जीवन की आतिशबाजी
नए साल की पूर्व संध्या पर, जब दुनिया भर के शहरों और कस्बों में उच्च शक्ति वाले पटाखे फटते हैं, तो शोर उद्देश्यपूर्ण जोरदार होता है । निर्माताओं का कहना है, अपने स्वभाव से, आकर्षक आतिशबाजी का उद्देश्य ही यही है, वास्तव में, वातावरण को फाड़ देना l "पुनरावर्तक" विस्फोट सबसे ज़ोर की आवाज़ कर सकते हैं, खासकर जब जमीन के पास विस्फोट किया गया हो ।
परेशानियाँ भी, हमारे दिल, दिमाग और घरों में उफान मार सकती हैं । जीवन की "आतिशबाजी" – परिवारिक संघर्ष, रिश्ते की समस्याएं, काम की चुनौतियां, वित्तीय तनाव, यहां तक कि चर्च विभाजन/मतभेद - विस्फोटों की तरह महसूस हो सकते हैं, हमारे भावनात्मक वातावरण को खड़खड़ा देते हैं l
फिर भी हम उस व्यक्ति को जानते हैं जो हमें इस कुहराम से ऊपर उठाता है l खुद मसीह ही “हमारा मेल है,” पौलुस ने इफिसियों 2:14 में लिखा है । जब हम उसकी उपस्थिति में रहते हैं, तो उसकी शांति किसी भी व्यवधान से अधिक होती है, किसी भी चिंता, चोट, या असमानता के शोर को शांत करती है ।
यह यहूदियों और अन्यजातियों के लिए समान रूप से शक्तिशाली आश्वासन रहा होगा l वे एक समय “आशाहीन और जगत में ईश्वर रहित थे” (पद.12) l अब वे सताव की धमकी और विभाजन के आंतरिक खतरों का सामना कर रहे थे l लेकिन मसीह में, उन्हें उसके निकट, और परिणामस्वरूप उसके खून से एक दूसरे के निकट लाया गया । “क्योंकि वही हमारा मेल है जिसने दोनों को एक कर लिया और अलग करनेवाली दीवार को जो बीच में थी ढा दिया” (पद.14) l
जब हम एक नए साल की शुरुआत करते हैं, क्षितिज पर अशांति और विभाजन के खतरों के साथ, तो जीवन के शोर भरे परीक्षाओं से मुँह फेर कर अपनी सर्वदा-उपस्थित शांति की तलाश करें । वह धमाके को शांत करता है, हमें चंगा करता है l
कोमल वाणी
मैं फेसबुक पर थी, बहस कर रही थी l गलत कदम । मुझे सोचने के लिए किसने विवश किया कि मैं एक उग्र विषय पर एक अजनबी को "सही" करने के लिए बाध्य थी - विशेष रूप से एक विभाजनकारी विषय? परिणाम उत्तेजित शब्द, आहत भावनाएँ थीं (चाहे जैसे भी मेरी ओर से), और यीशु के लिए अच्छी तरह से गवाही देने का एक खंडित अवसर । यह "इंटरनेट क्रोध" का निष्कर्ष है । यह ब्लॉग जगत में प्रतिदिन गुस्से में फेंके गए कठोर शब्दों के लिए परिभाषा है । जैसा कि एक नैतिक विशेषज्ञ ने समझाया, लोग गलत तरीके से निष्कर्ष निकालते हैं कि "जैसे सार्वजनिक विचारों के बारे में बात की जाती है" ही क्रोध है l
तीमुथियुस को पौलुस की बुद्धिमान सलाह ने वही सावधानी दी । "मुर्खता और अविद्या के विवादों से अलग रह, क्योंकि तू जानता है कि इनसे झगड़े उत्पन्न होते हैं l प्रभु के दास को झगड़ालू नहीं होना चाहिये, पर वह सब के साथ कोमल और शिक्षा में निपुण और सहनशील हो” (2 तीमुथियुस 2:23–24) ।
एक रोमी जेल से तीमुथियुस को लिखी गयी पौलुस की अच्छी सलाह युवा पास्टर को तैयार करने के लिए भेजा गया था ताकि वह परमेश्वर की सच्चाई सिखा सके l पौलुस की सलाह आज के समयानुकूल है, खासकर जब बातचीत हमारे विश्वास की ओर मुड़ जाती है l "विरोधियों को नम्रता से [समझाया जाना चाहिये], क्या जाने परमेश्वर उन्हें मन फिराव का मन दे कि वे भी सत्य को पहिचानें” (पद.25) l
