आपकी प्रशस्ति
एक विश्वासी महिला के अंतिम संस्कार में उपस्थित होने के कारण मेरा हृदय भरा हुआ है l उसका जीवन असाधारण नहीं था l वह केवल अपने चर्च, पड़ोसी, और मित्रों के बीच में लोकप्रिय थी l परन्तु वह, उसके सात बच्चे, और 21 नाती-पोते यीशु से प्रेम करते थे l वह सरलता से हंसती थी, उदारतापूर्वक सेवा करती थी, और दूसरों के मन में लम्बे समय तक बस सकती थी l
सभोपदेशक कहता है, “भोज के घर जाने से शोक ही के घर जाना उत्तम है” (7:2) l “बुद्धिमान का मन शोक करनेवालों के घर की ओर लगा रहता है” क्योंकि हम वहाँ पर सबसे महत्वपूर्ण सबक सीखते हैं (7:4) l न्यू यॉर्क टाइम्स के स्तम्भ लेखक डेविड ब्रुक्स कहते हैं कि दो प्रकार के सद्गुण हैं : जो रिज्यूमे/आत्मकथा में अच्छे लगते हैं और दूसरा जो आप चाहेंगे कि आपके अंतिम संस्कार के समय आपके विषय कहे जाएँ l
कभी-कभी ये मेल खाती हैं, यद्यपि अक्सर वे प्रतिस्पर्धा करती हुयी दिखाई पड़ती हैं l जब शंका हो, हमेशा अपनी अपनी प्रशस्ति/बड़ाई करनेवाले गुणों का चुनाव करें l
कफ़न में लिपटी महिला के पास कोई रिज्यूमे नहीं था, किन्तु उसके बच्चों ने गवाही दी कि “उन्होंने हमेशा नीतिवचन 31 का अभ्यास किया” और एक धर्मी स्त्री का जीवन जीया l उन्होंने उनको यीशु से प्रेम करने और दूसरों की देखभाल करने के लिए प्रेरित किया l जिस प्रकार पौलुस कहता है, “मेरी सी चाल चलो जैसा मैं मसीह की सी चाल चलता हूँ” (1 कुरिन्थियों 11:1), इसलिए उपरोक्त पदों ने हमें अपनी माँ का अनुकरण करने के लिए चुनौती दी जैसे वह यीशु का अनुकरण करती थी l
आपके अंतिम संस्कार के समय क्या बोला जाएगा? आप क्या चाहेंगे कि बोली जाए? अपनी प्रशस्ति/बड़ाई के गुण विकसित करने में देर नहीं हुयी है l यीशु में विश्राम करें l उसका उद्धार हमें जो सबसे महत्वपूर्ण है के लिए जीने में स्वतंत्र करता है l
निस्सारता आग के हवाले
1497 के फरवरी में, गिरोलामा सेवोनारोला नाम के एक भिक्षु/सन्यासी ने एक आग आरंभ की l इस बात को आगे बढ़ाते हुए, वह और उसके शिष्यों ने ऐसी वस्तुएं इकठ्ठा किये जो शायद लोगों को पाप करने की ओर आकर्षित कर सकते हैं या जिससे उनके धार्मिक कर्तव्यों को पूरा करने में लापरवाही हो सकती थी – जिसमें कलाकृतियाँ, सौन्दर्य प्रसाधन, वाद्ययंत्र, और वस्त्र सम्मिलित थे l नियुक्त दिन में, निस्सारता सम्बंधित हज़ारों सामग्रियां इटली के फ्लोरेंस शहर में एक सार्वजनिक चौराहे में इकट्ठी करके उनको आग के हवाले कर दी गयी l इस घटना को निस्सारता(Vanity) का अलाव/उत्त्सवाग्नि संबोधित किया गया l
