हृदय पर लिखित
एक प्रोफेसर के तौर पर, मुझे अक्सर छात्रों द्वारा उनके लिए सिफारिश पत्र लिखने के लिए कहा जाता है – नेतृत्व के पदों, विदेश में अध्ययन कार्यक्रमों, स्नातक स्कूलों और यहाँ तक कि नौकरियों के लिए l प्रत्येक पत्र में, मेरे पास छात्र के चरित्र और योग्यता की प्रशंसा करने का एक मौका होता है l
जब प्राचीन संसार में मसीही यात्रा करते थे, वे अपनी कलीसियाओं से इसी प्रकार की “सिफारिस की पत्रियाँ” लेकर चलते थे l इस तरह के पत्र सुनिश्चित करते थे कि यात्री भाई या बहन की पहुनाई की जाएगी l
जब प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थुस की कलीसिया से बात की उसे सिफारिस के पत्र की ज़रूरत नहीं थी – वे उसे जानते थे l इस कलीसिया को लिखी अपनी दूसरी पत्री में, पौलुस ने लिखा कि उसने मन की सच्चाई से, और व्यक्तिगत लाभ के लिए उपदेश नहीं दिया था (2 कुरिन्थियों 2:17) l लेकिन तब उसने सोचा कि क्या उसके पाठक यह सोचेंगे कि उपदेश देने में अपने इरादों का बचाव करने के लिए, वह खुद के लिए एक सिफारिश पत्र लिखने की कोशिश कर रहा था l
उसने कहा, कि उसे इस प्रकार की पत्री की ज़रूरत नहीं थी, क्योंकि कुरिन्थुस की कलीसिया के लोग खुद सिफारिश की पत्री की तरह थे l उनके जीवनों में मसीह का दृश्य कार्य एक पत्री की तरह था “जो स्याही से नहीं परन्तु जीवते परमेश्वर के आत्मा से” लिखा गया था (3:3) l उनका जीवन सच्चे सुसमाचार की गवाही देते थे जो पौलुस ने उन्हें सुनाया था – उनका जीवन सिफारिश की पत्रियाँ थीं जिन्हें “सभी मनुष्य [पहिचान] और [पढ़ सकते थे]” (3:2) l जब हम यीशु का अनुसरण करते हैं, यह हमारे लिए भी सच है – हमारा जीवन सुसमाचार की अच्छाई की कहानी बताता है l
परमेश्वर की बातें
बारना समूह द्वारा 2018 में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि अधिकाँश अमरीकी परमेश्वर के बारे में बात करना पसंद नहीं करते हैं l केवल सात फीसदी अमरीकी लोगों का कहना है कि वे नियमित रूप से आध्यात्मिक मामलों के बारे में बात करते हैं – और अमेरिका में यीशु में व्यवहारिक विश्वासीउतने भिन्न नहीं है l केवल तेरह फीसदी नियमित रूप से चर्च जानेवाले कहते हैं कि वे सप्ताह में एक बार आध्यात्मिक बातचीत करते हैं l
शायद यह आश्चर्य की बात नहीं है कि आध्यात्मिक बातचीत गिरावट पर है l परमेश्वर के बारे में बात करना खतरनाक हो सकता है l चाहे एक ध्रुवीकृत(polarized) राजनितिक माहौल के कारण, क्योंकि असहमति किसी सम्बन्ध में दरार पैदा कर सकती है, या क्योंकि एक आध्यात्मिक बातचीत से आपको अपने जीवन में बदलाव की आवश्यकता का अहसास हो सकता है – ये उच्च स्तर की बातचीत की तरह महसूस हो सकते हैं l
लेकिन परमेश्वर के लोगों को दिए गए निर्देशों में, इस्राएली, व्यवस्थाविवरण की पुस्तक में, परमेश्वर के बारे में बात करना रोजमर्रा की ज़िन्दगी का एक सामान्य, स्वभाविक हिस्सा हो सकता है l परमेश्वर के लोगों को उनके शब्दों को याद करना और उन्हें उन जगहों पर प्रदर्शित करना था जहाँ वे अक्सर देखे जाते थे l व्यवस्था में कहा गया है कि अपने बच्चों के साथ जीवन के लिए परमेश्वर के निर्देशों के बारे में बात करें “घर में बैठे मार्ग पर चलते, लेटते-उठते” (11:19) l
परमेश्वर हमें बातचीत करने के लिए बुलाता है l एक मौका ले लें, आत्मा पर भरोसा करें, और अपनी छोटी सी बात को और गहरा करने की कोशिश करें l परमेश्वर हमारे समुदायों को आशीष देगा क्योंकि हम उसके शब्दों के बारे में बात करते हैं और उनका अभ्यास करते हैं l
