Month: नवम्बर 2017

सर्वोत्तम उपहार क्या है?

मेरे पति ने हाल ही में महत्वपूर्ण जन्म-दिन मनाया, ऐसा जो शून्य में समाप्त होता है l इस विशेष मौके पर मैंने उन्हें सर्वोत्तम तरीके से सम्मानित करना चाहा l मैंने इसे सर्वोत्तम बनाने के लिए अपने बच्चों से अपने विचारों को बाँटा और उनसे सहायता मांगी l  मेरी इच्छा थी कि हमारा उत्सव एक नए दशक के महत्व को दर्शाए और कि वे हमारे परिवार के लिए कितने विशेष हैं l मेरी इच्छा थी कि हमारा उपहार उनके जीवन के इस महत्वपूर्ण अवसर के महत्व के अनुकूल हो l

राजा सुलैमान एक “बड़े जन्मदिन” के योग्य उपहार से कहीं महान उपहार परमेश्वर को देना चाहता था l वह चाहता था कि उसके द्वारा निर्मित मंदिर उसमें परमेश्वर की उपस्थिति के योग्य हो l कच्चे माल के लिए उसने सोर के राजा को सन्देश भेजा l अपने पत्र में, उसने कहा कि मंदिर विशाल होगा “क्योंकि हमारा परमेश्वर सब देवताओं में महान है” (2 इतिहास 2:5) l उसने माना कि परमेश्वर की विशालता और भलाई मनुष्य के हाथों से निर्मित किसी भी वस्तु से कहीं अधिक महान होने पर भी, कार्य प्रेम और उपासना के कारण ठहराया गया है l

हमारा परमेश्वर वास्तव में दूसरे देवताओं से महान है l वह हमारे जीवनों में अद्भुत कार्य करके, भेंट के भौतिक मूल्य के बावजूद, हमारे हृदयों से प्रेमी और बहुमूल्य भेंट लाने को उत्साहित करता है l सुलैमान जानता था कि उसका भेंट परमेश्वर की तुलना में नहीं हो सकता, फिर भी अपना आनंदपूर्वक भेंट उसके सामने लाया; और हम भी ला सकते हैं l

उत्तम पृथ्वी

अन्तरिक्ष यान अपोलो  8 के अन्तरिक्ष यात्री बिल एंडर्स 1968 में चंद्रमा की परिक्रमा करते हुए कर्मी-दल द्वारा चन्द्रमा की धरती के बड़े और पास के दृश्यों का वर्णन किया l उन्होंने उसे “अनिष्ट दर्शन की सीमा ... एक कठोर, और देखने का अनाकर्षक स्थान कहा l” उसके बाद कर्मियों ने बारी-बारी से देख रहे संसार के समक्ष उत्पत्ति 1:1-10 से पढ़ा l कमांडर फ्रैंक बोर्मन ने पद 10, “और परमेश्वर ने देखा की अच्छा है,” को पढ़ कर इस कथन से समाप्त किया, “परमेश्वर आप सभों को आशीष दे, इस अच्छी पृथ्वी पर आप सभों को आशीष दे l”

बाइबिल का आरंभिक अध्याय दो तथ्यों पर बल देता है :

सृष्टि परमेश्वर का कार्य है l  वाक्यांश “और परमेश्वर ने कहा ...,” लय के साथ पूरे अध्याय में दिखाई देता है l सम्पूर्ण भव्य संसार जिसमें हम निवास करते हैं उसके हाथ का रचनात्मक कार्य है l बाइबिल की बाकी बातें उत्पत्ति 1 की बातों की पुनः पुष्टि करते हैं l सम्पूर्ण इतिहास की पृष्ठभूमि में, परमेश्वर है l

