Month: मई 2017

टूटेपन की ख़ूबसूरती

इन्तसुगी मिट्टी के टूटे बर्तनों की मरम्मत करने की शताब्दियों प्राचीन कला है l धूना के साथ स्वर्ण धूल मिलाकर टूटे टुकड़े जोड़े या दरार भरे जाते हैं, परिणाम असाधारण जोड़ l मरम्मत को छिपाने की जगह, कला टूटेपन को खूबसूरत बनाता है l

बाइबिल अनुसार पापों से वास्तविक प्रायश्चित करने पर परमेश्वर हमारे टूटेपन को महत्व देता है l दाऊद के बतशेबा से व्यभिचार करने और उसके पति की हत्या के बाद, नातान का उसका सामना करने पर, उसने मन फिराया l दाऊद की बाद की प्रार्थना हमारे पाप करने पर परमेश्वर की इच्छा के विषय अंतर्दृष्टि देती है : “तू मेलबलि से प्रसन्न नहीं होता, नहीं तो मैं देता; होमबलि से भी तू प्रसन्न नहीं होता l टूटा मन परमेश्वर के योग्य बलिदान है; हे परमेश्वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता” (भजन 51:16-17) l

पाप के कारण हमारे हृदय के दुःख में परमेश्वर उदारता से क्रूसित उद्धारकर्ता द्वारा अमूल्य क्षमा देता है l खुद को दीन करने पर वह हमें प्रेम से स्वीकारता है और निकटता पुनरस्थापित होती है l

अति करुणामयी परमेश्वर! उसके दीन हृदय और दयालुता की विस्मयकारी खूबसूरती की इच्छा के तहत, आज हमारी एक बाइबिल-सम्बन्धी प्रार्थना हो : “हे परमेश्वर, मुझे जांचकर ... परखकर मेरी चिंताओं को जान ले! ... कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं, और अनंत के मार्ग में मेरी अगुवाई कर” (भजन 139:23-24) l

करुणा की उम्मीद और प्रसार

अपनी एक सहेली की शिकायत करने पर कि उसके चुनाव उसे भारी पाप में ले जा रहे हैं और मैं उससे प्रभावित हूँ, जिस स्त्री के संग मैं साप्ताहिक प्रार्थना करती थी, ने मेरा हाथ थामकर बोली, “आओ हम हमारे लिए प्रार्थना करें l”

मैंने भौं सिकोड़ा l “हम सब?”

उसने कहा, “हाँ, तुम्हारे अनुसार यीशु हमारी पवित्रता का मानक है, इसलिए हमें अपने पापों की तुलना दूसरों के पापों से नहीं करनी चाहिए l”

मैंने उत्तर दिया, “यह सच्चाई थोड़ी कठोर है, किन्तु सच l मेरा आलोचनात्मक आचरण और आत्मिक अहंकार उसके पाप से बेहतर या बुरा नहीं है l”

“और तुम्हारी सहेली की बात करके हम बकवाद कर रहे हैं l इसलिए ---.”

“हम पाप कर रहे हैं l” मैंने सिर झुका लिए l “कृपया हमारे लिए प्रार्थना करें l”

लूका 18 में यीशु ने मंदिर में दो व्यक्तियों की बिल्कुल भिन्न प्रार्थनाएँ बतायीं (पद.9-14) l फरीसी की तरह, हम दूसरों के साथ अपनी तुलना और बड़ाई करके (पद.11-12) दूसरों के जीवन का न्याय और उनको बदलने की जिम्मेदारी या ताकत रखने का दावा कर सकते हैं l

किन्तु चुंगी लेनेवाले की तरह यीशु को पवित्र जीवन का आदर्श मानकर और उसकी भलाई का प्रत्यक्ष सामना करके परमेश्वर के अनुग्रह की हमारी ज़रूरत बढ़ जाती है(पद.13) l और हम व्यक्तिगत तौर पर प्रभु के प्रेमी करुणा और क्षमा का अनुभव करके करुणा चाहने और देने हेतु पूर्णरूपेण बदल जाएंगे l

आदर और आदर की मुलाकात

आर्लिंग्टन नेशनल कब्रगाह में अज्ञात लोगों के कब्र पर शांत, शानदार सादगी के साथ  गार्डों की ड्यूटी की बदली ने मुझे हमेशा प्रभावित किया है l सावधानी से नाटकीय ढंग से सज्जित अवसर उन सैनिकों के प्रति एक मार्मिक श्रद्धांजलि है जिनके नाम-और बलिदान- केवल “परमेश्वर को ज्ञात है l” उसी की तरह भीड़ के जाने के बाद सैनिकों के गंभीर चाल भी उतनी ही हृदयस्पर्शी हैं : आगे पीछे, हर घंटे, दिन प्रति दिन, कठिन मौसम में भी l

