Our Authors

सब कुछ देखें

Articles by बिल क्राऊडर

स्पष्ट संवाद

एशिया में यात्रा करते वक्त, मेरा आई पैड/ipad (जिसमें मेरी पठन सामग्री और कई कार्य के दस्तावेज़ थे) अचानक काम करना बंद कर दिया, एक स्थिति जिसे “मृत्यु का काला स्क्रीन/the black screen of death” कहा जाता है l सहायता चाहते हुए, मुझे एक कंप्यूटर की दूकान मिली और मुझे एक और समस्या का सामना करना पड़ा – मुझे चीनी भाषा नहीं आती थी और दूकान का तकनीशियन अंग्रेजी भाषा नहीं बोलता था l समाधान? उसने एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम खोलकर चीनी भाषा में टाइप किया, किन्तु मैं उसे अंग्रेजी में पढ़ सकता था l प्रक्रिया विपरीत हो गयी जब मैंने अंग्रेजी में उत्तर दिया और उसने चीनी भाषा में पढ़ लिया l इस सॉफ्टवेयर ने हमें स्पष्ट संवाद करने की अनुमति दी, दूसरी भाषाओं में भी l

कभी-कभी, मैं अपने स्वर्गिक पिता से प्रार्थना करते समय उससे संवाद करने और स्पष्ट रूप से अपने दिल की बात बताने में खुद को अयोग्य महसूस करता हूँ – और मैं अकेला नहीं हूँ l हममें से अनेक प्रार्थना के साथ संघर्ष करते हैं l परन्तु प्रेरित पौलुस ने लिखा, “इसी रीति से आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है : क्योंकि हम नहीं जानते कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए, परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर, जो ब्यान से बाहर हैं, हमारे लिए विनती करता है; और मनों का जांचनेवाला जानता है कि आत्मा की मनसा क्या है? क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिए परमेश्वर की इच्छा के अनुसार विनती करता है l रोमियों 8:26-27

पवित्र आत्मा का दान कितना अद्भुत है! किसी भी कंप्यूटर कार्यक्रम से बेहतर l वह पिता के उद्देश्यों के सामंजस्य के साथ मेरे विचारों और इच्छाओं को संप्रेषित करता है l पवित्र आत्मा का कार्य प्रार्थना के कार्य को संभव बनाता है!

आँसुओं का कटोरा

बोस्टन के मेसाचुसेट्स में, “आँसुओं का कटोरा पार करना” शीर्षक की एक पट्टिका 1840 के अंत में भयंकर विपत्ति आयरिश पोटैटो फेमिन(अकाल) के समय मृत्यु से बचने के लिए अटलांटिक महासागर पार करनेवालों की याद दिलाता है l इस महाविपदा में लाखों लोग मर गए थे, जबकि लाखों या उससे भी अधिक संख्या में लोगों ने घर छोड़कर महासागर को पार किया, जिसे जॉन बॉईल ओरीली काव्यात्मक रूप से “आँसुओं का कटोरा” संबोधित करता है l भूख और पीड़ा के कारण, इन यात्रियों ने नैराश्य के समय कुछ आशा ढूंढने का प्रयास किया l  

भजन 55 में, दाऊद ने साझा किया कि उसने किस प्रकार आशा को ढूंढा l जबकि हम उस आशंका की विशिष्टता से जिसका उसने सामना किया अवगत नहीं हैं, उसके अनुभव का बोझ उसे भावनात्मक रूप से तोड़ने में पर्याप्त था (पद.4-5) l उसका स्वाभाविक उत्तर प्रार्थना करना था, “भला होता कि मेरे कबूतर के से पंख होते तो मैं उड़ जाता और विश्राम पाता ! (पद.6) l

दाऊद के समान, हम भी पीड़ादायक परिस्थितियों के मध्य सुरक्षा की ओर भागना चाहते हैं l अपनी दशा पर विचार करके, हालाँकि, दाऊद अपनी पीड़ा से दूर भागने के स्थान पर यह गाते हुए, अपने परमेश्वर की ओर भागने का निर्णय किया, “परन्तु मैं तो परमेश्वर को पुकारूँगा; और यहोवा मुझे बचा लेगा” (पद.16) l

