बच्चों के लिए प्रेम
थॉमस बार्नाडो चीन देश में मेडिकल मिशनरी बनने का सपना देखते हुए लन्दन हॉस्पिटल मेडिकल स्कूल में 1865 में दाखिला लिया l बार्नाडो को जल्द ही अपने घर के सामने अनेक बेघर बच्चे दिखाई दिये जो लन्दन की सड़कों पर मर रहे थे l उसने इस भयानक स्थिति के विषय कुछ करने का निर्णय लिया l लन्दन के पूर्वी छोर पर उसने इन गरीब बच्चों के लिए एक आवास बनाया और 60,000 लड़के और लड़कियों को गरीबी और अकाल मृत्यु से बचा लिया l धर्मशास्त्री और पासवान जॉन स्टोट ने कहा, “आज हम उन्हें लावारिस बच्चों के संरक्षक संत पुकार सकते हैं l”
यीशु ने कहा, “बालकों को मेरे पास आने दो, और उन्हें मना न करो, क्योंकि स्वर्ग का राज्य ऐसों ही का है” (मत्ती 19:14) l कल्पना करें कि इस घोषणा पर भीड़ और यीशु के शिष्य कैसा महसूस किये होंगे l प्राचीन संसार में, बच्चों का महत्त्व कम था और उन्हें जीवन में मुख्य स्थान नहीं दिया जाता था l फिर भी यीशु ने उनका स्वागत किया, उनको आशीष देकर उनको अनमोल बताया l
नए नियम के लेखक याकूब ने, मसीह के अनुयायियों को यह कहकर चुनौती दी, “हमारे परमेश्वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है कि अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उसकी सुधि लें ...” (याकूब 1:37) l प्रथम शाताब्दी के अनाथों की तरह वर्तमान में भी, अनाथ, और हर स्तर, हर नस्ल के बच्चे, और पारिवारिक माहौल, मानव व्यापार, दुर्व्यवहार, नशीले पदार्थ, और बहुत सी, उपेक्षाओं के कारण जोखिम में है l हम किस तरह स्वर्गिक पिता को आदर दे सकते हैं जो इन छोटे बच्चों की जिन्हें यीशु अपने पास बुलाता है, की देखभाल करके हमसे प्रेम करता है?
भय से विश्वास तक
डॉक्टर के शब्दों से मेरे हृदय को तेज झटका लगा l कैंसर हो गया है l अपने पति और बच्चों के विषय सोचकर उसका संसार ठहर गया l उन्होंने एक भिन्न परिणाम की आशा से ईमानदारी से प्रार्थना की थी l अब वे क्या करेंगे? वह रोती हुई धीमे से बोली, “परमेश्वर, यह हमारे नियंत्रण में नहीं है l आप हमारी सामर्थ्य बने l”
हमें क्या करना चाहिए जब रोगनिदान हानिकारक है, जब स्थिति हमारे नियंत्रण के बाहर है? जब संभावनाएं आशाहीन महसूस हो हम किसकी ओर देखें?
