स्त्रोत
यह 1854 का समय था, और लन्दन में कोई चीज़ हज़ारों लोगों की जान ले रही थी l यह ख़राब हवा होगी, लोगों ने सोचा l और वास्तव में, जैसे ही अत्यधिक गंदगी से भरी हुयी थेम्स नदी पर बेमौसम गर्मी ने प्रभाव डाला, बदबू इतनी बढ़ गयी कि वह “द ग्रेट स्टिंक(The Great Stink) के नाम से जाना जाने लगा l
लेकिन सबसे बुरी समस्या हवा की नहीं थी l डॉ. जॉन स्नो के शोध से पता चलता है कि दूषित पानी हैज़ा (कॉलरा/cholera) की महामारी का कारण था l
हम मनुष्य लम्बे समय से एक और संकट से परिचित हैं—एक जिसकी बदबू ऊँचे स्वर्ग तक पहुँचती है l हम एक टूटे संसार में रहते हैं—और हम इस समस्या की गलत पहचान करने की ओर प्रवृत होते हैं, समस्या की जगह इसके लक्षणों का इलाज करते हैं l बुद्धिमान सामाजिक कार्यक्रम और नीतियाँ कुछ अच्छा करती हैं, लेकिन वे समाज की बुराइयों के मूल कारण को रोकने में लाचार हैं—वह है हमारा पापी हृदय!
जब यीशु ने कहा, “ऐसी कोई वस्तु नहीं जो मनुष्य में बाहर से समाकर उसे अशुद्ध करे,”वह शारीरिक बिमारियों का सन्दर्भ नहीं दे रहा था (मरकुस 7:15) l बल्कि, वह हममें से प्रत्येक की आध्यात्मिक स्थिति को प्रकट कर रहा था l हमारे भीतर छिपी हुयी बुराइयों की एक सूची बताते हुए (पद.21-22), उसने कहा “जो वस्तुएँ मनुष्य के भीतर से निकलती हैं, वे ही उसे अशुद्ध करती हैं,” (पद.15) l
“देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ,” दाऊद ने लिखा (भजन 51:5) l उसका विलाप ऐसा है जिसे हम सब आवाज़ दे सकते हैं l हम सब आरम्भ से ही टूटे हुए हैं l इसलिय दाऊद प्रार्थना करता है, “हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर” (पद.10) l प्रतिदिन, हमें यीशु की आत्मा द्वारा सृजित एक नया हृदय चाहिए l
लक्षणों का इलाज करने के बदले, हम यीशु को स्त्रोत को पवित्र करने दें l
मित्रों की विरासत
मैं उससे 1970 के दशक में मिला था जब मैं हाई स्कूल का शिक्षक और बास्केटबॉल कोच था, और वह लम्बा, दुबला-पतला नया विद्यार्थी l जल्द ही वह मेरे बास्केटबॉल टीम और मेरी कक्षाओं में था—और एक मित्रता आरम्भ हो गयी l वही मित्र, जो मेरे साथ सह-सम्पादक का काम कई वर्षों तक किया था, मेरी सेवानिवृत्ति समारोह (रिटायरमेंट पार्टी) में मेरे सामने खड़ा था और जिसने हमारी पुरानी मित्रता की विरासत के बारे में साझा किया l
परमेश्वर के प्रेम से जुड़े मित्रों के बारे में ऐसा क्या है जो हमें उत्साहित करता है और हमें यीशु के निकट लाता है? नीतिवचन के लेखक ने समझा कि मित्रता के दो उत्साहजनक अंश हैं : पहला, सच्चे मित्र बहुमूल्य सलाह देते हैं, भले ही देना या लेना आसान न हो (27:6) : “जो घाव मित्र के हाथ से लगें वह विश्वासयोग्य हैं,” लेखक समझाता है l दूसरी बात, एक मित्र जो निकट है और सुलभ है संकट के समय में महत्वपूर्ण है : “प्रेम करनेवाला पड़ोसी, दूर रहनेवाले भाई से कहीं उत्तम हैI” (पद.10)
जीवन में अकेले उड़ना हमारे लिए अच्छा नहीं है l जैसा कि सुलैमान ने कहा : “एक से दो अच्छे हैं, क्योंकि उनके परिश्रम का अच्छा फल मिलता है” (सभोपदेशक 4:9) l जीवन में, हमें दोस्त की ज़रूरत है और हमें दोस्त बनने की ज़रूरत है l परमेश्वर हमें “भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे से स्नेह [रखने]” (रोमियों 12:10) और “एक दूसरे का भार [उठाने]” (गलातियों 6:2) में सहायता कर सकता है—ऐसा मित्र बनना जो दूसरों को प्रोत्साहित कर सके और उन्हें यीशु के प्रेम के निकट ला सके l
बुद्धिमान या मूर्ख?
