Month: नवम्बर 2016

घर की चाह

मेरी पत्नी ने कमरे में आकर मुझे बड़ी घड़ी की आलमारी में झांकते देखा l “आप क्या कर रहे हैं?” उसने पुछा l इस घड़ी की महक मेरे माता-पिता के घर जैसी है,” मैंने दरवाज़ा बंद करते हुए सुस्ती से जवाब  दिया l “मेरा अनुमान है आप सोचते होंगे मुझे घर की याद आ रही थी l”

गंध प्रबल यादें जगाता है l हम उस घड़ी को 20 वर्ष पहले अपने माता-पिता के घर से लाए थे, किन्तु उसके अन्दर की लकड़ी की खुशबू आज भी मुझे मेरे बचपन की याद दिलाती है l

इब्रानियों का लेखक दूसरों के विषय बताता है जो और ही तरीके से घर की चाह रखते थे l अतीत में झाँकने की जगह, वे विश्वास से स्वर्गिक घर की ओर देख रहे थे l यद्यपि उनकी आशा बहुत दूर थी, उनका भरोसा था कि परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करते हुए उनको ऐसे स्थान में ले जाएगा जहाँ वे उसके साथ सर्वदा रहेंगे (इब्रा. 11:13-16) l

फिलिप्पियों हमें याद दिलाता है कि “हमारा स्वदेश स्वर्ग पर है,” और हमें “एक उद्धारकर्ता  प्रभु यीशु मसीह के वहाँ से आने की बाट [जोहना है] l” यीशु को देखने की और परमेश्वर की प्रतिज्ञानुसार उससे सब कुछ प्राप्त करने की चाह हमें केन्द्रित रखे l हमारे लिए भविष्य में रखी बातों से अतीत या वर्तमान की तुलना नहीं हो सकती!

और आप?

एमिली मित्रों को परिवार के संग धन्यवाद देना सुन रही थी l गैरी ने कहा, “हम बारी-बारी परमेश्वर के प्रति धन्यवाद का कारण बताते हैं l”

एक अन्य मित्र ने पारिवारिक धन्यवाद भोज और प्रार्थना समय का वर्णन करते हुए  अपने पिता की मृत्यु पूर्व उनके साथ का समय याद किया, “यद्यपि पिता मनोभ्रंश(Dementia) पीड़ित थे, उनकी धन्यवाद की प्रार्थना स्पष्ट थी l” रैंडी ने बताया, “मेरा परिवार छुट्टी के दिन गाने का विशेष समय आयोजित करता है l मेरे दादा गाते चले जाते हैं!” अपने परिवार के विषय एमिली की उदासी और इर्ष्या बढ़ती गई, उसकी शिकायत थी : “हमारी परंपरा केवल पेरू पक्षी खाना, टेलेविज़न देखना होता है l”  

एमिली ने अपने व्यवहार में असहजता महसूस करके खुद से पुछा, “तुम उस परिवार का हिस्सा हो l तुम दिन को बदलने के लिए क्या कुछ अलग कर सकती हो?  दिन आने पर, उसने सब को अलग से धन्यवाद दिया कि वे उसकी बहन, भांजी, भाई, या पौत्री हैं l उन्होंने प्रेम अनुभव किया l यह कठिन था क्योंकि उसके परिवार में यह स्वाभाविक संवाद नहीं था, किन्तु ऐसा करके वह आनंदित हुई l  

पौलुस ने लिखा, “तुम्हारे मुँह से ... आवश्यकता के अनुसार वही निकले जो उन्नति के लिए उत्तम हो, ताकि उससे सुननेवालों पर अनुग्रह हो” (इफिसियों 4:29) l हमारे धन्यवाद के शब्द दूसरों को हमारे और परमेश्वर के प्रति महत्व का ताकीद देंगे l

बलिदानी विश्वास

रविवार की सुबह है, मैं चर्च की फुलवारी में जहाँ मेरे पति पासवान हैं बैठी हूँ l मुझे  फ़ारसी भाषा में प्रशंसा और आराधना संगीत सुनाई दे रहा है l लन्दन के मेरे चर्च में एक जोशपूर्ण ईरानी मंडली इकट्ठी होती है, और हम मसीह के लिए उनके उत्साह से दीन महसूस करते हैं जब वे सताव की कहानियाँ बताते हैं, जैसे अपने वरिष्ठ पासवान के भाई की विश्वास की खातिर शहादत l ये विश्वासी प्रथम शहीद, स्तिफनुस के क़दमों पर चल रहे हैं l

