दोनों सत्य हैं
तीन दशकों के बाद, फेंग लुलु का अपने परिवार से मिलन हुआ l चीन में अपने घर के बाहर खेलते समय उसे बचपन में अपहृरण कर लिया गया था, लेकिन एक महिला समूह की मदद से, अंततः उसे ढूंढ लिया गया l इसलिए कि उसे बहुत ही बालपन (बचपन) में अपहृरण कर लिया गया था, फेंग लुलु को याद नहीं है l वह यह मानकर बड़ी हुयी कि उसे बेच दिया गया था क्योंकि उसके माता-पिता उस पर खर्च करने में असमर्थ थे, इसलिए सच्चाई जानने पर कई सवाल और भावनाएं सामने आयीं l
जब युसूफ का अपने भाइयों से पुनःमिलन हुआ, तो यह संभव है कि उसने कुछ मुश्किल और उलझी हुई भावनाओं का अनुभव किया हो l उसके भाइयों ने उसे युवावस्था में मिस्र में गुलामी में बेच दिया था l कई पीड़ादायक घुमावदार मोड़ के बावजूद, परमेश्वर ने युसूफ को अधिकार के पद पर पहुँचाया l जब उसके भाई अकाल के समय अन्न खरीदने के लिए मिस्र आए, तो उन्होंने—अनजाने में—उसी से ही माँगा l
युसूफ ने माना कि परमेश्वर ने उनके अत्याचार से भलाई उत्पन्न किया, यह कहते हुए कि उसने उसका उपयोग “तुम्हारे प्राणों [ को बचाने के लिए किया]” (उत्पत्ति 45:7) l इसके बाद भी युसूफ ने उसके प्रति उनके हानिकारक कार्यों को पुनः परिभाषित नहीं किया—उसने उन्हें स्पष्ट रूप से “[उसे] बेचने” (पद.5) का वर्णन किया l
कभी-कभी हम भावनात्मक संघर्ष को स्वीकार किए बिना, भलाइयों पर केन्द्रित होकर जो परमेश्वर उनसे उत्पन्न करता है उन कठिन परिस्थितियों पर अत्यधिक सकारात्मक घुमाव देने की कोशिश करते हैं l
इस बात का ध्यान रखें कि किसी गलत को ऐसे ही अच्छा न कहें कि ईश्वर ने उससे भलाई उत्पन्न की थी: हम दर्द के गलत कारणों को पहचानते हुए भी उसमें से अच्छाई लाने के लिए उसकी तलाश कर सकते हैं l दोनों ही सत्य है l
परमेश्वर की शक्ति में आत्म-संयम
1972 में "मार्शमैलो टेस्ट" के रूप में जाना जाने वाला एक अध्ययन बच्चों की उनकी इच्छाओं की संतुष्टि में देरी करने की क्षमता को मापने के लिए किया गया था। बच्चों को आनंद लेने के लिए एक ही मार्शमैलो दिया गया, लेकिन उन्हें कहा गया था कि अगर वे इसे दस मिनट तक खाने से रुके रहते हैं, तो उन्हें एक और मार्शमैलो दिया जाएगा। लगभग एक तिहाई बच्चे बड़े इनाम के लिए रुके रहने में सक्षम थे। दूसरे एक तिहाई ने इसे तीस सेकंड के भीतर ही निगल लिया!
