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Articles by मोनिका ब्रांड्स

छोटा लेकिन शक्तिशाली

उत्तरी अमेरिका के कठोर सोनोरान रेगिस्तान में रात के समय कई बार, कोई भी एक धुंधली, तेज चीख सुन सकता है l लेकिन आप शायद ध्वनि के स्रोत पर शक नहीं करेंगे – छोटा लेकिन शक्तिशाली ग्रासहॉपर माउस(चूहा का एक प्रजाति), अपने क्षेत्र को स्थापित करने के लिए चाँद की ओर सिर उठाकर चीखता है l
यह अनोखा कृंतक/rodent (उपनाम “भड़मानस माउस/werewolf mouse”) मांसाहारी भी है l वास्तव में, यह ऐसे प्राणियों का शिकार करता है जिसके साथ दूसरे उलझने की हिम्मत शायद ही करेंगे जैसे बिच्छू l लेकिन वेयरवुल्फ माउस विशिष्ट रूप से उस विशेष लड़ाई के लिए सुसज्जित है l इसके पास न केवल बिच्छू के जहर के प्रति प्रतिरोधक क्षमता है, बल्कि विषाक्त पदार्थों को दर्द निवारक में भी बदल सकता है!
इस लचीले छोटे चूहे के जीवित रहने और यहां तक ​​कि उसके कठोर वातावरण में पनपने के विषय लगता है कि इसे विशेष-रूप से बनाया गया है जो कुछ प्रेरणादायक है l जैसा कि पौलुस इफिसियों 2:10 में बताता है, उस प्रकार की अद्भुत शिल्प कौशल परमेश्वर के लोगों के लिए भी उसकी अभिकल्पना को चरितार्थ करता है l हम में से हर एक यीशु में “परमेश्वर की शिल्पकारिता” हैं, जो विशिष्ट रूप से उसके राज्य में योगदान करने के लिए सुसज्जित है l कोई फर्क नहीं पड़ता कि परमेश्वर ने आपको कैसे प्रतिभाशाली बनाया है, आपके पास देने के लिए बहुत कुछ है l जब आप भरोसे के साथ स्वीकार करते हैं जो वह आपको होने के लिए बनाया है, तो आप उसमें जीवन की आशा और आनंद के लिए जीवित साक्षी होंगे l
तो जब आप अपने खुद के जीवन में किसी का भी सामना करते हैं जो आपको सबसे डरावना लगता है, हिम्मत न हारें l आप छोटा महसूस कर सकते हैं, लेकिन आत्मा के वरदान और सशक्तिकरण के द्वारा, परमेश्वर आपको शक्तिशाली काम करने के लिए उपयोग कर सकता है l

अकल्पनीय वादे

हमारी सबसे बड़ी असफलता के क्षणों में, यह विश्वास करना आसान हो सकता है कि हमारे लिए बहुत देर हो चुकी है, कि हमने उद्देश्य और मूल्य के जीवन में अपना मौका खो दिया है l इसी तरह अधिकतम-सुरक्षा जेल में एक पूर्व कैदी एलियास ने कैदी के रूप में अपनी भावनाओं का वर्णन किया l “मेरे पास टूटे वादे थे, मेरे अपने भविष्य के वादे, मैं क्या हो सकता था का वादा l”
यह एक कॉलेज का “जेल में प्रचार करने की पहल(Prison Initiative” कॉलेज की डिग्री प्रोग्राम था जिसने एलियास के जीवन को बदलना शुरू किया l कार्यक्रम में रहते हुए, उसने एक वाद-विवाद टीम में भाग लिया, जिसने 2015 में हार्वर्ड की एक टीम से वाद-विवाद किया और जीत हासिल की l एलायस के लिए, “"टीम का हिस्सा होना . . . [यह साबित करने का एक तरीका था कि ये वादे पूरी तरह से खो नहीं गए हैं l”
इसी तरह का परिवर्तन हमारे हृद्यों में तब होता है जब हम यह समझने लगते हैं कि यीशु में परमेश्वर के प्रेम की खुशखबरी हमारे लिए भी अच्छी खबर है l हम आश्चर्य के साथ महसूस करना शुरू करते हैं, बहुत देर नहीं हुई है । परमेश्वर अभी भी मेरे लिए एक भविष्य रखा है l
और यह एक ऐसा भविष्य है जिसे न तो कमाया जा सकता है और न ही यह खो सकता है, केवल परमेश्वर के असाधारण अनुग्रह और सामर्थ्य पर अवलंबित है (2 पतरस: 1:2-3) l एक ऐसा भविष्य जहां हम संसार में निराशा से मुक्त हो गए हैं और हमारे हृद्यों में जो उसकी “महिमा और सद्गुण” से भरे हुए हैं (पद.3) l मसीह के अकल्पनीय वादों में सुरक्षित भविष्य (पद.4); और एक भविष्य जो “परमेश्वर की संतानों की महिमा” में बदल गया है (रोमियों 8:21) l

