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Articles by माइक विटमर

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हेरोइन(मादक पदार्थ) की लत मार्मिक रूप से दुखद है l इसका उपयोग करनेवाले इसके प्रति रोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं, इस प्रकार मादक पदार्थ के उस ऊँचे स्तर के लिए उन्हें और अधिक नशा करना पड़ता है l जल्द ही वे जितना नशीला पदार्थ लेते हैं ये उनकी मृत्यु  के लिए पर्याप्त से अधिक होता है l जब नशेड़ी सुनते हैं कि कोई एकाएक अधिक नशा करने से मर गया है, ज़रूरी नहीं उनका पहला विचार डर होगा परन्तु “वह मुझे कहाँ मिल सकता है?”

सी.एस. ल्युईस अपनी पुस्तक स्क्रूटेप लेटर्स में परीक्षा की कला की शैतान की व्याख्या के प्रति अपने कल्पनाशील अवलोकन में इस गिरते बिगाड़ के विषय चेतावनी देते हैं l थोड़ी अभिलाषा के साथ आरम्भ करें – यदि संभव है तो परमेश्वर की अच्छी अभिलाषाओं में से एक से – और परमेश्वर ने जिस तरह निषेध किया है उस प्रकार से पेश करें l जब कोई व्यक्ति मुँह मारता है, उसे थोड़ा दें यद्यपि उसे अधिक पाने का प्रलोभन दें l “हमेशा कम होनेवाली अभिलाषा के लिए हमेशा बढ़नेवाली तृष्णा,” का प्रबंध करें, जब तक कि अंत में हमें “उस व्यक्ति की आत्मा न मिल जाए और उसके बदले उसे कुछ न दें l”

नीतिवचन 7 यौन पाप की परीक्षा के सम्बन्ध में इस विनाशक चक्र का वर्णन करता है l यौन परमेश्वर का अच्छा उपहार है, परन्तु जब हम विवाह के बाहर इसके आनंद को खोजते है हम “बैल” के जैसे होते हैं जो “कसाई-खाने को” जाता है (पद.22) l हमसे मजबूत लोगों ने हानिकारक शीर्ष बिन्दुओं को पाने का प्रयास करके खुद को बर्बाद किया है, इसलिए “सुनो” और “तेरा मन [गलत] मार्ग की ओर न फिरे” (पद.24-25) l पाप आकर्षक और लत लगाने वाला हो सकता है, परन्तु इसका अंत मृत्यु है (पद. 27) l परमेश्वर की सामर्थ्य में – पाप की परीक्षा से दूर रहकर, हम उसमें सच्चा आनंद और परिपूर्णता प्राप्त कर सकते हैं l

बुद्धिमान सहायता

जैसे ही मैंने लाल बत्ती पर अपनी कार रोकी, मैंने फिर से उसी व्यक्ति को सड़क के किनारे खड़ा देखा l वह गत्ते का एक साइनबोर्ड लिए हुए था : भोजन के लिए पैसे चाहिए l कोई भी सहायक हो सकता है l मैं अपना मूंह फेरकर गहरी सांस ली l क्या मैं ज़रुरात्मंदों की उपेक्षा करनेवाला व्यक्ति हूँ?

कुछ लोग ज़रूरतमंद होने का बहाना बनाते हैं परन्तु वास्तव में ठग होते हैं l दूसरों के पास वास्तविक ज़रूरतें होती हैं परन्तु विनाशकारी आदतों पर काबू पाने में कठिनाई महसूस करते हैं l सामाजिक कार्यकर्ता हमें बताते हैं कि अपने शहर की सहायता सेवाओं को धन देना बेहतर है l मैंने कठिनाई से इसे ग्रहण किया और गाड़ी तेज़ चलायी l मैंने अच्छा महसूस नहीं किया, परन्तु बुद्धिमानी से कार्य कर सकता था l

