शुभ सन्देश!
विश्व समाचार इन्टरनेट, टेलीविजन, रेडियो, और मोबाइल से हम पर बौछार करते हैं l अधिकतर गलत बातें बतातीं हैं-अपराध, आतंकवाद, युद्ध और आर्थिक समस्याएँ l फिर भी कभी-कभी सुसमाचार हमारे दुःख और निराशा के अंधकारमय समय में प्रवेश करता है-स्वार्थहीन कार्यों की कहानी, एक चिकित्सीय खोज, या युद्ध से बर्बाद स्थानों में शांति प्रयास l
बाइबिल के पुराने नियम में दो लोगों के शब्द लड़ाई से व्यथित लोगों के लिए बड़ी आशा लेकर आयी l
एक बेरहम और शक्तिशाली राष्ट्र पर परमेश्वर के भावी न्याय का वर्णन करके, नहूम कहता है, “देखो, पहाड़ों पर शुभसमाचार का सुनानेवाला और शांति का प्रचार करनेवाला आ रहा है!” (नहूम 1:15) l इस खबर ने क्रूरता से शोषित लोगों के लिए आशा लेकर आयी l
एक मिलताजुलता वाक्यांश यशायाह में है : “पहाड़ों पर उसके पाँव क्या ही सुहाने हैं जो शुभ समाचार लाता है, जो शांति की बातें सुनाता है और कल्याण का शुभ समाचार और उद्धार का सन्देश देता है” (यशा. 52:7) l
नहूम और यशायाह के भविष्यसूचक शब्दों की परिपूर्णता प्रथम क्रिसमस में हुई जब स्वर्गदूत ने चरवाहों से कहा, “मत डरो; क्योंकि देखो, मैं तुम्हें बड़े आनंद का सुसमाचार सुनाता हूँ जो सब लोगों के लिए होगा, कि आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिए एक उद्धारकर्ता जन्मा है, और यही मसीह प्रभु है” (लूका 2:10-11) l
हमारे दैनिक जीवनों में बोला गया सर्वोत्तम समाचार है-मसीह उद्धारकर्ता जन्मा है!
धन
अपनी जीविका के आरंभिक काल में मैंने अपनी नौकरी को उद्देश्य/मिशन माना, जिससे एक और कंपनी ने मेरे समक्ष खासा अच्छा वेतन वाला पद पेश किया l इससे अवश्य ही परिवार लाभान्वित होता l किन्तु मैं एक नयी नौकरी नहीं तलाश रहा था, मैं वर्तमान कार्य से प्रेम करता था, जो एक बुलाहट बनती जा रही थी l
किन्तु वह पैसा . . .
शरीर से दुर्बल मेरे 70 वर्षीय पिता ने सटीक एवं स्पष्ट उत्तर दिया : “पैसे के विषय सोचों भी नहीं l तुम क्या करोगे?”
मैंने तुरंत निर्णय कर लिया l मेरे पसंदीदा कार्य को छोड़ने का कारण केवल पैसा होता! पिताजी, धन्यवाद l
यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश की शिक्षा का एक बड़ा हिस्सा पैसा और उसके प्रति हमारे लगाव पर केंद्रित किया l उसने हमसे धन इकट्ठा करने की बजाए “हमारी प्रतिदिन की रोटी” मांगने को कहा (मत्ती 6:11) l पृथ्वी पर धन इकट्ठा न करने की चेतावनी देकर पक्षियों और फूलों द्वारा बताया कि परमेश्वर अपनी सृष्टि की बहुत चिंता करता है (पद.19-31) l “पहले तुम परमेश्वर के राज्य और उसके धर्म की खोज करो,” यीशु ने कहा, “तो ये सब वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएंगी” (पद.33) l
पैसा महत्वपूर्ण है l किन्तु हमारी निर्णय प्रक्रिया इसके ऊपर हो l कठिन समय और बड़े निर्णय अपने विश्वास को नए तरीकों से बढ़ाने के अवसर हैं. हमारा स्वर्गक पिता हमारी चिंता करता है l
अपनी प्रार्थना द्वारा परमेश्वर की सेवा