सितम्बर 2003 में, जब प्रचंड तूफ़ान इसाबेल वाशिंगटन डी सी पर थपेड़े मार रहा था, और गार्डों को सुरक्षित स्थानों में आश्रय लेने की अनुमति मिली l आश्चर्यजनक, लघभग सभी गार्डों ने इनकार कर दिया! तूफ़ान में भी उन्होंने अपने मृत सैनिकों को आदर देने हेतु अपने स्थान पर डटे रहे l

मैं विश्वास करता हूँ  कि मत्ती 6:1-6 में यीशु की बुनियादी शिक्षा में उसकी इच्छा हमारे लिए यह है कि हम उसके लिए निरंतर, आत्मत्यागी निष्ठा के साथ जियें l बाइबिल हमसे भले कार्य और पवित्र जीवन चाहती है, किन्तु यह कार्य उपासना और आज्ञाकारिता के हों (पद.4-6), आत्म-प्रशंसा के नहीं(पद.2) l प्रेरित पौलुस हमसे अपने शरीरों को “जीवित बलिदान” बनाने का अपील करके इस सम्पूर्ण जीवन में विश्वासयोग्यता की पुष्टि करता है (रोमियों 12:1) l

काश हमारे व्यक्तिगत और सार्वजनिक क्षण आप प्रभु के प्रति हमारे समर्पण और हार्दिक समर्पण को प्रगट करे l

एक भी गौरैया नहीं

अपने सम्पूर्ण जीवन में ओजस्वी और अनुशासित, मेरी माँ, अपनी उम्र के कारण इस समय एक मरणासन्न रोगियों के अस्पताल में है l श्वास के लिए तड़पती हुई, उनकी गिरती स्थिति उनकी खिड़की के बाहर लुभावना सुन्दर वसंत के दिन के विपरीत थी  l

संसार में समस्त भावनात्मक तैयारियाँ अलविदा के अटल सत्य के लिए हमें समुचित तौर से तैयार नहीं कर सकती l मृत्यु कितना बड़ा अनादर है!  मुझे ख्याल आया l

मैंने खिड़की के बाहर पक्षियों के दाने के बर्तन को देखा l एक छोटी चिड़िया दाना खाने आई l शीघ्र ही एक परिचित वाक्यांश मैंने याद किया : “तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना उनमें से एक भी भूमि पर नहीं गिर सकती” (मत्ती 10:29) l यीशु ने यह आज्ञा यहूदिया के एक मिशन पर अपने चेलों को दी, किन्तु यह सिद्धांत आज हम पर भी लागू है l “तुम गौरैयों से बढ़कर हो” (पद.31) l

मेरी माँ द्रवित होकर ऑंखें खोली l अपने बचपन को याद करके अपनी माँ के लिए हॉलैंड में प्रयुक्त प्रेम शब्द द्वारा बताया, “मुती मर गयी!”

“हाँ,” मेरी पत्नी सहमत थी l “वह यीशु के साथ है l” अनिश्चित, माँ ने आगे कहा l “और जोइस और जिम?” उसने अपनी बहन और भाई के विषय पूछी l “हाँ, वे भी यीशु के साथ हैं l “किन्तु हम भी शीघ्र उनके साथ होंगे!”

“इंतज़ार करना कठिन है,” माँ ने धीरे से कहा l

दुष्क्रियात्मक

शब्द दुष्क्रियात्मक  अक्सर व्यक्तियों, परिवारों, संबंधों, संस्थाओं, और सरकारों को परिभाषित करने में उपयोग होता है l जबकि क्रियात्मक  का अर्थ है, उचित क्रियाशील  व्यवस्था में होना, दुष्क्रियात्मक  इसका विपरीत है-टूटा हुआ, ठीक से कार्य नहीं कर रहा, अपने बनाए जाने के मकसद को पूरा नहीं कर रहा l

रोमियों की अपनी पत्री में पौलुस आत्मिक दुष्क्रियात्मक मानवता का वर्णन करना आरम्भ करता है (1:18-32) l हम सब उस विद्रोही समूह के हैं : “सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गए हैं; कोई भलाई करने वाला नहीं, एक भी नहीं ... इसलिए कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं” (3:12,23) l

