एक साल में बाइबल
उम्र में बढ़ते समय मैं अपनी दो बहनों के साथ देवदार की लकड़ी से बनी एक बक्से पर जो मेरी माँ की थी बैठना पसंद करती थी l मेरी माँ ऊन से बने हमारे स्वेटरों को उसमें रखती थी और हाथ के बने काम जो मेरी दादी ने कढ़ाई अथवा क्रोशिया से बनाए थे l उसके लिए वह बक्सा महत्वपूर्ण था l वह देवदार लकड़ी पर भरोसा करती थी जिसकी तेज़ महक अन्दर के सामान को कीट आदि से बचा सकती थी l
संसार की अधिकतर वस्तुएं आसानी से कीट अथवा मोर्चे से खराब हो सकते हैं अथवा उनके चोरी होने का डर होता है l मत्ती 6 हमें सीमित जीवन-अवधि वाली वस्तुओं पर नहीं किन्तु अनंत मूल्य वाले वस्तुओं पर विशेष ध्यान देने को प्रोत्साहित करता है l जब 57 वर्ष की उम्र में मेरी माँ की मृत्यु हुयी, उन्होंने अधिक सांसारिक वस्तुएं इकठ्ठा नहीं किया था, किन्तु मैं उस धन के विषय विचार करना चाहती हूँ जो उन्होंने स्वर्ग में इकट्ठा किया था (पद.19-20) l
मैं याद करती हूँ कि वह परमेश्वर को कितना अधिक प्यार करती थी और शांत तरीकों से उसकी सेवा करती थी : विश्वासयोग्यता से अपने परिवार की देखभाल, सन्डे स्कूल में बच्चों को पढ़ाना, पति द्वारा त्यागी गयी स्त्री से मित्रता निभाना, एक युवा माँ से सहानुभूति रखना जिसके बच्चे की मृत्यु हो चुकी थी l और वह प्रार्थना भी करती थी . . . . अपनी दृष्टि खोने के बाद भी और व्हील चेयर तक सीमित होने पर भी, वह दूसरों को प्यार और उनके लिए प्रार्थना करती रही l
जो हम इकठ्ठा करते हैं वह हमारे वास्तविक धन का माप नहीं है किन्तु हम क्या और किसमें अपना समय और मनोभाव निवेश करते हैं l हम सेवा और यीशु का अनुसरण करने के द्वारा कौन सा “धन” स्वर्ग में इकठ्ठा कर रहे हैं?
एक साल में बाइबल
सीरिया की एक स्त्री, रीमा जो अमरीका में आकर रहने लगी थी, ने अपने शिक्षक को हाथों के इशारों और सीमित अंग्रेजी भाषा की सहायता से बताने का प्रयास किया कि वह परेशान है l उसके आँसू बह रहे थे जब वह खूबसूरती से एक थाली में फतेयर (गोश्त, पनीर, और पालक से बना व्यंजन) लेकर आयी l तब उसने कहा, “एक व्यक्ति,” और उसने लम्बी साँस की आवाज़ निकलते हुए दरवाज़े से कमरे की ओर और कमरे से दरवाज़े की ओर इशारा किया l शिक्षक ने उसकी बातों को समझाया कि निकट के चर्च से बहुत से लोगों को कुछ उपहार लेकर रीमा और उसके परिवार से मिलने आना था l लेकिन केवल एक ही व्यक्ति आया l वह आकर अपने उपहार रखकर तुरन्त लौट गया l वह व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त था, जबकि रीमा और उसका परिवार अकेलापन महसूस कर रहे थे और समुदाय की सहभागिता चाहते थे और अपने नए मित्रों के संग अपना नया व्यंजन फतेयर बांटना चाहते थे l
यीशु हमेशा लोगों को समय देता था l उसने समारोहों में भाग लिया, भीड़ को शिक्षा दी, और समय निकलकर व्यक्तियों से बातचीत की l वह एक कर अधिकारी, जक्कई के घर का मेहमान भी बना, जो पेड़ पर चढ़ कर उसे देखना चाहता था l यीशु उसे देखकर उससे बोला था, “झट उतर आ; क्योंकि आज मुझे तेरे घर में रहना अबश्य है” (लूका 19:1-5) l और जक्कई का जीवन हमेशा के लिए बदल गया था l