सृष्टि अच्छी है l  इस अध्याय में एक और वाक्य लय के साथ गूंजती है l “और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है l” सृष्टि के उस पहले क्षण से बहुत कुछ बदल गया है l उत्पत्ति 1 संसार का ऐसा वर्णन करती है जैसा परमेश्वर इसके बिगड़ने से पूर्व चाहता था l आज हम प्रकृति में जो खूबसूरती देखते हैं वह परमेश्वर की सृष्टि की पूर्व अवस्था की एक धुंधली छाया है l

अपोलो 8 के अतरिक्ष यात्रियों ने पृथ्वी को आकाश में अकेले लटके हुए एक चमकीले रंगीन गेंद की तरह देखा l तुरंत ही वह उन्हें विस्मयकारी सुन्दर और कोमल दिखाई दिया l वह उत्पत्ति 1 में जैसा था वैसा ही दिखायी दिया l

शांति देनेवाला हाथ

नर्स की टिप्पणी में लिखा था, “मरीज़ झगड़ालू स्वभाव का है l”

उसके बाद उसने यह पहचाना कि जटिल ओपन-हार्ट शल्यचिकित्सा के बाद होश में आने पर मुझे एलर्जी हो रही थी l मेरे गले में एक नली डली थी और मैं परेशान था l मेरा शरीर तेजी से कांपने लगा, और मेरे बांहों पर लगे फीते खिंचने लगे, जो इसलिए लगे थे कि मैं अचानक सांस लेनेवाली नली न खींच दूँ l यह डरानेवाली और दुःख देनेवाली घटना थी l एक समय, नर्स की एक सहायिका ने मेरे बिस्तर की दाहिनी ओर झुककर मेरा हाथ पकड़ लिया l यह अचानक हुआ, और वह कोमल स्पर्श था l मुझे शांति मिली, जिससे मेरा शरीर का बुरी तरह कांपना कम हुआ l

दूसरे मरीजों के साथ अनुभव से, नर्स की सहायिका जानती थी कि शांति देनेवाले हाथ मेरी मदद कर सकते थे l यह परमेश्वर का एक दिखाई देनेवाला उदहारण है कि कैसे वह अपने बच्चों को उनके दुःख में शांति देता है l

शांति किसी देखभाल करनेवाले के हाथ में एक ताकतवर और याद रखने योग्य हथियार है, और पौलुस हमसे 2 कुरिन्थियों 1:3-4 में कहता है कि यह परमेश्वर के हथियार के बक्से का महत्वपूर्ण भाग है; किन्तु परमेश्वर शांति के प्रभाव को हमारे द्वारा बढ़ाता भी है जब वह चाहता है कि बीते समयों में जो शांति हमने प्राप्त की है हम उसी प्रकार की स्थितियों में पड़े हुए दूसरे लोगों को शांति देने के लिए करें (पद.4-7) l यह उसके महान प्रेम का केवल एक और चिन्ह है; और जो हम कभी-कभी सरल भाव के द्वारा दूसरों के साथ बाँट सकते हैं l

एक अच्छा अंत

बत्तियाँ बंद होने के बाद जैसे ही हमने अपोलो 13, देखने की तैयारी की, मेरी सहेली ने  सांस रोककर कहा, “शर्मनाक, वे सब मर गए l” मैं भय के साथ 1970 के अन्तरिक्ष यान के विषय फिल्म देख रही थी, और त्रासदी के घटित होने का इंतज़ार कर रही थी, और अन्त के निकट मुझे महसूस हुआ कि मुझे धोखा मिला हो l इस सत्य कहानी का अंत मैं नहीं जानती थी या मुझे याद नहीं था-कि यद्यपि सभी अन्तरिक्ष यात्री कठिनाई सहे थे, पर  वे जीवित घर पहुंचे थे l

मसीह में, हम कहानी का अंत जान सकते हैं-कि हम भी जीवित घर पहुंचेंगे l इससे मेरा मतलब है कि हम अपने स्वर्गिक पिता के साथ सर्वदा के लिए रहेंगे, जैसा हम प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में देखते हैं l प्रभु “[नया] आकाश और नयी पृथ्वी” बनाएगा जैसे कि वह सब कुछ नया कर देता है (21:1, 5) l इस नए नगर में, प्रभु परमेश्वर अपने लोगों को बिना डर और बिना अन्धकार के अपने साथ रहने के लिए आमंत्रित करेगा l हम कहानी का अंत जानकार आशा से भर जाते हैं l

