शाखाओं में निवास
जैसा कि मैंने अपने परामर्शदाता के साथ अपनी भावनाओं के उतार-चढ़ाव को एक तनाव-भरे सप्ताह के बाद साझा किया, उसने सोच समझकर सुना। फिर उसने मुझे खिड़की से बाहर पेड़ों को देखने के लिए बुलाया, संतरों से भरे हुए, और जिसकी शाखाएं हवा से झूल रही थी।
यह बताते हुए कि तना हवा में बिलकुल नहीं हिल रही थी, मेरे परामर्शदाता ने समझाया, “हम भी कुछ इसी प्रकार हैं। जब जीवन हर दिशा से हम पर प्रहार कर रहा हो, तो निश्चित ही हमारी भावनाएं ऊपर और नीचे और चारों-ओर जाएंगी। हमारा लक्ष्य आपको अपना जड़ या तना खोजने में मदद करना है। इस तरह, जब जीवन हर तरफ से खींच रहा हो, तो आप अपनी शाखाओं में नहीं रह सकते हैं फिर भी आप सुरक्षित और स्थिर रहेंगे।"
यह एक छवि है जो मेरे साथ रहा; और यह पौलुस द्वारा इफिसियों के नए विश्वासियों को दी गयी छवि से मिलती जुलती है। परमेश्वर के अविश्वसनीय उपहार की याद दिलाते हुए अर्थात् अद्भुत उद्देश्य और महत्त्व का नया जीवन (इफिसियों 2:6-10), पौलुस ने अपनी तीव्र इच्छा साझा किया कि वे मसीह के प्रेम में “जड़ पकड़कर और नेव डाल कर” स्थापित हो चुके थे (3:17), और “उपदेश के हर एक झोंके से उछाले और इधर-उधर घुमाए”(4:14) नहीं जाते थे।
अपने दम पर, अपने डर और असुरक्षाओं से ग्रसित, असुरक्षित और नाजुक महसूस करना आसान है, लेकिन जब हम मसीह में अपनी वास्तविक पहचान में बढ़ते हैं (पद.22-24), हम परमेश्वर के साथ और एक दूसरे के साथ गहरी शांति का अनुभव करते हैं (पद.3), मसीह की सामर्थ्य और सुन्दरता द्वारा पोषित और संभाले हुए (पद.15-16) l
रहस्य
कभी-कभी मुझे संदेह होता है कि मेरी बिल्ली टॉम FOMO (fear of missing out) लापता होने के डर की बुरी दशा से ग्रस्त है l जब मैं किराने का सामान लेकर घर आती हूँ, तो टॉम सामग्री का निरीक्षण करने के लिए दौड़ता है l जब मैं सब्जियां काट रही होती हूँ, तो वह अपने पिछले पैरों के बल खड़ा होकर सामग्री को ध्यान से देखते हुए मुझसे उसे साझा करने के लिए बिनती करता है l लेकिन जब मैं वास्तव में टॉम को उसकी पसंद की वस्तु पकड़ा देती हूँ, वह उसमें रूचि छोड़कर, ऊब की अप्रसन्नता के साथ चल देता है l
लेकिन मेरे लिए अपने छोटे दोस्त पर कठोर होना पाखण्ड होगा l वह अधिक के लिए मेरी खुद की अतृप्त भूख को दर्शाता है, मेरी धारणा कि “अभी” कभी नहीं पर्याप्त है l
पौलुस के अनुसार, संतोष स्वाभाविक नहीं है – यह सीखा जाता है (फिलिप्पियों 4:11) l अपने दम पर, हम अपने विचार से उसे पूरी तरह से आगे बढाते हैं, जिससे हम संतुष्ट होने का विचार रखते हैं, अगली बात पर बढ़ते हुए हम जान जाते हैं कि यह भी संतुष्ट नहीं करेगा l अन्य समयों पर, हमारा असंतोष चिंतावश किसी भी और सभी संदिग्ध खतरों से खुद को बचाने का रूप लेता है l
व्यंगात्मक रूप से, कभी-कभी यह अनुभव से आता है कि लुढ़ककर असली ख़ुशी में जाने के लिए हम सबसे अधिक किससे डरते थे l सबसे बुरा अनुभव करने के बाद जो जीवन पेश करता है, पौलुस पहली बार सच्चे संतोष के “रहस्य” (पद.11-12) की गवाही दे सकता था – रहस्मय वास्तविकता कि जब हम पूर्णता की लालसा को परमेश्वर की ओर उठाते हैं, तो हम न समझाया जा सकने योग्य शांति का अनुभव करते हैं (पद.6-7), जो मसीह की सामर्थ्य, सुन्दरता और अनुग्रह की अथाह गहराई में ले जाता है l
यहाँ खतरा हो सकता है?