अन्य जिम्मेदारियों के कारण, हम हमेशा समय नहीं दे सकते हैं l किन्तु जब समय निकलते हैं, हमारे पास दूसरों के साथ संगती करने का और यह देखने का अद्भुत समय होगा कि परमेश्वर हमारे द्वारा कार्य कर रहा है l
शांति के साथ दृढ़ रहना
अपने संघर्षों और पुराने दर्द में परमेश्वर पर भरोसा रखते हुए जब मैं आगे बढ़ रही हूँ, छोटी से छोटी रूकावट भी क्रोधी आक्रमणकारी दुश्मन महसूस होता है l प्रथम समस्या मुझे दाहिनी ओर से दबाती है l दूसरी समस्या मुझे पीछे से धक्का देती है l तीसरी समस्या सामने से आक्रमण करती है l इन समयों में, जब मेरी ताकत क्षीण होती है और तुरन्त आराम नहीं मिलता, दौड़कर छिप जाना एक अच्छी सोच लगती है l किन्तु इसलिए कि मैं दर्द से भाग नहीं सकती, अपनी स्थिति को बदल नहीं सकती, अथवा अपनी भावनाओं को अनदेखा नहीं कर सकती, मैं धीरे-धीरे अपनी समस्या से निकलने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना सीख रही हूँ l
जब मुझे प्रोत्साहन, आराम, और साहस की ज़रूरत होती है, मैं भजनकारों के भजनों को प्रार्थनापूर्वक पढ़ती हूँ, जो ईमानदारी पूर्वक अपनी स्थितियों को परमेश्वर के निकट लाते हैं l मेरे एक प्रिय भजन में, दाऊद अपने बेटे, अबशालोम से भाग रहा है, जो उसका राज्य उससे छीनकर उसे मार डालना चाहता है l यद्यपि दाऊद अपनी दर्द भरी स्थिति पर विलाप करता है (भजन 3:1-2), वह परमेश्वर की सुरक्षा पर भरोसा रखकर अपनी प्रार्थना के उत्तर का इंतज़ार किया (पद.3-4) l राजा ने न अपनी नींद नहीं खोयी और न ही अनहोंनी से भयभीत हुआ, क्योंकि उसने परमेश्वर पर उसे थामने और बचाने के लिए भरोसा किया (पद.5-8) l
भौतिक और भावनात्मक पीड़ा अक्सर आक्रामक शत्रुओं के समान महसूस होते हैं l हम हार मानने के लिए प्रेरित होते हैं अथवा घबराहट में भाग जाने की इच्छा होती है जब हमें हमारे वर्तमान के संघर्ष में उसका हल दिखाई नहीं देता l किन्तु, दाऊद की तरह, हम भरोसा कर सकते हैं कि परमेश्वर हमें थामेगा और हम उसके निरंतर और प्रेमी उपस्थिति में विश्राम कर सकते हैं l
लम्बा चौड़ा देश
एमी कार्माईकल (1867-1951) भारत में अनाथ लड़कियों को बचानेवाली और नया जीवन देनेवाली के रूप में जानी जाती है l इस थकानेवाले काम के मध्य उसके जीवन में ऐसे क्षण भी आए जिसे उसने “दर्शन का क्षण” कहा l अपनी पुस्तक गोल्ड बाई नाईट, में उन्होंने लिखा, “एक भीड़ भरे दिन के मध्य हमें ‘लम्बे चौड़े देश,’ की लगभग एक झलक मिल ही जाती है और हम मार्ग में शांत होकर ठहर जाते हैं l”
यशायाह नबी एक समय के विषय लिखता है जब परमेश्वर के विद्रोही लोग उसके निकट लौटेंगे l “तू अपनी आखों से राजा को उसकी शोभा सहित देखेगा; और लम्बे चौड़े देश पर दृष्टि करेगा” (यशायाह 33:17) l इस “लम्बे चौड़े देश” को देखने का अर्थ अविलम्ब वर्तमान की स्थिति से ऊपर उठकर स्वर्गिक दृष्टिकोण प्राप्त करना है l कठिन समयों में, प्रभु चाहता है कि हम अपने जीवनों को उसके दृष्टिकोण से देखकर आशा प्राप्त करें l “क्योंकि यहोवा हमारा न्यायी, यहोवा हमारा हाकिम, यहोवा हमारा राजा है, वही हमारा उद्धार करेगा” (पद.22) l
