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Articles by आदम अर होल्ज़

निर्माणाधीन

उन्होंने अभी-अभी सड़क को फिर से बनाया है, मैंने मन में सोचा जब यातायात धीमी हो गयी अब वे उसे फिर से उखाड़ रहे हैं! तब मैंने सोचा, सड़क निर्माण कभी भी पूरा क्यों नहीं होता है? मेरा मतलब है, मैंने कभी भी ऐसा संकेत नहीं देखा, “सड़क निर्माण कंपनी ने काम पूरा कर दिया है l कृपया इस पूर्ण सड़क का आनंद लें ।”
लेकिन मेरे आध्यात्मिक जीवन में भी कुछ ऐसा ही है। मेरे आरंभिक विश्वास में, मैंने परिपक्वता के एक क्षण तक पहुँचने की कल्पना की जब मुझे यह सब पता चल जाता, कि कब मैं “आसानी से बन गया हूँ।” तीस साल बाद, मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं अभी भी “निर्माणाधीन हूँ।” हमेशा की तरह गड्ढों वाली सड़कों पर मैं ड्राइव करता हूँ, मुझे कभी भी “पूर्ण” महसूस नहीं करता हूँ। कभी-कभी यह समान रूप से निराशाजनक महसूस हो सकता है।
परन्तु इब्रानियों 10 में एक अद्भुत प्रतिज्ञा है। पद 14 कहता है, “क्योंकि उसने एक ही चढ़ावे के द्वारा उन्हें जो पवित्र किये जाते हैं, सर्वदा के लिए सिद्ध कर दिया है” (पद.14) l क्रूस पर यीशु का कार्य हमें पहले से ही बचा लिया है पूरी तरह सिद्धता से परमेश्वर की नज़रों में, हम पूर्ण और सम्पूर्ण हैं। परन्तु विरोधाभासी रूप से, वह प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई हैल हम अभी भी उसकी समानता में आकार ले रहे हैं, अभी भी “पवित्र बनाए जा रहे हैं l”
एक दिन, हम उसे आमने-सामने देखेंगे, और उसके समान होंगे (1 यूहन्ना 3:2)। परन्तु तब तक, हम अभी भी “निर्माणाधीन” हैं, लोग जो उत्सुकता से उस महिमामय दिन का इंतज़ार करते हैं जब हम में वास्तव में काम पूरा होगा।

सबसे दुखित बत्तख

पार्किंग के स्थान पर फुटबॉल क्यों? मैं अचंभित हुआ l लेकिन जैसे-जैसे मैं करीब आता गया, मुझे अहसास हुआ कि राख के रंग का दिखाई देने वाला गोला फुटबॉल नहीं था : वह एक बत्तख था – सबसे दुखित बत्तख जो मैंने कभी देखा हो l

बतखें अक्सर ठन्डे महीनों में मेरे कार्यस्थल के निकट मैदान में एकत्र होते हैं l लेकिन आज केवल एक था, उसकी गर्दन पीछे की ओर मुड़ी हुयी और उसका सिर पंखों के अन्दर छिपा हुआ था lतुम्हारे मित्र कहाँ हैं? मैंने सोचा l बेचारा बिलकुल अकेला था l वह बहुत उदास दिखाई दे रहा था, मैं उसे गले लगाना चाहता था l

मैंने पंख वाले अपने अकेले मित्र की तरह शायद ही कभी बत्तख देखा हो lबतखों को विशेष रूप से एक साथ,V का आकार बनाते हुए हवा को चीरते हुए उड़ते देखा जाता है l उन्हें एक साथ रहने के लिए बनाया गया है l

मनुष्य होने के नाते, हमें भी समुदाय में रहने के लिए ही रचा गया है (देखें उत्पत्ति 2:18) l और सभोपदेशक 4:10 में, सुलैमान वर्णन करता है कि जब हम अकेले होते हैं तब कितना असुरक्षित होते हैं : “हाय उस पर जो अकेला होकर गिरे और उसका कोई उठानेवाला न हो l” वह आगे कहता है, संख्या में ताकत है, क्योंकि “यदि कोई अकेले पर प्रबल हो तो हो, परन्तु दो उसका सामना कर सकेंगे l जो डोरी तीन तागे से बटी हो वह जल्दी नहीं टूटेगी” (4:12) l