परमेश्वर हमें “आलसियों को चेतावनी [देने] भीरुओं को सांत्वना [देने] दुर्बलों को [सँभालने]’ की आज्ञा देता हैं (1 थिस्सलुनीकियों 5:14 HindiCL-BSI)) l इसे भलीभांति करने के लिए हमें जानना है कि कौन किस श्रेणी में आता है l यदि हम दुर्बलों अथवा कायरों को चेतावनी देते हैं, हम उनकी आत्मा को चूर-चूर कर देंगे; यदि हम आलसी की सहायता करेंगे, हम आलस को बढ़ावा देंगे l फलस्वरूप, हम निकट से पूरी मदद कर सकते हैं, जब हम प्रयाप्त रूप से व्यक्ति और उसकी ज़रूरतों को जान जाते हैं l

क्या परमेश्वर ने किसी की सहायता करने के लिए आपके हृदय पर बोझ डाला है? उत्कृष्ट! अब कार्य आरम्भ होता है l यह न समझें आप उस व्यक्ति की ज़रूरतें जानते हैं l उसे अपनी कहानी बताने को कहें, और आप सुनें l प्रार्थनापूर्वक बुद्धिमानी से मदद करें और केवल अच्छा महसूस करने के लिए नहीं l जब हम वास्तव में “सब से . . . भलाई ही की चेष्टा [करेंगे],” हम अधिक तत्परता से उस समय भी जब वे गिरेंगे “सब की ओर सहनशीलता [दिखा सकेंगे] (पद.14-15) l

आपकी प्रशस्ति

एक विश्वासी महिला के अंतिम संस्कार में उपस्थित होने के कारण मेरा हृदय भरा हुआ है l उसका जीवन असाधारण नहीं था l वह केवल अपने चर्च, पड़ोसी, और मित्रों के बीच में लोकप्रिय थी l परन्तु वह, उसके सात बच्चे, और 21 नाती-पोते यीशु से प्रेम करते थे l वह सरलता से हंसती थी, उदारतापूर्वक सेवा करती थी, और दूसरों के मन में लम्बे समय तक बस सकती थी l

सभोपदेशक कहता है, “भोज के घर जाने से शोक ही के घर जाना उत्तम है” (7:2) l “बुद्धिमान का मन शोक करनेवालों के घर की ओर लगा रहता है” क्योंकि हम वहाँ पर सबसे महत्वपूर्ण सबक सीखते हैं (7:4) l न्यू यॉर्क टाइम्स के स्तम्भ लेखक डेविड ब्रुक्स कहते हैं कि दो प्रकार के सद्गुण हैं : जो रिज्यूमे/आत्मकथा में अच्छे लगते हैं और दूसरा जो आप चाहेंगे कि आपके अंतिम संस्कार के समय आपके विषय कहे जाएँ l 

कभी-कभी ये मेल खाती हैं, यद्यपि अक्सर वे प्रतिस्पर्धा करती हुयी दिखाई पड़ती हैं l जब शंका हो, हमेशा अपनी अपनी प्रशस्ति/बड़ाई करनेवाले गुणों का चुनाव करें l

कफ़न में लिपटी महिला के पास कोई रिज्यूमे नहीं था, किन्तु उसके बच्चों ने गवाही दी कि “उन्होंने हमेशा नीतिवचन 31 का अभ्यास किया” और एक धर्मी स्त्री का जीवन जीया l उन्होंने उनको यीशु से प्रेम करने और दूसरों की देखभाल करने के लिए प्रेरित किया l जिस प्रकार पौलुस कहता है, “मेरी सी चाल चलो जैसा मैं मसीह की सी चाल चलता हूँ” (1 कुरिन्थियों 11:1), इसलिए उपरोक्त पदों ने हमें अपनी माँ का अनुकरण करने के लिए चुनौती दी जैसे वह यीशु का अनुकरण करती थी l

आपके अंतिम संस्कार के समय क्या बोला जाएगा? आप क्या चाहेंगे कि बोली जाए? अपनी प्रशस्ति/बड़ाई के गुण विकसित करने में देर नहीं हुयी है l यीशु में विश्राम करें l उसका उद्धार हमें जो सबसे महत्वपूर्ण है के लिए जीने में स्वतंत्र करता है l