हर दिन, हम निराशा में सर झुका सकते हैं अथवा “लम्बे चौड़े देश” की ओर, उस प्रभु की ओर जो हमारा “महाप्रतापी यहोवा” है, अपनी ऑंखें उठा सकते हैं (पद.21) l
एमी कार्माईकल भारत में पचास वर्ष से भी अधिक तक अति आवश्यकतामंद जवान स्त्रियों की सहायता करती रही l उसने किस प्रकार यह किया? हर दिन वह यीशु की ओर देखती रही और उसकी देखभाल में अपने जीवन को सौंप दिया l और हम भी सौंप सकते हैं l
नहीं लौटने का स्थान
एक और नदी पार करने की तरह यह इतना सरल नहीं था l कानून के अनुसार, कोई भी रोमी सेनापति सेना के टुकड़ी के साथ रोम में प्रवेश नहीं कर सकता था l इसलिए जब जुलियस सीज़र ई.पू. 49 में सेना की 13 वीं टुकड़ी को रुबिकोन नदी के पार इटली में प्रवेश कराया, यह राजद्रोह था l सीज़र का निर्णय बदला नहीं जा सकता था, और रोम के महान सेनापति का पूर्ण शासक बनने तक गृह-युद्ध होता रहा l आज भी, वाक्यांश “रुबिकोन नदी पार करना,” अलंकार “जहां से लौटा नहीं जा सकता है उस स्थान को पार करना” के रूप में उपयोग किया जाता है l
कभी-कभी हम दूसरों को कुछ बोलकर सम्बन्धात्मक रुबिकोन नदी पार कर देते हैं l कहे गए शब्द, वापस नहीं लिए जा सकते हैं l जब ये शब्द हमारे होठों से निकल जाते हैं, उनसे मदद और आराम मिलता है अथवा हानि होती है जो सुधारी नहीं जा सकती, उसी प्रकार जिस तरह सीज़र रोम में प्रवेश किया था l याकूब यह लिखते हुए, शब्दों के विषय एक और चित्रण देता है, “जीभ भी एक आग है; जीभ हमारे अंगों में अधर्म का एक लोक है, और सारी देह पर कलंक लगाती है, और जीवन गति में आग लगा देती है, और नरक कुण्ड कि आग से जलती रहती है (याकूब 3:6) l
जब हमें अहसास हो कि हमने किसी के साथ रुबिकोन नदी पार कर दी है, हम उनसे और परमेश्वर से क्षमा मांग सकते हैं (मत्ती 5:23-24); 1 यूहन्ना 1:9) l किन्तु इससे बेहतर परमेश्वर के पवित्र आत्मा में विश्राम प्राप्त करते हुए, पौलुस की चुनौती पर ध्यान देना है, “तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो” (कुलु. 4:6), ताकि हमारे शब्दों द्वारा केवल प्रभु को आदर ही नहीं मिलेगा, किन्तु हमारे चारों ओर के लोग की उन्नत्ति होगी और वे उत्साहित होंगे l
परमेश्वर के मार्गदर्शन का प्रतिउत्तर
अगस्त 2015 में, जब मैं अपने घर से दो घंटे की दूरी पर एक विश्वविद्यालय में पढ़ने की तैयारी कर रही थी, मैंने महसूस किया कि पढ़ाई समाप्त करने के बाद मैं वापस अपने घर नहीं लौट पाऊंगी l मेरा मस्तिष्क बहुत तीव्रता से विचार करने लगा l मैं अपना घर कैसे छोड़ सकती हूँ? मेरा परिवार? मेरी कलीसिया? क्या होगा यदि बाद में परमेश्वर मुझे किसी और राज्य अथवा देश में जाने को कहता है?