किंवदंती में है कि मध्ययुगीन नक्शों के किनारों पर, दुनिया के मानचित्रों के रचनाकार के अनुसार ज्ञात सीमाएं “यहाँ खतरे(ड्रैगन/दैत्य) हो सकते हैं? – शब्दों से चिन्हित होते थे –अक्सर भयानक जानवरों के ज्वलंत चित्रण के साथ जिनके विषय मान्यता थी कि संभवतः वे वहाँ दुबके हुए हैं l
प्राचीन मानचित्रकार वास्तव में इन शब्दों को लिखें है इसके अधिक प्रमाण नहीं हैं, परन्तु मैं विचार करना चाहता हूँ कि वे लिखे होंगे l हो सकता है क्योंकि “यहाँ खतरे(ड्रैगन/दैत्य) हो सकते हैं” कुछ ऐसा महसूस होता है जैसे मैंने उस समय लिखा हो – एक गंभीर चेतावनी जो कि मुझे नहीं पता कि अगर मैं बड़े अज्ञात में पहुँच गया तो क्या होगा, यह संभवतः अच्छा नहीं होगा!
लेकिन आत्म-रक्षा और जोखिम-निवारण की मेरी पसंदीदा नीति के साथ एक विकराल समस्या है : यह उस साहस के विपरीत है जिसके लिए मुझे यीशु में विश्वासी के रूप में बुलाया गया है (2 तीमुथियुस 1:7) l
कोई यह भी कह सकता है कि वास्तव में खतरनाक क्या है के विषय मैं गुमराह हूँ l जैसा कि पौलुस ने समझाया, कि एक टूटे संसार में बहादुरी से मसीह का अनुसरण पीड़ादायक हो सकता है (पद.8) l परन्तु जैसा कि हमें मृत्यु से जीवन में लाया गया है और आत्मा का जीवन सौंपा गया है जो हमारे द्वारा बहता है (पद.9-10, 14), तो हम कैसे नहीं कर सकते हैं?
जब परमेश्वर हमें एक उपहार देता है डर से पीछे हटने की यह लड़खड़ाहट, वास्तविक त्रासदी होगी –किसी भी चीज का जिसका सामना हम करेंगे से कही अधिक बदतर होगी जब हम मसीह की अगुवाई में अनधिकृत क्षेत्र में चलते हैं (पद.6-8, 12) l हमारे दिल और हमारे भविष्य से उस पर भरोसा किया जा सकता है (पद.12) l
“मैं समस्त संसार से प्रेम करती हूँ”
मेरी तीन वर्षीय भतीजी, जेना की एक अभिव्यक्ति है, जो मेरे हृदय को हमेशा द्रवित करता है l जब वह किसी वस्तु से प्यार करती है (वास्तव में उससे प्यार करती है), चाहे वह केला मलाई मिठाई हो, उछाल पट (trumpolines) पर कूदना हो, या फ़्रिसबी(एक प्रकार का खेल) हो, वह ऊंची आवाज़ में बोलती है, “मैं इससे प्यार करती हूँ – समस्त संसार को!” (“समस्त संसार” और नाटकीय तौर से अपनी बाहों से इशारा करती है)
कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है, पिछली बार कब मैंने ऐसा प्यार करने की हिम्मत की थी? कुछ भी अपने अधीन नहीं रखा था, पूरी तौर से अभय?