बैंड का संगीत था l मेरे पिताजी, जिनका पालन-पोषण एक हिन्दू घर में हुआ था, लेकिन जिन्होंने यीशु में उद्धार प्राप्त किया था, को यह मंजूर नहीं था l वे चाहते थे कि हमारे घर में केवल आराधना संगीत बजे l मैंने समझाया कि यह एक मसीही बैंड था, लेकिन इससे उनका विचार नहीं बदला l थोड़ी देर बाद, उन्होंने सुझाव दिया कि मैं एक सप्ताह के लिए उन गीतों को सुनूँ और फिर तय करूँ कि क्या वे मुझे परमेश्वर के करीब लाए या मुझे उनसे और दूर कर दिया l उस सलाह में कुछ उपयोगी बुद्धिमता थी l
जीवन में बातें हैं जो स्पष्ट रूप से सही या गलत हैं, लेकिन कई बार हम विवादास्पद विषयों के साथ जूझते हैं (रोमियों 14:1-19) l निर्णय करने में कि क्या करना चाहिए, हम अवश्य ही पवित्र बाइबल में निहित बुद्धि ढूंढ़ते हैं l पौलुस ने इफिसुस के विश्वासियों को उत्साहित किया, “ध्यान से देखो, कि कैसी चाल चलते हो : निर्बुद्धियों के समान नहीं पर बुद्धिमानों के समान चलो” (इफिसियों 5:15) l एक अच्छे अभिभावक की तरह, पौलुस जानता था कि वह संभवतः वहां नहीं हो सकता या हर स्थिति के लिए निर्देश नहीं दे सकता था l यदि वे “अवसर को बहुमूल्य [समझेंगे], क्योंकि दिन बुरे हैं,” उन्हें स्वयं ही अपने लिए निर्णय लेना होगा और “[समझना होगा कि] प्रभु की इच्छा क्या है” (पद.16-17) l बुद्धिमत्ता का जीवन विवेक और अच्छे निर्णयों को आगे बढ़ाने के लिए एक निमंत्रण है जब परमेश्वर तब भी हमारा मार्गदर्शन करता है जब हम मतभेद या तर्क-वितर्क के साथ जूझते हैं l
अपने पड़ोसियों से प्रेम करना
कोरोनावाइरस महामारी के समय आत्म-अलगाव/स्वपृथकीकरण और लॉकडाउन के दिनों में, मार्टिन लूथर किंग जूनियर द्वारा उनके “लेटर फ्रॉम ए बर्मिंघम जेल” के शब्द सच्चे थे l अन्याय के विषय बोलते हुए, उन्होंने टिप्पणी की कि कैसे वह एक शहर में आलस्य से नहीं बैठ सकते और दूसरे में क्या होता है इसके बारे में चिंतित नहीं हो सकते l “हम पारस्परिकता के एक अपरिहार्य नेटवर्क में फंस गए हैं,” उन्होंने कहा, “नियति के एक ही परिधान में बंधे हुए हैं l जो कुछ भी प्रत्यक्ष रूप से एक को प्रभावित करता है, अप्रत्यक्ष रूप से सभी को प्रभावित करता है l”
उसी प्रकार, कोविड-19 महामारी हमारी संयुक्तता(कनकटेडनेस/connectedness) को उजागर किया जब संसार भर के शहरों और देशों ने वायरस के प्रसार को रोकने के लिए खुद को बंद कर दिया था l जिसने एक शहर को प्रभावित किया वह जल्द ही दूसरे को प्रभावित कर सकता था l