क्षमा के साथ भविष्य

1994 में, जब दक्षिण अफ्रीका ने लोकतंत्र के लिए रंगभेद(अनिवार्य नस्लीय अलगाव) द्वारा शासित सरकार को छोड़ा, तो इस मुश्किल सवाल का सामना करना पड़ा कि रंगभेद के तहत किए गए अपराधों को कैसे संबोधित किया जाए l देश के अगुए अतीत को नजरअंदाज नहीं कर सकते थे,  लेकिन केवल दोषियों पर कठोर दंड लगाने से देश के घावों को गहरा करने का जोखिम था l जैसे कि दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत एंग्लिकन आर्चबिशप, डेसमंड टूटू ने अपनी पुस्तक नो फ्यूचर विदाउट फॉरगिवनेस(No Future Without Forgiveness) में बताया, “हम बहुत अच्छी तरह से इन्साफ,  सजा देनेवाला न्याय कर सकते थे,  और दक्षिण अफ्रीका राख में पड़ा होता l”  

सत्य और सुलह समिति की स्थापना के माध्यम से,  नए लोकतंत्र ने सत्य,  न्याय, और दया को आगे बढ़ाने का कठिन मार्ग चुना l अपराधों के दोषी लोगों को पुनर्स्थापन का मार्ग दिया गया - यदि वे अपने अपराधों को स्वीकार करने और बहाली/पुननिर्माण के लिए तैयार थे l केवल सच्चाई का सामना करने से ही देश चंगाई पाना आरम्भ कर सकता था l

एक तरह से,  दक्षिण अफ्रीका की दुविधा,  हम सभी के संघर्ष को दर्शाती है l हमें न्याय और दया दोनों का पालन करने के लिए कहा जाता है (मीका 6:8),  लेकिन दया को अक्सर जवाबदेही की कमी के लिए गलत समझा जाता है,  जबकि न्याय का पीछा करना बदला लेने में विकृत हो सकता है l

हमारा एकमात्र अग्रिम मार्ग प्रेम है जो न केवल “बुराई से घृणा [करता है]” (रोमियों 12:9) है बल्कि हमारे “पड़ोसी” (13:10) के परिवर्तन और भलाई के लिए भी तरसता है l मसीह की आत्मा की शक्ति के द्वारा,  हम सीख सकते हैं कि भलाई से बुराई पर काबू पाने का भविष्य क्या है (12:21) ।

लाभदायक परीक्षाएँ

पन्द्रवीं सदी के मठवासी थॉमस ए. केम्पिस, अतिप्रिय उत्कृष्ट साहित्य द इमिटेशन ऑफ़ क्राइस्ट(The Imitation of Christ) में, परीक्षा(tempatation) पर एक परिप्रेक्ष्य प्रदान करते हैं जो थोड़ा आश्चर्यचकित कर सकता है l दर्द और कठिनाईयों पर ध्यान केन्द्रित करने के बजाय जहाँ परीक्षा ले जा सकती है, वह लिखते हैं, “[परीक्षाएँ] लाभदायक हैं क्योंकि वे हमें नम्र बनाती हैं, वे हमें साफ़ कर सकती हैं, और वे हमें सिखा सकती हैं l” वह समझाते हैं, “जीत की कुंजी सच्ची विनम्रता और धैर्य है; उनमें होकर हम दुश्मन को मात देते हैं l”

नम्रता और धैर्य l यदि में स्वाभाविक रूप से परीक्षा का प्रत्युत्तर देता तो मसीह के साथ मेरा चलना कितना अलग होता! ज्यादातर, मैं शर्म, निराशा, और अधीर प्रयास की प्रतिक्रिया के साथ संघर्ष से बाहर आने का प्रयास करता हूँ l