दूसरों से विनम्रता से बात करना इस चुनौती का हिस्सा है, लेकिन सिर्फ पास्टरों के लिए नहीं । उन सभी के लिए जो ईश्वर से प्रेम करते हैं और दूसरों को उसके बारे में बताना चाहते हैं, काश हम प्यार में उसकी सच्चाई बोलें l हर शब्द के साथ, पवित्र आत्मा हमारी मदद करेगा ।
संघर्ष से मुड़ना
एक प्रसिद्ध डच वैज्ञानिक को कब्रिस्तान में अपनी श्रद्धांजलि में, अल्बर्ट आइंस्टीन ने आपसी वैज्ञानिक विवादों का उल्लेख नहीं किया । इसके बजाय, उन्होंने हेंड्रिक ए. लोरेंत्ज़ की "कभी न कम होनेवाली दया" को याद किया, एक प्रिय भौतिक विज्ञानी जो अपने सहज आचरण और दूसरों के साथ निष्कपट व्यवहार के लिए जाना जाता था । आइंस्टीन ने कहा, "हर किसी ने उनका ख़ुशी से पालन किया, क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि वह किसी पर हावी न हुआ बल्कि हमेशा सरलता से उपयोग होना चाहा ।"
लॉरेंत्ज़ ने वैज्ञानिकों को प्रेरित किया कि वे राजनीतिक पूर्वाग्रह को हटाकर एक साथ काम करें, खासकर प्रथम विश्व युद्ध के बाद । "युद्ध खत्म होने से पहले भी," आइंस्टीन ने अपने साथी नोबेल पुरस्कार विजेता के बारे में कहा, "[लोरेंट्ज़] ने खुद को सुलह के काम के लिए समर्पित कर दिया ।"
सामंजस्य के लिए काम करना चर्च में भी सभी का लक्ष्य होना चाहिए । सच है, कुछ संघर्ष अपरिहार्य है । फिर भी हमें शांतिपूर्ण प्रस्तावों के लिए काम करना चाहिए । पौलुस ने लिखा, “सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे” (इफिसियों 4:26) । साथ-साथ उन्नति करने के लिए, प्रेरित ने सलाह दी, “कोई गन्दी बात तुम्हारे मुहं से न निकले, पर आवश्यकता के अनुसार वही निकले जो उन्नति के लिए उत्तम हो, ताकि उससे सुननेवालों पर अनुग्रह हो” (पद. 29) ।
अंत में, पौलुस ने कहा, “सब प्रकार की कड़वाहट, और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निंदा, सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए l एक दूसरे पर कृपालु और करुणामय हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किये, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो” (पद.31–32 संघर्ष से मुड़ने में जब भी हम सक्षम होते हैं हम चर्च की उन्नति में मदद करते हैं । इसके द्वारा, वास्तव में, हम उसका सम्मान करते हैं ।
वन कटाई रोकनेवाला
कुछ लोग उसे “ट्री व्हिस्परर(tree whisperer)” बुलाते हैं । टोनी रिनाओडो, वास्तव में, वर्ल्ड विजन ऑस्ट्रेलिया के पेड़ बचानेवाले हैं । वह एक मिशनरी और कृषिविज्ञानी है, जो अफ्रीका के साहेल, सहारा के दक्षिण में वनों की कटाई का विरोध करके यीशु को साझा करने के तीस साल के प्रयास में लगा हुए हैं ।
एहसास करते हुए कि "झाड़ियाँ" वास्तव में शिथिल/निष्क्रिय पेड़ थे, रिनाओडो ने छंटाई, देखभाल और उन्हें सींचना शुरू कर दिया । उनके काम ने सैकड़ों किसानों को प्रेरित किया कि वे अपने आस-पास के जंगलों को बहाल करके, मिट्टी के कटाव को उलट कर अपने खराब खेतों को बचाएं । उदाहरण के लिए, नाइजर में किसानों ने अपनी फसलों और उनकी आय को दोगुना कर दिया है, जो प्रति वर्ष अतिरिक्त 2.5 मिलियन लोगों के लिए भोजन प्रदान करता है ।