यूहन्ना ने बार-बार लिखा, “परमेश्वर प्रेम है” (1 यूहन्ना 4:8, 16), शायद इसलिए कि यह सच्चाई कि परमेश्वर का प्रेम – हमारा क्रोध, भय, या लज्जा नहीं – सच्चाई की सबसे गहरी बुनियाद है, हम सयानों के लिए “हासिल करना” कठिन है l संसार हमें उन शिविरों के आधार पर विभाजित करती है जिससे हम सबसे अधिक डरते हैं – और ज़यादातर हम इसमें शामिल हो जाते हैं, वास्तविकता की हमारी पसंदीदा दृष्टि को चनौती देनेवाली आवाजों की अनदेखी करते हैं या उन्हें खलनायक बना देते हैं l
फिर भी धोखे और शक्ति के संघर्ष के बीच (पद.5-6), परमेश्वर के प्रेम का सत्य बना रहता है, एक प्रकाश जो अँधेरे में चमकता है, हमें विनम्रता, विश्वास और प्रेम का मार्ग सीखने के लिए निमंत्रित करता है (1:7-9; 3:18). कोई बात नहीं है कि किस दर्दनाक सच को प्रकाश उजागर करता है, हम जान सकते हैं कि हम अभी उस अवस्था में भी प्यार किये जाते हैं (4:10; रोमियों 8:1) l
जब जेना मेरी ओर झुककर मुझसे फुसफुसाती है, “मैं पूरी दुनिया से प्यार करती हूँ!” मैं भी वापस फुसफुसाती हूँ, “मैं पूरी दुनिया से प्यार करती हूँ!” और मैं एक सौम्य अनुस्मारक के लिए आभारी हूँ कि हर पल मैं असीम प्रेम और अनुग्रह में सुरक्षित हूँ l
उकसानेवालों को बढ़ावा न दें
क्या आपने कभी यह उक्ति सुनी है, “उकसानेवालों को बढ़ावा न दें” (Don’t feed the trolls”) l “ट्रोल्स” आज के डिजिटल संसार में एक नयी समस्या की ओर इशारा करता है – ऑनलाइन यूजर जो ख़बरों या सोशल मीडिया चर्चा समिति के बारे में बार-बार इरादतन विद्रोहजनक और हानिकारक टिप्पणियाँ पोस्ट करते रहते हैं l परन्तु ऐसे टिप्पणियों को नज़रंदाज़ करना – उकसानेवालों को बढ़ावा न देना – उनके लिए किसी संवाद को पटरी से उतारना कठिन बना देता है l
अवश्य ही, ऐसे लोगों का सामना करना कोई नयी बात नहीं है जो असलियत में उत्पादक संवाद में रूचि नहीं रखते हैं l “उकसानेवालों को बढ़ावा न दें” नीतिवचन 26:4 का आधुनिक समतुल्य हो सकता है, जो चेतावनी देता है कि अभिमानी, ग्रहण न करनेवाले के साथ बहस करना, उनके स्तर तक नीचे उतरने का जोखिम है l
और इसके बावजूद . . . सबसे अड़ियल दिखाई देने वाला व्यक्ति भी परमेश्वर की छवि का अमूल्य धारक है l यदि हम दूसरों को ख़ारिज करने में जल्दबाज़ है, हम अभिमानी और परमेश्वर के अनुग्रह को अस्वीकार करनेवाले बन जाने के खतरे में हो सकते हैं (देखें मत्ती 5:22) l
वह, कुछ हद तक स्पष्ट करता है क्यों नीतिवचन 26:5 बिलकुल विपरीत मार्गदर्शन पेश करता है l यह हर एक स्थिति में सर्वश्रेष्ठ तौर से प्रेम प्रगट करने का निर्णय है क्योंकि यह परमेश्वर पर दीन, प्रार्थनामय भरोसा से ही संभव है (देखें कुलुस्सियों 4:5-6) l कभी हम जोर से बोलते हैं, और दूसरे समयों में, शांत रहना ही उत्तम है l
परन्तु हर एक स्थिति में, हम यह जानने में शांति पाते हैं कि वही परमेश्वर जो हमें अपने निकट लाया जब हम उसके प्रति कठोर विरोधी थे (रोमियों 5:6) हर एक व्यक्ति के हृदय में सामर्थी रूप से कार्य कर सकता है l जब हम मसीह के प्रेम को साझा करने का प्रयास करते हैं हम उसकी बुद्धिमत्ता में विश्राम करें l
आपको आराम करना होगा!
“आपको आराम करना होगा,” चिकित्सक कठोरता से डिज़नी के रेस्क्यूवर्स डाउन अंडर (साहसिक एनिमेटेड फिल्म) में एक अनिच्छुक घायल मरीज़ एल्बेट्रोस(एक बड़ा समुद्री पक्षी) विल्बर से कहता है l “आराम करूँ? मैं आरामदेह हूँ!” स्पष्ट रूप से आरामदेह नहीं दिखाई देनेवाला विल्बर, जैसे-जैसे उसकी घबराहट बढ़ती है वह व्यंगात्मक रूप से प्रतिउत्तर देता है l “यदि मैं और अधिक आरामदेह होऊंगा, मैं मर जाऊँगा!”