अकेलापन का मंत्री

अपने पति की मृत्यु के बाद, बेट्सी ने ज़्यादातर दिन अपने घर में टेलीविजन देखकर और अपने लिए चाय बनाकर व्यतीत किया है l वह अपने एकाकीपन में अकेले नहीं है l 90 लाख से अधिक ब्रिटेनवासियों(जनसंख्या का 15 फीसदी) का कहना है कि वे अक्सर या हमेशा अकेलापन का अनुभव करते हैं, और ग्रेट ब्रिटेन ने क्यों और कैसे सहायता की जा सकती है के लिए एकाकीपन का एक मंत्री नियुक्त किया है l

एकेलापन के कुछ कारण सबको पता हैं : अक्सर हम जड़ों को गहराई में ले जाने के लिए प्रयास करते हैं l हम भरोसा करते हैं कि हम अपनी चिंता कर सकते हैं, और हमारे पास बातचीत करने के लिए कारण नहीं है l हम तकनीक से अलग-थलग है – हममें से हर एक अपने खुद के अस्थिर चित्रपटों में मगन है l

मैं अकेलापन का अंधकारमय खतरा महसूस करता हूँ, और आप भी करते होंगे l इसीलिए हमें भी संगी विश्वासियों की आवश्यकता है l इब्रानियों हमें एक दूसरे के साथ नियमित रूप से इकठ्ठा होने के लिए उत्साहित करते हुए यीशु के बलिदान की अपनी गहरी परिचर्चा समाप्त करता है (10:25) l हम परमेश्वर का परिवार हैं, इसलिए हमें “भाईचारे की प्रीति” बनाए रखना है और “अतिथि-सत्कार करना नहीं भूलना [है] (13:1-2) l यदि हममें से हर एक प्रयास करेंगे, सभी लोग देखभाल का अनुभव करेंगे l

अकेले लोग संभतः हमारी दयालुता को लौटा नहीं पाएंगे, किन्तु हार मानने का यह कारण हो नहीं सकता है l यीशु ने हमें कभी नहीं छोड़ने की प्रतिज्ञा की है (13:5), और हम उसकी मित्रता का उपयोग दूसरों के लिए अपने प्रेम को बढ़ने के लिए कर सकते हैं l क्या आप अकेले हैं? आप परमेश्वर के परिवार की सेवा करने के लिए ढूँढ कौन से तरीके ढूँढ सकते हैं? आप जो मित्रता यीशु में करते हैं वो अनंत हैं, इस जीवन में और उसके बाद भी l

महत्वहीनों की सेवा

विडियो में एक व्यक्ति को अनियंत्रित आग के दौरान एक वयस्त मार्ग के पास घुटने टेके हुए दिखाया गया l वह हाथों से ताली बजाते हुए किसी चीज़ के आने के लिए निवेदन कर रहा था l वह क्या था? एक कुत्ता? कुछ क्षण बाद एक खरगोश कूदकर तस्वीर में आ गया l उस व्यक्ति ने उस डरे हुए खरगोश को उठाया और गति से दौड़कर उसे सुरक्षित स्थान में ले गया l

किस प्रकार एक छोटे चीज़ का बचाया जाना राष्ट्रीय खबर बन गया? इसीलिए l इनके समान सबसे निर्बल के प्रति करुणा दर्शाने के विषय कुछ प्रीतिकर है l सबसे छोटे प्राणी के लिए जगह बनाने के लिए एक बड़ा दिल चाहिए l

यीशु ने कहा स्वर्ग का राज्य एक व्यक्ति के समान है जिसने एक बड़े भोज का आयोजन किया और आने की इच्छा रखने वाले हर एक के लिए जगह बनायी l केवल प्रभावशाली लोगों के लिए नहीं परन्तु “कंगालों, टुन्डों, लंगड़ों और अन्धों” लिए (लूका 14:21) l मैं धन्यवादित हूँ कि परमेश्वर निर्बलों और कदाचित् महत्वहीन लोगों पर ध्यान देता है, क्योंकि अन्यथा मुझे कोई अवसर नहीं मिलता l पौलुस ने कहा, “परमेश्वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया है कि बलवानों को लज्जित करे; और परमेश्वर ने जगत के नीचों और तुच्छों को . . . चुन लिया . . .  ताकि कोई प्राणी परमेश्वर के सामने घमण्ड न करने पाए” (1 कुरिन्थियों 1:27-29) l

