Month: अक्टूबर 2021

जहाँ भी हम आराधना करते हैं

तीव्र दर्द और दुर्बल करनेवाला सिरदर्द ने मुझे मेरे स्थानीय चर्च परिवार के साथ . . . फिर से  आराधना में उपस्थित होने से रोक दिया l सामुदायिक आराधना की हानि से दुखी होकर मैंने एक ऑनलाइन उपदेश देखा l सबसे पहले, शिकायतों ने मेरे अनुभव को बढ़ा दिया l खराब ध्वनि और विडियो की गुणवत्ता ने मुझे विचलित कर दिया l लेकिन फिर विडियो पर एक आवाज़ ने एक परिचित गीत सुनाई l जब मैं उसे गाने लगी मेरे आँसू बहने लगे l “तू मेरा दर्शन हो, मेरे हृदय के ईश्वर, केवल तू और कोई नहीं l तू मेरा सर्वोत्तम विचार, रात या दिन में l चलते हुए या नींद में l तेरी उपस्थिति मेरा प्रकाश”(Be Thou my vision, O Lord of my heart. Naught be all else to me save that Thou art. Thou my best thought, by day or by night. Waking or sleeping, Thy presence my light) l परमेश्वर की निरंतर उपस्थिति पर केन्द्रित रहकर, मैं अपने बैठक में बैठे हुए उसकी आराधना की l 

जबकि पवित्रशास्त्र सामूहिक आराधना (इब्रानियों 10:25) के महत्वपूर्ण, आवश्यक प्रकृति की पुष्टि करता है, परमेश्वर एक चर्च की इमारत की दीवारों के भीतर नहीं है l यीशु की कूएँ पर सामरी महिला के साथ बातचीत में, उसने मसीह (यूहन्ना 4:9) की सभी अपेक्षाओं को चुनौती दी l निंदा करने के बजाय, यीशु ने सच बोला और उससे प्रेम किया जब वह उस कुँए के निकट खड़ी थी (पद.10) l उसने अपनी संतान के बारे में उनके अन्तरंग और संप्रभु ज्ञान को प्रगट किया (पद.17-18) l अपने ईश्वरत्व की घोषणा करते हुए, यीशु ने घोषणा की कि पवित्र आत्मा ने परमेश्वर के लोगों के हृद्यों में से सच्ची आराधना को उत्पन्न किया, किसी ख़ास भौतिक स्थान से नहीं (पद.23-24) l 

जब हम परमेश्वर कौन है, उसने क्या किया है, और सब कुछ जिसकी उसने प्रतिज्ञा की है पर केन्द्रित होते हैं, हम उसकी निरंतर उपस्थिति में आनंदित हो सकते हैं जब हम दूसरे विश्वासियों के साथ, अपने बैठक के कमरों में . . . और सभी जगह उसकी उपासना करते हैं!

दुर्बलताएँ(The Dwindles)

यह मेरे कंठ में एक सुरसुराहट की तरह शुरू हुआ l उह ओह, मैंने सोचा l वह सुरसुराहट इन्फ्लुएंजा निकला l और वह केवल श्वसनी पीड़ा (bronchial affliction) का आरम्भ था l इन्फ़्लुएन्ज़ा ने काली खांसी का रूप ले लिया──जी हाँ, वह काली खांसी──और वह निमोनिया में बदल गया l 

आठ सप्ताह तक शरीर को नाश करनेवाली खांसी ने──इसे यूँ ही काली खांसी नहीं कहा जाता है──मुझे विनीत कर दिया l मैं खुद को वृद्ध नहीं मानता l लेकिन मैं उस दिशा में आगे बढ़ने के विषय सोचना आरम्भ करने के लिए पर्याप्त उम्र का हूँ l चर्च में मेरे छोटे समूह के एक सदस्य के पास उन स्वास्थ्य मामलों के लिए जो हमारे उम्र में बढ़ने के साथ आक्रमण करते हैं एक मजेदार नाम है : “दुर्बलता(The Dwindles) l” लेकिन इन दुर्बलताओं के “कार्य करने” के विषय कुछ भी हास्यमय नहीं है l 

2 कुरिन्थियों 4 में, पौलुस ने भी──अपने तरीके से──“दुर्बलता” के बारे में लिखा l वह अध्याय उसके और उसके टीम के द्वारा सहे गए सताव का वर्णन करता है l अपने मिशन को पूरा करने में एक भारी कीमत चुकाना पड़ा था l हमारा “बाहरी मनुष्यत्व नष्ट होता” गया, उसने स्वीकार किया l लेकिन यद्यपि उसका शरीर विफल होता गया──उम्र, सताव, और कठोर स्थितियों के कारण──पौलुस थामने वाली अपनी आशा को मजबूती से पकड़ा रहा : “हमारा भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है” (पद.16) l उसने बल दिया, “हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश,” जो हमारे आगे है उसका मुकाबला नहीं कर सकता जो “हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और अनंत महिमा उत्पन्न करता जाता है” (पद.17) l 