परन्तु, जैसे कि हम याकूब 1 से सीखते हैं, हम जिन परीक्षाओं और आजमाईशों का सामना करते हैं, वे उद्देश्य के बिना या केवल एक खतरे के रूप में नहीं होते हैं l यद्यपि परीक्षा में हार मानने से दिल टूट सकता है तबाही हो सकती है (पद.13-15), जब हम विनम्र हृदयों से परमेश्वर की ओर मुड़कर उसकी बुद्धिमत्ता और अनुग्रह को खोजते हैं, हम पाते हैं कि वह “बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है” (पद.5) l हममें उसकी सामर्थ्य के द्वारा, हमारी परीक्षाएँ और पाप का सामना करने का संघर्ष धैर्य उत्पन्न करता है, “कि [हम] पूरे और सिद्ध हो जाएँ, और [हम] में किसी बात की घटी न रहे” (पद.4) l

जब हम यीशु में भरोसा करते हैं, भय में जीने का कोई कारण नहीं है l परमेश्वर के प्रिय बच्चों के रूप में, हम शांति पा सकते हैं जब हम उसके प्रेमी बाहों में विश्राम करते हैं, तब भी जब हम परीक्षा का सामना करते हैं l

शाखाओं में निवास

जैसा कि मैंने अपने परामर्शदाता के साथ अपनी भावनाओं के उतार-चढ़ाव को एक तनाव-भरे सप्ताह के बाद साझा किया, उसने सोच समझकर सुना। फिर उसने मुझे खिड़की से बाहर पेड़ों को देखने के लिए बुलाया, संतरों से भरे हुए, और जिसकी शाखाएं हवा से झूल रही थी। 
यह बताते हुए कि तना हवा में बिलकुल नहीं हिल रही थी, मेरे परामर्शदाता ने समझाया, “हम भी कुछ इसी प्रकार हैं। जब जीवन हर दिशा से हम पर प्रहार कर रहा हो, तो निश्चित ही हमारी भावनाएं ऊपर और नीचे और चारों-ओर जाएंगी। हमारा लक्ष्य आपको अपना जड़ या तना खोजने में मदद करना है। इस तरह, जब जीवन हर तरफ से खींच रहा हो, तो आप अपनी शाखाओं में नहीं रह सकते हैं फिर भी आप सुरक्षित और स्थिर रहेंगे।"
यह एक छवि है जो मेरे साथ रहा; और यह पौलुस द्वारा इफिसियों के नए विश्वासियों को दी गयी छवि से मिलती जुलती है। परमेश्वर के अविश्वसनीय उपहार की याद दिलाते हुए अर्थात् अद्भुत उद्देश्य और महत्त्व का नया जीवन (इफिसियों 2:6-10), पौलुस ने अपनी तीव्र इच्छा साझा किया कि वे मसीह के प्रेम में “जड़ पकड़कर और नेव डाल कर” स्थापित हो चुके थे (3:17), और “उपदेश के हर एक झोंके से उछाले और इधर-उधर घुमाए”(4:14) नहीं जाते थे।
अपने दम पर, अपने डर और असुरक्षाओं से ग्रसित, असुरक्षित और नाजुक महसूस करना आसान है, लेकिन जब हम मसीह में अपनी वास्तविक पहचान में बढ़ते हैं (पद.22-24), हम परमेश्वर के साथ और एक दूसरे के साथ गहरी शांति का अनुभव करते हैं (पद.3), मसीह की सामर्थ्य और सुन्दरता द्वारा पोषित और संभाले हुए (पद.15-16) l

रहस्य

कभी-कभी मुझे संदेह होता है कि मेरी बिल्ली टॉम FOMO (fear of missing out) लापता होने के डर की बुरी दशा से ग्रस्त है l जब मैं किराने का सामान लेकर घर आती हूँ, तो टॉम सामग्री का निरीक्षण करने के लिए दौड़ता है l जब मैं सब्जियां काट रही होती हूँ, तो वह अपने पिछले पैरों के बल खड़ा होकर सामग्री को ध्यान से देखते हुए मुझसे उसे साझा करने के लिए बिनती करता है l लेकिन जब मैं वास्तव में टॉम को उसकी पसंद की वस्तु पकड़ा देती हूँ, वह उसमें रूचि छोड़कर, ऊब की अप्रसन्नता के साथ चल देता है l 

लेकिन मेरे लिए अपने छोटे दोस्त पर कठोर होना पाखण्ड होगा l वह अधिक के लिए मेरी खुद की अतृप्त भूख को दर्शाता है, मेरी धारणा कि “अभी” कभी नहीं पर्याप्त है l 