इससे क्या अंतर होता है? यह अति दुःख के समय को बदल सकता है, जैसे जब लोग अपने प्रिय को खो देते हैं अथवा स्वयं की मृत्यु l यद्यपि हम मृत्यु के विचार से घबराते हैं, फिर भी अनंत की प्रतिज्ञा के आनंद को गले लगा सकते हैं l हम उस नगर का इंतज़ार कर रहे हैं जहाँ श्राप न होगा, जहाँ हम सर्वदा परमेश्वर के उजियाले में निवास करेंगे (22:5) l

बोलने से पहले विचार करें

चुअंग अपनी पत्नी से नाराज़ हो गया क्योंकि वह उस रेस्टोरेंट का मार्ग भूल गयी थी जिसमें वे भोजन करना चाहते थे l घर लौटने के लिए हवाई जहाज पकड़ने से पूर्व वे परिवार के रूप में अपनी छुट्टियों का समापन जापान में एक शानदार भोजन पार्टी के साथ करना चाहते थे l अब देर हो रही थी और भोजन करना मुश्किल लग रहा था l निराश होकर, चुअंग ने ख़राब आयोजन के लिए अपनी पत्नी की आलोचना की l

बाद में अपने शब्दों के लिए पछताया l वह बहुत अधिक कठोर हो गया था, और उसने यह भी महसूस किया कि वह खुद ही होटल का पता लगा सकता था और दूसरे सात दिनों के अच्छे आयोजन के लिए पत्नी को धन्यवाद देना भूल गया l

हममें से बहुत लोग चुअंग के समान हो सकते हैं l हम क्रोधित होकर अपने शब्दों को अनियंत्रित होने देते हैं l हमारे लिए भजनकार के साथ प्रार्थना करना कितना ज़रूरी है : “हे यहोवा, मेरे मुख पर पहरा बैठा, मेरे होठों के द्वार की रखवाली कर!” (भजन 141:3 ) l

किन्तु हम ऐसा कैसे करें? यहाँ एक लाभदायक सलाह है : बोलने से पहले विचार करें l क्या आपके शब्द उत्तम, लाभदायक, अनुग्रह से परिपूर्ण और दयालु हैं? (इफि.4:29-32) l

अपने मुँह पर पहरा बैठाने के लिए हमें क्रोध आने पर अपना मुँह बंद रखना होगा और कि हमें सही सुर में सही शब्द बोलने के लिए प्रभु से सहायता मांगनी होगी अथवा, शायद चुप रहना होगा l अपनी बोली नियंत्रित रखना जीवन भर का कार्य है l धन्यवाद हो, परमेश्वर हममें कार्य कर रहा है ताकि हम “उसकी आज्ञा [मानें] और उसकी इच्छा पर चल सकें” (फ़िलि. 2:13) l

दूसरे अवसर

“जबकि आप मुझे जानते ही नहीं हैं फिर आप इतने दयालु कैसे हो सकते हैं!”

गलत निर्णय लेने के कारण, लिन्डा एक दूसरे देश में जेल में पहुँच गयी l और छः साल के बाद रिहा होने पर वह नहीं जानती थी कि वह कहाँ जाएँ l उसने सोचा कि उसके जीवन का अंत हो गया है! जबकि उसके परिवार ने उसके लिए घर लौटने के टिकट का इंतजाम किया, और एक दयालु पति-पत्नी ने उसे आवास, भोजन और सहायता दी l लिन्डा उनकी दया से ऐसी प्रभावित हुयी कि वह प्रेमी और दूसरा अवसर देनेवाले परमेश्वर का सुसमाचार सुनने को इच्छित हुयी l