प्रेमोत्सव
एक डैनिश फिल्म बैबेट फीस्ट (Babette’s Feast) में, एक तटीय गाँव में एक फ्रांसीसी शरणार्थी दिखाई देता है l समाज के धार्मिक जीवन की अगुआई करनेवाली, दो वृद्ध बहनें, उसे अपने घर के भीतर ले जाती हैं और चौदह वर्ष के लिए बैबेट उनकी सेविका के रूप में काम करती है l जब बैबेट ढेर सारा पैसा कमा लेती हैं वह बारह लोगों की मंडली को अपने साथ असाधारण फ्रांसीसी भोजन और बहुत कुछ और खाने को आमंत्रित करती है l
एक भोजन खाने के बाद दूसरा भोजन खाना आरंभ करते के दौरान, अतिथि सुस्ताते हैं; कुछ लोग क्षमा पाते हैं, कुछ प्रेम को फिर से जागृत पाते हैं, और कुछ लोग उन आश्चर्यक्रमों को याद करने लगते हैं जो उन्होंने देखे थे और सच्चाइयाँ जो उन्होंने बचपन में सीखे थे l “याद करें कि हमें क्या सिखाया गया था?” वे कहते हैं l “छोटे बच्चे, एक दूसरे से प्यार करो l” जब भोजन समाप्त होता है, बैबेट बहनों को बताती है कि उसने भोजन पर अपना सब कुछ खर्च दिया l उसने सब कुछ दे दिया – जिसमें पेरिस में प्रसिद्द रसोइया के अपने पुराने जीवन में लौटने का कोई अवसर भी शामिल था – इसलिए कि भोजन खाने वाले उसके मित्र अपने हृदयों को खुला महसूस कर सकें l
यीशु धरती पर एक अजनबी और सेवक के रूप में आया, और उसने सब कुछ दे दिया ताकि हमारी आत्मिक भूख संतुष्ट हो जाए l युहन्ना रचित सुसमाचार में, वह अपने सुननेवालों को याद दिलाता है कि जब उनके पूर्वज मरुभूमि में भूखे भटक रहे थे, परमेश्वर ने बटेर और रोटी का प्रबंध किया (निर्गमन 16) l उस भोजन ने थोड़े समय के लिए संतुष्ट किया, परन्तु यीशु प्रतिज्ञा करता है कि जो उन्हें “जीवन की रोटी” के रूप में ग्रहण करते हैं “हमेशा तक जीवित रहेंगे” (युहन्ना 6:48, 51) l उसका बलिदान हमारी आत्मिक लालसा को संतुष्ट करता है l
सहज उपाए
पार्क के गाइड का अनुसरण करते हुए, मैंने कुछ नोट्स लिख लिए जब वह बहामा के अतिप्राचीन जंगल के वनस्पतियों के विषय बता रहा था l उसने हमें बताया कि किन पेड़ों से दूर रहना था l उसने कहा, “जहरली लकड़ी वाले पेड़ से काला रस निकलता है जिससे दर्द करनेवाली खुजली हो जाती है l परन्तु चिंता की कोई बात नहीं है! उसका इलाज उसी के निकट वाले पौधे में है l उसने बताया, “गोंध वाले धूप/धूना के पेड़ के लाल छाल को काटकर उसके रस को खुजली पर मल दीजिए l वह तुरंत ठीक होना शुरू हो जाएगा l”
आश्चर्य से मेरी पेंसिल गिरने से बची l मैंने उस जंगल में उद्धार की तस्वीर पाने की आशा नहीं की थी l परन्तु मैंने गोंध वाले धूप के पेड़ में यीशु को देखा l जहां भी पाप का जहर पाया जाता है वह सहज उपाए है l उस पेड़ के लाल छाल की तरह, यीशु का लहू चंगाई देता है l
नबी यशायाह समझ गया था कि मानवता को चंगाई की ज़रूरत थी l पाप की खुजली ने हमें प्रभावित की थी l यशायाह ने प्रतिज्ञा की कि हमारी चंगाई “उस दुखी पुरुष” की ओर से आने वाली थी जो हमारी दुखों को अपने ऊपर ले लेगा (यशायाह 53:3) l वह व्यक्ति यीशु था l हम बीमार थे, परन्तु मसीह हमारे बदले घायल होने को तैयार था l जब हम उस पर विश्वास करते हैं, हम पाप की बीमारी से चंगाई पाते हैं (पद.5) l जो चंगाई प्राप्त कर चुके हैं उनके समान जीना सीखने में पूरा जीवन लग सकता है अर्थात् अपने पापों को पहचानकर अपने नए मनुष्त्व के पक्ष में उनको अस्वीकार करना – परन्तु यीशु के कारण, हम कर सकते हैं l