यूहन्ना 15 में, कृषि के रचियता, यीशु, ने इसी तरह की कृषि कार्यनीति का उल्लेख किया जब उसने कहा, “सच्ची दाखलता मैं हूँ, और मेरा पिता किसान है l जो डाली मुझ में है और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है; और जो फलती है, उसे वह छाँटता है ताकि और फले ”(पद.1-2) ।
ईश्वर के दैनिक देखभाल के बिना, हमारी आत्माएं बंजर और शुष्क हो जाती हैं । हालाँकि, जब हम उसकी व्यवस्था में खुशी मनाते हैं, दिन-रात उसका ध्यान करते हैं, तो हम “उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है” (भजन 1:3) l हमारे पत्ते “कभी नहीं मुरझाते” और “जो कुछ [हम करते हैं] मुरझाता नहीं” )पद.3) l उसमें छाँटे गए और उसमें लगाए गए, हम सदाबहार हैं - पुनर्जीवित और हरा-भरा ।
आपके पड़ोस में मसीह
अपने चर्च के पास कम आय वाले क्षेत्र से होकर गाड़ी से जाते हुए, एक पास्टर ने अपने "पड़ोसियों" के लिए प्रार्थना करना शुरू कर दिया । एक दिन उसने देखा कि एक आदमी सड़क पर पड़ा हुआ है, वह देखने के लिए रुक गया और उसके लिए प्रार्थना की जब उसे पता चला कि उसने एक दो दिनों से खाना नहीं खाया है । इस शख्स ने पास्टर से खाने के लिए कुछ रुपये मांगे, इससे बेघर लोगों के बीच एक आउटरीच(सुसमाचार सेवा) कार्यक्रम प्रारंभ हुआ l चर्च द्वारा प्रायोजित, सदस्यों ने भोजन पकाया और उन्हें अपने चर्च में और उसके आस पास दिन में दो बार बेघरों को वितरित किया । वे उन्हें समय-समय पर चर्च में लाते हैं और उनके लिए प्रार्थना करते हैं और उन्हें कामों में मदद करते हैं ।
उनका पड़ोस का आउटरीच(सुसमाचार सेवा), जो बेघरों को शामिल करने की हिम्मत करता है, अपने शिष्यों को यीशु के महान आदेश को दर्शाता है । जैसा कि उसने कहा, “स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है l इसलिए तुम जाओ, सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ; और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम से बप्तिस्मा दो” (मत्ती 28:18-19) l
उनकी पवित्र आत्मा की शक्तिशाली उपस्थिति बेघर सहित "हर जगह" आउटरीच(सुसमाचार सेवा) को सक्षम बनाती है । वास्तव में, हम अकेले नहीं जाते हैं । जैसा कि यीशु ने वादा किया था, "मैं जगत के अंत तक सदा तुम्हारे संग हूँ” (पद.20) l
इस पास्टर ने सड़क पर एक बेघर आदमी के साथ प्रार्थना करने के बाद उस सच्चाई का अनुभव किया । जैसा कि पास्टर ने बताया, "जब हमने अपने दिल खोल दिए, तो मंडली के हर सदस्य ने हमसे हाथ मिलाया ।" उन्होंने कहा कि इन लोगों पर प्रभाव सबसे पवित्र क्षणों में से एक था जिसे उन्होंने एक पास्टर के रूप में अनुभव किया था ।
सीख? आइए मसीह की घोषणा करने के लिए हर जगह जाएं ।
समीक्षात्मक प्रतिक्रिया
कठोर शब्दों से चोट लगी । इसलिए मेरे दोस्त - एक पुरस्कार विजेता लेखक - को इस बात से जूझना पड़ा कि उन्हें मिली आलोचना का कैसे जवाब दिया जाए । उनकी नई किताब ने पांच सितारा समीक्षाएँ और एक प्रमुख पुरस्कार अर्जित किया था । तब एक सम्मानित पत्रिका समीक्षक ने उनकी छद्दम प्रशंसा के साथ अपमानजनक टिपण्णी करते हुए, उनकी पुस्तक को अच्छी तरह से लिखी गई बताया और फिर भी उसकी कठोर आलोचना की l दोस्तों की ओर मुड़ते हुए उन्होंने पूछा, “मुझे कैसे जवाब देना चाहिए?”