मूसा की तरह ही, जब परमेश्वर ने उसे “फ़िरौन के पास [जाने को कहा] कि [वह] इस्राएलियों को मिस्र से निकाल ले [आए] (निर्गमन 3:10), मैं डर भी गयी l मैं अपने आराम के स्थान को नहीं छोड़ना चाहती थी l अवश्य, मूसा ने आज्ञा मानकर परमेश्वर का अनुसरण किया, किन्तु इसके पूर्व उसके पास अनेक प्रश्न थे और निवेदन भी कि उसके बदले किसी और को भेजा जाए (पद.11-13; 4:13) l
मूसा के उदाहरण से, हम महसूस कर सकते हैं कि स्पष्ट बुलाहट मिलने पर हमें क्या नहीं करना चाहिए l इसके बदले हमें शिष्यों के समान बनने का प्रयास करना चाहिए l जब यीशु ने उन्हें बुलाया, उन्होंने सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए (मत्ती 4:20-22; लुका 5:28) l भय स्वाभाविक है, किन्तु हम परमेश्वर की योजना पर भरोसा कर सकते हैं l
आज भी घर से बहुत दूर रहना कठिन है l किन्तु जब मैं परमेश्वर को निरंतर खोजती रहती हूँ, वह मेरे लिए द्वार खोलता है और मुझे निश्चय देता है कि मैं सही स्थान पर हूँ l
जब हमें हमारे आराम के स्थान से बाहर निकाला जाता है, हम या तो मूसा की तरह अनिच्छुक होंगे, अथवा शिष्यों की तरह इच्छुक, जिन्होंने यीशु का अनुसरण हर जगह किया l कभी-कभी इसका अर्थ अपने आरामदायक जीवन को छोड़कर हज़ारों मील दूर रहना होता है l लेकिन चाहे जितनी दूर भी हो, यीशु के पीछे चलना सार्थक है l
परमेश्वर की ऊँगली का निशान
लाइगन स्टीवेंस अपने भाई निक के साथ पर्वतारोहण पसंद करती थी l वे दोनों अनुभवी पर्वतारोही थे और दोनों ने उत्तरी अमरीका के सबसे ऊँचे पर्वत मेकिन्ले(डेनाली) पर विजय प्राप्त कर लिया था l तब ही, जनवरी 2008 में, हिमस्खलन ने कोलेराडो पर्वत से उन्हें नीचे गिरा दिया, जिससे निक घायल हो गया और 20 वर्षीय लाइगन की मृत्यु हो गयी l निक को अपनी बहन के एक झोले में उसकी दैनिकी मिली, जिससे उसमें लिखी बातों से उसे बहुत शांति मिली l वह दैनिकी गहन-चिंतन, प्रार्थना, और परमेश्वर की प्रशंसा से परिपूर्ण थी जिनमें एक इस प्रकार थी : “मैं एक कलाकृति हूँ, जिस पर परमेश्वर का हस्ताक्षर है l किन्तु वह अभी भी कार्य कर रहा है; बल्कि वास्तव में, उसने आरंभ ही किया है . . . . मेरे ऊपर परमेश्वर की ऊँगली का निशान है l मैं एकलौती हूँ . . . मुझे अपने इस जीवन में कार्य करना है जो और कोई नहीं कर सकता l”
यद्यपि लाइगन शरीर में इस धरती पर नहीं है, फिर भी अपने जीवन के विरासत और दैनिकी द्वारा उनको प्रेरित और चुनौती देती है जिन्हें वह पीछे छोड़ गयी है l
क्योंकि हम परमेश्वर के स्वरुप में सृजे गए हैं (उत्त.1:26), हर एक “वह कलाकृति है, जिस पर परमेश्वर का हस्ताक्षर है l” जिस प्रकार प्रेरित पौलुस कहता है, हम “मसीह यीशु में उन भले कामों के लिए सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहले से हमारे करने के लिए तैयार किया” (इफि. 2:10) l
परमेश्वर की प्रशंसा हो कि वह दूसरों की सहायता करने के लिए प्रत्येक का उपयोग अपने समय और तरीके से करता है l
प्रतिज्ञाओं पर अटल