मुझ जैसे छोटे व्यक्ति को बचाने के लिए परमेश्वर का हृदय कितना बड़ा होगा! प्रतिउत्तर में, मेरा हृदय कितना बड़ा हो गया है? मैं आसानी से बता सकता हूँ, मैं “महत्वपूर्ण व्यक्तियों”  को किस प्रकार प्रसन्न करता हूँ के द्वारा नहीं, किन्तु उन व्यक्तियों की सेवा करके जिन्हें समाज शायद अति महत्वहीन समझता है l

जब आप चुने हुए नहीं हैं

मेरे एक मित्र की एक फेसबुक की पोस्ट ने बताया कि उसने एक प्रोजेक्ट पूरा कर लिया है। अन्य लोगों ने उसे बधाई दी, परन्तु उसकी पोस्ट ने मेरे दिल में छुरा भोंक दिया। वह प्रोजेक्ट मुझे मिलना था। मुझे एक ओर कर दिया गया, और मुझे नहीं पता कि क्यों।

बेचारा यूसुफ़। उसे परमेश्वर के द्वारा एक ओर कर दिया गया, और वह जानता था कि क्यों। यूसुफ उन दो व्यक्तियों में से एक था, जो यहूदा को बदलने की दौड़ में शामिल थे। शिष्यों नें प्रार्थना की, ““हे प्रभु, तू जो सब के मन जानता है, यह प्रगट कर कि इन दोनों में से तू ने किसको चुना है” (प्रेरितों के काम 1:24)। परमेश्वर ने दूसरे व्यक्ति को चुना। फिर उसने समूह को अपना निर्णय बताया जब “चिट्ठी मत्तियाह के नाम पर निकली” (पद 26)।

जब शिष्यों ने मत्तियाह को बधाई दी, मुझे यूसुफ की चिन्ता होती है। इन्कार किए जाने पर उसने अपने आप को कैसे सम्भाला होगा? क्या उसने ठुकराया हुआ महसूस किया, उसे अपने आप पर तरस आया होगा और उसने अपने आप को दूसरों से दूर कर लिया होगा? या क्या उसने परमेश्वर पर भरोसा किया और आनन्द के साथ सहयोग करता रहा? 

मैं जानता हूँ कौन सा विकल्प उत्तम है। और मैं जानता हूँ कि मैं कौन सा विकल्प लूँगा। कितना शर्मनाक है! यदि तुम मुझे नहीं चाहते, तो कोई बात नहीं, ठीक है। देखता हूँ तुम मेरे बिना क्या कर लोगे। हो सकता है वह सही लगे, परन्तु वह स्वार्थ से भरा हुआ है।   

पवित्रशास्त्र में दोबारा यूसुफ़ का उल्लेख नहीं किया गया, इसलिए हम नहीं जानते कि उसने कैसी प्रतिक्रिया की। अधिक महत्वपूर्ण यह है कि हम कैसी प्रतिक्रिया करते हैं, जब हम चुने नहीं जाते हैं। प्रभु कर कि हमें याद रहे कि हमारी सफलता से अधिक महत्वपूर्ण यीशु का राज्य है, और प्रभु कर कि हम उस भूमिका को आनन्द के साथ निभाएँ, जो वह हमारे लिए चुनता है।

परमेश्वर की कहानी में जीना

अर्नेस्ट हेमिंग्वे से पूछा गया कि क्या वे छह शब्दों में एक कायल कर देने वाली कहानी लिख सकते हैं। उनका उत्तर था: “बिक्री के लिए बच्चों के जूते, जिन्हें कभी पहना नहीं गया।” हेमिंग्वे की कहानी जबरदस्त है क्योंकि यह हमें बीच के खाली स्थानों को अपने आप भरने के लिए प्रेरित करती है। क्या उन जूतों की एक स्वस्थ बच्चे को आवश्यकता नहीं थी? या क्या कोई दुखद घटना हो गई थी-कुछ ऐसा जिसमें परमेश्वर के गहन प्रेम और आराम की जरूरत थी? 