परमेश्वर अक्सर हमारी प्रार्थनाओं द्वारा अपने कार्य संपन्न करने का चुनाव करता है l ऐसे हम पाते हैं जब परमेश्वर ने एलिय्याह नबी से यह कहकर, “मैं भूमि पर मेंह बरसाऊंगा,” इस्राएल में साढ़े तीन वर्षों के अकाल को समाप्त करने की प्रतिज्ञा की (याकूब 5:17) l परमेश्वर द्वारा वर्षा की प्रतिज्ञा करने के बावजूद, कुछ समय बाद “एलिय्याह कर्मेल की चोटी पर चढ़ गया, और भूमि पर गिरकर अपना मुँह घुटनों के बीच [करके]”-वर्षा के लिए साभिप्राय प्रार्थना किया (1 राजा 18:42) l तब, प्रार्थना करते हुए, एलिय्याह ने “सात बार” अपने सेवक को समुद्र की ओर वर्षा के आने का संकेत देखने के लिए भेजा (पद.43) l
एलिय्याह समझ गया था कि परमेश्वर चाहता है कि हम दीन, और निरंतर प्रार्थना के द्वारा उसके कार्य में संलग्न हों l हमारे मानवीय सीमाओं के बावजूद, परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं द्वारा आश्चर्यजनक कार्य करता है l इसलिए याकूब की पत्री हमें ताकीद देते हुए कि “एलिय्याह हमारे सामान दुःख-सुख भोगी मनुष्य था” हमसे कहती है कि “धर्मी जन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है” (याकूब 5:16-17) l
जब हम एलिय्याह की तरह विश्वासयोग्य प्रार्थना द्वारा परमेश्वर की सेवा करने का लक्ष्य बना लेते हैं, हम एक खुबसूरत अवसर के हिस्से हैं-जब परमेश्वर हमारे द्वारा किसी समय आश्चर्यकर्म कर सकता है l
मित्र से प्राप्त धाव
चार्ल्स लोवेरी ने अपने मित्र से पीठ के निचले भाग में दर्द की शिकायत की l उसे सहानुभूतिक शब्द नहीं, किन्तु ईमानदार मूल्यांकन मिला l उसके मित्र ने कहा, “मेरे विचार से तुम्हारी तुम्हारा पेट है l तुम्हारा अत्याधिक बड़ा पेट तुम्हारे पीठ को खींच रहा है l
REV! पत्रिका के अपने लेख में, चार्ल्स ने लिखा कि वह अपमानित होने की बजाए अपना वजन कम करके पीठ के दर्द से छुटकारा पा लिया l चार्ल्स ने पहचाना कि “खुली हुई डांट गुप्त प्रेम से उत्तम है l जो घाव मित्र के हाथ से लगें वह विश्वासयोग्य हैं” (निति. 27:5-6) l
मुसीबत यह है कि अक्सर हम आलोचना के फाएदे से अधिक बड़ाई द्वारा बर्बाद होना चाहते हैं, क्योंकि सच्चाई तकलीफ़देह होती है l यह हमारे अहम् को चोट पहुंचाती है, और हमें असहज करके परिवर्तन चाहता है l
सच्चे मित्र हमारी हानि में आनंदित नहीं होते हैं l बल्कि, अपने अधिक प्रेम के कारण हमें धोखा नहीं देते l ये वे हैं, जो प्रेम से, हमें हमारी वास्तविक स्थिति को पहचानने और उसके अनुकूल जीन सिखाते हैं l वे हमें हमारी पसंद और नापसंद बताते है l
सुलेमान नीतिवचन में ऐसी मित्रता का सम्मान करता था l यीशु इससे भी आगे कहता है-उसने केवल हमारे विषय सच बताने के लिए हमारे तिरस्कार के घाव नहीं सहे किन्तु हमारे प्रति अपना अगाध प्रेम दर्शाने के लिए l
प्रोत्साहन का उपहार
मेरी हैगार्ड का एक पुराना गीत, “इफ़ वी मेक इट थ्रू दिसम्बर,” एक व्यक्ति की कहानी है जिसकी नौकरी छुटने के बाद अपनी छोटी बेटी के लिए क्रिसमस उपहार खरीदने में असमर्थ है l यद्यपि दिसम्बर एक आनंदित समय होना चाहिए, उसका जीवन अँधेरा और ठंडा था l
निराशा दिसम्बर के लिए अनूठी नहीं है, किन्तु उस समय बढ़ सकती है l हमारी अपेक्षाएं बड़ी और हमारी उदासी अधिक l थोड़ा प्रोत्साहन अति सहायक होता है l