जब परेशानी आती है, याद रखें कि समस्त सुख का परमेश्वर आपको सबसे अंधकारमय क्षणों और सबसे गहन भय में से निकालने में समर्थ है l उसकी प्रतिज्ञा है कि एक दिन वह स्वयं हमारी आँखों से हर एक आंसू पोंछ देगा (प्रकाशितवाक्य 21:4) l हम इस निश्चयता से बलवंत होकर आज अपने आँसुओं के साथ उस पर दृढ़ भरोसा रख सकते हैं l

भस्म होना

अपनी पुस्तक, द कॉल, में ओस गिन्नेस उस क्षण का वर्णन करते हैं जब विंस्टन चर्चिल, दक्षिणी फ्रांस में अपने मित्रों के साथ छुट्टियों में, एक ठंडी रात खुद को गर्म करने के लिए आग के पास बैठ गए l आग को एक टक देखते हुए, पूर्व प्रधान मंत्री ने चीड़ के लट्ठो को “चटचटाहट, फुसफुसाहट, और खड़खड़ाहट की आवाज़ के साथ जलते हुए देखा l अचानक, उनकी परिचित आवाज़ में गर्जन थी, ‘मैं जानता हूँ लकड़ी के लट्ठे क्यों खड़खड़ाते हैं l भस्म होना क्या होता है मैं जानता हूँ l’”

कठिनाइयाँ, निराशा, ख़तरे, विपत्ति, और हमारी अपनी गलतियों के परिणाम सब हमें भस्म होने की तरह अहसास कराते हैं l परिस्थियां धीरे-धीरे हमारे हृदयों से आनंद और शांति छीन लेती हैं l जब दाऊद ने अपने ही पापी चुनावों के परिणाम को खुद पर पूरी तरह हावी होते देखा, उसने लिखा, “जब मैं चुप रहा तब दिन भर कराहते कराहते मेरी हड्डियां पिघल गईं . . . और मेरी तरावट धूपकाल की सी झुर्राहत बनती गयी” (भजन 32:3-4) l

ऐसे कठिन समय में, आप सहायता के लिए किस और मुड़ते हैं? पौलुस, जिसके अनुभव सेवकाई के बोझ और टूटेपन से भरे हुए थे, ने लिखा, “हम चारों ओर से क्लेश तो भोगते हैं, पर संकट में नहीं पड़ते; निरुपाय तो हैं, पर निराश नहीं होते; सताए तो जाते हैं, पर त्यागे नहीं जाते; गिराए तो जाते हैं, पर नष्ट नहीं होते” (2 कुरिन्थियों 4:8-9) l

यह किस तरह कार्य करता है? जब हम यीशु में विश्राम करते हैं, हमारा अच्छा चरवाहा मेरे जी में जी ले आता है (भजन 23:3) और हमारी यात्रा के अगले कदम के लिए हमें सामर्थ्य देता है l वह यात्रा के हर चरण में हमारा सहचर बनने की प्रतिज्ञा करता है (इब्रानियों 13:5) l

सबसे बड़ा बचाव-मिशन

18 फरवरी 1952 को एक बड़े तूफान ने एक तेलपोत एस एस पेंडलेटन को मैसाचुसेट्स के तट से लगभग दस मील की दूरी पर दो भागों में तोड़ दिया था। चालीस से भी अधिक नाविक खतरनाक हवा और हिंसक लहरों में डूबते हुए जलयान में फंसे हुए थे।  

जब विनाश का संदेश मैसाचुसेट्स के कैथम तट सुरक्षा केन्द्र में पहुँचा, बोट्स्वेन मेट फर्स्ट क्लास के बर्नी वेब्बर लगभग असम्भव प्रतीत होती बाधाओं के विरुद्ध असहाय नाविक दल को बचाने के प्रयत्न में एक जीवन-रक्षक नाव में तीन लोगों को ले कर निकल गए-और वे लगभग मृत्यु-द्वार तक पहुँचे बत्तीस नाविकों को सुरक्षित निकाल लाए। उनके साहसिक कार्य को संयुक्त राज्य के तट रक्षण के इतिहास में सबसे बड़ा बचाव-कार्य माना गया और यह 2016 की फिल्म ड फाईनेस्ट आवर्स का भी विषय बना था।  