पौलुस के अनुसार, संतोष स्वाभाविक नहीं है – यह सीखा जाता है (फिलिप्पियों 4:11) l अपने दम पर, हम अपने विचार से उसे पूरी तरह से आगे बढाते हैं, जिससे हम संतुष्ट होने का विचार रखते हैं, अगली बात पर बढ़ते हुए हम जान जाते हैं कि यह भी संतुष्ट नहीं करेगा l अन्य समयों पर, हमारा असंतोष चिंतावश किसी भी और सभी संदिग्ध खतरों से खुद को बचाने का रूप लेता है l 

व्यंगात्मक रूप से, कभी-कभी यह अनुभव से आता है कि लुढ़ककर असली ख़ुशी में जाने के लिए हम सबसे अधिक किससे डरते थे l सबसे बुरा अनुभव करने के बाद जो जीवन पेश करता है, पौलुस पहली बार सच्चे संतोष के “रहस्य” (पद.11-12) की गवाही दे सकता था – रहस्मय वास्तविकता कि जब हम पूर्णता की लालसा को परमेश्वर की ओर उठाते हैं, तो हम न समझाया जा सकने योग्य शांति का अनुभव करते हैं (पद.6-7), जो मसीह की सामर्थ्य, सुन्दरता और अनुग्रह की अथाह गहराई में ले जाता है l 

यहाँ खतरा हो सकता है?

किंवदंती में है कि मध्ययुगीन नक्शों के किनारों पर, दुनिया के मानचित्रों के रचनाकार के अनुसार ज्ञात सीमाएं “यहाँ खतरे(ड्रैगन/दैत्य) हो सकते हैं? – शब्दों से चिन्हित होते थे –अक्सर भयानक जानवरों के ज्वलंत चित्रण के साथ जिनके विषय मान्यता थी कि संभवतः वे वहाँ दुबके हुए हैं l

प्राचीन मानचित्रकार वास्तव में इन शब्दों को लिखें है इसके अधिक प्रमाण नहीं हैं, परन्तु मैं विचार करना चाहता हूँ कि वे लिखे होंगे l हो सकता है क्योंकि “यहाँ खतरे(ड्रैगन/दैत्य) हो सकते हैं” कुछ ऐसा महसूस होता है जैसे मैंने उस समय लिखा हो – एक गंभीर चेतावनी जो कि मुझे नहीं पता कि अगर मैं बड़े अज्ञात में पहुँच गया तो क्या होगा, यह संभवतः अच्छा नहीं होगा!

लेकिन आत्म-रक्षा और जोखिम-निवारण की मेरी पसंदीदा नीति के साथ एक विकराल समस्या है : यह उस साहस के विपरीत है जिसके लिए मुझे यीशु में विश्वासी के रूप में बुलाया गया है (2 तीमुथियुस 1:7) l 

कोई यह भी कह सकता है कि वास्तव में खतरनाक क्या है के विषय मैं गुमराह हूँ l जैसा कि पौलुस ने समझाया, कि एक टूटे संसार में बहादुरी से मसीह का अनुसरण पीड़ादायक हो सकता है (पद.8) l परन्तु जैसा कि हमें मृत्यु से जीवन में लाया गया है और आत्मा का जीवन सौंपा गया है जो हमारे द्वारा बहता है (पद.9-10, 14), तो हम कैसे नहीं कर सकते हैं? 

जब परमेश्वर हमें एक उपहार देता है डर से पीछे हटने की यह लड़खड़ाहट, वास्तविक त्रासदी होगी –किसी भी चीज का जिसका सामना हम करेंगे से कही अधिक बदतर होगी जब हम मसीह की अगुवाई में अनधिकृत क्षेत्र में चलते हैं (पद.6-8, 12) l हमारे दिल और हमारे भविष्य से उस पर भरोसा किया जा सकता है (पद.12) l  

“मैं समस्त संसार से प्रेम करती हूँ”

मेरी तीन वर्षीय भतीजी, जेना की एक अभिव्यक्ति है, जो मेरे हृदय को हमेशा द्रवित करता है l जब वह किसी वस्तु से प्यार करती है (वास्तव में उससे प्यार करती है), चाहे वह केला मलाई मिठाई हो, उछाल पट (trumpolines) पर कूदना हो, या फ़्रिसबी(एक प्रकार का खेल) हो, वह ऊंची आवाज़ में बोलती है, “मैं इससे प्यार करती हूँ – समस्त संसार को!” (“समस्त संसार” और नाटकीय तौर से अपनी बाहों से इशारा करती है)

कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है, पिछली बार कब मैंने ऐसा प्यार करने की हिम्मत की थी? कुछ भी अपने अधीन नहीं रखा था, पूरी तौर से अभय?