लिन्डा मुझे विधवा, नाओमी की याद दिलाती है, जिसने एक अनजान देश में अपना पति और दो बेटे खोने के बाद सोचने लगी कि उसका जीवन समाप्त हो गया है (रूत 1) l हालाँकि, प्रभु नाओमी को नहीं भूला था, और उसकी बहु के प्यार और बोआज़ नाम के एक धर्मी मनुष्य की दया द्वारा, नाओमी ने परमेश्वर के प्रेम को देखा और उसे एक दूसरा अवसर मिला (4:13-17) l

वही परमेश्वर हमारी भी चिंता करता है l दूसरों के प्रेम द्वारा हमें उसकी उपस्थिति याद दिलायी जा सकती है l हम अनजान लोगों की सहायता में परमेश्वर का हाथ देख सकते हैं l किन्तु सबसे ऊपर, परमेश्वर हमें एक नयी शुरुआत देना चाहता है l हमें भी, लिन्डा और नाओमी की तरह, अपने दैनिक जीवन में परमेश्वर का हाथ देखना चाहिए और पहचानना चाहिए कि वह हमें निरंतर अपनी दया दिखाता है l

हमारी प्रार्थना, परमेश्वर का समय

कभी-कभी परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर देने में समय लेता है, और हमें इसे समझने में कठिनाई होती है l

याजक जकरयाह की यही स्थिति थी, जब जिब्राइल स्वर्गदूत एक दिन यरूशलेम के मंदिर में एक वेदी के निकट उसके सामने प्रगट हुआ l जिब्राइल ने उससे कहा, “हे जकरयाह, भयभीत न हो, क्योंकि तेरी प्रार्थना सुन ली गयी है ; और तेरी पत्नी इलीशिबा से तेरे लिए एक पुत्र उत्पन्न होगा, और तू उसका नाम यूहन्ना रखना” (लूका 1:13, तिरछे अक्षर जोड़े गए हैं) l

किन्तु शायद जकरयाह ने वर्षों पहले परमेश्वर से पुत्र माँगा होगा, और उसने जिब्राइल के सन्देश से संघर्ष किया क्योंकि इलीशिबा के बच्चे जनने का समय समाप्त हो चुका था l फिर भी, परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुन ली l

परमेश्वर की करूणा सिद्ध है l वह हमारी प्रार्थना को केवल वर्षों तक ही नहीं किन्तु हमारे समय से परे पीढ़ियों तक याद रख सकता है l वह उन्हें कभी नहीं भूलता है और हमारे द्वारा उसके सामने अपने निवेदनों को लाने के बहुत समय बाद उत्तर दे सकता है l कभी-कभी उसका उत्तर “नहीं” हो सकता है और दूसरे समय में “ठहरो”-किन्तु उसका उत्तर प्रेम से पूर्ण होता है l परमेश्वर के मार्ग हम समझते नहीं हैं, किन्तु हम भरोसा कर सकते हैं कि वे अच्छे हैं l

जकरयाह ने यह सीख लिया l उसने एक पुत्र माँगा, किन्तु परमेश्वर ने उससे कहीं अधिक दिया l उसका पुत्र बड़ा होकर उद्धारकर्ता की सूचना देनेवाला नबी बनने वाला था l

जकरयाह का अनुभव एक ख़ास सच्चाई को प्रगट करनेवाला था जो हमारी प्रार्थना के समय हमें उत्साहित कर सकता है : परमेश्वर का समय कभी-कभी ही हमारे मन के अनुसार होता है, किन्तु इसके लिए इंतज़ार करना लाभदायक है l