एक दोस्त ने सलाह दी, “जाने दो ।“ मैंने पत्रिकाओं को लिखने से सलाह साझा की, जिसमें इस तरह की आलोचना को नजरअंदाज करना या काम करना और लिखना जारी रखते हुए भी इससे सीखना शामिल है ।
आख़िरकार, हालाँकि, मैंने पवित्रशास्त्र – जिसमें सभी के लिए अच्छी सलाह है – देखने का फैसला किया कि वह प्रबल आलोचना के प्रति किस तरह प्रतिक्रिया करने को कहती है l याकूब की पुस्तक सलाह देती है, “हर एक मनुष्य सुनने के लिए तत्पर और बोलने में धीर और क्रोध में धीमा हो” (1:19) । प्रेरित पौलुस हमें “आपस में एक सा मन [रखने] की सलाह” देता है (रोमियों 12:16) ।
नीतिवचन का एक पूरा अध्याय, हालांकि, विवादों पर प्रतिक्रिया देने के लिए विस्तारित ज्ञान प्रदान करता है । नीतिवचन 15:1 कहता है, “कोमल उत्तर सुनने से गुस्सा ठंडा हो जाता है l” “जो विलम्ब से क्रोध करनेवाला है, वह मुकद्दमों को दबा देता है” (पद.18) । इसके अलावा, “जो डांट को सुनता, वह बुद्धि प्राप्त करता है” (पद.32) । इस तरह की बुद्धिमत्ता को ध्यान में रखते हुए, परमेश्वर हमारी मदद कर सकता है कि हम अपनी जुबान पर लगाम दें, जैसा कि मेरे दोस्त ने किया । हालाँकि, सभी से अधिक, बुद्धि हमें “यहोवा का भय मानने” की शिक्षा देती है क्योंकि “महिमा से पहले नम्रता आती है” (पद.33) ।
स्पष्ट
लेखक मार्क ट्वेन ने सुझाव दिया कि हम जीवन में जो कुछ भी देखते हैं - और हम इसे कैसे देखते हैं - हमारे अगले कदम, यहां तक कि हमारे भाग्य को प्रभावित कर सकता है । जैसा कि ट्वेन ने कहा, "जब आपकी कल्पना ध्यान से बाहर होती है तो आप अपनी आँखों पर निर्भर नहीं रह सकते ।"
पतरस ने भी दृष्टि की बात कही जब उसने लंगड़ा भिखारी को जवाब दिया, एक आदमी जिसका उसने और यूहन्ना ने सुंदर (प्रेरितों 3:2) नामक व्यस्त मंदिर के फाटक पर सामना किया। जैसे ही उस व्यक्ति ने उनसे पैसे मांगे, पतरस और यूहन्ना सीधे आदमी की तरफ देखने लगे । "तब पतरस ने कहा, ‘हमारी ओर देख!’”(पद.4) ।
उसने ऐसा क्यों कहा? मसीह के राजदूत के रूप में, पतरस शायद चाहता था कि भिखारी अपनी सीमाओं को देखना बंद कर दे - हाँ, यहां तक कि पैसे की अपनी जरूरत को भी देखना बंद कर दे । जब उसने प्रेरितों को देखा, उसे परमेश्वर में विश्वास होने की वास्तविकता दिखाई देगी ।
जब पतरस ने उससे कहा, “चाँदी और सोना तो मेरे पास है नहीं, परन्तु जो मेरे पास है वह तुझे देता हूँ; यीशु मसीह नासरी के नाम से चल फिर” (पद.6) l उसके बाद पतरस ने “उसका दाहिना हाथ पकड़ के उसे उठाया; और तुरंत उसके पाँवों और टखनों में बल आ गया l वह उछालकर खड़ा हो गया और चलने-फिरने लगा” और परमेश्वर की स्तुति करने लगा (पद. 7-8) l
क्या हुआ? उस व्यक्ति का परमेश्वर में विश्वास था (पद.16) । जैसा कि सुसमाचार प्रचारक चार्ल्स स्पर्जन ने ज़ोर देकर समर्थन किया, "अपनी नज़र बस उसी पर रखो ।" जब हम ऐसा करते हैं, हम बाधाओं को नहीं देखते हैं । हम परमेश्वर को देखते हैं, जो हमारे रास्ते को स्पष्ट करता है ।
उनके संगीत की रचना