हम आत्मा-संयम दिखाने में संघर्ष कर सकते हैं जब हमारे समक्ष कुछ ऐसा प्रस्तुत हो जिसकी हम लालसा रखते हैं , भले ही हम यह जानते हों कि प्रतीक्षा करने से हमें भविष्य में और अधिक लाभ होगा। तौभी पतरस हमें आत्म-संयम सहित कई महत्वपूर्ण गुणों को "अपने विश्वास पर सद्गुण," के लिए आग्रह करता है (२ पतरस 1:5-6)। यीशु में विश्वास रखने के बाद, पतरस ने अपने पाठकों को, और हमें, उस विश्वास के प्रमाण के रूप में भलाई, ज्ञान, दृढ़ता, आत्म-संयम, भक्ति, स्नेह, और प्रेम में " अत्यंत" बढ़ते रहने के लिए प्रोत्साहित किया (पद.5-8)।
हालांकि इन गुणों द्वारा न ही हम परमेश्वर की कृपादृष्टि कमाते और न ही यें स्वर्ग में हमारे स्थान को सुरक्षित करते हैं, यें दर्शाते है - स्वयं को और साथ ही उन सभी लोगों को जिनके साथ हम बातचीत करते हैं- हमें आत्म-संयम का प्रयोग करने की आवश्यकता है क्योंकि परमेश्वर ऐसा करने के लिए बुद्धि और शक्ति प्रदान करता है। और, सबसे अच्छी बात, उसने पवित्र आत्मा की शक्ति के द्वारा ".. सब कुछ जो जीवन और भक्ति [जीने के लिए आवश्यक] दिया है," जो उसे प्रसन्न करता है (पद 3)।
बुद्धिमानी से चुने
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की यात्रा के लिए निर्धारित उड़ान चालक दल के कमांडर के रूप में अंतरिक्ष यात्री क्रिस फर्ग्यूसन ने एक कठिन निर्णय लिया। लेकिन वह निर्णय उड़ान के यांत्रिकी या उसके साथी अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा से कोई लेना-देना नहीं था। बल्कि, यह उसके परिवार से संबंधित था जिसे वह अपना: सबसे महत्वपूर्ण काम मानता था। फर्ग्यूसन ने अपने पैरों को पृथ्वी पर दृढ़ता से रखने का विकल्प चुना ताकि वह अपनी बेटी की शादी में उपस्थित हो सके।
कभी-कभी हम सब कठिन निर्णयों का सामना करते हैं-- निर्णय जो हमें यह मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित करते हैं कि हमारे जीवन में हमारे लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण क्या है, क्योंकि एक निर्णय दूसरे की कीमत पर आता है। यीशु ने अपने चेलों और दर्शकों की भीड़ को इस सच्चाई का संचार करने का लक्ष्य रखा जो जिंदगी के सबसे अहम फैसला—उसका अनुकरण करना। उन्होंने कहा, एक चेला बनना, उसके साथ चलने के लिए उन्हें “वह अपने आपे से इन्कार करे ” (मरकुस 8:34)। वह खुद को, उन बलिदानों को जो मसीह के पीछे चलने के लिए आवश्यक है बचाने के लिए लालायित हो और अपनी इच्छाओं को चुनते, लेकिन उन्होंने उन्हें याद दिलाया की वह उस कीमत पर आता जो बहुत अधिक मायने रखता है।
हम अक्सर उन चीजों का पीछा करने को लालायित रहते हैं जो हमें बहुत मूल्यवान लगती है , , फिर भी वे हमें यीशु का अनुकरण करने से विचलित करते हैं। जिन निर्णयों का सामना हम प्रतिदिन करते हैं उसमें हम परमेश्वर को हमें अगुआई करने के लिए कहें ताकि हम बुद्धिमानी से चुने और उनको आदर दें।
जब हम एक साथ इकट्ठे होते हैं
2015 के अनुसंधान के अनुसार चंडीगढ़ को भारत का सबसे खुशहाल शहर के रूप में स्थान दिया गया। उस अध्ययन के अनुसार, चंडीगढ़ के लोग अपने परिवार के साथ समय बिताते हुए खुश है, और वे अपने मित्रों और परिवार के साथ बाँटें गये रिश्ते के गुणवत्ता का महत्व देते है। यदि आप चंडीगढ़ जाते है। आप अक्सर भोजनालय या सप्ताहांत में परिवार को दोपहर का भोजन या रात का खाना एक साथ खाते देखेंगे। अपने प्रियजनों के साथ एक साधारण टेबल के चारों ओर बैठे हुए, उनका हृदय पोषित होता है।
