Month: मार्च 2017

एक अच्छी विरासत

दादा-दादी पैसे वाले नहीं थे, फिर भी प्रत्येक क्रिसमस को मेरे चचेरे भाई-बहन और मेरे लिए यादगार बनाते थे l हमेशा ढेर सारा भोजन, आनंद, और प्रेम होता था l और बचपन से ही हमनें सीखा था कि मसीह ही उत्सव को संभव बनाता है l

हम ऐसी ही विरासत अपने बच्चों के लिए छोड़ना चाहते हैं l जब पिछला क्रिसमस मनाने के लिए परिवार इकट्ठा हुआ, हमने जाना कि यह अद्भुत परंपरा दादा-दादी ने आरंभ की थी l उन्होंने हमारे साथ रुपये पैसे की विरासत नहीं छोड़ी, किन्तु वे प्रेम, आदर, और विश्वास के बीज बोने में सावधान थे ताकि हम-उनके नाती-पोते-उनके नमूने की नक्ल कर सकें l

हम बाइबिल में नानी लोइस, और माँ यूनीके के विषय पढ़ते है, जिन्होंने तीमुथियुस के साथ असली विश्वास बाँटा (2 तीमु. 1:5) l इस प्रभाव ने उसको बहुतों के साथ सुसमाचार बांटने हेतु तैयार किया l

हम परमेश्वर के साथ निकट सम्बन्ध रखकर जीवन बिताते हुए हमारे द्वारा प्रभावित  जीवनों के लिए एक आत्मिक विरासत तैयार कर सकते हैं l व्यवहारिक तरीकों से, दूसरों के प्रति  अविभाजित ध्यान देकर, उनकी सोच और काम में रूचि दिखाकर, और उनके संग जीवन जीकर  प्रेम को वास्तविक बनाते हैं l हम उनको अपने उत्सवों में भी बुलाएं! हमारे जीवनों द्वारा परमेश्वर के प्रेम की सच्चाई दिखाने के द्वारा, हम दूसरों के लिए स्थायी विरासत छोड़ते हैं l

खुली बाहें

जिस दिन से हमदोनों पति-पत्नी ने अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा करना आरंभ किया, हमने बाहें मिलाये और महसूस किया जैसे हम खड़ी चट्टान से कूद रहें हों l हमें ज्ञात नहीं था कि सेवा करने की प्रक्रिया में कठिनतम काम जिसका हम सामना करेंगे, हमारे हृदयों को टटोलना और उसे अनुकूल बनाना होगा और परमेश्वर को अनुमति देनी होगी कि वह इस विशेष समय का उपयोग कर नए तरीकों से हमें अपने समान बनाए l 

उन दिनों में जब मैं धरती पर बेकाबू होकर तेजी से गिरता हुआ अहसास किया, परमेश्वर ने मुझे मेरी विषय-सूची, मेरा सुरक्षित अधिकार, मेरा भय, मेरा घमंड, और मेरा स्वार्थ दिखाया l उसने मेरे टूटे हिस्सों द्वारा मुझे अपना प्रेम और क्षमा दिखाया l

मेरे पासबान ने कहा, “सर्वोत्तम दिन वह है जब आप खुद को देखते हैं कि आप क्या हैं-मसीह के बिना निराश l तब आप अपने को उसकी नज़र से देखते हैं-उसमें पूर्ण l” मेरे जीवन में सेवा करने की आशीष यही थी l जब मैंने महसूस कर कि परमेश्वर ने मुझे किस लिए बनाया था, मैं रोते हुए भाग कर उसकी बाहों में गया l मैंने भजनकार के साथ पुकारा : “हे परमेश्वर, मुझे जाँचकर जान ले!” (भजन 139:23) l

आपके लिए भी मेरी प्रार्थना यही है-कि जब आप खुद को अपनी परिस्थितियों में देखते हैं, आप मुड़कर दौड़ते हुए परमेश्वर के प्रेमी, और क्षमाशील बाहों में जाएंगे l