आनंद और न्याय

एशिया के एक सम्मलेन में, कुछ ही घंटों की बातचीत की अवधि में दो बार मेरी आँखें खुल गयी l पहले, एक पासवान ने बताया कि रिहा से पूर्व हत्या का गलत आरोप सिद्ध होने के कारण उसे ग्यारह वर्ष जेल काटनी पड़ी l उसके बाद, कुछ परिवारों ने बताया कि किस तरह अपने देश में धार्मिक सताव से बचने के लिए उन्होंने अपनी सम्पत्ति खर्च कर दी, और जिन लोगों पर छुटकारे का भरोसा किया उन्होंने ही उनको धोखा दिया l अब वर्षों तक एक शरणार्थी शिविर में रहने के बाद, उनका सोचना है कि शायद ही कभी उनके पास घर होगा l

दोनों ही घटनाओं में, अत्याचार के साथ न्याय नहीं था, जो हमारे संसार के टूटेपन का एक प्रमाण है l किन्तु इस न्याय का खालीपन स्थायी स्थिति नहीं है l

भजन 67 परमेश्वर के लोगों से इस दुःख देनेवाले संसार का परिचय परमेश्वर से कराने  के लिए कहा गया है l केवल परमेश्वर के प्रेम के कारण ही नहीं किन्तु उसके न्याय के कारण भी उसका परिणाम आनंद होगा l भजनकार कहता है, “राज्य राज्य के लोग आनंद करें, और जयजयकार करें, क्योंकि तू देश देश के लोगों का न्याय धर्म से करेगा” (पद.4) l

यद्यपि बाइबिल के लेखकों ने समझा कि “न्याय” (निष्पक्षता और न्याय) परमेश्वर के प्रेम का भाग है, उन्होंने जाना कि भविष्य में ही यह पूरी तौर से समझा जाएगा l उस समय तक, हम अपने अन्यायी संसार में, दूसरों को परमेश्वर के पवित्र न्याय के विषय बताते रहें l उसका आना “न्याय [का] नदी के समान, और धर्म [का] महानद के समान होगा” (आमोस 5:24) l

वह जानी मानी मुस्कराहट

हम दोनों पति पत्नी को पेरिस में लवरे(Louvre) अजायब घर देखने का अवसर मिला l मैंने अपनी ग्यारह वर्षीय पौत्री, एडी को फ़ोन कर उससे डा विन्ची की प्रसिद्ध चित्रकारी मोना लीसा  की बात बतायी l एडी ने पूछा, “क्या वह मुस्करा रही है?”

क्या इस चित्र के विषय यह बड़ा प्रश्न नहीं है? लियोनार्डो डा विन्ची के द्वारा बनाए गए इस चित्र के 600 वर्षों बाद भी हम नहीं जानते कि यह स्त्री मुस्करा रही थी या नहीं l इस चित्र की ख़ूबसूरती द्वारा मंत्रमुग्ध होने के बाद भी, हम मोना लीसा के आचरण को नहीं जानते हैं l

“मुस्कराहट” उस चित्रकारी की जिज्ञासा का हिस्सा है l किन्तु फिर भी यह कितना महत्वपूर्ण है? क्या मुस्कराहट कुछ है जिसके विषय बाइबिल बताती है? वास्तव में, यह शब्द वचन में पाँच बार से कम आया है, और ऐसा कुछ नहीं जिसे हमसे करने को कहा गया है l हालाँकि, बाइबिल हमसे मुस्कराने वाला आचरण रखने को कहती है-अर्थात आनंद  l हम लगभग 250 बार आनंद के विषय पढ़ते हैं : “मेरा हृदय प्रफुल्लित है,” दाऊद प्रभु के विषय विचार करते हुए कहता है (भजन 28:7) l हमें “यहोवा के कारण जयजयकार करना है” (भजन 33:1); परमेश्वर के नियम “मेरे हृदय के हर्ष का कारण हैं” (119:111); और “हम आनंदित हैं” क्योंकि “यहोवा ने हमारे साथ बड़े बड़े काम किए हैं” (126:3) l

स्पष्ट रूप से, परमेश्वर हमारे लिए सब कुछ करके आनंद देता है जो हमारे चेहरे पर मुस्कराहट लाती है l