कई शताब्दी पहले, परमेश्वर ने अपने लोगों को निर्देश दिया था कि कैसे दूसरों के लिए चिंता दर्शाएँ l मूसा के द्वारा, उसने इस्राएलियों को उनका मार्गदर्शन करने और उन्हें एक साथ रहने में सहायता करने के लिए व्यवस्था दी l उसने उनसे कहा कि “न अपने पड़ोसी की हत्या के उद्देश्य से घात लगाना” (लैव्यव्यवस्था 19:16); और बदला लेने या दूसरों से बैर रखने के लिए नहीं, वरन् “अपने पड़ोसी को अपने ही समान प्रेम करना” (पद.18) परमेश्वर जानता था कि समुदाय का टूटकर बिखरना शुरू हो जाएगा यदि लोग दूसरों की चिंता नहीं करेंगे, उनके जीवनों को उतना महत्व नहीं देंगे जितना अपने जीवनों को देते हैं l
हम भी परमेश्वर की बुद्धिमत्ता के निर्देश को अपना सकते हैं l जब हम अपने दैनिक गतिविधियों में लगे रहते हैं, हम याद रख सकते हैं कि हम कितने एक दूसरे से जुड़े हुए हैं जब हम परमेश्वर से पूछते हैं कि हम किस तरह उनसे प्रेम और उनकी सेवा अच्छी तरह कर सकते हैं l
सोमवार के लिए शुक्रगुज़ार
मैं सोमवार से डरता था l कभी-कभी, जब मैं अपनी पिछली नौकरी पर जाने के लिए ट्रेन से उतरता था, तो मैं स्टेशन पर थोड़ी देर के लिए बैठ जाता, बिल्डिंग तक पहुँचने में थोड़ा समय लगाता, भले ही केवल कुछ मिनटों के लिए ही सही l मेरा हृदय तेजी से धड़कता था जब मैं समय सीमा को पूरा करने और एक तुनकमिज़ाज बॉस के मूड को सँभालने के बारे में चिंतित होता था l
हममें से कुछ एक लोगों के लिए, एक और नीरस कार्य-सप्ताह(workweek) को आरम्भ करना विशेष रूप से कठिन हो सकता है l हम अपने कार्य में अभिभूत या कम सराहनीय महसूस कर रहे हों l राजा सुलैमान कार्य के परिश्रम का वर्णन करता है जब उसने लिखा : “मनुष्य जो धरती पर मन लगा लगाकर परिश्रम करता है उससे उसको क्या लाभ होता है? उसके सब दिन तो दुखों से भरे रहते हैं” (सभोपदेशक 2:22-23) l
हालांकि उस बुद्धिमान राजा ने हमें कार्य को कम तनावपूर्ण या अधिक लाभकारी बनाने का सम्पूर्ण हल नहीं दिया, परन्तु उसने हमें हमारे दृष्टिकोण में बदलाव अवश्य दिया l चाहे हमारा कार्य कितना भी कठिन हो, वह हमें परमेश्वर की ओर से (पद.24) प्राप्त करके उसमें “संतोष पाने” के लिए प्रोत्साहित करता हैं l शायद यह तब आएगा जब पवित्र आत्मा हमें मसीह के समान चरित्र प्रदर्शित करने में सक्षम बनाता है l या जब हम किसी ऐसे व्यक्ति से सुनते हैं जिसे हमारी सेवा के माध्यम से आशीष मिली है l या जैसा कि हम उस बुद्धिमत्ता को याद करते हैं जिसे परमेश्वर ने एक कठिन परिस्थति से निपटने के लिए प्रदान किया था l यद्यपि हमारा कार्य कठिन हो सकता है, हमारा विश्वासयोग्य परमेश्वर हमारे साथ है l उसकी उपस्थिति और सामर्थ्य उदास व् धुंधले दिनों को भी प्रकाशित कर सकती है l उसकी मदद से हम सोमवार के लिए शुक्रगुजार हो सकते हैं l