अप्रत्याशित साक्षात्कार

लन्दन के भीड़ भरी एक स्थानीय ट्रेन में, सुबह के एक यात्री ने उसके रास्ते में आनेवाले एक सहयात्री का अपमान किया l यह एक ऐसा खेदजनक, और विचारहीन क्षण होता है जिसका आमतौर पर हल नहीं होता l किन्तु उसी दिन बाद में, अनपेक्षित हुआ l एक व्यवसायिक मेनेजर ने अपने सोशल मीडिया मित्रों को जल्दी से एक सन्देश भेजा, “बताओ कौन नौकरी के साक्षात्कार के लिए आया है l” जब उसका स्पष्टीकरण इन्टरनेट पर आया, संसार के लोग चौंककर मुस्कराए l कल्पना करें कि नौकरी साक्षात्कार में पहुंचकर आपका अभिवादन करनेवाला वही है जिसने सुबह आपको धक्का देकर आपका अनादर किया था l

शाऊल का सामना अनपेक्षित व्यक्ति से होता है l पंथ नाम के एक समूह के विरुद्ध प्रबल होते समय (प्रेरितों 9:1-2), एक तेज रोशनी ने उसको रोक दिया l तब एक आवाज़ आयी, “हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?” (पद.4) l शाऊल ने पूछा, “हे प्रभु, तू कौन है?” बोलनेवाले ने उत्तर दिया, “मैं यीशु हूँ, जिसे तू सताता है” (26:15) l

वर्षों पूर्व यीशु ने कहा था कि भूखों, प्यासों, अनजान, और बंदियों के साथ हमारा व्यवहार उसके साथ हमारे सम्बन्ध को प्रभावित करता है (मत्ती 25:35-36) l कौन इसकी कल्पना कर सकता है कि किसी के हमें अपमानित करने अथवा जब हम दूसरों की सहायता करते  अथवा उसे चोट पहुंचाते हैं,  हमसे प्रेम करनेवाला इसे व्यक्तिगत लेता है?

यह मैं नहीं हूँ

हाल ही की छुट्टियों में, मेरे दाढ़ी बढ़ाने पर अधिकतर मित्र और सहकर्मियों ने प्रशंसा की l हालाँकि, एक दिन, मैंने अपनी दाढ़ी देखकर कहा, “यह मैं नहीं हूँ l” और उस्तरा बाहर निकल आया l

हम कौन हैं, इस पर चिंतन करते हुए क्यों कोई न कोई बात हमारे व्यक्तित्व पर ठीक नहीं बैठती l सबसे पहले, इसलिए क्योंकि परमेश्वर ने हमें व्यक्तिगत भिन्नता और पसंद दी है l यह अच्छा है कि हमारे एक से शौक नहीं, समान भोजन नहीं, अथवा हम एक ही चर्च  नहीं l हम सब ख़ास हैं और “अद्भुत रीति से रचे गए हैं” (भजन 139:14) l पतरस अनुसार, हमारे पास परस्पर सेवा हेतु विशेष वरदान हैं (1 पतरस 4:10-11) l

यीशु के शिष्यों ने अपने चारित्रिक गुणों को उसके संसार में प्रवेश से पूर्व नहीं जांचा l यीशु की गरफ्तारी की रात पतरस आवेग में दास का कान काट दिया l मसीह के पुनरुथान पर विश्वास से पूर्व थोमा ने प्रमाण माँगा l अपरिपक्वता के कारण प्रभु ने यूँ ही उनको ख़ारिज नहीं किया l उसने उन्हें अपनी सेवा के लिए बनाकर आकार दिया l

प्रभु की सर्वोत्तम सेवा की चुनाव में अपने वरदान और गुणों को जांचकर कभी-कभी “यह मैं नहीं हूँ,” कहना बुद्धिमत्ता है l परमेश्वर हमें हमारे आरामदेह स्थिति से बाहर निकलकर  हमारे ख़ास वरदान और व्यक्तित्व को अपने अच्छे उद्देश्य के अनुकूल बनाएगा l हम उसके रचनात्मक स्वभाव के आदर हेतु उसे हमें उपयोग करने दें l  

विपत्ति-संकेत!(Mayday!)

अंतर्राष्ट्रीय विपत्ति संकेत “Mayday” हमेशा तीन बार दोहराया जाता है-Mayday- Mayday- Mayday”-ताकि खतरनाक आपातकाल जैसी स्थिति बिल्कुल समझ में आ जाए l 1923 में, लन्दन क्रॉयडन एअरपोर्ट पर नियुक्त, वरिष्ठ रेडियो अफसर, फ्रेडरिक मोक्फोर्ड ने यह शब्द रचा था l वर्तमान में बंद इस सुविधा में पेरिस के ली बोरगेट एअरपोर्ट से लन्दन और वापस अनेक उड़ाने थीं l नेशनल मारीटाइम अजायबघर के अनुसार, मोक्फोर्ड ने Mayday शब्द को फ़्रांसीसी शब्द m’aidez, अर्थात्, मेरी सहायता करें” से बनाया l