क्या आप वर्णन कर सकते हैं? चिकित्सक के संदेहात्मक तरीकों (आरा की मदद से “चर्म उत्तक नष्ट करना”) के प्रकाश में, विल्बर की आशंका उचित दिखाई दे रही थी l किन्तु दृश्य हास्यास्पद है क्योंकि इसमें हमारी घबराहट के समय की भावनाएँ प्रगट हैं – चाहे या नहीं जिसका हम सामना करते हैं वह वास्तव में खतरनाक है l
जब हम डरे होते हैं, आराम करने का बढ़ावा मूर्खतापूर्ण महसूस होता है l मैं जानता हूँ जब मैं जीवन के भय को अपने चारों ओर बढ़ते हुए महसूस करता हूँ, और जब पीड़ादायक “मृत्यु की रस्सियाँ” (भजन 116:3) मेरे पेट को गाठों की तरह बाँध देती हैं, मेरा हर एक सहज-ज्ञान उससे लड़ने को प्रवृत करता है न कि आराम करने को l
और इसके बावजूद . . . नहीं की अपेक्षा ज़्यादातर, घबराहट में लड़ने के मेरे प्रयास घबराहट की बुरी-पकड़ को केवल जकड़कर, मुझे भय से पंगु बना देती हैं l परन्तु जब मैं, अगरचे हिचकिचाते हुए, पीड़ा महसूस करते हुए उसे परमेश्वर के पास ले जाता हूँ (पद.4), कुछ आश्चर्यजनक होता है l मेरे अन्दर का गाँठ थोड़ा ढीला पड़ जाता है (पद.7), और मेरी समझ से परे एक शांति मेरे अन्दर दौड़ जाती है l
और जब आत्मा की आराम देनेवाली उपस्थिति मुझे घेर लेती है, मैं सुसमाचार की वास्तविक सच्चाई को और अधिक समझ पाता हूँ : कि हम श्रेष्ठ तरीके से तब लड़ते हैं जब हम परमेश्वर की सामर्थी बाहों में खुद को समर्पित कर देते हैं (1 पतरस 5:6-7) l
मूल्यवान
“माई प्रेशियस (My Precious-काल्पनिक फिल्म) . . . l” अपने सनकी जुनून में “शक्ति के प्रेशियस/मूल्यवान अंगूठी के साथ” दुर्बल प्राणी गोल्लुम की छवि को टोलकिंस के लार्ड ऑफ़ द रिंग्स नाटकत्रय में सबसे पहले दिखाया गया था, जो आज लालच, जुनून, और पागलपन का भी चिन्हात्मक प्रारूप है l
यह कठिनाई से बताने योग्य एक छवि है l अंगूठी और खुद के साथ अपने प्रेम-घृणा के उत्पीड़ित सम्बन्ध में, गोल्लुम की आवाज़ हमारे अपने हृदयों की भूख की प्रतिध्वनि है l चाहे वह ख़ास तौर पर एक वस्तु की ओर निर्देशित हो, अथवा “और अधिक” की धुंधली लालसा ही हो हम निश्चित हैं कि हम आखिरकार अपना “प्रेशियस/मूल्यवान प्राप्त करने के बाद ही संतुष्ट होंगे l परन्तु इसके बदले, हमें सम्पूर्ण बनाने की हमारी सोच हमें पहले से अधिक खाली महसूस कराती है l
जीने का एक बेहतर तरीका है l जिस प्रकार भजन 16 में दाऊद व्यक्त करता है, जब हमारे हृदयों की लालसा हमें संतुष्टता की निराशाजनक, व्यर्थ खोज में पहुंचाने के लिए डराती हैं (पद.4), हम आश्रय के लिए परमेश्वर की ओर मुड़ना याद रखें (पद.1), खुद को याद दिलाते हुए कि उसके सिवा हमारे पास कुछ नहीं है (पद.2) l
और जब हमारी आँखें “वहां पर” संतुष्टता के लिए देखना बंद करके बदले में परमेश्वर की सुन्दरता पर टकटकी लगा ले (पद.8), हम अपने को आखिरकार सच्ची संतुष्टता का स्वाद चखते पाएंगे – [परमेश्वर की] उपस्थिति का आनंद उठाने वाला जीवन, “जीवन के मार्ग” में उसके साथ हर क्षण चलना – अभी और हमेशा तक (पद.11) l
प्रेम और शान्ति
