महान योद्धा
डाएट इमन नेदरलैंड्स की एक साधारण, शर्मीली युवती थी──प्यार में, काम करने में, और परिवार और दोस्तों के साथ समय का आनंद लेने वाली──जब 1940 में जर्मनी ने आक्रमण किया । जैसा कि डाएट (उच्चारित डीफ) ने बाद में लिखा, “जब आपके दरवाजे पर खतरा है, आप लगभग शुतुरमुर्ग की तरह रेत में अपना सर छिपाना चाहते हैं ।” फिर डाएट ने महसूस किया कि ईश्वर ने उसे जर्मन उत्पीड़कों का विरोध करने के लिए बुलाया है, जिसमें यहूदियों और अन्य लोगों के लिए छिपने के स्थानों को खोजने के लिए अपने जीवन को जोखिम में डालना शामिल है । यह बेबस युवती ईश्वर के लिए योद्धा बन गयी ।
हमें डाएट के समान बाइबल में कई कहानियाँ मिलती हैं, कहानियाँ जिसमें हम परमेश्वर को अविश्वसनीय प्रतीत होने वाले चरित्रों को अपनी सेवा में उपयोग करते हुए देखते हैं । उदहारण के लिए, जब प्रभु के दूत ने गिदोन से संपर्क किया, तो उसने घोषणा की, “हे शूरवीर सूरमा, यहोवा तेरे संग है” (न्यायियों 6:12) । फिर भी गिदोन शूरवीर के सिवा कुछ और प्रतीत हो रहा था । वह गुप्त रूप से मिद्यानियों की भेद लेनेवाली आँखों से दूर गेहूं झाड़ रहा था जिन्होंने दमनात्मक ढंग से इस्राएल को नियंत्रित कर रखा था (पद. 1-6, 11) । वह इस्राएल(मनश्शे) के सबसे कमज़ोर कुल और उसके घराने में “सबसे छोटा” (पद.15) था । उसने परमेश्वर के आह्वान को महसूस नहीं किया और कई संकेतों का अनुरोध भी किया । फिर भी परमेश्वर ने उसे क्रूर मिद्यानियों को पराजित करने के लिए इस्तमाल किया (देखें अध्याय 7) ।
परमेश्वर ने गिदोन को “शूरवीर” के रूप में देखा । और जिस तरह परमेश्वर गिदोन के साथ था और उसे सज्जित किया, उसी तरह ईश्वर हमारे──“उसके प्रिय बालकों”──साथ भी है, (इफिसियों 5:1)──हमारे जीने के लिए उसकी सेवा छोटे या बड़े तरीकों से करने के लिए हमारी समस्त आवश्यकताओं को पूरा कर रहा है ।
एक धन्यवाद हृदय
प्राचीन रोम(ई.पू.4 - ई.सन् 65) का महान दर्शनशास्त्री, सेनेका पर एक बार महारानी मेसालिना द्वारा व्यभिचार का आरोप लगाया गया । राज्यसभा द्वारा सेनेका को मृत्यु दंड देने के बाद, सम्राट क्लौदिउस ने उसे इसके बदले कोर्सिका(एक द्वीप) में निर्वासित कर दिया, शायद इसलिए कि उसने अनुमान लगाया कि आरोप झूठा था । प्राणदंड के इस स्थगन ने शायद कृतज्ञता के उसके दृष्टिकोण को आकार दिया होगा जब उसने लिखा : मानववध, तानाशाह, चोर, व्यभिचारी, डकैत, पवित्र वस्तु दूषक, और देशद्रोही हमेशा रहेंगे, लेकिन इन सभी से बदतर कृतघ्नता का आपराध है ।
सेनेका का समकालीन, प्रेरित पौलुस शायद सहमत होता । रोमियों 1:21 में, उसने लिखा कि मानव जाति के पतन का कारण यह था कि उन्होंने परमेश्वर को धन्यवाद देने से इनकार किया । कुलुस्से की कलीसिया को लिखते हुए, पौलुस ने मसीह में साथी विश्वासियों को कृतज्ञता के प्रति चुनौती दी । उसने कहा कि हमें अधिकाधिक धन्यवाद करते” रहना है (कुलुस्सियों 2:7) । जब हम परमेश्वर की शांति को “अपने हृदय में अधिकाई से बसने” देते हैं, हम धन्यवाद के साथ प्रत्युत्तर देते हैं (3:15) । वास्तव में, धन्यवाद हमारी प्रार्थनाओं को चरितार्थ करे (4:2) ।