आरंभिक कलीसिया में नियुक्त अगुओं में से एक, स्तिफनुस, ने “बड़े-बड़े अद्भुत काम और चिन्ह” दिखाकर यरूशलेम में ध्यान अर्जित की (प्रेरितों 6:8) और वह यहूदी अधिकारियों के समक्ष लाया गया कि अपने कार्यों का बचाव कर सके l आरोपियों की निर्दयता दर्शाने से पूर्व उसने विश्वास का जोशपूर्ण बचाव किया l किन्तु पश्चाताप करने की बजाए, वे “उसपर दांत पीसने लेगे” (7:54) l उनहोंने उसे नगर से बाहर ले जाकर उसको पत्थरवाह किया-यद्यपि वह उनकी क्षमा हेतु प्रार्थना कर रहा था l  

स्तिफनुस और वर्तमान शहीदों की कहानियाँ हमें याद दिलाती हैं कि लोग मसीह के सन्देश के प्रति क्रूर हैं l अपने विश्वास की खातिर सताए नहीं जाने पर भी हम विश्व की सतायी जानेवाली कलीसियाओं के लिए प्रार्थना करें l और हम कभी भी सताए जाने पर , उससे अनुग्रह पाकर जिसने हमारे लिए अत्यधिक सहा विश्वासयोग्य रहें l

आसमान देखनेवाला

अपने कार्य और घर के मसलों से परेशान, मैट घूमने निकला l शाम की बसंती हवा आलोकित थी l अनंत आसमान नीले से काला हुआ, घने कुहरे ने धीरे-धीरे घास को ढक दिया l तारे और पूरब में पूर्ण चाँद दिखा l वह क्षण, मैट के लिए अत्याधिक आत्मिक था l वह वहाँ है, उसने सोचा l परमेश्वर वहाँ है, और यह उसका है l

रात में कुछ लोग आकाश में केवल प्रकृति देखते हैं l दूसरे बृहस्पति गृह की तरह एक दूरस्त और ठंडे ईश्वर को देखते हैं l किन्तु वही परमेश्वर जो “ऊपर आकाशमंडल पर विराजमान है ... गणों को गिन गिनकर, ... नाम ले लेकर बुलाता है” (यशायाह 40:22,26) l वह अपनी सृष्टि को घनिष्ठता से जानता है l

यही व्यक्तिगत परमेश्वर ने अपने लोगों से पुछा, “हे इस्राएल, तू क्यों बोलता है, “मेरा मार्ग यहोवा से छिपा हुआ है, मेरा परमेश्वर मेरे न्याय की कुछ चिंता नहीं करता? उनके लिए दुखित, परमेश्वर ने उनको उसे ढूंढने की बुद्धिमत्ता याद दिलाया l “क्या तुम नहीं जानते? क्या तुमने नहीं सुना? ... वह थके हुए को बल ... और शक्तिहीन को बहुत सामर्थ्य देता है” (पद.27-29) l

परमेश्वर को भूलने की परीक्षा आती है l घूमने से समस्या नहीं जाएगी, किन्तु हमें विश्राम और निश्चयता मिलेगी कि परमेश्वर अपनी भली इच्छा पूरी कर रहा है l “मैं यहाँ हूँ,” वह कहता है l तू मेरा है l”

असीमित प्रेम

1900 में चीन में बोक्सर विद्रोह के दौरान, टाई युआन में एक घर में कैद मिशनरियों के जीवित रहने की एकमात्र आशा उस भीड़ में होकर दौड़कर निकलने की थी जो उनकी मौत चाहते थे l अपने हाथों में हथियारों के साथ वे तात्कालिक खतरे से बच गए l हालाँकि, एडिथ कूमब्स ने, यह जानकार खतरे में वापस गई क्योंकि उसके दो घायल विद्यार्थी भाग नहीं पाए हैं l उसने एक को बचा लिया, किन्तु दूसरे को बचाते समय मारी गयी l

इस बीच, सिन चाऊ जिले में मिशनरी अपने चीनी मित्र हो सुन केवी के साथ ग्रामीण  इलाके में छिपे हुए थे l किन्तु अपने छिपे मित्रों के लिए बचने का रास्ता खोजते समय वह गिरफ्तार किया गया और उनके छिपने का स्थान नहीं बताने के कारण मारा गया l  