यह मुझे सर्वदा ही आश्चर्यचकित करता है कि शान्ति-सामर्थी और समझाई न जा सकने योग्य शान्ति (फिलिप्पियों 4:7)-हमारे गहनतम दुःख में भी हमारे हृदयों को आपूर्त कर सकती है। मैंने यह हाल ही में अपने) पिता की मेमोरियल सर्विस में अनुभव किया। सांत्वना देने वाले लोगों की लम्बी कतार में अपनी हाई स्कूल के एक मित्र को देखकर मुझे बहुत आराम मिला। बिना कुछ कहे उसने मुझे जोर से गले लगा लिया। उस संकट भरे दिन के दुःख में उसकी मूक समझ ने मुझे लबालब भर दिया, इस सशक्त याद दिलाने वाले अहसास ने मुझे याद दिलाया कि मैं उतनी अकेली भी नहीं थी, जितना मुझे लग रहा था।
जैसे भजन संहिता 16 में दाऊद उल्लेख करता है, कि जिस प्रकार की शान्ति और आनन्द परमेश्वर हमारे जीवनों में ले कर आता है यह कठिन समयों में पीड़ा को भावहीन ढंग (से) दबाने के लिए एक चुनाव के द्वारा नहीं आया है; परन्तु यह तो एक उपहार के समान है, जिसमें हम कुछ नहीं कर सकते, परन्तु हम इसे तभी अनुभव कर सकते हैं, जब हम अपने भले परमेश्वर में शरण लेते हैं (पद 1-2) ।
हम उस पीड़ा को जवाब दे सकते हैं जो मृत्यु हमें पथभ्रष्ट करने के द्वारा ले कर आती है, शायद यह सोचकर कि इन अन्य “ईश्वरों” की ओर मुड़ जाना पीड़ा को दूर रखेगा। परन्तु जल्द ही या थोड़े समय बाद हम पाएँगे कि दुःख से बचना तो बस हमारे लिए और गहन पीड़ा ही ले कर आता है (पद 4) ।
या हम परमेश्वर की ओर मुड़ सकते हैं, यह भरोसा करते हुए कि जब हम यह नहीं समझ सकते, कि जो जीवन वह हमें पहले से ही दे चुका है-इसकी पीड़ा में भी-वह खुबसूरत और भला है (पद 6-8) । और हम अपने आप को उसकी प्रेम से भरी बाँहों के अधीन कर सकते हैं जो हमारी पीड़ा से आराम के साथ हमें एक शान्ति और आनन्द में ले जाती हैं, जिसे मृत्यु भी कभी कम नहीं कर सकती है (पद 11) ।
रात्रिकाल में एक गीत
मेरे पिता का जीवन लालसा रखने का जीवन था, उन्होंने सम्पूर्णता की लालसा रखी, जब पार्किन्सन की बीमारी ने उनके मस्तिष्क और शरीर को धीरे धीरे और अधिक अपंग बना दियाl उन्होंने शान्ति की लालसा की, परन्तु वह गहन उदासी की पीड़ा से पीड़ित रहेl उन्होंने प्रेम और दुलार की लालसा की, परन्तु प्राय: अकेला ही महसूस कियाl
उन्होंने अपने आप को कम अकेला महसूस किया जब उन्होंने भजन संहिता 42, उनके पसन्दीदा भजन को पढ़ा, भजनकार एक गहन लालसा और चंगाई के लिए एक अनबुझी प्यास को जानता था (पद 1-2)l उनके समान भजनकार एक उदासी को जानता था, जिसका ऐसा अहसास होता था कि वह कभी गई ही नहीं (पद 3), जिसने भरपूर आनन्द के समय को एक बहुत दूर की याद बना दिया था (पद 6)l मेरे पिता के समान, जब गड़बड़ी और पीड़ा की लहरों ने उन्हें डूबा दिया (पद 7), भजनकार ने अपने आप को परमेश्वर के द्वारा छोड़ दिया गया महसूस किया और पूछा “क्यों?” (पद 9)l
और जब भजन संहिता के शब्दों ने उन्हें प्रेरित किया और आश्वासन दिलाया कि वह अकेले नहीं थे, तब मेरे पिता ने अपनी पीड़ा में एक शान्ति के आरम्भ का अहसास कियाl उन्होंने अपने आस-पास एक मध्यम आवाज़ को सुना, एक आवाज़ जो उन्हें आश्वासन दिला रही थी कि यद्यपि उनके पास जवाब नहीं थे, यद्यपि लहरें उन्हें अभी भी डुबा रही थीं, फिर भी उन्हें स्नेह के साथ दुलारा जा रहा था (पद 8)l
और एक तरह से रात में उस मध्यम गीत को सुनना पर्याप्त थाl मेरे पिता के लिए चुपचाप आशा, प्रेम, और आनन्द की किरणों से जुड़े रहने के लिएl और यह उनके लिए उस दिन की प्रतीक्षा करने के लिए पर्याप्त था जब एक दिन उनकी अभी लालसाएँ पूरी कर दी जाएँगी (पद 5,11)l