संभवतः सेवोनारोला ने पहाड़ी उपदेश के चकित करनेवाले कुछ एक कथनों में अपने कठोर कार्यों के लिए प्रेरणा खोजी हो l “यदि तेरी दाहिनी आँख तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे निकालकर फेंक दे,” यीशु ने कहा, [और] “यदि तेरा दाहिना हाथ तुझे ठोकर खिलाए, तो उस को काटकर फेंक दे” (मत्ती 5:29-30) l परन्तु यदि हम यीशु के शब्दों की शब्दशः व्याख्या करते हैं, हम उपदेश के मुख्य बिंदु से चूक जाते हैं l यह पूरा उपदेश सतह से गहरे में जाने के विषय है, बाहरी विकर्षण और परीक्षाओं पर अपने व्यवहार को दोष देने की अपेक्षा अपने हृदयों की दशा पर केन्द्रित होना l
निस्सारता(Vanity) का अलाव/उत्त्सवाग्नि ने वस्तुओं और कलाकृतियों को नष्ट करने का एक बड़ा दिखावा था, परन्तु यह असम्भाव्य है कि इस प्रक्रिया में उसमें शामिल लोगों के हृदय बदले हों l केवल परमेश्वर ही किसी हृदय को बदल सकता है l इसीलिए भजनकार की प्रार्थना थी, “हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर” (भजन 51:10) l यह हमारा हृदय ही है जो महत्वपूर्ण है l
आनंद के साथ खेलना
मेरा एक बेटा ब्रायन, हाई स्कूल बास्केटबॉल कोच है l एक साल, जब उसकी टीम वाशिंगटन स्टेट बास्केटबॉल टूर्नामेंट के दौरान बॉल को आगे की तरफ ले जाने की कोशिश कर थी, शहर के नेक-नियत लोगों ने पूछा, “क्या तुम लोग पूरे वर्ष जीतोगे?” दोनों ओर के खेलाड़ी और कोच तनावग्रस्त हो गए, इसलिए ब्रायन ने एक आदर्श-वाक्य(motto) अपना लिया : “आनंद के साथ खेलें!”
मैंने इफिसुस के प्राचीनों से कहे गए पौलुस के शब्दों पर विचार किया : “कि मैं अपनी दौड़ को [प्रेम के साथ] पूरी करूँ” (प्रेरितों 20:24) उसका लक्ष्य उस सेवा कार्य को पूरी करना था जिसे यीशु ने उसे दिया था l मैंने इन शब्दों को अपना आदर्श वाक्य और अपनी प्रार्थना बना ली है : “मैं भी अपनी दौड़ को आनंद के साथ पूरी कर सकूँ l” या जिस प्रकार ब्रायन कहता है, “मैं भी आनंद के साथ खेल सकूँ!” और बहरहाल, ब्रायन की टीम ने उस वर्ष स्टेट चैंपियनशिप जीत ली l
हममें से हर एक के पास चिड़चिड़ा होने के लिए सारे अच्छे कारण हैं : संसार की खबरें, दैनिक तनाव, स्वास्थ्य समस्याएँ l तिस पर भी, यदि हम उससे मांगते हैं, परमेश्वर हमें ऐसा आनंद दे सकता है जो इन परिस्थितियों से आगे जाती है l हम उसे पा सकते हैं जिसे यीशु ने कहा, “मेरा आनंद” (यूहन्ना 15:11) l
आनंद यीशु की आत्मा का फल है (गलातियों 5:22) l इसलिए हम प्रति भोर याद से उससे सहायता मांगे : “मैं आनंद से खेल सकूँ!” लेखक रिचर्ड फोस्टर ने कहा, “प्रार्थना करना बदलना है l यह महान अनुग्रह है l परमेश्वर कितना भला है जो एक मार्ग बनाता है जहाँ आनंद हमारे जीवन पर अधिकार कर लेता है l
प्रभु आनंद होता है
अभी हाल ही में मेरी नानी ने मुझे ढेर सारी पुरानी तस्वीरें भेजीं, और जब मैं उनको देख रही थी, एक ने मेरा ध्यान खींच लिया l उसमें, मैं दो वर्ष की हूँ, और मैं चूल्हे के पास बैठी हुयी हूँ l दूसरी ओर, मेरे पिता मेरी माँ के कंधे पर हाथ रखे हुए हैं l दोनों प्रेम और आनंद भाव से मुझे निहार रहे हैं l