यह हमारे लिए आध्यात्मिक रूप से उतना ही सत्य है जितना कि शारीरिक रूप से l परमेश्वर हमें कभी भी अकेले “उड़ने” की इच्छा नहीं रखा, कमजोर रूप से अलग-थलग l हमें प्रोत्साहन, ताजगी और वृद्धि के लिए एक-दूसरे के साथ संबंधों की ज़रूरत है (देखें 1 कुरिन्थियों 12:21) l

एक साथ, हम दृढ़ खड़े रह सकते हैं जब तेज़ हवा का विपरीत झोंका हमारे सामने हो lएक साथ l

समस्त सुअवसर

आपने कभी शेर पकड़ा है? जब तक मेरे बेटे ने मुझे अपने फोन पर गेम डाउनलोड करने के लिए राज़ी नहीं किया, तब तक मैं नहीं पकड़ा था l वास्तविक संसार को दर्शाते हुए एक डिजिटल मानचित्र का बनाकर, खेल आपको आपके निकट रंगीन प्राणियों को पकड़ने की अनुमति देता है l

अधिकाँश मोबाइल गेमों के विपरीत, इसमें गति की ज़रूरत होती है l कहीं भी आप जाएँ खेल के मैदान का हिस्सा हैं l परिणाम? मैं बहुत अधिक चल रहा हूँ! कभी भी मेरा बेटे और मैं खेलते हैं, हम अपने आसपास रहनेवाले जानवरों को दबोचने के लिए हर अवसर को अधिकतम करने का प्रयास करते हैं l 

इस पर ध्यान केन्द्रित करना आसान है, यहाँ तक कि उसमें ग्रस्त होना, एक गेम जो उपयोगकर्ताओं को लुभाने के लिए तैयार किया गया है l लेकिन जैसा जब मैंने खेल खेला था, मैं इस सवाल से दोषी महसूस किया :  क्या मैं अपने आस-पास के आध्यात्मिक अवसरों को अधिकतम करने के बारे में स्वेच्छाचारी/जिद्दी हूँ? 

पौलुस जानता था कि हमारे चारों ओर परमेश्वर के कार्य के प्रति सतर्क रहने की ज़रूरत है l कुलुस्सियों 4 में, उसने सुसमाचार को साझा करने के अवसर के लिए प्रार्थना के लिए कहा (पद.3) l फिर उसने चुनौती दी, “अवसर को बहुमूल्य समझकर बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से व्यवहार करो” (पद.5) l पौलुस नहीं चाहता था कि कुलुस्से के लोग मसीह की ओर दूसरों को प्रभावित करने का कोई मौका छोड़ें l लेकिन ऐसा करने के लिए वास्तव में उन्हें और उनकी ज़रूरतों को देखने की आवश्यकता होगी, फिर उन तरीकों में संलग्न होना होगा जो “अनुग्रह सहित” (पद.6) है l 

हमारे संसार में, एक खेल के काल्पनिक शेरों की तुलना में कहीं अधिक चीजें हमारे समय और ध्यान को आकर्षित करती हैं l लेकिन परमेश्वर हमें हर दिन एक वास्तविक संसार में साहसिक कार्य के लिए आमंत्रित करता है, हर दिन उसकी ओर इंगित करने के अवसरों की खोज करना l  

पूरा ध्यान

प्रोद्योगिकी आज हमारे निरंतर ध्यान देने की मांग करती है l इंटरनेट का आधुनिक “चमत्कार” हमें आने हाथ की हथेली में मानवता की सामूहिक शिक्षा तक पहुँचने की अद्भुत क्षमता प्रदान करता है l लेकिन कई लोगों के लिए, इस तरह की निरंतर पहुँच लागत पर आ सकती है l

हमेशा यह जानने की ज़रूरत कि “वहाँ क्या हो रहा है,” के आधुनिक प्रयोजन का वर्णन करने के लिए हाल ही में “निरंतर आंशिक ध्यान” वाक्याँश तैयार किया गया था जिससे यह निश्चित हो कि हमसे कुछ छूट तो नहीं रहा है l अगर ऐसा लगता है कि यह पुरानी चिंता पैदा कर सकता है, तो आप सही हैं!