सम्बन्ध रखने के लिए रचे गए
तनहा लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अनेक देशों में रेंट-ए-फैमिली(rent-a-family) उद्योग बढ़ रहा है l कुछ लोग इस सेवा का उपयोग दिखाने के लिए करते हैं, ताकि किसी सामाजिक अवसर पर वे सुखी परिवार वाले दिखाई दें l कुछ लोग बेपरवाह सम्बन्धियों के सामने झूठा स्वांग रचने के लिए अदाकारों को भाड़े पर बुलाते हैं, ताकि थोड़े समय के लिए ही सही, वे कौटुम्बिक संबंद का अनुभव कर सकें जिसकी वे इच्छा रखते हैं l
यह विचारधारा एक बुनियादी सच्चाई को प्रतिबिंबित करता है : मनुष्य सम्बन्ध रखने के लिए रचे गए हैं l उत्पत्ति में सृष्टि की कहानी में, परमेश्वर हर एक चीज़ को जो उसने बनाया था देखता है और देखता है कि वह “बहुत अच्छा है”(1:31) l परन्तु परमेश्वर आदम को देखकर कहता है, “आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं”(2:18) l मनुष्य को एक और मनुष्य की ज़रूरत थी l
बाइबल हमें केवल रिश्ता रखने की हमारी आवश्यकता के विषय ही नहीं बताती है l वह हमें यह भी बताती है कि कहाँ सम्बन्ध मिल सकता है : यीशु के अनुयायियों में l यीशु ने अपनी मृत्यु के समय, अपने मित्र युहन्ना से मसीह की माँ को अपनी माँ स्वीकारने को कहा l यीशु के जाने के बाद भी वे आपस में एक परिवार के रूप में रहने वाले थे (युहन्ना 19:26-27) l और पौलुस ने विश्वासियों को दूसरों से माता-पिता और भाई-बहन का सा बर्ताव करने का निर्देश दिया (1 तीमुथियुस 5:1-2) l भजनकार हमसे कहता है कि संसार में परमेश्वर के छुटकारे के काम का एक हिस्सा “अनाथों का घर [बसाना]” है (भजन 68:6), और परमेश्वर ने कलीसिया को यह काम करने के लिए एक सर्वोत्तम स्थान के रूप में अभिकल्पित किया है l
परमेश्वर का धन्यवाद हो, जिसने हमें सम्बन्ध रखने के लिए बनाया है और अपने लोगों को हमारा परिवार होने के लिए दिया है!
सीखाने में क्रियाशील
मेरा छह साल का बेटा, ओवेन, एक बोर्ड-गेम पाकर उत्तेजित हो गया l परन्तु आधे घंटे तक नियम पढ़ने के बाद, वह निराश हो गया l वह समझ नहीं पा रहा था खेल कैसे खेला जाता थे l खेल जाननेवाला उसके मित्र द्वारा समझाए जाने पर, आख़िरकार ओवेन अपने उपहार का आनंद लिया l
उनको खेलते हुए देखकर, मैंने स्मरण किया कि एक अनुभवी शिक्षक होने पर कुछ नया सीखना अधिक सरल होता है l हमारे सीखते समय, निर्देशों को पढ़ना सहायक होता है, परन्तु समझाने वाले एक मित्र के होने से एक बड़ा अंतर होता है l
प्रेरित पौलुस भी इसे समझता था l तीतुस को लिखते हुए कि किस प्रकार विश्वास में उसकी कलीसिया को उन्नति करने में वह सहायता कर सकता था, पौलुस ने अनुभवी विश्वासियों के महत्व पर बल दिया जो मसीही विशवास का नमूना बन सकते थे l अवश्य ही “दुरुस्त सिद्धांत” सिखाना महत्वपूर्ण था, परन्तु यह केवल बताने के विषय नहीं था – उसे व्यवहारिक रूप से जीना भी ज़रूरी था l पौलुस ने लिखा कि बूढ़े पुरुष और स्त्रियाँ संयमी, पवित्र, और प्रेमी हों (तीतुस 2:2-5) l उसने कहा, “सब बातों में अपने आप को भले कामों का नमूना बना” (पद.7) l
मैं ठोस शिक्षा के लिए धन्यवादित हूँ, परन्तु मैं उन अनेक लोगों के लिए भी धन्यवादित हूँ जो क्रियाशील शिक्षक रहे हैं l उन्होंने खुद के जीवन से मुझे दिखाया है कि मसीह का शिष्य कैसा होता है और मेरे लिए उस पथ पर चलना उन्होंने सरल बना दिया है l
प्रभु आनंद होता है
