जब वैभव चला जाए
मैं उस वैभव को फिर से प्राप्त नहीं कर सकता जो हमारी बेटी मेल्लिसा थी l मेरी स्मरण से लुप्त होता वह अद्भुत समय हैं जब हमने उसे ख़ुशी से हाई स्कूल वॉलीबॉल खेलते देखा था l और कभी-कभी संतुष्टता की संकोची मुस्कराहट जो उसके चेहरे पर होती थी जब हम पारिवारिक गतिविधियाँ करते थे को कभी-कभी स्मरण करना कठिन है l सत्रह साल की उम्र में उसकी मृत्यु ने उसकी उपस्थिति की ख़ुशी पर एक पर्दा डाल दिया l
विलापगीत की किताब में, यिर्मयाह के शब्द दर्शाते हैं कि उसने समझ लिया था कि हृदय भी बेधा जा सकता है l “मेरा सुख समाप्त हो गया,” वह कहता है, “ मेरी आशा, जो प्रभु से मैंने की थी, उसका अंत हो गया” (3:18 हिंदी - CL) l उसकी परिस्थिति हमलोगों से बहुत भिन्न थी l उसने परमेश्वर के न्याय का प्रचार किया था, और उसने यरूशलेम को पराजित देखा l वह भव्यता चली गयी थी क्योंकि उसने पराजय (पद.12), अकेला (पद.14), और परमेश्वर द्वारा परित्यक्त महसूस किया (पद.15-20) l
परन्तु उसकी कहानी का अंत यह नहीं है l उसमें से प्रकाश चमक रहा था l यिर्मयाह, जो बोझिल और टूटा हुआ था, हकलाते हुए बोल उठा “मुझे आशा है” (पद.21) – आशा जो यह जानने से आती है कि “हम मिट नहीं गए; यह यहोवा की महकरुणा का फल है” (पद.22) l और यहाँ पर एक बात है जो हमें याद रखना है कि जब वैभव समाप्त हो जाए : “उसकी दया अमर है l प्रति भोर वह नई होती रहती है” (पद.22-23) l
हमारे सबसे अंधकारमय दिनों में भी, परमेश्वर की महान विश्वासयोग्यता उसमें से चमकती है l
अन्धकार में प्रकाश
एक प्रचंड आँधी हमारे नये शहर से होकर गुजरी, परिणामस्वरूप जो उमस और अँधकारमय आसमान छोड़ गयी l मैं अपने कुत्ते, जिमी को टहलाने ले गयी l मेरे परिवार का देश के एक हिस्से से विपरीत दिशा में दूसरे हिस्से में जाने की बढती चुनौतियाँ मेरे मन में भारी होती जा रही थी l अनगिनत तरीकों से निराश होकर चीजें हमारी उच्च आशाओं और अपेक्षाओं से बहुत दूर चली गई थीं l मैंने जिमी को घास का गंध लेने के लिए धीमा कर दिया l मैंने उस नाले की बात सुनी जो हमारे घर के पास बहता है l नाले के किनारे पर जंगली फूलों के बढ़ते हुए भागों पर छोटी-छोटी ज्योतियाँ चमक जाती थीं l जुगनू l
प्रभु ने मुझे शांति में लपेट लिया जब मैंने टिमटिमाती हुई रोशनी को अँधेरे को चीरते हुए देखा l मैंने भजनकार दाऊद को गाते हुए कल्पना की, “तू ही मेरे दीपक को जलाता है” (भजन 18:28) l यह घोषणा करते हुए कि परमेश्वर अपने अंधकार को प्रकाश में बदल देता है, दाऊद ने प्रभु के प्रावधान और सुरक्षा में विश्वास का प्रदर्शन किया (पद.29-30) l जीवित परमेश्वर पर सभी परिस्थितियों में उसके साथ रहने का विशवास करते हुए, दाऊद ने राष्ट्रों एक बीच उसकी प्रशंसा करने का वादा किया (पद.36-49) l
चाहे हम जीवन में अप्रत्याशित तूफानों को सहन कर रहे हों या बारिश के बीत जाने के बाद की शांति का आनंद ले रहे हों, परमेश्वर की निरंतर उपस्थिति की शांति हमारे रास्ते को अँधेरे में रोशन करती है l हमारा जीवित परमेश्वर हमेशा हमारी शक्ति, हमारा आश्रय, हमारा संभालनेवाला और हमारा उद्धारकर्ता रहेगा l
कीमती आनंद
डिजिटल स्वर की मधुरता पर, हम सभी छह जन हरकत में आ गए l कुछ ने जूते पहन लिए, दूसरे नंगे पाँव दरवाजे की ओर दौड़े l पल भर में हम सभी तेजी से नीचे दौड़ते हुए सड़क पर आइसक्रीम के ट्रक का पीछा कर रहे थे l यह गर्मी के मौसम का पहला गर्म दिन था, और ठन्डे, मीठे दावत(treat) के साथ जश्न मनाने का इससे अच्छा तरीका नहीं था! ऐसे चीजें हैं जो हम आनंद के कारण करते हैं, अनुशासन या दायित्व के कारण नहीं l
मत्ती 13:44-46 में पाए गए दृष्टान्तों की जोड़ी में, कुछ पाने के लिए सब कुछ बेचने पर बल दिया गया है l हम सोचते होंगे कि ये कहानियां त्याग के विषय है l लेकिन वह बात नहीं है l वास्तव में, पहली कहानी यह घोषणा करती है कि यह “आनंद” था जिसके कारण उस आदमी को सब कुछ बेचकर खेत खरीदना पड़ा l आनंद परिवर्तन लाता है – अपराध बोध या फ़र्ज़ नहीं l