हमारे प्रति परमेश्वर की महान भलाइयाँ हमें जीवन की महान वास्तविकताओं में से एक की याद दिलाती है । वह न केवल हमारे प्रेम और आराधना के योग्य है, वह हमारे धन्यवादी हृदय के योग्य भी है । सब कुछ जो जीवन में अच्छा है उसी की ओर से आता है (याकूब 1:17) ।
सब कुछ के साथ जो हम मसीह में हैं, कृतज्ञता को साँस लेने के समान स्वभाविक होना चाहिए । हम उसके प्रति अपना धन्यवाद प्रगट करते हुए परमेश्वर के उदार दानों का प्रत्युत्तर दें ।
परमेश्वर की इच्छा
परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण करना कभी-कभी कठिन होता है । वह हमसे सही काम करने के लिए कहता है । वह हमें शिकायत किए बिना कष्ट सहने के लिए कहता है; ख़राब लोगों से प्यार करना; अपने भीतर की आवाज़ पर ध्यान देना जो कहता है, आप ऐसा नही कर सकते; ऐसे कदम लेना जो हम निःसंदेह नहीं लिए होते । इसलिए, हम दिन भर अपने मन से कहें : “हे मन, उत्साह से सुनो । चुपचाप रहो । यीशु जो आप से करने को कह रहा है वही करें ।”
सचमुच मैं चुपचाप होकर परमेश्वर की ओर मन लगाए हूँ” (भजन 62:1) । “हे मेरे मन, परमेश्वर के सामने चुपचाप रह” (62:5) । ये पद सदृश्य हैं, लेकिन भिन्न । दाऊद अपने मन के विषय कहता है; उसके बाद मन से कुछ कहता है । “चुपचाप” एक निर्णय को संबोधित करता है, एक शांत मन । “चुपचाप रह” दाऊद के मन को उस निर्णय को याद रखने के लिए उकसाता है ।
दाऊद शांति में रहने का मन बनाता है──परमेश्वर की इच्छा के प्रति शांत समर्पण । यह बुलाहट हमारी भी है, वह चीज़ जिसके लिए हम बनाए गए हैं । हम शांति से रहेंगे जब हम सहमत होंगे : “मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो” (लूका 22:42) । यह हमारा प्रथम और सर्वोच्च बुलाहट है जब हम उसे प्रभु मानते हैं और अपने सबसे गहरे आनंद का श्रोत । “हे मेरे परमेश्वर, मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्न हूँ” (भजन 40:8) ।
जी हाँ, हमें सदैव परमेश्वर की सहायता मांगनी चाहिए, क्योंकि हमारी “आशा उसी में है” (62:5) । जब हम उसकी सहायता मांगते हैं, वह देता है । परमेश्वर हमसे कोई भी ऐसा काम करने को नहीं देता है जो वह नहीं करेगा या कर नहीं सकता है ।
आशा साझा करना
जबी शांति ने साझा किया कि कैसे ईश्वर ने उसकी पहचान को उसके प्यारे बच्चे के रूप में स्वीकार करने में मदद की, उसने हमारी बातचीत में पवित्रशास्त्र को चुना । मैं मुश्किल से यह पता लगा सकी कि हाई स्कूल के छात्रा ने अपनी बातें कहना बंद कर दिया और ईश्वर के शब्दों को उद्धृत करना शुरू कर दिया । जब मैंने उसे चलती-फिरती बाइबल की तरह चलने के लिए सराहा, तो उसकी भौं में शिकन आ गई । वह जानबूझकर पवित्रशास्त्र के पदों को कहती नहीं थी । बाइबल के दैनिक पठन के द्वारा, इसमें पायी जाने वाली बुद्धिमत्ता शांति की रोजमर्रा की शब्दावली का एक हिस्सा बन गए थे । उसने ईश्वर की निरंतर उपस्थिति में ख़ुशी जताई और अपने सत्य को दूसरों के साथ साझा करने के लिए हर अवसर का आनंद लिया । लेकिन शांति पहली ऐसी युवती नहीं है जिसका उपयोग ईश्वर ने दूसरों को प्रार्थनापूर्वक, पढ़ने, याद करने और पवित्रशास्त्र को लागू करने के लिए प्रेरित करने के लिए किया है ।