सर्वोत्तम कहानियाँ हमारी कल्पना को उत्पन्न करती हैं, तो यह आश्चर्य की बात नहीं है कि अब तक की बताई गई सर्वोत्तम कहानी हमारी रचनात्मकता को उत्तेजित करती है। परमेश्वर की कहानी में एक केन्द्रीय कथावस्तु है; हम (मानवजाति) पाप में गिर गए; यीशु पृथ्वी पर आया और मारा गया और हमें हमारे पापों से बचाने के लिए पुनर्जीवित हो गया; और अब हम उसके लौटने और सभी वस्तुओं को पुनर्स्थापित कर देने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।   

यह जानते हुए कि पहले क्या हो चुका है और आगे क्या होने वाला है, हमें कैसे जीना चाहिए? यदि यीशु अपनी सम्पूर्ण सृष्टि को बुराई के पंजे से छुड़ा रहा है, तो अनिवार्य है कि “हम अन्धकार के कामों को त्याग कर ज्योति के हथियार बाँध लें।” (रोमियों 13:12)। इसमें परमेश्वर की सामर्थ से पाप से मुड़ना और उससे और दूसरों से भी प्रेम करना सम्मिलित है (पद 8-10) ।

एक विशेष रूप से यीशु के साथ बुराई के विरुद्ध लड़ना इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे पास कौन से वरदान हैं और हम किन जरूरतों को देखते हैं। आइए हम अपनी कल्पना शक्ति का प्रयोग करें और अपने आस-पास देखें। आइए घायलों और विलापितों को खोजें और परमेश्वर के न्याय, प्रेम और आराम को फैलाएं, जिस भी तरह से वह हमारा मार्गदर्शन करता है।

गोद लिए हुए

मुझे खुशी होती है जब एक परहित करने वाला बेघर बच्चों के लिए एक अनाथालय का निर्माण करता है। मैं और भी उत्साहित हो जाता हूँ जब वह और अधिक देता है और उन बच्चों में से एक को गोद ले लेता है। अधिकत्तर अनाथ बच्चे बस एक पिता को पाकर ही प्रसन्न होंगे। परन्तु मेरी सहायता करने वाले के बारे में बस जान लेना ही मेरी सहायता नहीं करेगा, परन्तु यह कि वह मुझे चाहता है। वह कैसा लगेगा?

यदि आप परमेश्वर की एक सन्तान हैं और यह आप पहले से ही जानते हैं, क्योंकि यह आपके साथ घटित हुआ है। हम शिकायत नहीं कर सकते यदि परमेश्वर ने हम से बस प्रेम किया और अपना पुत्र भेज दिया होता ताकि हम “नाश न हों परन्तु अनन्त जीवन पाएं” (यूहन्ना 3:16) । यह हमारे लिए पर्याप्त होता। परन्तु परमेश्वर के लिए नहीं। उसने अपने पुत्र को हमें छुड़ाने के लिए भेजा” परन्तु इसका अन्त यहीं नहीं हुआ, “परन्तु हमें पुत्रों के रूप में गोद लिया गया है” (गलातियों 4:4-5) ।

प्रेरित पौलुस हमें “पुत्र” बताता है, क्योंकि उसके समय में पुत्रों के लिए पिता की मीरास प्राप्त करना सामान्य था। उसकी मुख्य बात यह है कि जो कोई यीशु पर विश्वास करता है, चाहे वह पुरुष या महिला हो, मीरास के समान और समस्त अधिकारों के साथ परमेश्वर का “पुत्र” बन जाता है (पद 7)।

परमेश्वर बस आपको बचाना ही नहीं चाहता है। वह तो आपको चाहता है। उसके आपके अपने परिवार में गोद ले लिया है, आपको अपना नाम प्रदान किया है (प्रकाशितवाक्य 3:12), और गर्व के साथ आपको अपनी सन्तान कहता है। सम्भवतः आपको इससे अधिक प्रेम नहीं किया जा सकता, या कोई इससे महत्वपूर्ण नहीं हो सकता। आप बस परमेश्वर के द्वारा आशिषित नहीं हैं। आप परमेश्वर की सन्तान हैं। आपका पिता आपसे प्रेम करता है।