सुसमाचार है कि “[सब] उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत-मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं ... जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है” (पद.24-25) l जब हम अपने जीवनों में मसीह को आमंत्रित करके परमेश्वर की क्षमा और नए जीवन की पेशकश स्वीकारते हैं, हम उसकी इच्छानुकूल व्यक्ति बनते हैं l हम तुरंत सिद्ध नहीं बनते, किन्तु अब हमें टूटा और दुष्क्रियात्मक रहने की ज़रूरत नहीं l

हम परमेश्वर के आदर हेतु अपने वचन और कार्य में पवित्र आत्मा द्वारा दैनिक सामर्थ्य पाते हैं और “पुराने मनुष्यत्व [को] उतारकर ... नए मनुष्यत्व को पहिन [लेते हैं] जो परमेश्वर के अनुरूप सत्य की धार्मिकता और पवित्रता में सृजा गया है” (इफि. 4:22-24) l

कठिनाई से निकलना

मैं उथले पानी में प्रथम रबर नौकायन अनुभव का आनंद ले रहा था-जब मुझे आगे तीव्र धारा की गर्जन सुनाई दी l एक ही समय में मेरी भावनाओं में अनिश्चितता, भय, और असुरक्षा भर गया l और तब, अचानक, वे समाप्त हो गए l गाईड ने नौका को पार कर दिया l मैं सुरक्षित था-कम-से-कम अगली तीव्र धारा तक l

जीवन में परिवर्तनकाल उथले पानी के अनुभव की तरह हो सकता है l जीवन के एक काल से अगले काल तक की अपरिहार्य छलाँगें-कॉलेज से जीविका, कार्यों में परिवर्तन, माता-पिता के संग रहने के बाद अकेले रहना अथवा जीवन साथी के साथ रहना, आजीविका से सेवा निवृति, युवावस्था से वृद्धावस्था-सब अनिश्चितता और असुरक्षा द्वारा चिन्हित हैं l

पुराने नियम के इतिहास के एक सबसे प्रमुख परिवर्तनकाल में, सुलेमान अपने पिता दाऊद से विरासत में सिंहासन प्राप्त करता है l मैं मानता हूँ कि वह भविष्य के विषय असुरक्षा से भरा होगा l उसके पिता की सलाह? “हियाव बाँध और दृढ़ होकर इस काम में लग जा ... क्योंकि यहोवा परमेश्वर जो मेरा परमेश्वर है, वह तेरे संग है” (1 इतिहास 28:20) l

हम सब को जीवन में कठिन परिवर्तानकाल से गुज़ारना होगा l किन्तु हम नौका में परमेश्वर के साथ अकेले नहीं हैं l अपनी निगाहें नौका चलनेवाले पर रखने से आनंद और सुरक्षा मिलती है l उसने पहले बहुतों को पार उतारा है l

ईर्ष्या का इलाज

मैं माता-पिता के शाम के बाहर जाने पर ख़ुशी से बच्चों की देखभाल करने हेतु सहमत हुई l उनको गले लगाकर मैंने लड़कों से उनके सप्ताहांत का अनुभव पुछा l (दोनों के अलग-अलग अनुभव थे l) तीन वर्षीय, ब्रिजर ने एक सांस में अपने अंकल और आंटी के संग एक रात बिताना, आइसक्रीम, हिंडोला में झुलना और एक फिल्म देखने का अनुभव बताया! पाँच वर्षीय सैमुएल ने कहा, “कैम्पिंग l” मैंने पुछा, “मजा आया?” “ज्यादा नहीं,” उसने दयनीय भाव में उत्तर दिया l

सैमुएल ने ईर्ष्या का पुराना भाव अनुभव किया l वह अपने भाई के उत्साहित होकर सप्ताहांत का अनुभव सुनते वक्त अपने पिता के साथ कैम्पिंग का आनंद भूल गया l

हम सब ईर्ष्या का शिकार होते हैं l राजा शाऊल दाऊद की प्रशंसा सुनकर ईर्ष्या के दानव से हार मान लिया : “शाऊल ने तो हज़ारों को, परन्तु दाऊद ने लाखों को मारा है” (1 शमूएल 18:7) l शाऊल क्रोधित होकर “उस दिन से दाऊद की ताक में लगा रहा” (1 शमूएल 18:9) l  वह चिढ़कर दाऊद को मारना चाहा!