दाऊद अपने सम्पूर्ण जीवन में, खतरनाक स्थितियों का सामना किया जिसका हल कठिन था l फिर भी, हम भजन 86 में पढ़ते हैं कि दाऊद का भरोसा सबसे कठिन समय में, परमेश्वर में था l “हे यहोवा, मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा, और मेरे गिड़गिड़ाने को ध्यान से सुन l संकट के दिन मैं तुझ को पुकारूँगा क्योंकि तू मेरी सुन लेगा” (पद.6-7) l

दाऊद परमेश्वर का मार्गदर्शन माँगकर तात्कालिक खतरे से परे देखा l “हे यहोवा, अपना मार्ग मुझे दिखा, तब मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलूँगा, मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूँ” (पद.11) l संकट समाप्ति के बाद भी, वह परमेश्वर के साथ चलना चाहता था l

हमारे द्वारा कठिनतम स्थिति का सामना प्रभु के साथ गहरे सम्बन्ध का द्वार खोल दे सकते हैं l यह हमारे संकट में, और दैनिक जीवन में उसके मार्ग पर चलने हेतु सहायता मांगने से आरंभ होता है l

घर

स्टीवन, एक युवा देशविहीन अफ़्रीकी शरणार्थी है l उसकी सोच है कि वह मोज़ाम्बिक अथवा जिम्बाब्वे में जन्म लिया l किन्तु उसने अपने पिता को कभी नहीं देखा और अपनी माँ को खो दिया जो गृह युद्ध के कारण चलते फिरते विक्रेता की तरह एक देश से दूसरे देश में घूमती रही l पहचान-पत्र के बिना और अपना जन्मस्थान प्रमाणित नहीं करने के कारण, स्टीवन ब्रिटिश पुलिस थाने में स्वेच्छा से गिरफ्तार होकर अधिकार और नागरिकता के बगैर सड़क पर रहने की अपेक्षा जेल में रहना बेहतर समझा l

 पौलुस के इफिसियों को लिखते समय किसी देश का न होना उसकी सोच में थी l उसके गैर-यहूदी पाठक विदेशी और मुसाफिर का जीवन जानते थे (2:12) l मसीह में जीवन और आशा मिलने पर ही (1:13) उन्होंने स्वर्गिक राज्य में होने का मर्म जाना था (मत्ती 5:3) l मसीह में, उन्होंने जाना था कि यीशु जिस पिता को प्रगट करने आया था उसको जानना और उसकी देखभाल का अर्थ क्या है (मत्ती 6:31-33) l

हालाँकि, पौलुस ने जाना कि, बीती बातों के धूमिल होने पर, उसका एक अल्प स्मरण हमारे भूलने का कारण बन सकती है कि, जबकि आशा नया मानदंड है, निराशा पुरानी सच्चाई है l

प्रभु हमें सुरक्षित जीवन जीने में सहायता करे-कि हर दिन हम जाने कि यीशु मसीह में विश्वास के कारण हम उसके परिवार के हैं और उसमें हमारा घर होने से हमारे अधिकार और लाभ क्या हैं l

गलतियाँ हुईं

“गलतियाँ हुईं,” मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने अपनी कंपनी के गैरकानूनी कार्य में लिप्त होने पर चर्चा करते हुए कही l वह खिन्न था, फिर भी दोष को दूर ही रखा और अपनी गलती को उजागर नहीं किया l

कुछ “गलतियाँ” केवल गलतियाँ हैं : सड़क के गलत दिशा में गाड़ी चलाना, टाइमर सेट नहीं करना और भोजन जला देना, अपने चेकबुक देय राशि में गलत हिसाब लगाना l किन्तु वे सुविचारित कार्य जो सीमा से परे हैं-परमेश्वर उनको पाप  कहता है l परमेश्वर को आदम और हव्वा से उनकी आज्ञाकारिता के विषय प्रश्न करने पर, उन्होंने दूसरे को दोषी ठहराया (उत्प. 3:8-13) l हारून ने लोगों द्वारा निर्जन स्थान में सोने का बछड़ा बनाकर उसकी उपासना करने की जिम्मेदारी नहीं ली l वह मूसा से बोला, “जब [लोगों ने] मुझ को [सोना] दिया, मैं ने उन्हें आग में डाल दिया, तब यह बछड़ा निकल पड़ा” (निर्ग. 32:24) l

