बसंत में──दुनिया भर में नस्लवाद के बारे में खुली चर्चा के रूप में──उसकी सेवा के मित्रों ने “कुछ खुली बातचीत करना शुरू कर दिया l” मिश्रित भावनाओं और दुःख के, वह आभारी थी कि विचार-विमर्श शुरू हुआ, लेकिन आश्चर्य है कि उसके सहयोगियों को बोलने के लिए इतना समय क्यों लगा l 

कुछ स्थितियों में खामोशी एक गुण हो सकता है l जैसा कि रजा सुलैमान ने सभोपदेशक की पुस्तक में लिखा है, “हर एक बात का एक अवसर और प्रत्येक काम का, जो आकाश के नीचे होता है, एक समय है . . . चुप रहने का समय, और बोलने का भी समय है” (सभोपदेशक 3:1, 7) l 

कट्टरता और अन्याय के सामने, हालाँकि, खामोशी, केवल नुकसान और चोट को सक्षम करता है l लूथरन पास्टर मार्टिन निमलर(नाज़ी जर्मनी में मुखरता से बोलने के लिए जेल में बंद) ने युद्ध के बाद खुद की लिखी एक कविता में इसे कबूल किया l “पहले वे कम्युनिस्टों के लिए आए,” उन्होंने लिखा, “लेकिन मैं इसलिए नहीं बोला क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था l” उसने आगे कहा, “उसके बाद वे” यहूदी, कैथोलिक, और दूसरों के लिए “आए, लेकिन मैं नहीं बोला l” आखिरकार, “वे मेरे लिए आए──और उस समय तक बोलने वाला कोई भी नहीं बचा था l” 

अन्याय के खिलाफ बोलने के लिए──साहस──और प्यार चाहिए l परमेश्वर की मदद लेकर, हालाँकि, हम पहचानते हैं कि बोलने का समय अब है l 

आत्मा से अंतर्दृष्टि

जब वह फ़्रांसिसी सैनिक अपने सैनिक मोर्चाबंदी को मजबूत करने के लिए, मरुभूमि के रेत में खोद रहा था, उसे बिलकुल नहीं पता था कि वह एक महत्वपूर्ण खोज करेगा l एक और बेलचा भर रेत को हटाते हुए, उसने एक पत्थर देखा l केवल एक पत्थर नहीं l यह रोज़ेटा पाषाण (Rosetta Stone) था, जिसमें तीन भाषाओं में लिखे टॉलेमी पंचम के क़ानून और शासन प्रणाली थे l वह पत्थर (अब ब्रिटिश संग्रहालय में रखा है) उन्नीसवीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक खोज में से एक होगा, जो प्राचीन मिस्र के लेखन जिसे चित्रलिपि (hieroglyphics) के नाम से जाना जाता है के रहस्यों को उजागर करने में मदद करेगा l 

हममें से कई लोगों के लिए, पवित्रशास्त्र का बहुत सा हिस्सा गहरे रहस्य में लिपटा हुआ है l फिर भी, क्रूस की मृत्यु से पूर्व की रात में, यीशु ने अपने अनुयायियों से वादा किया कि वह पवित्र आत्मा भेजेगा l उसने उनसे कहा, “परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपने ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा” (यूहन्ना 16:13) l एक अर्थ में, पवित्र आत्मा, हमारा दिव्य रोज़ेटा पत्थर है, जो सत्य पर प्रकाश डालता है जिसमें बाइबल के रहस्यों के सत्य शामिल हैं l  

जब हमें पवित्रशास्त्र में दी गयी हर चीज़ की पूर्ण समझ का वादा नहीं किया गया है, तो हमें भरोसा हो सकता है कि आत्मा द्वारा हम यीशु का अनुसरण करने के लिए हमारे लिए आवश्यक हर चीज़ को समझ सकते हैं l वह उन महत्वपूर्ण सच्चाइयों में हमारा मार्गदर्शन करेगा l 

अच्छे से जीना

जीवितों के लिए मुफ्त अंतिम-संस्कार l दक्षिण कोरिया में एक संस्थान  यही सेवा देती है l जब से यह 2012 में आरंभ हुई  है, 25,000 से अधिक लोगों ने──किशोर से लेकर सेवानिवृत लोगों तक── अपनी मृत्यु पर विचार करते हुए अपने जीवनों को सुधारने की आशा में ”जीवित अंतिम-संस्कार” सभाओं में भागीदारी की है l अधिकारी बताते हैं “दिखावटी मृत्यु सभाओं का अर्थ भागीदारों को उनके जीवनों के विषय एक सच्चा भाव देना है, कृतज्ञता प्रेरित करना है, और क्षमा देने में मदद, और परिवार और मित्रों के बीच पुनः सम्बन्ध स्थापित करना है l”

ये शब्द सभोपदेशक के लिखनेवाले शिक्षक की बुद्धिमत्ता को प्रतिध्वनित करते हैं l “सब मनुष्यों का अंत(मृत्यु) है, और जो जीवित है वह मन लगाकर इस पर सोचेगा” (सभोपदेशक 7:2) l मृत्यु हमें जीवन की लघुता की याद दिलाती है और कि जीवन जीने और अच्छे से प्रेम करने के लिए हमारे पास सीमित समय है l यह परमेश्वर के कुछ अच्छे उपहारों──जैसे धन/पैसा, सम्बन्ध, और सुख──पर हमारी पकड़ को ढीला करता है और हमें इसका आनंद यहाँ और वर्तमान में लेने के लिए स्वतंत्र करता है जब हम “स्वर्ग में धन इकठ्ठा [करते हैं], जहाँ न तो कीड़ा और न काई बिगाड़ते हैं, और जहाँ चोर न सेंध लगाते और न चुराते हैं” (मत्ती 6:20) l 