हबक्कूक नबी की स्थिति नियंत्रण से बाहर थी, और महसूस होनेवाले भय से वह भयभीत था l आनेवाला न्याय विनाशकारी होगा (हब. 3:16-17) l फिर भी, इस आनेवाली गड़बड़ी में, हबक्कूक को विश्वास से जीने के लिए (2:4) और परमेश्वर में आनंदित रहने के लिए(3:18) निर्णय लेना था l उसने अपना भरोसा और विश्वास अपनी परिस्थितियों में, योग्यता में, अथवा संसाधन में नहीं रखा, किन्तु परमेश्वर की भलाई और महानता में रखा l परमेश्वर में उसके भरोसे ने उसे कहने को विवश किया : “यहोवा परमेश्वर मेरा बलमूल है, वह मेरे पाँव हरिणों के समान बना देता है, वह मुझ को मेरे ऊँचे स्थानों पर चलाता है” (पद.19) l
जब हम बीमारी, पारिवारिक संकट, आर्थिक परेशानी जैसे कठिन परिस्थियों का सामना करते हैं, हमें भी परमेश्वर में अपना भरोसा और विश्वास रखना होगा l हम जिस भी परिस्थितियों का सामना करते हैं, वह हमारे साथ है l
हमेशा धन्यवादी
ऑस्ट्रेलिया में एक शहर से दूसरे शहर तक गाड़ी से जाने में घंटों लग सकते हैं और थकान से दुर्घटना हो सकती है l इसलिए छुट्टियों के व्यस्त समयों में मुख्य राजमार्गों पर वाहन खड़ी करने के स्थान बने हुए हैं जहाँ स्वयंसेवक मुफ्त कॉफ़ी परोसते हैं l मेरी पत्नी, मेरिन और मैंने अपनी लम्बी यात्राओं में इन विश्राम स्थानों पर रुक कर इनका आनंद उठाना सीखा है l
एक बार, हम दोनों यहाँ रुक कर अपनी काफी आर्डर की l एक परिचारक ने हमें भरे हुए दो कप काफी परोसे, और फिर दो डॉलर मांगे l मेरे पूछने पर कि क्यों, उसने सुचना-पट्ट पर छोटे अक्षरों में लिखे हुए शब्दों की ओर इशारा किया l इस विश्राम स्थान पर, केवल चालकों को मुफ्त काफी परोसी जाती है; आपको सवारियों के लिए भुगतान करनी होगी l नाराज़ होकर मैंने उससे कहा कि यह झूठा विज्ञापन है, और दो डॉलर देकर चल दिया l कार में मेरिन ने मेरी गलती मुझे बतायी : मैंने एक उपहार को अधिकार समझ लिया था और जो कुछ मुझे मिला उसके लिए धन्यवादी नहीं था l वह ठीक बोल रही थी l
जब मूसा ने इस्राएलियों को प्रतिज्ञात देश में लिए चला, उसने उनसे धन्यवादी लोग बनने का आग्रह किया (व्यव. 8:10) l परमेश्वर की आशीष के लिए धन्यवाद, क्योंकि देश बहुतायत का था, किन्तु वे आसानी से इस समृद्धि को अधिकार मान सकते थे (पद.17-18) l इससे, यहूदियों ने हर एक भोजन के लिए चाहे वह कितना भी थोड़ा हो, धन्यवाद देने का अभ्यास किया l उनके लिए, वह पूरी तौर से उपहार था l
मैंने उस महिला के पास जाकर क्षमा मांगी l कॉफ़ी उपहार था जिस पर मेरा अधिकार नहीं था और जिसके लिए धन्यवाद ज़रूरी था l
काश . . .