अभी हाल ही में मेरी नानी ने मुझे ढेर सारी पुरानी तस्वीरें भेजीं, और जब मैं उनको देख रही थी, एक ने मेरा ध्यान खींच लिया l उसमें, मैं दो वर्ष की हूँ, और मैं चूल्हे के पास बैठी हुयी हूँ l दूसरी ओर, मेरे पिता मेरी माँ के कंधे पर हाथ रखे हुए हैं l दोनों प्रेम और आनंद भाव से मुझे निहार रहे हैं l
मैंने इस तस्वीर को अपने कपड़े की आलमारी पर लगा दिया, जहाँ मैं इसे प्रतिदिन सुबह देखती हूँ l यह उनका मुझसे प्रेम करने की अच्छी ताकीद है l यद्यपि, सच्चाई यह है, कि अच्छे माता-पिता का प्रेम भी अधूरा है l मैंने इस तस्वीर को सुरक्षित किया क्योंकि यह मुझे याद दिलाता है कि यद्यपि मानव प्रेम कभी-कभी चूक जाता है, परमेश्वर का प्रेम कभी नहीं चूकता है – और वचन अनुसार, परमेश्वर मुझे उसी तरह निहार रहा है जैसे मेरे माता-पिता इस तस्वीर में मुझे निहार रहे हैं l
नबी सपन्याह इस प्रेम का वर्णन इस प्रकार करता है जो मुझे चकित करता है l वह वर्णन करता है कि परमेश्वर गाता हुआ अपने लोगों के लिए मगन होता है l परमेश्वर के लोग इस प्रेम को अर्जित नहीं किये थे l वे अवज्ञाकारी थे या परस्पर करुणा से व्यवहार नहीं किये थे l किन्तु सपन्याह ने प्रतिज्ञा दी कि अंत में, परमेश्वर का प्रेम उनकी हार से अधिक महत्वपूर्ण होगा l परमेश्वर उनके दंड को क्षमा करेगा (सपन्याह 3:15), और वह उनके लिए आनंदित होगा (पद.17) l वह अपने लोगों को अपनी बाहों में इकठ्ठा करेगा, उनको घर लौटा लाएगा, और उनको पुनर्स्थापित करेगा l
प्रति भोर विचार करने योग्य यही प्रेम है l
हमें एक दूसरे की ज़रूरत है
जब मैं अपने बच्चों के संग लम्बी पैदल यात्रा कर रही थी, हमें रौशनी दिखाई दी, पगडण्डी पर छोटे गुच्छों में उगते हुए लचीले हरे पौधे l संकेतचिन्ह के अनुसार, सामान्य तौर पर इस पौधे को डिअर मोस(एक प्रकार का शैवाल/घास) कहा जाता है, किन्तु वास्तव में वह शैवाल है ही नहीं l यह एक प्रकार की काई(lichen) है l…
सतर्क रहें!
मैं गर्म दक्षिणी शहरों में बड़ी हुयी, इसलिए जब मैं उत्तर में रहने लगी, मुझे लम्बे, बर्फीले महीनों के दौरान गाड़ी सुरक्षित चलाना सीखने में काफी समय लगा l मेरे पहले कठिन सर्दियों में, तीन बार बर्फ के टीले में फंस गयी! किन्तु कई वर्षों के अभ्यास के बाद, मैं सर्द स्थितियों में गाड़ी चलाने में आराम महसूस करने लगी l वास्तव में, मैं थोड़ा अधिक सहज महसूस करती थी l मैंने सावधान रहना छोड़ दिया l और ठीक उसी समय मैं बर्फ के गोले को मारते हुए सड़क के किनारे टेलीफोन पोल से टकरा गयी!
शुक्र है, किसी को चोट नहीं लगी, किन्तु उस दिन मैंने कुछ महत्वपूर्ण सीखा l मैंने जान लिया कि निश्चिन्त महसूस करना कितना खतरनाक हो सकता है l सचेत होने के स्थान पर, मैं “ऑटोपायलट (चेतनाशून्य)” हो गयी थी l
हमें अपने आत्मिक जीवन में भी उसी प्रकार की सतर्कता का अभ्यास करना होगा l पतरस विश्वासियों को चेतावनी देता है कि जीवन में बेध्यानी से न चले, परन्तु “सचेत रहें” (1 पतरस 5:8) l शैतान क्रियाशीलता से हमें नाश करने का प्रयास कर रहा है, और इसलिए हमें भी क्रियाशील रहना है, परीक्षा का सामना करना है और अपने विश्वास में दृढ़ रहना है (पद.9) l हालाँकि यह ऐसा कुछ नहीं है जो हमें अपनी ताकत से करना है l परमेश्वर हमारे दुःख में हमारे साथ रहने की और, आखिरकार, हमें “सिद्ध और स्थिर और बलवंत”(पद.10) बनाने की प्रतिज्ञा करता है l उसकी सामर्थ्य से, हम बुराई का सामना करने और उसका अनुसरण करने में सचेत और सावधान रहना सीखते है l