वह भी बुदबुदाया होगा, “गलतियाँ हुईं l”

कभी-कभी अपनी गलती मानने से सरल दूसरों पर दोष लगाना होता है l उसी के समान पाप को “केवल गलतियाँ” संबोधित करके उसका सही स्वभाव न स्वीकारना खतरनाक है l

किन्तु जिम्मेदारी लेने पर-पाप मानकर उसका अंगीकार करने पर-वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है” (1 यूहन्ना 1:9) l हमारा परमेश्वर अपने बच्चों को क्षमा और आरोग्यता देता है l

तस्वीर बनाना

इंग्लैंड, लन्दन में नेशनल पोर्ट्रेट दीर्घा में सदियों के ढेर सारे तस्वीर हैं, जिसमें विंस्टन चर्चिल के 166, विलियम शेक्सपियर की 94, और जॉर्ज वाशिंगटन की 20 तस्वीरें हैं l पुरानी तस्वीरों को देखकर हम सोचेंगे : क्या ये लोग वास्तव में ऐसे ही दिखाई देते थे?

जैसे, स्कॉटलैंड के देश-प्रेमी विलियम वालस (c. 1270-1305) के 8 चित्र हैं, किन्तु हमारे पास इनसे तुलना करने के लिए शायद ही चित्र हैं l हम कैसे जाने कि चित्रकार ने वाल्स का सही चित्र बनाया?

कुछ ऐसा ही यीशु की समानता के साथ भी हो सकता है l बिना जाने, यीशु में विश्वास करनेवाले दूसरों पर उसकी छाप छोड़ रहे हैं l चित्रकारी ब्रश और रंग से नहीं, किन्तु आचरण, कार्य, और संबंधों के द्वारा l

क्या हम उसके हृदय की समानता का चित्र प्रदर्शित कर रहे हैं? प्रेरित पौलुस की यही चिंता थी l “जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो” (फिलि. 2:5) l हमारे प्रभु को उचित रूप में प्रदर्शित करने की इच्छा के साथ, उसने यीशु के अनुयायियों को दूसरों तक उसकी दीनता, आत्म-बलिदान और करुणा दर्शाने का आग्रह किया l

ऐसा कहा गया है, “हम ही केवल वह यीशु हैं जिसे कुछ लोग कभी देखेंगे l” हम “दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा [समझकर] (पद.3), संसार को स्वयं यीशु का हृदय दिखाएँगे l

लहरों का शासक

11वीं शताब्दी में राजा कैन्युट संसार का सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों में एक था l वर्तमान में प्रसिद्ध किस्सा अनुसार, उसने उठते लहरों के किनारे एक कुर्सी रखने की आज्ञा दी l “उसने समुद्र से कहा, “तुम मेरे आधीन हो l “इसलिए मेरा आदेश है कि मेरी भूमि में मत उठो, न ही अपने मालिक के कपड़े या अंगों को भिगाओ l” किन्तु लहर ने उठकर राजा के पैर भिगो दिए l

यह कहानी अक्सर कैन्युट का घमंड दर्शाने हेतु बतायी जाती है l वास्तव में यह विनम्रता की कहानी है l कैन्युट आगे कहता है, “समस्त संसार जान ले कि राजाओं की सामर्थ्य शून्य है, उसको छोड़कर जिसकी आज्ञा स्वर्ग, पृथ्वी, और समुद्र मानते हैं l” कैन्युट की कथा एक बात कहती है : केवल परमेश्वर  शक्तिशाली है l

अय्यूब ने भी यही पाया l पृथ्वी की नींव रखनेवाले की तुलना में (अय्यूब 38:4-7), जो सुबह होने की और रात ख़त्म होने की आज्ञा देता है (पद.12-13), जिसके पास हिम भण्डार है, और जो तारों को आदेश देता है (पद. 22,31-33), हम छोटे हैं l लहरों का शासक एक ही है, और वह हम नहीं हैं (पद.11; मत्ती 8:23-27) l

अपने घमंड और चतुराई के समय कैन्युट की कहानी दोहराना अच्छा है l समुद्र तट पर लहरों को शांत और सूर्य को एक ओर जाने को कहें l कौन वास्तव में सर्वोच्च है हम जल्द ही याद करके अपने जीवन शासक को धन्यवाद देंगे l