हम एडिथ कूमब्स और सुन केवी में संस्कृति या राष्ट्रीय चरित्र से बढ़कर प्रेम देखते हैं l उनका बलिदान हमें हमारे उद्धारकर्ता का बृहद् अनुग्रह और प्रेम देखते हैं l

यीशु अपनी गिरफ़्तारी और मृत्यु का इंतज़ार करते हुए गंभीरता से प्रार्थना की, “हे पिता, यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले l” किन्तु उसने अपने निवेदन को साहस, प्रेम, और बलिदान के कठोर उदहारण से समाप्त किया : “तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी इच्छा पूरी हो” (लूका 22:42) l उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान ने हमारे अनंत जीवनों को संभव किया l

एक दिखावा

केरी लोगों से प्रशंसा चाहती है l वह अधिकतर समय खुद को प्रसन्न दिखाती है ताकि लोग उसके आनंदित व्यवहार को देखकर उसकी तारीफ करें l कुछ लोग उसे लोगों की सहायता करते देखकर उसको सराहते हैं l किन्तु एक पारदर्शी क्षण में केरी स्वीकार करेगी, “मैं प्रभु से प्रेम करती हूँ, किन्तु कहीं-कहीं मुझे मेरा जीवन एक दिखावा लगता है l” दूसरों के सामने भला दिखाई देने के उसके अधिकतर प्रयास के पीछे उसकी अपनी असुरक्षा का भाव है, और उसके अनुसार इसे बनाए रखने में समय की किल्लत हो रही है l

हम संभवतः किसी न किसी तरह इससे सम्बंधित हैं क्योंकि सिद्ध इरादे असंभव हैं l हम प्रभु और दूसरों से प्रेम करते हैं, किन्तु मसीही जीवन जीने के हमारे इरादे महत्व अथवा प्रशंसा पाने की हमारी इच्छा में मिश्रित है l

यीशु दिखावे के लिए देनेवालों, प्रार्थना करनेवालों, और उपवास करनेवालों के विषय बातचीत किया (मत्ती 6:1-6) l उसने पहाड़ी उपदेश में सिखाया, “तेरा दान गुप्त रहे,” “गुप्त में प्रार्थना कर,” और “प्रार्थना करो, तो कपटियों के सामान तुम्हारे मुँह पर उदासी न छाई रहे” (पद.4,6,16) l

सेवा अक्सर सार्वजनिक तौर पर होती है, किन्तु गुप्त सेवा हमें हमारे विषय परमेश्वर के विचार में विश्राम करना सिखाएगा l जिसने हमें अपने स्वरुप में बनाया है, हमें इतना महत्व देता है कि उसने प्रतिदिन अपना प्रेम दिखने हेतु अपने पुत्र को दे दिया l

बारहवाँ व्यक्ति

टेक्सास एएंडएम यूनिवर्सिटी फूटबाल स्टेडियम में एक बड़ा संकेत है “12 वाँ व्यक्ति का घर l” जबकि हर टीम से ग्यारह खिलाड़ी मैदान में अनुमत हैं, हजारों एएंडएम विद्यार्थियों की भीड़ में 12 वाँ व्यक्ति वह उपस्थिति है जो सम्पूर्ण खेल में अपनी टीम को उत्साहित करने को खड़े रहते हैं l परंपरा की जड़ें 1922 में है जब कोच ने दीर्घा से एक विद्यार्थी को एक घायल खिलाड़ी का स्थान लेने हेतू तैयार रहने को कहा l यद्यपि वह खेल कभी नहीं खेला, साइडलाइन पर उसकी इच्छित उपस्थिति से टीम अत्याधिक उत्साहित हुई l

इब्रानियों 11 विश्वास के नायकों का वर्णन करती है जिन्होंने बड़े आजमाइशों का सामना करके भी परमेश्वर के प्रति वफ़ादार रहे l अध्याय 12 आरंभ होता है, “इस कारण जब कि गवाहों का ऐसा बड़ा बादल हम को घेरे हुए है, तो आओ, हर एक रोकनेवाली वस्तु और उलझानेवाले पाप को दूर करके, वह दौड़ जिसमें हमें दौड़ना है धीरज से दौड़ें” (पद.1) l

हम अपने विश्वास यात्रा में अकेले नहीं हैं l प्रभु के प्रति विश्वासयोग्य रह चुके महान संत और साधारण लोग हमें अपने उदहारण और स्वर्ग में अपनी उपस्थिति द्वारा उत्साहित करते हैं l जब तक हम मैदान में हैं वे हमारे लिए खड़े रहनेवाले 12 वाँ आत्मिक व्यक्ति हैं l

“विश्वास के कर्ता,” यीशु पर अपनी दृष्टि लगाकर (12:2), हम उनके द्वारा प्रोत्साहित हैं जो उसके पीछे चले l

क्या मैं महत्वपूर्ण हूँ?