लूका 19:10 में यीशु ने यह कहते हुए अपने बचाव-कार्य की घोषणा की, “मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को ढूँढ़ने और उनका उद्धार करने आया है।” क्रूस और पुनरुत्थान उस बचाव-कार्य का अन्तिम प्रदर्शन थे, जब यीशु ने हमारे पापों को अपने ऊपर ले लिया और उन सभी को पिता से फिर से मिला दिया, जो उस पर भरोसा करते हैं। 2,000 (वर्षों) से लोगों ने उनके साथ उनके भरपूर और अनन्त जीवन के प्रस्ताव को स्वीकार किया है। बचा लिए गए हैं!  

यीशु के अनुगामियों के रूप में पवित्र आत्मा की सहायता से हमारे पास हमारे उद्धारकर्ता के अब तक के सबसे बड़े बचाव-कार्य में सम्मिलित होने का अवसर है। आपके जीवन में किसे उनके बचाने वाले प्रेम की आवश्यकता है? 

एक सुरक्षित स्थान

मेरा भाई और मैं पश्चिम वर्जिनिया में एक वृक्षयुक्त पहाड़ी की ढाल पर पले और बड़े हुए जिसने हमारी कल्पनाओं के लिए उपजाऊ परिदृश्य प्रदान किया l चाहे टार्जन की तरह बेलों से झुलना हो या स्विस परिवार रोबिनसन की तरह ट्री हाउस बनाना हो, हमने उन कहानियों के परिदृश्यों को निभाया जो हमने पढ़ी थीं और जो फिल्मों में देखा था l हमारे पसंदीदा में से एक था किले बनाकर मान लेना कि हम आक्रमण से सुरक्षित हैं l वर्षों बाद, मेरे बच्चे काल्पनिक शत्रुओं से बचाव के लिए अपने लिए कम्बलों, चादरों, और तकियों से किले अर्थात् “सुरक्षित स्थान” बनाए l एक छिपने का स्थान स्वाभाविक महसूस होता है जहाँ आप सुरक्षित और महफूज़ महसूस कर सकें l

जब इस्राएल का गायक-कवि राजा दाऊद, एक सुरक्षित स्थान ढूंढता था, वह परमेश्वर के आलावा और कहीं नहीं गया l भजन 46:1-2 दावा करते हैं, “परमेश्वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलनेवाला सहायक l इस कारण हम को कोई भय नहीं l जब हम दाऊद के जीवन के विषय पुराना नियम के वृतान्त पर विचार करते हैं, और लगभग निरंतर खतरों का सामना करता था, ये शब्द परमेश्वर में भरोसा का एक अद्भुत स्तर प्रगट करते हैं l उन खतरों के बावजूद, वह निश्चित था उसकी सच्ची सुरक्षा परमेश्वर में ही थी l

हम भी उस भरोसे को जान सकते हैं l परमेश्वर जो हमें कभी नहीं छोड़ने या त्यागने का वादा करता है (इब्रानियों 13:5) हम प्रतिदिन अपने जीवन से उसी पर भरोसा रखते हैं l यद्यपि हम एक खतरनाक संसार में रहते हैं, हमारा परमेश्वर हमें शांति और आश्वासन देता हैं – अभी और हमेशा के लिए l वह हमारा सुरक्षित स्थान है l

खतरनाक विकर्षण

कलाकार सिग्सिमुंड गोएट्ज ने इंग्लैंड के विक्टोरियन-युग को "Despised and Rejected of Men" नामक एक पेंटिंग के साथ चौंका दिया l उसमें उसने पीड़ित, निन्दित यीशु को गोएट्ज़ के अपने युग के लोगों से घिरा हुआ दिखाया l वे अपने हितों से अत्यधिक बर्बाद हो रहे थे अर्थात् व्यापार, रोमांस, राजनीति - कि वे उद्धारकर्ता के बलिदान के प्रति अंजान थे l यीशु के क्रूस के नीचे की भीड़ की तरह, मसीह के प्रति उदासीन, आस-पास की भीड़, को बोध नहीं था कि उन्होंने क्या और किसे छोड़ दिया है l