इब्रानियों का लेखक एक समूह के रूप में एक साथ इकट्ठा होने के लिए प्रोतशाहित करता है। वह मानता है की कठिन दिन होंगे—उनकी चुनौतियाँ मौसम से ज्यादा चरितार्थ—जो मसीह का अनुकरण करते है उनको आवश्यकता है की अपने विश्वास में बने रहें। यद्यपि उद्धारकर्ता में विश्वास के द्वारा यीशु ने परमेश्वर के द्वारा हमारी स्वीकृति को निश्चित किया है, हम शर्म और संदेह या वास्तविक विरोध के खिलाफ संघर्ष कर सकते हैं। एक साथ इकट्ठा होने के द्वारा, हमें एक दूसरे को प्रोतशाहित करने का मौका मिलता है। जब हम संगत बाँटते है, हम “प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये हम एक दूसरे की चिन्ता किया करते हैं” जो हमारे विश्वास को मजबूत करता है। (इब्रानियों 10:24)
दोस्तों के साथ इकट्ठा होना हमें “ख़ुशी के रिपोर्ट” में स्थान पाने को आश्वस्त नहीं करता। हालाँकि, यह कुछ ऐसा जो बाइबल हमें जीवन के सामान्य चिंताओ में अपने विश्वास में के लिए सुझाता है। चर्च के समूह को ढूंढने का क्या ही अद्भुत कारण! या हमारे घरों को पंजाबी सादगी के एक रवैये के साथ खोलने के लिए—एक दूसरे के दिलों को पोषित करने के लिए।
सत्य को बढ़ाना
संक्रमण के जोखिम के कारण अपने पोते-पोतियों को व्यक्तिगत रूप से न देखने की क्षमता के कारण, कई दादा-दादी ने कोविद-१९ महामारी के दौरान जुड़े रहने के नए तरीकों को ढूँढा। एक हालिया सर्वेक्षण से पता चला है कि कई दादा-दादी ने अपने पोते-पोतियों के साथ अपने अनमोल बंधन को बनाए रखने के साधन के रूप में टेक्स्टिंग और सोशल मीडिया को अपनाया। कुछ ने अपने विस्तारित परिवारों के साथ वीडियो कॉल द्वारा आराधना भी की।
एक सबसे अद्भुत तरीकों में से एक जिसके द्वारा माता-पिता और दादा-दादी अपने बच्चों को प्रभावित कर सकते हैं, वह है पवित्रशास्त्र की सच्चाइयों को आगे बढ़ाना। व्यवस्थाविवरण ४ में, मूसा ने परमेश्वर के लोगों को "उन बातों को न भूलने" के लिए कहा जो उन्होंने परमेश्वर के बारे में देखी थीं "या उन्हें [उनके] दिल से फीका पड़ने दें" (पद ९)। उसने आगे कहा कि इन बातों को अपने बच्चों और अपने बच्चों के बच्चों के साथ साझा करने से वे उसका "आदर" करना सीख सकेंगे (पद १०) और उस देश में वह उसकी सच्चाई के अनुसार जीएंगे जिसे वह उन्हें देने पर है।
परमेश्वर हमें हमारे परिवारों और दोस्तों के साथ जो संबंध देता है, वह निश्चित रूप से आनंद लेने के लिए होता है। परमेश्वर की योजना के अनुसार, इसका यह भी मक़सद है की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक उसका ज्ञान फैले, "धार्मिकता में [उन्हें] प्रशिक्षण देना" और उन्हें "हर एक भले काम" के लिए तैयार करना है (२ तीमुथियुस ३:१६-१७)। जब हम अपने जीवन में परमेश्वर के सत्य और कार्य को अगली पीढ़ी के साथ साझा करते हैं—चाहे मैसेज, कॉल, वीडियो, या व्यक्तिगत बातचीत के द्वारा—हम उन्हें अपने जीवन में उसके कार्य को देखने और उसका आनंद लेने के लिए सुसज्जित करते हैं।
सर्वश्रेष्ठ टीम