साइप्रस का, यूसुफ, यीशु का आरंभिक अनुयायी था l प्रेरित उसे बरनबास पुकारते थे, अर्थात् “शांति का पुत्र l” हम उससे प्रेरितों 4:36-37 में मिलते हैं जहाँ उसने आवश्यकतामंद विश्वासियों की सहायता हेतु भूमि बेचकर रुपये दान कर दिए l
बाद में, हम पढ़ते हैं कि शिष्य शाऊल से भयभीत थे (प्रेरितों 9:26) l “किन्तु बरनबास उसे अपने साथ प्रेरितों के पास ले [गया]” (पद.27) l बरनबास ने विश्वासियों को घात करने का प्रयास करनेवाला, शाऊल, जो बाद में पौलुस कहलाया, का बचाव मसीह द्वारा रूपांतरित व्यक्ति के रूप में किया l
हमारे चारों ओर के लोगों को प्रोत्साहन चाहिए l एक सामयिक वचन, एक फोन कॉल, अथवा एक प्रार्थना यीशु में उनके विश्वास को सहारा दे सकता है l
बरनबास की उदारता और सहारा प्रदर्शित करता है कि शांति का पुत्र या पुत्री होना क्या है l इस क्रिसमस शायद हम यही महानतम उपहार दूसरों को दे सकते हैं l
घेरनेवाली आवाज़(Surround Sound)
वाल्ट डिज़नी ने सर्वप्रथम चलचित्र की आवाज़ सुनने का स्टीरियोफोनिक धवनि” या सराउंड साउंड प्रस्तुत किया क्योंकि निर्माता चाहते थे कि दर्शक संगीत एक नए ढंग से सुने l
किन्तु “सराउंड साउंड” का उपयोग हजारों वर्ष पहले, नहेम्याह ने यरूशलेम की पुनःनिर्मित दीवार के समर्पण के समय किया था l “मैं ने यहूदी हाकिमों [के] ... दो बड़े दल ठहराए, जो धन्यवाद करते हुए ... चलते थे,” उसने कहा (नहे. 12:31) l दो संगीत समूह दक्षिण की ओर, अर्थात् कूड़ाफाटक की ओर ... चले l एक बांयीं ओर और दूसरा दाहिनी ओर चला, और उन्होंने यरूशलेम की शहरपनाह को स्तुति से घेर लिया (पद. 31, 37-40) l
संगीत समूहों ने लोगों को आनंद करने में अगुवाई की क्योंकि “परमेश्वर ने उनको बहुत ही आनंदित किया था” (पद.43) l वास्तव में, उनके आनंद की ध्वनि दूर दूर तक फ़ैल गई (पद.43) l
उनकी प्रशंसा परमेश्वर की सहायता का परिणाम था क्योंकि लोग सम्बल्लत जैसे शत्रुओं के विरोध पर विजय पाकर दीवार को पुनःनिर्मित किया था l परमेश्वर ने हमें क्या दिया है जिससे आनंद और प्रशंसा उमड़ता है? परमेश्वर का हमारे जीवनों में स्पष्ट मार्गदर्शन? या हमारा एकमात्र उपहार : उद्धार?
शायद हम अपनी प्रशंसा से “सराउंड साउंड” नहीं रच सकते, किन्तु हम परमेश्वर द्वारा प्राप्त “महान आनंद” में आनंदित हों l तब दूसरे हमें परमेश्वर की प्रशंसा करते सुनकर हमारे जीवनों में उसके कार्य देख सकते हैं l
खुबसूरत एकता
तीन बड़े हिंसक पशुओं का आपस में लिपटना और खेलना अति असामान्य है l किन्तु प्रतिदिन जोर्जिया के पशु शरणस्थल में बिलकुल यही होता है l 2001 में उपेक्षा और दुर्व्यवहार पश्चात, एक शेर, बंगाल का एक बाघ, एक काले भालू को नोआह आर्क पशु शरणस्थल ने बचाया l “हम उनको अलग रख सकते थे,” उपनिदेशक ने कहा l “किन्तु इसलिए कि वे एक परिवार की तरह आए थे, हमने उनको एक साथ रखे l” तीनों ने दुर्व्यवहार के समय एक दूसरे में सुख पाया, और, उनकी भिन्नता के बावजूद, वे शांति से एक दूसरे के साथ रहते हैं l
एकता खुबसूरत बात है l किन्तु जिस एकता के विषय पौलुस इफिसुस के विश्वासियों को लिखता है, अनूठा है l पौलुस इफिसियों को मसीह में एक देह के अंग की तरह अपनी बुलाहट के अनुकूल जीवन जीने को कहता है (इफि. 4:4-5) l पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से एकता में रहकर उन्होंने दीनता, नम्रता, और धीरज विकसित की l इस तरह का आचरण हमें प्रेमपूर्वक मसीह यीशु में सामान्य आधार द्वारा “एक दूसरे को सह[ने] (4:2) की अनुमति देता है l