हमारे युग में भी, सरलता से विश्वासी और अविश्वासी समान रूप से शाश्वत से विकर्षित हो जाते हैं l यीशु के अनुयायी परमेश्वर के महान प्रेम की सच्चाई के साथ इस धुंध से निकल सकते हैं? हम परमेश्वर के संगी बच्चे परस्पर प्रेम करके आरंभ कर सकते हैं l यीशु ने कहा, "यदि आपस में प्रेम रखोगे, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो" (यूहन्ना 13:35) l
किन्तु वास्तविक प्रेम वहाँ नहीं रुकता है l हम उद्धारकर्ता की ओर लोगों को आकर्षित करने की आशा से उस प्रेम को सुसमाचार द्वारा साझा करते हैं l जिस प्रकार पौलुस ने लिखा, "हम मसीह के राजदूत हैं" (2 कुरिन्थियों 5:20) l

इस तरह, मसीह की देह परमेश्वर के प्रेम को, जिसकी हमें नितांत आवश्यकता है, परस्पर और अपने संसार के सामने परावर्तित और प्रक्षेपित भी कर सकती है l काश पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से, दोनों ही प्रयास, विकर्षणों से निकलने में सहायता करे, जो यीशु में परमेश्वर के प्रेम का आश्चर्य देखने में बाधित न कर सके l

तरस की थकान

एनी फ्रैंक अपने दैनिकी लिखने के लिए लोकप्रिय है जिसमें उसने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपने परिवार के छिपने का वर्णन करती है l बाद में जब वह नाज़ी मृत्यु शिविर में कैद कर दी गयी, उनके साथ के लोगों ने कहा, “[उनके लिए] उसके आँसू कभी नहीं सूखते था,” जो उसे “उसके सभी जाननेवालों में धन्य उपस्थिति” बना देती थी l इस कारण, विद्वान केनेथ बेली यह निष्कर्ष निकालते हैं कि एनी “तरस दिखाने में कभी नहीं थकती थी l”
एक टूटे संसार में रहने का एक परिणाम तरस दिखाने में थकान हो सकती है l मानव दुःख का वास्तविक फैलाव हमारे बीच सर्वोत्तम इरादा रखनेवाले को भी स्तब्ध कर देता है l हलाकि, तरस दिखाने में श्रमित होना, यीशु के व्यक्तित्व में नहीं था l मत्ती 9:35-36 कहता है, “यीशु सब नगरों और गाँवों में फिरता रहा और उनके आराधनालयों में उपदेश करता, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता, और हर प्रकार की बिमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा l जब उसने भीड़ को देखा तो उसको लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान जिनका कोई रखवाला न हो, व्याकुल और भटके हुए से थे” (मत्ती 9:35-36) l
हमारा संसार केवल भौतिक आवश्यकताओं से नहीं किन्तु आत्मिक टूटेपन से भी पीड़ित है l यीशु उस आवश्यकता को पूरा करने और अपने अनुयायियों को इस कार्य में मदद करने की चुनौती देने आया (पद.37-38) l उसकी प्रार्थना थी कि पिता हमारे चारोंओर अर्थात् अकेलापन, पाप, और बिमारी से संघर्षरत लोगों की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए कार्यकर्त्ताओं को खड़ा करेगा l काश पिता दूसरों के लिए हमारे अन्दर इच्छा दे जो उसके हृदय को प्रतिबिंबित करता है l उसकी आत्मा की शक्ति में, हम उसके दयालु फ़िक्र को पीड़ितों पर दर्शा सकते हैं l