मेरे मित्र के भाई ने अपनी बहन को, जब वे दोनों छोटे थे, भरोसा दिलाया कि यदि वह “विश्वास” करेगी तो उसे ऊपर थामने के लिए एक छाते में प्रयाप्त ताकत है l इसलिए “विश्वास से” उसकी बहन अनाजघर के छत से कूद गयी, जिससे उसे थोड़ी चोट लग गयी l
परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार करता है l किन्तु हम इस बात को भली रीति से जान लें कि हम प्रतिज्ञा को अपनाते समय परमेश्वर के वास्तविक वचन पर अटल हैं, क्योंकि केवल उसी स्थिति में परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा अनुसार देगा अथवा करेगा l विश्वास में खुद उतनी ताकत नहीं है l वह तब सार्थक होता है जब वह परमेश्वर से प्राप्त स्पष्ट और अमिश्रित प्रतिज्ञा पर आधारित है l इसके अलावा सब कुछ केवल ख़याली पुलाव है l
यहाँ एक स्पष्ट उदाहरण है : परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की है, “… जो चाहो मांगो और वह तुम्हारे लिए हो जाएगा l मेरे पिता की महिमा इसी से होती है कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेंरे चेले ठहरोगे” (यूहन्ना 15:7-8) l ये पद ऐसी प्रतिज्ञा नहीं हैं कि परमेश्वर मेरी हर निवेदन का उत्तर देगा किन्तु ऐसी प्रतिज्ञा कि वह धार्मिकता की हमारी हर चाहत का प्रतिउत्तर देगा, जिसे पौलुस आत्मा के फल” संबोधित करता है (गला. 5:22-23) l यदि हम पवित्रता के लिए भूखे और प्यासे होते हैं, वह हमें तृप्त करेगा l इसमें समय लगेगा; क्योंकि मानवीय प्रौढ़ता की तरह ही, आत्मिक प्रौढ़ता धीरे-धीरे होता है l हार न मानें l परमेश्वर से आपको पवित्र बनाने के लिए निवेदन करते रहें l उसके अपने समय और गति में “वह तुम्हारे लिए हो जाएगा l” परमेश्वर ऐसी प्रतिज्ञाएँ नहीं करता है जिसे वह पूरी नहीं कर सकता l
निकट रहना
अपनी बेटी को स्कूल छोड़कर एक मील चलकर लौटना मुझे बाइबल से कुछ पदों को कंठस्त करने का अवसर देता है, वो भी यदि मैं इसके विषय इच्छा रखता हूँ l जब मैं अपने मन में परमेश्वर के वचन पर विचार करने के लिए कुछ पल देता हूँ, मैं महसूस करता हूँ कि वे वचन बाद में उस दिन मेरे मन में आकर मुझे शांति और बुद्धि देते हैं l
जब मूसा ने इस्राएलियों को प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने के लिए तैयार किया, उसने उन्हें परमेश्वर की आज्ञाओं और विधियों को पकड़े रहने के लिए कहा (व्यव.6:1-2) l उसकी इच्छा थी कि वे तरक्की करें, इस कारण उसने उनको इन आज्ञाओं को बार-बार याद करने और उनको अपने बच्चों के साथ उन पर विचार करने को कहा (पद.6-7) l उसने उनसे उनको अपने कलाइयों और माथे पर भी बाँधने के लिए कहा (पद.8) l उसकी इच्छा थी कि वे परमेश्वर के लोग हैं जो उसे आदर देते हुए उसकी आशीषों का आनंद उठाते हैं, और वे उसकी आज्ञाओं को कभी नहीं भूलें l
आज आप परमेश्वर के वचन के विषय क्या सोचते हैं? एक विचार है कि आप एक पद वचन से लिख लें, और हर एक काम करते समय, उसे पढ़ें और अपने मन में याद करें l अथवा सोने से पहले, बाइबल से एक छोटे परिच्छेद पर विचार करें जो आपके दिन का अंतिम कार्य हो l परमेश्वर के वचन को याद रखने के अनेक तरीके हैं!