तुलना खेल मूर्ख और आत्म-घाती है l दूसरों के पास जो है वह हमारे पास नहीं है अथवा हमसे भिन्न अनुभव l किन्तु परमेश्वर ने हमें अनेक आशीषें, जिसमें पृथ्वी पर जीवन और सभी विश्वास करनेवालों के साथ अनंत जीवन की प्रतिज्ञा दी है l हम उसकी सहायता पर निर्भर होकर और धन्यवादी मन से उस पर केन्द्रित रहकर ईर्ष्या पर विजयी हो सकते हैं l

एक जैसा

उनका कहना है, हम सब में वह है : कुछ लोग उसे Doppelgangers कहते हैं l एक जैसा l शायद हमसे असम्बद्ध लोग जो बहुत हद तक हमारे जैसा दिखाई देते हैं l

मेरी तरह दिखाई देने वाला संगीत के क्षेत्र में है l उसके एक समारोह में जाने पर, मध्यांतर के समय मुझे अनेक प्रशंसकों से हास्य प्रतिक्रियाएं मिलीं l किन्तु अफ़सोस, जब गाने और गिटार बजाने की बात होती है, मैं जेम्स टेलर नहीं हूँ l हम केवल एक जैसे दिखाई देते हैं l

आप किस की तरह दिखाई देते हैं? इस प्रश्न पर विचार करते हुए आप, 2 कुरिन्थिन्यों 3:18 पर चिंतन करें, जहाँ पौलुस हमें बताता है कि हम [प्रभु] के रूप में रूपांतरित होते जा रहे हैं l” अपने जीवनों में प्रभु को आदर देते हुए, हमारा एक लक्ष्य उसके स्वरुप को धारण करना है l अवश्य ही, इसका अर्थ दाढ़ी रखना और सैंडल पहनना नहीं है-इसका अर्थ है कि पवित्र आत्मा मसीह के चरित्र को हमारे जीवनों में प्रगट करने में सहायता करता है l उदाहरणार्थ, आचरण में (दीनता), चरित्र में(प्रेम), और दयालुता में(साथ हो लेने), हमें यीशु की तरह दिखाई देना और उसका अनुकरण करना है l

अपनी आँखों को यीशु की ओर लगाकर “प्रभु की महिमा पर विचारते हुए,” हम उसकी तरह और बनते जाते हैं l कितना अद्भुत होता यदि लोग हमें देखकर कहते, “मैं तुममें यीशु को देखता हूँ”!

परमेश्वर का बचाव

कार पर लगे परमेश्वर विरोधी स्टिकर्स ने विश्विविद्यालय व्याख्याता का ध्यान अपनी ओर खींचा l पूर्व में खुद एक नास्तिक, उसने सोचा कि शायद कार-मालिक विश्वासियों को क्रोध दिला रहा था l “क्रोध नास्तिक को अपनी नास्तिकता प्रमाणित करने में मदद करता है,” उसने समझाया l तब उसने चिताया, “अक्सर, नास्तिक अपनी इच्छा पा लेता है l”

अपनी विश्वास यात्रा में, उसने एक मसीही मित्र की दिलचस्पी याद की जिसने उसे मसीह की सच्चाई बतायी l उसके मित्र के “आग्रह भाव में क्रोध नहीं था l” वह उस दिन प्राप्त वास्तविक आदर और शिष्टता भूल नहीं सकता l

विश्वासी दूसरों द्वारा मसीह के अपमान को अनादर मानते हैं l किन्तु यीशु  को वह इन्कार कैसा लगता है? यीशु ने हमेशा धमकियां, और घृणा सही, किन्तु अपने ईश्वरत्व पर शक  नहीं किया l एक बार, एक गाँव के इन्कार करने पर, याकूब और यूहन्ना ने तुरंत विरोध किया, “हे प्रभु, क्या ...  हम आज्ञा दें, कि आकाश से आग गिरकर उन्हें भस्म कर दे?” (लूका 9:54) l यीशु ने “फिरकर उन्हें डांटा” (पद.5) l आखिरकार, “परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिए नहीं भेजा कि जगत पर दंड की आज्ञा दे, परन्तु ... जगत उसके द्वारा उद्धार पाए” (यूहन्ना 3:17) l

हम चकित होंगे कि परमेश्वर नहीं चाहता हम उसका बचाव करें l उसकी इच्छा है कि हम उसके प्रतीक  बनें! इसमें समय, मेहनत, संयम, और प्रेम ज़रूरी है l