जब प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को नेतृत्व में कदम रखने के लिए प्रोत्साहित किया, तो उसने इस जवान में भरोसा दर्शाया (1 तीमुथियुस 4:11,16) । पौलुस ने स्वीकार किया कि तीमुथियुस बचपन से ही पवित्रशास्त्र में जड़वत था (1 तीमुथियुस 3:15) । पौलुस की तरह, तीमुथियुस को संदेह का सामना करना पड़ा । फिर भी, दोनों लोग ऐसे जीवन जीये जैसे कि वे विश्वास करते थे कि “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र “परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है ।” उन्होंने माना कि पवित्रशास्त्र “उपदेश, समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिए लाभदायक है, ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिए तत्पर हो जाए” (2 तीमुथियुस 3:16-17) ।
जब हम परमेश्वर की बुद्धि को अपने हृदयों में छिपा लेते हैं, तो उसका सत्य और प्रेम स्वाभाविक रूप से हमारी बातचीत में प्रवाहित होता है । हम जहाँ भी जाते हैं ईश्वर की अनंत आशा को साझा करते हुए चलने वाली बाइबल की तरह हो सकते हैं ।
सच्चे आराधक
उसे आख़िरकार उस चर्च जाने का मौका मिला । वह तहखाने के भीतरी भाग में, वह छोटे गुफा या खोह(grotto) में पहुंची । वह संकरा स्थान मोमबत्तियों से भरा था और फर्श का एक कोना लटके हुए लैंप्स से आलोकित था । वह यहाँ था──एक चौदह नोकवाला चाँदी का तारा, जो संगमरमर के फर्श के उभरे हुए हिस्से को ढँक रहा था । वह बेतलहेम में ग्रोटो ऑफ़ द नेटीविटी में थी──वह स्थान जहाँ परम्परा के अनुसार मसीह ने जन्म लिया था । फिर भी लेखिका एनी डिलार्ड प्रभावित से कम महसूस करते हुए समझ ली कि परमेश्वर इस स्थान से बहुत बड़ा था ।
फिर भी, ऐसे स्थान हमारे विश्वास की कहानियों में बड़ा महत्व रखते हैं । एक और ऐसा स्थान यीशु और कूंएं पर उस स्त्री के बीच बातचीत में वर्णित है──वह पहाड़──गरिज्जीम पर्वत का सन्दर्भ देते हुए(व्यवस्थाविवरण 11:29)──जहाँ उसके “बापदादों ने आराधना की” (यूहन्ना 4:20) । वह सामरियों के लिए पवित्र था, जिन्होंने इसे यहूदी जिद्द के विपरीत बताया कि यरूशलेम ही था जहाँ सच्ची आराधना होती थी (पद.20) । हालाँकि, यीशु ने घोषणा की कि वह समय आ चूका है जब आराधना किसी ख़ास स्थान तक सीमित नहीं थी, लेकिन एक व्यक्ति : सच्चे भक्त पिता की आराधना आत्मा और सच्चाई से करेंगे” (पद.23) । उस स्त्री ने मसीह(Messiah) में अपना विश्वास जताया, लेकिन उसने नहीं पहचाना कि वह उससे बात कर रही थी । “यीशु ने उस से कहा, ‘मैं जो तुझ से बोल रहा हूँ, वही हूँ’” (पद.26) ।
परमेश्वर किसी पहाड़ या भौतिक स्थान तक सीमित नहीं है । वह हमारे साथ सभी जगह उपस्थित है । हर दिन जो सच्चा तीर्थ हम करते हैं वह उसके सिंहासन के पास पहुँचना है क्योंकि हम साहसपूर्वक कहते हैं, “हमारे पिता,” और वह वहाँ उपस्थित है ।