यहाँ तक कि जब मैं आज रात को लिख रहा हूँ, दुर्बलता मेरे सीने पर पंजा मारती है l लेकिन मैं जानता हूँ कि मेरे जीवन में और या किस और के जो मसीह से लिपटा रहता है, अंतिम निर्णय उनका नहीं है l 

युवा विश्वास

किशोर उम्र कभी-कभी जीवन में सबसे अधिक दुखदायी कालों में से होती है──माता-पिता और बच्चे दोनों की लिए l मेरी माँ से एक “अलग पहचान” बनाने का मेरा प्रयास में, मैंने खुलकर उनके आदर्शों का इनकार किया और उनके नियमों के विरुद्ध विद्रोह किया, इस शक में कि उनका उद्देश्य केवल मुझको और दुखी बनाना था l यद्यपि हम अब उन विषयों पर सहमत हैं, हमारे रिश्तों में वह समय तनाव से भरपूर था l कोई शक नहीं कि माँ के निर्देशों की गंभीरता का मेरे द्वारा इंकार करना उन्हें दुखित करता था, यह जानते हुए कि वे मुझे व्यर्थ भावनात्मक और भौतिक पीड़ा से बचा सकती थीं l 

परमेश्वर के पास अपनी संतान, इस्राएल के लिए उसी तरह का हृदय था l जिसे हम दस आज्ञाओं के रूप में जानते हैं उसमें जीने के लिए परमेश्वर ने अपनी बुद्धि प्रदान की (व्यवस्थाविवरण 5:7-21) l यद्यपि उन्हें नियमों की सूची के रूप में देखा जा सकता है, परमेश्वर की मनसा मूसा को दिए गए उसके शब्दों से प्रगट है : “जिससे उनकी और उनके वंश की सदैव भलाई होती रहे” (पद.29) l मूसा ने यह कहते हुए परमेश्वर की इच्छा पहचान लिया, कि आज्ञा मानना प्रतिज्ञात देश में उनके साथ उसकी निरंतर उपस्थिति के आनंद में परिणित होगा (पद.33) l 

हम सब परमेश्वर के साथ “युवा” काल से होकर निकलते हैं, भरोसा किये बिना कि जीवन के लिए उसकी मार्गदर्शिका वास्तव में हमारी भलाई के लिए है l हम इस अनुभूति में बढ़ते जाएँ कि वह हमारे लिए सर्वोत्तम चाहता है और उसके द्वारा प्रस्तावित बुद्धि पर चलना सीखें l उसके मार्गदर्शन का उद्देश्य हमें आत्मिक परिपक्वता में ले चलना है जब हम और भी यीशु के समान बनते जाते हैं (भजन 119:97-104; इफिसियों 4:15; 2 पतरस 3:18) l 

आपका नाम क्या है?

किसी ने कहा है हम अपने जीवन में तीन नाम से जाने जाते हैं : नाम जो हमारे माता-पिता हमें देते हैं, नाम जो दूसरे हमें देते हैं(हमारी ख्याति), और वह नाम जो हम खुद को देते हैं(हमारा चरित्र) l नाम जो दूसरे हमें देते हैं मायने रखता है, क्योंकि “बड़े धन से अच्छा नाम अधिक चाहते योग्य है, और सोने चांदी से दूसरों की प्रसन्नता उत्तम है” (नीतिवचन 22:1) l लेकिन जबकि ख्याति महत्वपूर्ण है, चरित्र अधिक मायने रखता है l 

एक और नाम है जो और भी अधिक महत्वपूर्ण है l यीशु ने पिरगमुन में मसीहियों से कहा कि यद्यपि उनकी ख्याति जिसके वे योग्य थे बुरी तरह से प्रभावित हुई थी, उसके पास उनके लिए जो लड़ाई लड़ेंगे और आजमाइश पर जय पाएँगे स्वर्ग में एक नया नाम आरक्षित है l “जो जय पाए . . . उसे एक श्वेत पत्थर . . . दूँगा; और उस पत्थर पर एक नाम लिखा हुआ होगा, जिसे उसके पानेवाले के सिवाय और कोई न जानेगा” (प्रकाशितवाक्य 2:17) l 

हम निश्चित नहीं हैं कि यीशु ने एक सफ़ेद पत्थर का वादा क्यों किया? क्या यह जीतने का पुरस्कार है? मसीह के सम्बन्ध में(messianic) जेवनार में शामिल होने का निमंत्रण? शायद यह उसके समान है जो किसी समय जूरी-सदस्य(पंच) रिहाई के लिए समर्थन करते थे l हम नहीं जानते हैं l जो भी है, परमेश्वर वादा करता है कि हमारा नया नाम हमारे शर्म को मिटा देगा (यशायाह 62:1-5) l 

हमारी ख्याति तार-तार हो सकती है, और हमारा चरित्र दुरुस्त नहीं होता प्रतीत हो सकता है l लेकिन आख़िरकार कोई भी नाम हमें परिभाषित नहीं करता है l यह नहीं है कि दूसरे आपको किस नाम से पुकारते हैं न ही यह मायने रखता है कि आप खुद को क्या पुकारते हैं l आप वह हैं जो यीशु आपको संबोधित करता है l अपने नए नाम में जीयें l