हमारे पार्किंग क्षेत्र से निकलते समय, मेरे पति ने कार धीमी कर दी ताकि एक युवा स्त्री अपनी साइकिल से आगे निकल जाए l टॉम ने उसे आगे जाने का इशारा किया और वह मुस्कुराकर, अपने हाथ हिलाते हुए आगे बढ़ गयी l कुछ ही क्षण बाद, एक SUV गाड़ी के चालक ने अपनी ओर का दरवाजा खोला, जिससे ठोकर खाकर वह युवा स्त्री सड़क के किनारे पटरी पर गिर गयी l उसके पाँव से खून बहने लगा, और वह अपनी टेढ़ी साइकिल को जांचती हुई रोने लगी l
बाद में, हमने उस दुर्घटना पर विचार किया : यदि हम उसे ठहरने को कहते ... काश वह चालक दरवाज़ा खोलने से पूर्व देख लेता l काश ... l परेशानियाँ हमें पूर्वानुमान लगाने के एक चक्र में उलझा देती है l काश मैं जान गया होता कि मेरा बच्चा किशोरों के साथ शराब पीने की लत में था . . . काश हमें कैंसर का पता पहले चल जाता . . . l
जब अचानक परेशानियाँ आती हैं, हम कभी-कभी परमेश्वर की भलाइयों पर प्रश्न उठाते हैं l हम मार्था और मरियम की तरह निराशा का भी अनुभव कर सकते हैं जब उनके भाई की मृत्यु हुई l ओह, काश यीशु तब आ गया होता जब उसने सुना था कि लाजर बीमार था! (यूहन्ना 11:21, 32) l
मार्था और मरियम की तरह, हम हमेशा समझ नहीं पाते क्यों हमारे पास परेशानियाँ आती हैं l किन्तु हम उस ज्ञान पर भरोसा कर सकते हैं कि परमेश्वर एक बड़ी भलाई के लिए अपने उद्देश्य पूरी कर रहा है l हर एक स्थिति में, हम अपने विश्वासयोग्य और प्रेमी परमेश्वर की बुद्धिमत्ता पर भरोसा कर सकते हैं l
हमारे पिता का चेहरा
मैं अपने पिता का चेहरा याद करता हूँ l उन्हें पहचानना कठिन था l वह दयालु व्यक्ति थे, किन्तु वैरागी और संयमी थे l बचपन में, मैं उनके चेहरे पर मुस्कराहट अथवा स्नेह खोजता था l चेहरा हमें प्रगट करते हैं l भौं चढ़ाना, रुखा निगाह, एक मुस्कराहट, और झुर्रीदार आखें दूसरों के बारे में हमारे विचार प्रगट करते हैं l हमारे चेहरे हमारी “पहचान” हैं l
भजन 80 का लेखक, आसाप, परेशान था और प्रभु का चेहरा देखना चाहता था l उसने यरूशलेम में रहकर अपने नज़रिए से उत्तर की ओर देखा, और यहूदा के सहयोगी राज्य, इस्राएल को असीरिया साम्राज्य द्वारा पराजित होते देखा l अपने मध्यवर्ती राज्य को जाते देख, यहूदा चारों ओर के आक्रमण से खुद को असुरक्षित पाया – उत्तर में असीरिया, दक्षिण में मिस्र, और पूरब में अरबी राज्य l सब उससे अधिक और बेहतर थे l
आसाप ने प्रार्थना में अपना भय तीन बार दोहराया (80:7,19), “अपना मुख का प्रकाश चमका, तह हमारा उद्धार हो जाएगा l” (अथवा, अन्य शब्दों में, मुझे अपनी मुस्कराहट दिखा.)
अपने भय से नज़र हटाकर स्वर्गिक पिता का चेहरा देखना अच्छा है l क्रूस की ओर देखकर हम परमेश्वर का चेहरा सर्वोत्तम तरीके से देख सकते हैं l क्रूस ही उसकी “पहचान है” (यूहन्ना 3:16) l
इसलिए यह जानिये : जब आपका पिता आपकी ओर देखता है, उसके चेहरे पर एक बड़ी मुस्कराहट होती है l आप बहुत सुरक्षित हैं!