यद्यपि प्रेरित पौलुस चिंता के विभिन्न कारणों से जूझ रह था, वह जानता था कि हमारी आत्माएं परमेश्वर में शांति पाने के लिए बाध्य है l यह कारण है कि, नए विश्वासियों को लिखे पत्र में जिन्होंने सताव सहा था (1 थिस्सलुनीकियों 2:14), पौलुस ने उनसे आग्रह करते हुए समाप्त किया कि “सदा आनंदित रहो l निरंतर प्रार्थना में लगे रहो l हर बात में धन्यवाद करो” (5:16-18) l 

“निरंतर” प्रार्थना करना बहुत चुनौतीपूर्ण लग सकता है l लेकिन फिर, हम कितनी बार अपना फोन देखते हैं? कितना अच्छा होता अगर इसके बजाय यह प्रेरणा परमेश्वर से बात करने के लिए उकसाव हो? 

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि काश हम परमेश्वर में निरंतर, प्रार्थनापूर्ण विश्राम के लिए हमेशा “जाननेवालों” में रहने की ज़रूरत का आदान-प्रदान करना सीख जाते? मसीह की आत्मा पर भरोसा करके, जब हम प्रतिदिन आगे बढ़ते हैं हम अपने स्वर्गिक पिता को अपना निरंतर पूर्ण ध्यान देना सीख सकते हैं l 

झुकी हुआ मीनार

शायद आपने इटली में पीसा की झुकी मीनार के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या आपने सैन फ्रैंसिस्को की झुकी हुयी मीनार के विषय सुना है? इसे मिलेनियम टावर कहा जाता है l 2008 में निर्मित, यह अट्ठाईस मंजिला गगनचुम्बी इमारत गर्व से खड़ी है  - लेकिन थोड़ी टेढ़ी-मेढ़ी - सैन फ्रैंसिस्को शहर के केंद्र में l 

समस्या? इसके इंजिनियरों ने नींव को प्रयाप्त गहरी नहीं खोदी l इसलिए अब उसकी मरम्मत के साथ नींव को पुनः बनाने के लिए मजबूर किया जा रहा है जिसकी लागत पूरे टावर से अधिक हो सकती है जब इसे पहले बनाया गया था – मरम्मत जिसे कुछ लोग आवश्यक मानते हैं कि भूकंप के दौरान जो इसे गिरने से रोक सकता है l 

यहाँ पर पीड़ादायक सबक? नींवें मायने रखती हैं l जब आपकी नींव ठोस नहीं होती है, तो तबाही मच सकती है l यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश के अंत में कुछ ऐसा ही सिखाया l मत्ती 7:24-27 में, उसने दो बिल्डरों की तुलना की, एक जिसने चट्टान पर बनाया, और दूसरा जिसने बालू पर l जब अपरिहार्य रूप से एक तूफ़ान आया, तो केवल एक ठोस नींव वाला घर ही खड़ा रह गया था l 

हमारे लिए इसका क्या अर्थ है? यीशु स्पष्ट रूप से कहता है कि हमारा जीवन आज्ञाकारिता और उस पर विश्वास के द्वारा बनाया जाना चाहिए (पद.24) l  जब हम उसमें विश्राम करते हैं, हमारा जीवन परमेश्वर की सामर्थ्य और अनंत अनुग्रह से ठोस आधार प्राप्त कर सकता है l 

मसीह ने हमसे वादा नहीं किया है कि हम कभी भी तूफानों का सामना नहीं करेंगे l लेकिन वह अवश्य कहता है कि जब वह हमारी चट्टान है, तो तूफ़ान कभी भी हमारे विश्वास को बहा नहीं ले जा सकते हैं – उसमें मजबूत नींव l  

कीलों . . . का प्रभु?

मैं अपनी कार में घुस रहा था जब उस चमक ने मेरा ध्यान आकर्षित किया : एक कील, मेरी कार की पिछली टायर के बगल वाले हिस्से में गड़ा हुआ था l मुझे संकेतक के रूप में हवा की सीटी नुमा आवाज़ सुनाई पड़ी l शुक्र है, छेद बंद हो गया – कम से कम थोड़े समय के लिए l

जब मैं एक टायर की दूकान पर पहुँचा, मैंने सोचा : कितने समय से वह कील वहाँ पर है? कुछ दिनों से? कुछ सप्ताहों से? कितने समय से मैं एक खतरे से बचाया गया हूँ जो मैं नहीं जानता था कि वह वहाँ मौजूद है?