मैं एक सुपर-मार्किट में भुगतान करने खड़ा चारों-ओर देख रहा हूँ l मैं सर मुंडाए और नाक में नथ पहने किशोरों को अल्पाहार/स्नैक लेते, एक युवा व्यवसायी को एक टिक्का, कुछ नागदौन की टहनियां, और शकरकंद खरीदते देखता हूँ; एक बुज़ुर्ग स्त्री आड़ू और स्ट्रॉबेरी देख रही है l क्या परमेश्वर नाम से इनको जानता है? क्या ये लोग उसके लिए महत्वपूर्ण हैं?

सारी सृष्टि के परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया, और हम उसके व्यक्तिगत ध्यान और प्रेम के योग्य हैं l परमेश्वर ने उस प्रेम को व्यक्तिगत रूप से इस्राएल के बदसूरत पहाड़ी और आखिरकार क्रूस पर दिखाया l

जब यीशु दास बनकर पृथ्वी पर आया, उसने दर्शाया कि परमेश्वर का हाथ संसार के सबसे छोटे व्यक्ति के लिए बहुत शेखी मारनेवाला नहीं है l उस हाथ में हमारे व्यक्तिगत नाम खुदे हैं और घाव हैं, हमसे अत्यधिक प्रेम के लिए परमेश्वर द्वारा चुकाई हुई कीमत l

अब, जब मैं खुद को आत्म-ग्लानी, अकेलेपन के दर्द से अभिभूत पाता हूँ, जो अय्यूब और सभोपदेशक की पुस्तक में खूबसूरती से वर्णित है, मैं सुसमाचार में यीशु की कहानियों और कार्यों की ओर मुड़ता हूँ l यदि मैं इस निश्चय पर पहुँचता हूँ कि मेरा अस्तित्व “धरती पर” परमेश्वर के लिए अर्थहीन है, मैं परमेश्वर के इस धरती पर आने के मुख्य कारण का विरोधी हूँ l निश्चित तौर पर क्या मैं महत्वपूर्ण हूँ?  प्रश्न का उत्तर यीशु है l

अब सब एक मन

ऑस्ट्रेलिया, पर्थ में ट्रेन में चढ़ते समय निकोलस टेलर का पाँव रेल और प्लेटफार्म के बीच दरार में फंस गया l सुरक्षा अधिकारियों के असफल होने पर, उन्होंने 50 लोगों के समन्वित प्रयास से रेल के डिब्बे को झुकाकर उसका पाँव निकाल दिया l एकता द्वारा, उन्होंने टेलर का पाँव निकाल दिया l

आरंभिक कलीसियाओं को लिखते हुए प्रेरित पौलुस ने मसीहियों की समन्वित सामर्थ्य को पहचाना l उसने रोमी विश्वासियों को उसी तरह परस्पर स्वीकारने के लिए आग्रह किया जैसे मसीह ने उनको स्वीकार था, “... परमेश्वर तुम्हें यह वरदान दे कि मसीह यीशु के अनुसार आपस में एक मन रहो l ताकि तुम एक मन और एक स्वर में हमारे प्रभु मसीह के पिता परमेश्वर की स्तुति करो” (रोमियों 15:5-6) l

दूसरे विश्वासियों के साथ एकता हमें परमेश्वर की महानता बताने में और सताव सहने में मदद करता है l जानते हुए कि फिलिप्पियों को अपने विश्वास के लिए कीमत चुकानी पड़ेगी, पौलुस ने उनसे “एक चित्त होकर सुसमाचार के विश्वास के लिए परिश्रम करते [रहने] और किसी बात में  भय नहीं [खाने]” हेतु उत्साहित किया (फ़िलि. 1:27-28) l

शैतान को तोड़ना और अधीन करना पसंद है, किन्तु उसके प्रयास परमेश्वर की मदद से ख़त्म होते हैं, जब हम “मेल के बंधन में आत्मा की एकता रखने का यत्न [करते हैं] (इफि. 4:3) l