मेलानी और ट्रेवर, दोनों दोस्तों ने मिलकर मीलों पहाड़ की पगडंडियों को पार किया है। कोई एक दूसरे के बिना ऐसा करने में सक्षम नहीं होगा। स्पाइना बिफिडा (रीढ़ की हड्डी का रोग) के साथ पैदा हुई मेलानी व्हीलचेयर का इस्तेमाल करती हैं। ग्लूकोमा (काला मोतिया) के कारण ट्रेवर की आंखों की रोशनी चली गई। दोनों ने महसूस किया कि वे कोलोराडो जंगल का आनंद लेने के लिए एक दूसरे के आदर्श पूरक थे; जैसे ही वह पगडंडियों पर चलता है, ट्रेवर मेलानी को अपनी पीठ पर बिठाता है, इस बीच वह उसे मौखिक निर्देश देती है। वे खुद को “ड्रीम टीम” के रूप में वर्णित करते हैं।
पौलुस यीशु में विश्वासियों का वर्णन करता है—मसीह की देह के रूप में—उसी प्रकार की एक सर्वश्रेष्ठ टीम। उन्होंने रोमवासियों से यह पहचानने का आग्रह किया कि उनके व्यक्तिगत वरदानों से कैसे बड़े समूह को लाभ हुआ। जिस तरह हमारे भौतिक शरीर कई हिस्सों से बने होते हैं, प्रत्येक अलग–अलग कार्यों के साथ, हम एक साथ एक आध्यात्मिक शरीर बनाते हैं और हमारे वरदान चर्च के सामूहिक लाभ के लिए सेवा में दिए जाने के लिए होते हैं (रोमियों 12:5) । चाहे देने, प्रोत्साहित करने, या सिखाने के रूप में, या किसी भी अन्य आत्मिक वरदान के रूप में, पौलुस हमें निर्देश देता है कि हम स्वयं को और अपने वरदानों को अन्य सभी से संबंधित देखें (पद 5:8)।
मेलानी और ट्रेवर इस बात पर ध्यान केंद्रित नहीं करते हैं कि उनके पास क्या कमी है, और न ही वे इस बात पर गर्व करते हैं कि उनके पास दूसरे की तुलना में क्या है। इसके बजाय, वे खुशी–खुशी दूसरे की सेवा में अपने वरदान देते हैं, यह पहचानते हुए कि उनके सहयोग से वे दोनों कितने बेहतर हैं। क्या हम भी उन वरदानों को जो परमेश्वर ने हमें दिए हैं स्वतंत्र रूप से अपने साथी सदस्यों के साथ जोड़ सकते हैं —मसीह के लिए।
भरपूरी आवश्यकता को पूरा करती है
स्कूल के दोपहर के भोजन की कैंटीन, जैसे कोई बड़े खानपान का व्यवसाय, अक्सर खपत से अधिक भोजन तैयार करते हैं, क्योंकि वे पूरी तरह से आवश्यकता का अनुमान नहीं लगा पाते, और बचा हुआ भोजन बर्बाद हो जाता है। फिर भी कई छात्र ऐसे हैं जिनके पास घर पर खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं होता और जो सप्ताहांत में भूखे रहते हैं। एक स्कूल जिले ने समाधान खोजने के लिए एक स्थानीय गैर-लाभकारी संस्था के साथ भागीदारी की। उन्होंने छात्रों के साथ घर भेजने के लिए बचे हुए खाने को पैक किया, और साथ ही साथ भोजन की बर्बादी और भूख दोनों की समस्याओं का समाधान किया।
जबकि अधिकांश लोग धन की बहुतायत को एक समस्या के रूप में नहीं देखेंगे जिस तरह से हम व्यर्थ भोजन के साथ करते हैं, स्कूल परियोजना के पीछे का सिद्धांत वही है जो पौलुस ने कुरिन्थियों को लिखे अपने पत्र में सुझाया था। वह जानता था कि मैसेडोनिया की कलीसियाएँ कठिनाई का सामना कर रही हैं, इसलिए उसने कुरिन्थ की कलीसिया से कहा कि वह अपनी "बढ़ती" का उपयोग "उनकी आपूर्ति करने के लिए करे (2 कुरिन्थियों 8:14)। उसका उद्देश्य चर्चों के बीच समानता लाना था ताकि किसी के पास बहुत अधिक न हो जबकि अन्य दुःख उठा रहे हो।
पौलुस ऐसा नहीं चाहता था कि कुरिन्थ के विश्वासी उनके देने से गरीब हों, लेकिन मैसेडोनिया के लोगों के साथ सहानुभूति दिखाएं और उदार हों, यह मानते हुए कि भविष्य में किसी समय पर उन्हें भी इसी तरह की मदद की आवश्यकता हो सकती है। जब हम ज़रूरतमंदों को देखते हैं, तो आइए मूल्यांकन करें कि क्या हमारे पास बाँटने के लिए कुछ हो सकता है। हमारा देना — चाहे बड़ा हो या छोटा — कभी भी व्यर्थ नहीं जाएगा!