संगीत मण्डली निदेशक एरिआने एबेला ने अपने बचपन को अपने हाथों पर बैठकर बिताया – वह उन्हें छिपाना चाहती थी l जन्म से ही दोनों हाथों की ऊँगलियों के नहीं होने या एक साथ जुड़े होने के साथ-साथ, उसके पास बाँया पैर और उसके दाहिने पैर के पंजे नहीं थे l एक संगीत प्रेमी और उच्चतम स्वर(soprano) के साथ, उसने स्मिथ कॉलेज में शासन प्रणाली में विशिष्टता हासिल करने की योजना बनायीं थी l लेकिन एक दिन उसकी गायक-मण्डली के शिक्षक ने उसे गायक-मण्डली का संचालन करने के लिए कहा, जिससे उसके हाथ काफी दिखाई दिए l उस क्षण से, उसने अपनी जीविका (career) पाया, चर्च की गायक-मण्डलियों का संचालन किया और अब दूसरे विश्वविद्यालय की गायक-मण्डली के निदेशिका के रूप में काम कर रही है l एबेला बताती है, “मेरे शिक्षकों ने मुझमें कुछ देखा l”
उसकी प्रेरक कहानी विश्वासियों को यह पूछने के लिए आमंत्रित करती है, हमारी “सीमाओं” के बावजूद हमारा परमेश्वर, हमारा पवित्र शिक्षक, हममें क्या देखता है? किसी भी चीज़ से अधिक, वह खुद को देखता है l “तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरुप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया; नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की” (उत्पत्ति 1:27 NLT) l
उसके शानदार “छवि वाहक,” के रूप में जब अन्य लोग हमें देखते हैं, तो हमें उसे प्रतिबिंबित करना चाहिये l एबेला के लिए, इसका मतलब यीशु है, उसके हाथ – या उसकी ऊँगलियों की कमी – सबसे अधिक मायने नहीं रखती है l सभी विश्वासियों के लिए भी यही सच है l 2 कुरिन्थियों 3:18 में कहा गया है, “परन्तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्वी रूप में अंश अंश करके बदलते जाते हैं” (पद.18) l
एबेला के समान, हम मसीह की रूपांतरण करने वाले शक्ति (पद.18) द्वारा अपने जीवन को संचालित कर सकते हैं, एक जीवन गीत प्रस्तुत कर सकते हैं जो परमेश्वर के सम्मान के लिए बजता है l
परमेश्वर हमारा बचानेवाला
खुले समुद्र में, एक बचानेवाले ने आतंकित तैराकों को ट्रायथलॉन(लम्बी दूरी की तैराकी प्रतियोगिता) में प्रतिस्पर्धा करने में मदद करने के लिए अपनी नाव तैनात की l “नाव के बीच के हिस्से को न पकड़ें!” उसने तैराकों को ध्यान दिलाया, यह समझाते हुए कि इस प्रकार का प्रयास उसके नाव को डूबा देगी l इसके बजाय, उसने थके हुए तैराकों को नाव के अगले भाग की ओर निर्देशित किया l वहां वे एक लूप/फंदे को पकड़ सकते थे, जिससे सुरक्षाकर्मी व्यक्ति को बचाने में मदद कर सके l
जब भी जीवन या लोग हमें नीचे खींचने की धमकी देते हैं, यीशु में विश्वासियों के रूप में, हम जानते हैं कि हमारे पास एक बचाने वाला है l “क्योंकि परमेश्वर यहोवा यों कहता है : देखो, मैं आप ही अपनी भेड़-बकरियों की सुधि लूँगा, और उन्हें ढूँढूँगा . . . मैं उन्हें उन सब स्थानों से निकाल ले आऊँगा, जहां जहां वे . . . तितर-बितर हो गईं [हैं]” (यहेजकेल 34:11-12) l
जब परमेश्वर के लोग निर्वासन में थे तब नबी यहेजकेल का यह आश्वासन था l उनके अगुवे उनकी उपेक्षा किये थे और उनका शोषण किया था, उनके जीवन को लूटा था और [परमेश्वर के रेवड़] का नहीं, अपना ही पेट भरा” (पद.8) l परिणामस्वरूप, लोग “सारी पृथ्वी के ऊपर तितर-बितर [हुए]; और न तो कोई उनकी सुधि लेता था, न कोई उनको ढूंढता था” (पद.6) l
लेकिन परमेश्वर यहोवा यों कहता है, “मैं [अपने झुण्ड को] छुड़ाऊँगा” (पद.10), और उसकी प्रतिज्ञा अभी भी स्थिर है l
हमें क्या करना है? परमेश्वर और उसके वचनों को मजबूती से थामे रहें l वह कहता है, “मैं आप ही अपनी भेड़-बकरियों की सुधि लूँगा, और उन्हें ढूँढूँगा” (पद.11) l कसकर पकड़े रहने के लिए यह एक छुटकारे की प्रतिज्ञा है l