जब हम याद करते हैं कि मृत्यु किसी समय दस्तक दे सकती है, शायद यह हमें अपने माता-पिता से मुलाकात को न टालने को विवश करे, एक ख़ास तरीके से परमेश्वर की सेवा करने के हमारे निर्णय को विलंबित न होने दे, या हम अपने काम के ऊपर अपने बच्चों के साथ अपना  समय बिताने को प्राथमिकता दें l परमेश्वर की सहायता से, हम बुद्धिमत्ता से जीवन जीना सीख सकते हैं l 

आपके लिए परमेश्वर की योजना

छह साल तक, एग्नेस ने खुद को अपनी प्यारी सास (वह भी एक पास्टर की पत्नी थी) के समान “पास्टर आदर्श की पत्नी,” बनने की कोशिश की l उसकी सोच थी कि इस भूमिका में वह एक लेखिका या चित्रकार भी नहीं बन सकती थी, लेकिन अपनी रचनात्मकता को दफ़न करने में  वह खिन्न हो गयी और आत्महत्या पर विचार करने लगी l केवल एक पडोसी पास्टर ने उसे उस अन्धकार से निकाला जब वह उसके साथ प्रार्थना किया और उसे हर सुबह दो घंटे लिखने का कार्य सौंपा l यह उसे उसके प्रति जागृत किया जिसे वह “मोहरबंद निर्देश” कहती है──जो परमेश्वर की बुलाहट ने उसे दी थी l उसने लिखा, “मेरे लिए वास्तव में स्वयं──मेरा पूर्ण व्यक्तित्व──रचनात्मकता के हरेक . . . प्रवाह जो परमेश्वर ने मुझे दिया था को अपना माध्यम ढूँढना था l”

बाद में उन्होंने दाऊद के एक गीत की ओर इंगित किया जो बताता है कि कैसे उन्होंने अपनी बुलाहट पायी : “यहोवा को अपने सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा” (भजन 37:4) l जब उन्होंने अपने मार्ग को परमेश्वर को समर्पित कर दिया, उसे लिए चलने और मार्गदर्शन करने में (पद.5), उसने उसके लिए केवल लेखन और चित्रकारी का ही नहीं लेकिन उसके(परमेश्वर) साथ बेहतर संप्रेक्षण करने के लिए दूसरों की मदद करने का भी द्वार खोला l 

परमेश्वर के पास हममें से हर एक के लिए “मोहरबंद निर्देश,” केवल यह जानना नहीं कि हम उसके प्रिय बच्चे हैं लेकिन उन अद्वितीय तरीकों को समझना है जिससे हम अपने वरदानों और अभिलाषाओं के द्वारा उसकी सेवा कर सकते हैं l वह हमारी अगुवाई करेगा जब हम उसमें भरोसा रखते और उसको अपना सुख का मूल मानते हैं l 

जीवन के लिए आरंभक की नियमावली

मेरी माँ की अचानक मृत्यु के बाद, मैं ब्लॉगिंग शुरू करने के लिए प्रेरित हुआ l मैं ऐसे पोस्ट लिखना चाहता था जो लोगों को पृथ्वी पर अपने जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों को बनाने के लिए उपयोग करने के लिए प्रेरित करें l इसलिए मैंने ब्लॉगिंग के लिए एक शुरूआती नियमावली की ओर रुख किया l मैंने सीखा कि किस पटल का उपयोग करना है, शीर्षकों का चयन कैसे करना है और सम्मोहक पोस्ट कैसे बनाना है l और 2016 में, मेरी पहली ब्लॉग पोस्ट का जन्म हुआ l 

पौलुस ने एक “शुरूआती नियमावली” लिखा जो बताता है कि कैसे अनंत जीवन प्राप्त किया जा सकता है l रोमियों 6:16-18 में, वह इस तथ्य की कि हम परमेश्वर के प्रति विद्रोह में जन्म लिए थे(पापी) के साथ इस सत्य की तुलना करता है कि यीशु हमें हमारे “पाप से [छुड़ाने]” में मदद कर सकता है (पद.18) l इसके बाद पौलुस पाप का दास और परमेश्वर का दास होने और उसके जीवनदायक तरीकों के बीच अंतर का वर्णन करता है (पद.19-20) l वह यह कहते हुए आगे बढ़ता है कि “पाप की मजदूरी तो मृत्यु है परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनंत जीवन है” (पद.23) l मृत्यु का अर्थ परमेश्वर से हमेशा का अलगाव है l यह वह विनाशकारी परिणाम है जिसका सामना हम तब करते हैं जब हम मसीह का तिरस्कार करते हैं l लेकिन परमेश्वर ने यीशु में हमें एक उपहार दिया है──नया जीवन l यह इस प्रकार का जीवन है जो पृथ्वी पर आरम्भ होता है और स्वर्ग में उसके साथ हमेशा के लिए जारी रहता है l 

पौलुस का आरम्भिक  अनंत जीवन की नियमावली हमारे सामने दो चुनाव रखती है──पाप का चुनाव, जो मृत्यु की ओर ले जाती है, या यीशु के उपहार का चुनाव, जो अनंत जीवन तक पहुंचता है l आप उसके जीवन का उपहार स्वीकार करें, और यदि आपने पहले ही मसीह को स्वीकार कर लिया है, तो आप आज दूसरों के साथ इस उपहार को साझा कीजिये!