मैंने इस तस्वीर को अपने कपड़े की आलमारी पर लगा दिया, जहाँ मैं इसे प्रतिदिन सुबह देखती हूँ l यह उनका मुझसे प्रेम करने की अच्छी ताकीद है l यद्यपि, सच्चाई यह है, कि अच्छे माता-पिता का प्रेम भी अधूरा है l मैंने इस तस्वीर को सुरक्षित किया क्योंकि यह मुझे याद दिलाता है कि यद्यपि मानव प्रेम कभी-कभी चूक जाता है, परमेश्वर का प्रेम कभी नहीं चूकता है – और वचन अनुसार, परमेश्वर मुझे उसी तरह निहार रहा है जैसे मेरे माता-पिता इस तस्वीर में मुझे निहार रहे हैं l
नबी सपन्याह इस प्रेम का वर्णन इस प्रकार करता है जो मुझे चकित करता है l वह वर्णन करता है कि परमेश्वर गाता हुआ अपने लोगों के लिए मगन होता है l परमेश्वर के लोग इस प्रेम को अर्जित नहीं किये थे l वे अवज्ञाकारी थे या परस्पर करुणा से व्यवहार नहीं किये थे l किन्तु सपन्याह ने प्रतिज्ञा दी कि अंत में, परमेश्वर का प्रेम उनकी हार से अधिक महत्वपूर्ण होगा l परमेश्वर उनके दंड को क्षमा करेगा (सपन्याह 3:15), और वह उनके लिए आनंदित होगा (पद.17) l वह अपने लोगों को अपनी बाहों में इकठ्ठा करेगा, उनको घर लौटा लाएगा, और उनको पुनर्स्थापित करेगा l
प्रति भोर विचार करने योग्य यही प्रेम है l
लुका छुपी
“वह मुझे ढूँढ लेगा,” मैंने सोचा l मेरा छोटा दिल और तेजी से धड़कने लगा जब मैंने अपने निकट अपने पांच वर्षीय चचेरे भाई के क़दमों की आवाज़ सुनी l वह निकट आ रहा था l केवल पांच कदम दूर l तीन l दो l “मैंने तुम्हें ढूढ़ लिया!”
लुका छुपी l हममें से बहुतों के पास बचपन के इस खेल की स्नेही यादें हैं l फिर भी जीवन में किसी समय ढूढ़ लिए जाने का भय खेल नहीं है परन्तु भाग जाने के गहरे सहजज्ञान में है l लोग जो देखेंगे उसे पसंद नहीं करेंगे l
पतित संसार के बच्चे होने के कारण, हम वह करने के लिए प्रवृत हैं जिसे मेरा मित्र इस तरह कहता है, परमेश्वर और हमारे बीच में “लुका छुपी का उलझा हुआ एक खेल l” यह बहुत हद तक छिपने का बहाना करने वाले खेल की तरह है – क्योंकि दोनों ओर से ही है l वह पूर्ण रूप से हमारे मैले विचार और गलत निर्णयों के आर पार देखता है l हम जानते हैं, यद्यपि हम बहाना बनाना चाहते हैं कि वह वास्तव में हमें नहीं देख सकता है l
फिर भी परमेश्वर निरंतर ढूढ़ता रहता है l वह हमें आवाज़ देता है, “बाहर आ जाओ l मैं तुम्हें देखना चाहता हूँ, तुम्हारे जीवन के सबसे लज्जाजनक हिस्से भी” – उसी आवाज़ की प्रतिध्वनि जिसने उस पहले मानव को पुकारा था जो भय के कारण छिप गया था : “तू कहाँ है?” (उत्पत्ति 3:9) l इस प्रकार का निमन्त्रण जो एक चुभनेवाले प्रश्न के रूप में बोला गया l मेरे बेटे/मेरी बेटी, “छुपे हुए स्थान से निकल आओ, और वापस मेरे साथ सम्बन्ध बना लो l”
यह बहुत हद तक जोखिम भरा हो सकता है, और बेतुका भी l परन्तु वहाँ पर, हमारे पिता की देखभाल के सुरक्षित स्थान में, हममें से कोई भी, चाहे हम जो भी किए हों या नहीं कर पाए हों, उसके द्वारा पूर्ण रूप से जाने जा सकते हैं और प्रेम किये जा सकते हैं l