मसीह का हृदय
400 दिन मिस्र के एक जेल में बिताने के बाद रिहा होने पर ऑस्ट्रेलिया के एक पत्रकार ने मिलाजुली भावनाएँ व्यक्त की l अपनी रिहाई पर राहत स्वीकारते हुए, उसने उन मित्रों के लिए असाधारण चिंता जताई जिन्हें वह पीछे छोड़कर आ रहा था l उसने कहा कि अपने सह पत्रकारों को जो उसके साथ गिरफ्तार कर जेल भेजे गए थे अलविदा कहना बहुत कठिन था क्योंकि यह कहना कठिन था कि वे और कितने समय तक कैद रहनेवाले थे l
अपने मित्रों को पीछे छोड़ते समय मूसा ने भी बहुत चिंता दर्शायी l जब सीनै पर्वत पर परमेश्वर से उसके मुलाकात के समय उसके भाई, बहन और इस्राएली सोने के बछड़े की उपासना करने लगे, उनको खोने का भय उसे सताने लगा (निर्ग. 32:11-14), और उसने उनके लिए प्रार्थना की l अपनी चिंता दर्शाते हुए, उसने निवेदन किया, “तू उनका पाप क्षमा कर-नहीं तो अपनी लिखी हुयी पुस्तक में से मेरे नाम को काट दे” (पद. 32) l
प्रेरित पौलुस भी अपने परिवार, मित्र, और राष्ट्र के लिए उसी तरह चिंतित था l यीशु में उनके अविश्वास के लिए दुखित होते हुए, पौलस ने कहा कि वह मसीह के साथ अपने सम्बन्ध को त्याग भी सकता है यदि ऐसा प्रेम उसके भाई और बहन को बचा सकता है (रोमियों 9:3) l
पीछे मुड़कर, हम देखते हैं कि मूसा और पौलुस दोनों ने ही मसीह का स्वभाव प्रगट किया l फिर भी, वह प्रेम जिसका वे केवल अनुभव कर रहे थे, और वह बलिदान जो वे चढ़ा सकते थे, यीशु ने पूरा किया कि वह हमारे साथ सदा रह सके l
सबके लिए उपलब्ध
वर्तमान के कीर्ति-आसक्त संस्कृति में, यह आश्चर्यजनक नहीं कि उद्यमी “मशहूर लोगों को उत्पाद की तरह बेचते हुए ... उन्हें अपना व्यक्तिगत समय और आदर-सत्कार बेचने की अनुमति देते हैं l” द न्यू यॉकर में वोव्हिनी वारा का लेख कहता है कि 15,000 डॉलर में, आप गायिका शकीरा के साथ व्यक्तिगत मुलाकर कर सकते हैं, जबकि 12,000 डॉलर आपके साथ 11 अतिथियों को मशहूर शेफ(रसोइया) माइकल चियारेलो के साथ उसके ही घर में भोजन करने का अवसर दे सकता है l
अनेक लोगों ने यीशु को ख्यातिप्राप्त व्यक्ति मानकर जगह-जगह उसका अनुसरण करते हुए, उसकी शिक्षा को सुना, उसके आश्चर्यकर्मों पर ध्यान दिया, और उसके स्पर्श से चंगाई पाने की कोशिश की l फिर भी यीशु अभिमानी अथवा अलग रहनेवाला व्यक्ति न होकर, सबके लिए उपलब्ध था l जब उसके अनुयायी याकूब और यूहन्ना व्यक्तिगत रूप से चतुराई से उसके आनेवाले राज्य में पद पाने का प्रयास कर रहे थे, यीशु ने अपने शिष्यों को याद दिलाया, “जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे वह तुम्हारा सेवक बने; और जो कोई तुममें प्रधान होना चाहे, वह सब का दास बने” (मरकुस 10:43-44) l
यीशु के यह कहने के शीघ्र बाद, उसने लोगों के एक भीड़ से रुककर एक अंधे भिखारी से पूछने को कहा, “तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ?” (पद.51) l “हे रब्बी, यह कि मैं देखने लगूं,” उस व्यक्ति ने उत्तर दिया l” वह तुरंत चंगा होकर यीशु के पीछे चल पड़ा(पद.52) l
हमारा प्रभु “इसलिए नहीं आया कि उसकी सेवा टहल की जाए, पर इसलिए आया कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों की छुड़ौती के लिए अपना प्राण दे” (पद.45) l काश हम भी आज उसकी तरह, करुणामयी और सबके लिए उपलब्ध रहें l
भरपूर जीवन