यीशु में नया डीएनए
अपने अस्थि मज्जा (बोन मेरो) के बदले जाने के चार साल बाद क्रिस ने अपने रक्त का पुन: परीक्षण कराया। बोन मेरो के देने वाले के मज्जा ने उसे ठीक करने के लिए जो आवश्यक था वह प्रदान किया था, लेकिन एक आश्चर्यजनक बात हुई: क्रिस के खून में डीएनए उसके दाता का था, उसका अपना नहीं। यह वास्तव में समझ में आता है: प्रक्रिया का लक्ष्य कमजोर रक्त को दाता के स्वस्थ रक्त से बदलना था। फिर भी क्रिस के गाल, होंठ और जीभ के स्वाब ने दाता के डीएनए को दिखाया। कुछ मायनों में, वह कोई और बन गया - हालाँकि उसने अपनी यादें, बाहरी रूप और अपने कुछ मूल डीएनए को बनाए रखा था।
क्रिस का अनुभव उस व्यक्ति के जीवन के साथ एक आश्चर्यजनक समानता रखता है जिसने यीशु में उद्धार प्राप्त किया है। हमारे आत्मिक परिवर्तन के समय — जब हम यीशु पर भरोसा करते हैं — हम एक नई सृष्टि बन जाते हैं (2 कुरिन्थियों 5:17)। इफिसुस की कलीसिया को पौलुस की पत्री ने उन्हें उस भीतरी परिवर्तन को प्रकट करने के लिए प्रोत्साहित किया, "[अपने] पुराने मनुष्यत्व को उतार दे" और "नए मनुष्यत्व को पहिन ले, जो परमेश्वर के अनुरूप सत्य की धार्मिकता और पवित्रता में सृजा गया है”। (इफिसियों 4:22,24)। मसीह के लिए अलग किये गए।
हमें यह दिखाने के लिए डीएनए या रक्त परीक्षण की आवश्यकता नहीं है कि यीशु की परिवर्तनकारी शक्ति हमारे भीतर जीवित है। हमारी भीतर की वास्तविकता इससे प्रमाणित होनी चाहिए की हम अपने आस-पास के संसार के साथ कैसा व्यवहार करते है, यह प्रकट करते हुए कि हम कैसे "एक दूसरे पर कृपालु और करुणामय हों, एक दूसरे को क्षमा करें, जैसे परमेश्वर ने मसीह में (हमारे) अपराध क्षमा किए" (पद 32)।
प्रेम से देना
आयुष हर दिन अपना सुबह का नाश्ता पास की दुकान से खरीदता था। और प्रतिदिन वह चुपचाप किसी ऐसे व्यक्ति के लिए भी भुगतान करता जिसके लिए वह महसूस करता कि उसे इसकी जरूरत है, तथा कैशियर से उस व्यक्ति को अच्छे दिन की शुभकामना देने को कहता। आयुष का उनसे कोई संबंध नहीं था। वह उनकी प्रतिक्रियाओं से अनजान था; उसका केवल यह साधारण सा विश्वास था कि यह छोटा सा भाव "कम से कम है जो वह कर सकता है।" हालाँकि, एक अवसर पर, उसे अपने कार्यों के प्रभाव का पता तब चला जब उसने संपादक को लिखे अपने स्थानीय समाचार में एक गुमनाम पत्र पढ़ा। उसने पाया कि उसके उपहार की दयालुता ने एक व्यक्ति को उस दिन अपनी जान लेने की अपनी योजनाओं पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया था।
आयुष बिना कोई श्रेय लिए रोजाना किसी को नाश्ता देता। केवल इसी अवसर पर उसे अपने छोटे से उपहार के प्रभाव की एक झलक मिली। जब यीशु कहते हैं कि हमें "[हमारे] बाएं हाथ को यह नहीं जानने देना चाहिए कि [हमारा] दाहिना हाथ क्या कर रहा है" (मत्ती 6:3), वह हमसे देने का आग्रह करते है - आयुष की तरह - बिना किसी श्रेय की ज़रूरत के।
जब हम दूसरों की प्रशंसा प्राप्त करने की परवाह किए बिना, परमेश्वर के लिए अपने प्रेम के कारण देते हैं, तो हम भरोसा कर सकते हैं कि हमारे उपहार - बड़े या छोटे - परमेश्वर द्वारा उपयोग किए जाएंगे उनकी ज़रूरतों को पूरी करने में सहायता के लिए जिन्हें यें प्राप्त हुए है।