हम कभी-कभी इस भ्रम में रह सकते हैं कि हम नियंत्रण में हैं l लेकिन उस कील ने मुझे याद दिलाया कि हम नियंत्रण में नहीं है l

लेकिन जब जीवन नियंत्रण से बाहर हो जाता है और अस्थिर होता है, तो हमारे पास एक परमेश्वर है जिसकी विश्वसनीयता पर हम भरोसा कर सकते हैं l भजन 18 में, दाऊद ने परमेश्वर की प्रशंसा करता है जो उसका ध्यान रखता है (पद.34-35) l दाऊद कबूल करता है, “यह वही ईश्वर है, जो सामर्थ से मेरा कटिबंध बांधता है . . . तू ने मेरे पैरों के लिए स्थान चौड़ा कर दिया, और मेरे पैर नहीं फिसले” (पद.32, 36) l इस प्रशंसा के काव्य में, दाऊद परमेश्वर की निरंतर उपस्थिति (पद.35) मानता है l   

मैं व्यक्तिगत रूप से दाऊद की तरह युद्ध में मेल नहीं खाता हूँ; मैं जोखिम नहीं उठाने के लिए अनावश्यक परिश्रम भी करता हूँ l फिर भी, मेरा जीवन अक्सर अव्यवस्थित रहता है l

लेकिन मैं इस ज्ञान में विश्राम कर सकता हूँ कि, यद्यपि परमेश्वर हमें जीवन की सभी कठियाइयों से सुरक्षा का वादा नहीं करता है, वह हमेशा जानता है कि मैं कहाँ हूँ l वह जानता है कि मैं कहाँ जा रहा हूँ और मेरा सामना किस से होगा l और वह सभी बातों पर प्रभु है – हमारे जीवनों के “कीलों” पर भी l

पिताजी, आप कहाँ हैं?

“पिताजी ! आप कहाँ हैं?”

मैं अपने घर के उपमार्ग पर अपनी गाड़ी ले जा रहा था जब घबरायी हुयी मेरी बेटी ने, मुझे मोबाइल फोन पर बुलाया l मुझे उसे खेलने का अभ्यास करवाने के लिए 6.00 बजे तक घर पर होना ज़रूरी था; और मैं समय पर पहुँच गया l हालाँकि, मेरी बेटी की आवाज़ ने उसके भरोसे की कमी को जता दिया l पिछली बात पर ध्यान देते हुए, मैंने प्रतुत्तर दिया : “मैं यहाँ हूँ l तुम मुझ पर भरोसा क्यों नहीं करती हो?”

परन्तु जैसे ही मैंने उन शब्दों को बोला, मैंने सोचा, कितनी बार मेरा स्वर्गिक पिता मुझसे यह पूछ सकता है? तनावपूर्ण क्षणों में, मैं भी अधीर होता हूँ l मैं भी भरोसा करने में संघर्ष करता हूँ, कि परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरी करेगा l इसलिए मैं पुकारता हूँ : “पिता, आप कहाँ हैं?”

तनाव और अनिश्चितता के मध्य, मैं कभी-कभी परमेश्वर की उपस्थिति, या यहाँ तक कि मेरे लिए उसकी अच्छाई और उद्देश्यों पर संदेह करता हूँ l इस्राएलियों ने भी किया l व्यवस्थाविवरण 31 में, वे प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने की तयारी कर रहे थे, जानते हुए कि उनका अगुआ मूसा पीछे रह जाएगा l मूसा ने परमेश्वर के लोगों से यह बोलकर उनको  पुनः आश्वस्त करने की कोशिश की, “तेरे आगे आगे चलने वाला यहोवा है; वह तेरे संग राहेगा, और न तो तुझे धोखा देगा और न छोड़ देगा; इसलिए मत डर और तेरा मन कच्चा न हो” (पद.8) l

यह प्रतिज्ञा – कि परमेश्वर सदा हमारे साथ है – आज भी हमारे विश्वास की आधारशिला है (देखें मत्ती 1:23; इब्रानियों 13:5) l वास्तव में, प्रकाशितवाक्य 21:3 इन शब्दों के साथ समाप्त होता है : “देख, परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है, वह उनके साथ डेरा करेगा l”

परमेश्वर कहाँ है? वह यहां पर है, अभी, ठीक हमारे साथ – हमेशा हमारी प्रार्थना सुनने के लिये तैयार l

निश्चिन्त रहें

हाल ही में मेरे ससुर अठत्तर वर्ष के हो गए, और उनको सम्मानित करने के लिए हमारे पारिवारिक सहभागिता में, किसी ने उनसे पुछा, “आपने अपने अब तक जीवन में कौन सी सबसे महत्वपूर्ण बात सीखी है?" उन्होंने उत्तर दिया, “निश्चिन्त रहें l”