यूहन्ना ने बार-बार लिखा, “परमेश्वर प्रेम है” (1 यूहन्ना 4:8, 16), शायद इसलिए कि यह सच्चाई कि परमेश्वर का प्रेम – हमारा क्रोध, भय, या लज्जा नहीं – सच्चाई की सबसे गहरी बुनियाद है, हम सयानों के लिए “हासिल करना” कठिन है l संसार हमें उन शिविरों के आधार पर विभाजित करती है जिससे हम सबसे अधिक डरते हैं – और ज़यादातर हम इसमें शामिल हो जाते हैं, वास्तविकता की हमारी पसंदीदा दृष्टि को चनौती देनेवाली आवाजों की अनदेखी करते हैं या उन्हें खलनायक बना देते हैं l

फिर भी धोखे और शक्ति के संघर्ष के बीच (पद.5-6), परमेश्वर के प्रेम का सत्य बना रहता है, एक प्रकाश जो अँधेरे में चमकता है, हमें विनम्रता, विश्वास और प्रेम का मार्ग सीखने के लिए निमंत्रित करता है (1:7-9; 3:18). कोई बात नहीं है कि किस दर्दनाक सच को प्रकाश उजागर करता है, हम जान सकते हैं कि हम अभी उस अवस्था में भी प्यार किये जाते हैं (4:10; रोमियों 8:1) l

जब जेना मेरी ओर झुककर मुझसे फुसफुसाती है, “मैं पूरी दुनिया से प्यार करती हूँ!” मैं भी वापस फुसफुसाती हूँ, “मैं पूरी दुनिया से प्यार करती हूँ!” और मैं एक सौम्य अनुस्मारक के लिए आभारी हूँ कि हर पल मैं असीम प्रेम और अनुग्रह में सुरक्षित हूँ l

उकसानेवालों को बढ़ावा न दें

क्या आपने कभी यह उक्ति सुनी है, “उकसानेवालों को बढ़ावा न दें” (Don’t feed the trolls”) l “ट्रोल्स” आज के डिजिटल संसार में एक नयी समस्या की ओर इशारा करता है – ऑनलाइन यूजर जो ख़बरों या सोशल मीडिया चर्चा समिति के बारे में बार-बार इरादतन विद्रोहजनक और हानिकारक टिप्पणियाँ पोस्ट करते रहते हैं l परन्तु ऐसे टिप्पणियों को नज़रंदाज़ करना – उकसानेवालों को बढ़ावा न देना – उनके लिए किसी संवाद को पटरी से उतारना कठिन बना देता है l

अवश्य ही, ऐसे लोगों का सामना करना कोई नयी बात नहीं है जो असलियत में उत्पादक संवाद में रूचि नहीं रखते हैं l “उकसानेवालों को बढ़ावा न दें” नीतिवचन 26:4 का आधुनिक समतुल्य हो सकता है, जो चेतावनी देता है कि अभिमानी, ग्रहण न करनेवाले के साथ बहस करना, उनके स्तर तक नीचे उतरने का जोखिम है l

और इसके बावजूद . . . सबसे अड़ियल दिखाई देने वाला व्यक्ति भी परमेश्वर की छवि का अमूल्य धारक है l यदि हम दूसरों को ख़ारिज करने में जल्दबाज़ है, हम अभिमानी और परमेश्वर के अनुग्रह को अस्वीकार करनेवाले बन जाने के खतरे में हो सकते हैं (देखें मत्ती 5:22) l 

वह, कुछ हद तक स्पष्ट करता है क्यों नीतिवचन 26:5 बिलकुल विपरीत मार्गदर्शन पेश करता है l यह हर एक स्थिति में सर्वश्रेष्ठ तौर से प्रेम प्रगट करने का निर्णय है क्योंकि यह परमेश्वर पर दीन, प्रार्थनामय भरोसा से ही संभव है (देखें कुलुस्सियों 4:5-6) l कभी हम जोर से बोलते हैं, और दूसरे समयों में, शांत रहना ही उत्तम है l

परन्तु हर एक स्थिति में, हम यह जानने में शांति पाते हैं कि वही परमेश्वर जो हमें अपने निकट लाया जब हम उसके प्रति कठोर विरोधी थे (रोमियों 5:6) हर एक व्यक्ति के हृदय में सामर्थी रूप से कार्य कर सकता है l जब हम मसीह के प्रेम को साझा करने का प्रयास करते हैं हम उसकी बुद्धिमत्ता में विश्राम करें l