प्रमुख उत्कर्ष

मेरे माता-पिता ने मुझे सभी प्रकार का संगीत पसंद करना सिखाया-देसी से लेकर शास्त्रीय संगीत तक l इसलिए जब मैं मास्को राष्ट्रीय सिम्फनी(सम स्वरता) सुनने के लिए रूस के एक सबसे बड़े संगीत हॉल, मास्को कन्सरवेटरी(रक्षा गृह) में गया मेरा हृदय गति से धड़कने लगा l जब संचालक ने संगीतकारों को कुशल काइकोफस्की(प्रसिद्ध रुसी गीतकार एवं संगीतकार) अंश बजाने को कहा, धुन विकसित होकर धीरे-धीरे एक प्रबल अर्थात् एक गहन/प्रगाढ़ और नाटकीय संगीत उत्कर्ष में बदल गया l
वचन इतिहास के सबसे प्रबल उत्कर्ष की ओर बढ़ता है : यीशु मसीह का क्रूस और उसका पुनरुत्थान l अदन के बगीचे में आदम और हव्वा के पाप में गिर जाने के बाद, परमेश्वर ने एक उद्धारकर्ता के आने की प्रतिज्ञा दी (उत्पति 3:15)), और पूरा पुराना नियम में यह मुख्य विषय आगे बढ़ता गया l यह प्रतिज्ञा फसह के मेमने में (निर्गमन 12:21), नबियों की आशा में (1 पतरस 1:10), और परमेश्वर के लोगों की चाहतों में गुंजायमान हुयी l
1 यूहन्ना 4:14 उस कहानी के लक्ष्य को प्रमाणित करता है : “हम ने देख भी लिया और गवाही देते हैं कि पिता ने पुत्र को जगत का उद्धारकर्ता करके भेजा है l” कैसे? परमेश्वर ने अपने टूटे संसार के लिए अपनी बचाव प्रतिज्ञा को पूरा किया जब यीशु हमें क्षमा देने के लिए और हमारे सृष्टिकर्ता के साथ हमारे सम्बन्ध को पुनःस्थापित करने के लिए मृत्यु सहा और जी उठा l और एक दिन वह पुनः वापस आएगा और अपने सम्पूर्ण सृष्टि को पुनःस्थापित कर देगा l
जब हम हमारे लिए परमेश्वर पुत्र का कार्य याद करते हैं, हम परमेश्वर का अनुग्रह अर्थात् यीशु का महान उत्कर्ष और अपने लिए और उसके संसार के लिए बचाव का उत्सव मानते हैं l

साहसी कदम

दूसरे विश्व युद्ध के आरम्भ में टेरेसा प्रेकेरोवा किशोर ही थी जब नाज़ी लोगों ने उसके देश पोलैंड पर हमला किए l यह सर्वनाश[holocaust] के आरम्भ में था जब नाज़ी लोग उसके यहूदी पड़ोसियों को गिरफ्तार करने लगे और वे गायब होने लगे l इसलिए टेरेसा और पोलैंड के अन्य नागरिकों ने अपने जीवनों को दाँव पर लगाकर उन पड़ोसियों को वॉरसॉ यहूदी बस्तियों और नाज़ी लोगों के शोधन/क़त्ल[purge] से बचाया l टेरेसा युद्ध और सर्वनाश [holocaust] की प्रमुख इतिहासकार हो सकती थी, किन्तु यह तो उसका साहस ही था जिसके कारण वह उस बुराई की लहरों के विरुद्ध खड़ी रह सकी और जिसने उसे यरुशलेम में याड वशेम होलोकोस्ट मेमोरियल[Yad Vashem Holocaust memorial] में राईचस अमंग द नेशन्स[Righteous Among the Nations]की सूची में पहुँचा दिया l
बुराई के विरुद्ध खड़े रहने के लिए साहस की ज़रूरत है l पौलुस ने इफिसुस की कलीसिया से कहा, “क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध लहू और माँस से नहीं परन्तु प्रधानों से, और अधिकारियों से, और इस संसार के अन्धकार के हाकिमों से और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं” (इफिसियों 6:12) l स्पष्ट रूप से यह अदृश्य विरुद्धता हममें से किसी के लिए सहन से बाहर है, इसलिए परमेश्वर ने हमें “शैतान की युक्तियों के सामने खड़े” (पद.11) रहने हेतु सक्षम बनाने के लिए ज़रूरी आत्मिक संसाधन दिए हैं  अर्थात् (परमेश्वर के सारे हथियार) l
उस साहसी कदम में क्या कुछ शामिल हो सकता है? यह अन्याय के विरुद्ध कार्य करना या किसी परिचित निर्बल या शोषित व्यक्ति के पक्ष में खड़े रहकर उसकी मदद करना हो सकता है l चाहे किसी प्रकार का संघर्ष हो, हम साहसी हो सकते हैं-हमारे परमेश्वर ने पहले से ही हमें उसके लिए और बुराई के विरुद्ध खड़े रहने का संसाधन दिया है l