हमारी भिन्नताओं के बावजूद, परमेश्वर के परिवार के सदस्य के रूप में उसने हमारा मेल हमारे उद्धारकर्ता की मृत्यु द्वारा किया और हमारे जीवनों में पवित्र आत्मा के कार्य द्वारा परस्पर मेल कराया l
स्थायी दयालुता
मैं बचपन में एल. फ्रैंक बौम की लैंड ऑफ़ ओज़ पुस्तकों का उत्साही पाठक था l हाल ही में मुझे रिंकीटिंक इन ओज़ समस्त मूल कलाकृतियों के साथ मिली l मैं पुनः बौम के अदम्य, दयालु राजा रिंकीटिंक की व्यवहारिक भलाइयों पर हँसा l युवराज इंगा उत्तम वर्णन करता है : “उसका हृदय दयालु और कोमल है और यह बुद्धिमान होने से बेहतर है l”
किनता सरल और विवेकपूर्ण l फिर भी हमारे किसी प्रिय का हृदय किस ने कठोर शब्द से नहीं दुखाया है? ऐसा करके, हम उस समय की शांति और सुख में विघ्न डालकर अपने प्रेमियों से की गई भलाइयों को बिगाड़ते हैं l “एक छोटी सी दयाहीनता एक बड़ी गलती है,” 18 वीं शताब्दी के अंग्रेजी लेखक हैना ने कहा l
और यहाँ खुसखबरी है : कोई भी दयालु हो सकता है l शायद हम प्रेरणादायक उपदेश, कठिन प्रश्नों का हल न दे सकें, अथवा बहुतों को सुसमाचारित न कर सकें, किन्तु दयालु हो सकते हैं l
कैसे? प्रार्थना द्वारा l यही हमारे हृदयों को नम्र बना सकता है l “हे यहोवा, मेरे मुख पर पहरा बैठा, मेरे होठों के द्वार की रखवाली कर! मेरा मन किसी बुरी बात की ओर फिरने न दें” (भजन 141:3-4) l
संसार, जहाँ प्रेम ठंडा हो गया हैं, हमारे द्वारा दूसरों के समक्ष परमेश्वर के हृदय से निकलने वाली दयालुता सबसे अधिक सहायक और चंगा करने वाली होगी l
क्रिसमस बत्तियाँ
मेक्सिको के पुरातत्ववेत्ता अंटोनियो कासो ने 1932 में, मोंटे ऐल्बान, ओक्साका में कब्र 7 खोजा l उसने स्पेनी कब्जे से पूर्व के जवाहिरात “मोंटे अल्बान का धन” और चार सौ से अधिक शिल्पकृतियाँ खोजी l मेक्सिको के पुरातत्व खोज में यह महत्वपूर्ण है l कोई भी कासो के हाथों में शुद्ध सजावटी प्याला देखकर उसकी उत्तेजना की कल्पना ही कर सकता है l
शताब्दियों पूर्व, भजनकार ने सोना या स्फटिक पत्थर से अधिक मूल्यवान धन के विषय लिखा, “जैसे कोई बड़ी लूट पाकर हर्षित होता है, वैसे ही मैं तेरे वचन के कारण हर्षित हूँ” (भजन 119:162) l भजन 119 में, लेखक हमारे जीवनों के लिए परमेश्वर के निर्देश और प्रतिज्ञाओं का महत्त्व जानकर उनकी तुलना बड़े धन से किया जो एक विजेता के कब्जे में आता है l
कासो कब्र 7 की खोज से याद किया जाता है l हम ओक्साका में संग्रहालय में इसका आनंद ले सकते हैं l जबकि, प्रतिदिन हम वचन में जाकर प्रतिज्ञाओं के हीरे, आशा के माणिक, और बुद्धिमत्ता के पन्ना खोज सकते हैं l किन्तु पुस्तक द्वारा इंगित सबसे महान व्यक्तित्व स्वयं यीशु है l आखिरकार, वह ही पुस्तक का लेखक है l
हम मेहनत से भरोसा करें कि यह धन हमें समृद्ध बनाएगा l जैसे भजनकार कहता है, “मैंने तेरी चितौनियों को ... अपना निज भाग कर लिया है, क्योंकि वे मेरे हृदय के हर्ष का कारण हैं” (पद. 111) l