जब मैं अपनी बहन के घर गयी, मेरे भांजों ने उत्सुकता से मुझे दैनिक कार्यों का हिसाब रखनेवाला एक कार्य प्रणाली, दिखाया l प्रत्येक रंगीन इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड उनके कार्य का हिसाब रखता है l ढंग से किये हुए कार्य अर्थात् एक बच्चा हरा बटन दबा सकता है, जो उनके “खर्च” अकाउंट में अंक जोड़ता है l पीछे का दरवाजा खुला छोड़ने जैसा एक गलत कार्य के लिए दण्ड देना पड़ता है जिससे कुल योग से अंक कम हो जाता है l उच्च अंक कंप्यूटर समय प्राप्त करने के समान आकर्षक पुरस्कार देता है-और गलत कार्य कुल योग से अंक कम करता है-मेरे भांजे असामान्य रूप से अपने कार्य करने और दरवाजा बंद रखने के लिए प्रेरित हैं l
यह शानदार प्रणाली मेरे लिए मजाक बन गया कि मुझे यह प्रेरणादायक उपकरण प्राप्त करने की इच्छा हुई! किन्तु वास्तव में परमेश्वर ने हमें प्रेरणा दी है l यूँ ही आज्ञाकारिता का आदेश देने की बजाए, यीशु ने प्रतिज्ञा की है कि उसका अनुसरण करनेवाला जीवन जबकि, कीमती है, बहुतायत का जीवन भी है, “जीवन ... बहुतायत से” (यूहन्ना 10:10) l उसके राज्य में जीवन का अनुभव कीमत से “सौ फीसदी” अधिक है – अभी और अनंत तक (मरकुस 10:29-30) l
हम इस सच्चाई में आनंदित हो सकते हैं कि हम एक उदार परमेश्वर की सेवा करते हैं, और जिसके हम लायक हैं वह उसके अनुसार हमें पुरस्कृत अथवा दण्डित नहीं करता है l वह हमारे कमज़ोर प्रयासों को भी उदारता से स्वीकार करता है-अपने राज्य में पहले आनेवालों के साथ-साथ देर से आनेवालों का भी स्वागत करता हैं और पुरस्कार देता है (देखें मत्ती 20:1-16) l इस सच्चाई के प्रकाश में, आइये हम आज उसकी सेवा आनंदपूर्वक करें l
परमेश्वर के प्रेम का प्रदर्शन
आवासीय कैंसर देखभाल केंद्र में माँ के इलाज के दौरान मुझे उनकी देखभाल करने का सौभाग्य मिला l अपने कठिन दिनों में भी, बिस्तर से उठने से पूर्व वह वचन पढ़कर दूसरों के लिए प्रार्थना करती थीं l
उन्होंने प्रतिदिन अपने विश्वास को परमेश्वर, अपने भले कार्य, और दूसरों को उत्साहित करने और उनके लिए प्रार्थना करने की इच्छा पर आधारित करके यीशु के साथ समय बिताया l बिना कभी ध्यान दिए कि उनका मुखमंडल परमेश्वर के स्नेही मनोहरता से दीप्त था, उन्होंने उस दिन तक जब परमेश्वर ने उनको उनके घर स्वर्ग न बुला लिया अपने चारों ओर के लोगों के साथ परमेश्वर का प्रेम बांटती रही l
मूसा परमेश्वर के साथ चालीस दिन और चालीस रात बातचीत करने के बाद (निर्ग.34:28), सीनै पर्वत से नीचे आया l वह नहीं जानता था कि परमेश्वर के साथ उसकी अन्तरंग सहभागिता ने वास्तव में उसके चेहरे को बदल दिया था (पद.29) l किन्तु इस्राएली बता सकते थे कि मूसा ने परमेश्वर से बातें की थी (पद.30-32) l वह निरंतर परमेश्वर से मुलाकात करता रहा और अपने चारों ओर के लोगों के जीवनों को प्रभावित करता रहा (33-35) l
हम शायद महसूस न कर पाएं कि कैसे परमेश्वर के साथ हमारे अनुभव समय के साथ हमें बदल देते हैं, और हमारा रूपांतरण वास्तव में मूसा के चमकते भौतिक चेहरे के समान नहीं होगा l किन्तु जैसे हम परमेश्वर के साथ समय बिताते और अपने जीवनों को और भी दिन प्रति दिन उसको समर्पित करेंगे, हम उसके प्रेम को परावर्तित कर सकेंगे l परमेश्वर दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करेगा जब उसकी उपस्थिति का प्रमाण हममें होकर और हमारे द्वारा दिखाई देगा l