यीशु हमारे जीवनों का एक खण्ड नहीं है; उसका पूरा दावा हम पर है l कहानियों में दोनों पुरुषों ने “सब कुछ” बेच दिया (पद.44) l लेकिन यहाँ पर सबसे अच्छा हिस्सा है : सब कुछ बेचने का वास्तविक परिणाम लाभ है l शायद हमने अनुमान नहीं लगाया होगा l क्या मसीही जीवन क्रूस उठाने के विषय नहीं है? हाँ l यह है l लेकिन जब हमारी मृत्यु होती है, हम जीते हैं ; जब हम अपना जीवन खो देते हैं, तो हम इसे पा लेते हैं l जब हम “सब कुछ बेच देते है,” हम सबसे बड़ा धन पाते हैं : यीशु! आनंद ही कारण है; समर्पण प्रत्युत्तर है l
यीशु को जानना इनाम है l
पलों को संजोए रखें
सू डाँगपो(Su Dongpo) चीन के सबसे बड़े कवियों और निबंधकारों में से एक थे l निर्वासन में और पूर्णिमा के चाँद को एक टक देखते हुए, उन्होंने यह वर्णन करने के लिए एक कविता लिखी कि वे अपने भाई को कितना याद कर रहे हैं l वे लिखते हैं, “हम आनंद करते और शोक करते हैं, इकठ्ठा होते और अलग होते हैं, जब चाँद बढ़ता और घटता रहता है l बीते समयों से, कुछ भी सम्पूर्ण नहीं रहता l काश हमारे प्रियजन लम्बी आयु पाएं, और हज़ारों मील एक दूसरे से दूर रहने के बावजूद इस खूबसूरत दृश्य को देखते रहें l”
उनकी कविता में सभोपदेशक की पुस्तक की विषय-वस्तु पायी जाती है l लेखक, जो उपदेशक के रूप में जाना जाता है (1:1), ने ध्यान दिया कि “रोने का समय, और हँसने का भी समय . . . गले लगाने का समय, और गले लगाने से रुकने का भी समय है” (3:4-5) l दो विपरीत गतिविधियों को जोड़कर, उपदेशक, इस कवि की तरह, यह सुझाव देता कि आखिरकार सभी अच्छी चीजों का अंत होगा l
जैसा कि चीनी कवि ने चाँद के बढ़ने और घटने को एक और संकेत के रूप में देखा, कि कुछ भी सम्पूर्ण नहीं है उसी प्रकार उपदेशक ने भी परमेश्वर के संसार में संभावित क्रम के निर्माण में देखा जो उन्होंने बनाया था l परमेश्वर घटनाओं की देख-रेख करता है, और “उसने सब कुछ ऐसा बनाया कि अपने अपने समय पर वे सुन्दर होते हैं” (पद.11) l
जीवन अप्रत्याशित हो सकता है और कभी-कभी दर्दनाक अलगाव से भरा हो सकता है, लेकिन हम उत्साहित हो सकते हैं कि सब कुछ परमेश्वर की निगाह में है l हम जीवन का आनंद ले सकते हैं और क्षणों को संजो सकते हैं – अच्छे और बुरे – हमारे प्रिय परमेश्वर हमारे साथ हैं l
मुर्खता करना
मेरा सबसे अपमानजनक अनुभव वह दिन था जब मैंने अपनी पचासवीं वर्षगाँठ पर एक सेमिनरी के संकाय, छात्रों और दोस्तों को संबोधित किया था l मैं व्याख्यान के लिए भाषण-मंच पर अपने हाथ से लिखित नोट्स के साथ पहुंचा और एक विशाल भीड़ को देखा, लेकिन मेरी नज़र सामने की पंक्ति में बैठे प्रतिष्ठित प्रोफेसरों पर पड़ी, जो अकादमिक गाउन पहने हुए थे और बहुत गंभीर दिख रहे थे l मेरा होश उड़ गया l मेरा मुँह सूख गया और मेरे मस्तिष्क से उसका सम्बन्ध टूट गया l मैंने पहले कुछ वाक्य पढ़े और फिर मैं उसे तत्काल सुधारना शुरू किया l चूँकि मुझे पता नहीं था कि मैं अपने व्याख्यान में कहाँ पर था, मैंने निरर्थक रूप से पृष्ठों को पलटना शुरू कर दिया, और साथ में बकवास करने लगा जिससे सभी चकित हो गए l किसी तरह मैंने इसे पूरा किया, अपनी कुर्सी पर लौट आया, और फर्श पर एक टक देखने लगा l मैं मरना चाहता था l
हालाँकि, मैंने यह सीखा कि अपमान एक अच्छी बात हो सकती है अगर यह विनम्रता की ओर ले जाए, क्योंकि वह परमेश्वर का दिल खोलनेवाली कुंजी है l शास्त्र कहता है “परमेश्वर अभिमानियों का विरोध करता है, पर दीनों पर अनुग्रह करता है” (याकूब 4:6) l वह अनुग्रह के साथ विनम्रता दिखाता है l स्वयं परमेश्वर ने कहा, “मैं उसी की ओर दृष्टि करूँगा जो दीन और खेदित मन का हो, और मेरा वचन सुनकर थरथराता हो” (यशायाह 66:2) l जब हम सब खुद को परमेश्वर के सामने नम्र दीन करते हैं, वह हमें शिरोमणि करता है (याकूब 4:10) l
अपमान और शर्म हमें परमेश्वर के पास ला सकता है कि वह हमें आकार दे सके l जब हम दीन होते हैं, हम परमेश्वर के हाथों में गिरते हैं l