निश्चिन्त रहें l उन शब्दों को एकपक्षीय कहकर अस्वीकार करना प्रलोभक हो सकता है l परन्तु मेरे ससुर अँधा आशावाद या सकरात्मक सोच को बढ़ावा नहीं दे रहे थे l वह अपने लगभग आठ दशकों में कठिन समयों को सहन किये थे l आगे बढ़ने का उनका दृढ़ निश्चय किसी धुंधली आशा में जड़वत नहीं था कि बातें बेहतर अच्छी हो सकती हैं, परन्तु उनके जीवन में मसीह के कार्य पर आधारित था l

“निश्चिन्त रहें” – बाइबल जिसे अटलता/दृढ़ता कहती है – केवल इच्छाशक्ति से संभव नहीं है l हम दृढ़ रहते हैं क्योंकि परमेश्वर ने बार-बार इसकी प्रतिज्ञा दी है, कि वह हमारे साथ है, कि वह हमें सामर्थ्य देगा, और कि वह हमारे जीवनों में अपने उद्देश्यों को पूरा करेगा l यही वह सन्देश था जो उसने यशायाह के द्वारा इस्राएलियों से दिया था : “मत डर, क्योंकि मैं तेरे संग हूँ, इधर उधर मत ताक, क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूँ; मैं तुझे दृढ़ करूँगा और तेरी सहायता करूंगा, अपने धर्ममय दाहिने हाथ से मैं तुझे संभाले रहूँगा” (यशायाह 41:10) l

कैसे “निश्चिन्त रहें”? यशायाह के अनुसार, परमेश्वर का चरित्र आशा के लिए बुनियाद है l यह जानना कि परमेश्वर की भलाई भय पर हमारी पकड़ को हमें ढीला करने की अनुमति देता है, हम पिता और उसकी प्रतिज्ञा से लिपटे रह सकते हैं कि वह हमारे लिए दैनिक प्रबंध करेगा : सामर्थ्य, सहायता, और परमेश्वर की आराम देनेवाली, समर्थ करनेवाला, और थामनेवाली उपस्थिति l

जब हम विजेता को जानते हैं

मेरा सुपरवाइजर किसी कॉलेज बास्केटबॉल टीम का बहुत बड़ा प्रशंसक है l इस वर्ष, उन्होंने राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीत ली, इसलिए एक अन्य सहकर्मी ने उसे बधाई दी l केवल एक समस्या थी कि मेरे बॉस को अभी था फाइनल मैच देखने का अवसर नहीं मिला था! उन्होंने कहा कि वे पहले से ही परिणाम जानकार निराश थे l परन्तु, उन्होंने स्वीकार किया कि, कम से कम जब वे खेल देख रहे थे वे घबराए हुए नहीं थे जब अंक(score) अंत के करीब आया l उनको मालूम था कौन जीता!

कल क्या होगा हम वास्तव में कभी नहीं जानते हैं l कुछ दिन नीरस और थकाऊ महसूस होते हैं, जबकि दूसरे दिन आनंद से भरे हुए होते हैं l और भी अन्य समयों में, जीवन लम्बे समय के लिए दुष्कर, अत्यंत दुखदायी हो सकता है l

परन्तु जीवन के अप्रत्याशित उत्तार-चढ़ाव के बावजूद, हम परमेश्वर की शांति में मजबूती से जड़वत रह सकते हैं l क्योंकि, मेरे सुपरवाइजर के समान, हम कहानी का अंत जानते हैं l हम जानते हैं कौन “जीतता है l”

बाइबल की अंतिम पुस्तक, प्रकाशितवाक्य, इस भव्य समापन के विषय पर्दा उठाता है l मृत्यु और बुराई की अंतिम हार के बाद (20:10,14), युहन्ना एक खुबसूरत विजय दृश्य का वर्णन करता है (21:1-3) जहां परमेश्वर अपने लोगों के साथ निवास करता है (पद.3) और “उनकी आँखों से आँसू पोंछ [डालता है]” ऐसे संसार में जहां “मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी” (पद.4) l

कठिन दिनों में, हम इस प्रतिज्ञा से लिपटे रह सकते हैं l और कोई हानि या विलाप नहीं l क्या-होगा-यदि या टूटे हृदय अब और नहीं l इसके बदले, हम अपने उद्धारकर्ता के साथ अनंत बिताएँगे l वह कितना महिमामयी उत्सव होता!