काफ़ी नहीं है?
कलीसिया से लौटते हुए सफ़र में, मेरी बेटी गोल्डफिश क्रैकर खा रही थी। और मेरे अन्य बच्चे उसे बाँट कर खाने के लिए बार-बार कह रहे थे। बात बदलने के लिए, मैंने पूछा, “तुमने आज क्लास में क्या किया”? उसने कहा कि उन्होंने रोटी और मछली की एक टोकरी बनाई थी क्योंकि एक लड़के ने यीशु को पांच रोटियां और दो मछली दीं थी जिसका प्रयोग यीशु ने 5,000 लोगों को खिलाने के लिए किया था (यूहन्ना 6:1–13)।
अपने लंच को दूसरों के साथ बाँटना उस लड़के के उदारता थी। क्या तुम्हें भी अपनी मछली को बाँट कर नहीं खाना चाहिए? मैंने पूछा। उसने कहा “नहीं माँ। हर किसी के लिए काफ़ी नहीं है!"
जो दिख रहा हो बाँटना कठिन होता है। शायद हम गिनते और तर्क करते हैं कि हर किसी के लिए काफ़ी नहीं होगा। और सोचते है कि अगर मैं दे दूं, तो मेरे पास नहीं होगा।
पौलुस कहते हैं कि जो कुछ हमारे पास है वह परमेश्वर से आता है, जो हमें फलवन्त करना चाहते हैं “हर बात में जिससे [हम] उदार बनें” (2 कुरिन्थियों 9:10–11)। स्वर्ग का गणित आभाव का नहीं वरन बहुतायत का है। जब हम दूसरों के प्रति उदार होते हैं तब परमेश्वर हमारा ध्यान रखने का वादा करते हैं।
विश्वासयोगी बने रहने का साहस
भय हडासा का निरंतर साथी है। हडासा, फ़्रांसिन रिवर्स की पुस्तक, अ वॉइस इन दी विंड की नायिका है जो रोमी परिवार में दासी है और मसीह को मानने के कारण सताव से डरती है क्योंकि मसीहियों को तुच्छ समझा जाता, सूली पर चढ़ाया जाता या शेरों के अखाड़े में फेंक दिया जाता था। अपनी परीक्षा में सत्य का समाना करने का क्या उसमें साहस होगा?
उसकी स्वामिनी और रोमी अधिकारी के विरोध पर उसके दो विकल्प होते हैं: मसीह में अपने विश्वास त्याग दे या उसे अखाड़े में ले जाया जाए। पर जब वह यीशु के मसीह होने की घोषणा करती है, उसका डर दूर हो जाता है और मृत्यु सामने होने पर भी निडर हो जाती है।
बाइबिल बताती है कि कभी-कभी सही करने पर हम दुःख उठाएँगे-चाहे सुसमाचार को बांटना या ईश्वरीय जीवन जीना हो। हमें भयभीत ना होने (1 पतरस 3:14), वरन अपने मन में “मसीह को प्रभु जान कर पवित्र समझने” के लिए कहा गया है (15)। हडासा का मुख्य युद्ध उसके अपने मन में था। और अंततः जब उसने यीशु को चुना तो विश्वासयोगी बने रहने का उसे साहस मिल गया।
जब हम मसीह को आदर देंगे, तब वह निडर होने विरोधों के बीच में भय पर विजय पाने में हमारी मदद करेंगे।
सामर्थ की ओर भागना
पैरी फोर!” जब मैंने तलवारबाजी सीखना शुरू किया तो मेरे कोच वार के प्रतिकूल बचाव की स्थिति (“पैरी”) ऊंची आवाज़ में बताते थे। जब वह अपना हथियार बढ़ाते तो मुझे सुनकर तुरंत प्रतिक्रिया देनी होती थी।
इस प्रकार सक्रिय होकर सुनना, यौन प्रलोभन में तत्काल आज्ञापालन की बात याद दिलाता है,। 1कुरिन्थियों 6:18 में पौलुस लिखते हैं, “ व्यभिचार से बचे रहो”। चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में हमें स्थिर रहना होता है (गलातियों 5:1; इफिसियों 6:11), परन्तु इस स्थान पर बाइबिल व्यावहारिक रूप से हमारे सर्वश्रेष्ठ बचाव का सकेंत देती है। "भाग जाओ!"
संकट में पड़ने से पहले सही कदम उठाना बचाव है। छोटे-छोटे समझौते विनाशकारी हार ला सकते हैं। अनैतिक विचार, इंटरनेट पर गलत चित्र देखना और छेड़ खानी भरी मित्रता-यह ऐसे कदम है जो हमें विनाश के मार्ग पर ले जाते हैं और परमेश्वर और हमारे बीच में दूरी लाते हैं।
प्रलोभन में परमेश्वर भागने का मार्ग भी प्रदान करते हैं। क्रूस पर यीशु की मृत्यु के माध्यम से वह हमें आशा क्षमा और एक नया आरम्भ प्रदान करते हैं-चाहे हम जहां भी रहे हों और हमने जो भी किया हो। जब हम अपनी कमजोरियों में यीशु की ओर भागते हैं, वह हमें मुक्त कर देते हैं मुक्त कर देते हैं जिससे जीवन उनके सामर्थ में जी सकें।
सबसे प्रेम रखना
हमारी कलीसिया सिंगापुर के द्वीप में स्थित एक खुले मैदान में लगती है। जहाँ मेरे देश में कार्यरत कुछ विदेशियों ने , हर रविवार पिकनिक के लिए एकत्रित होना आरम्भ कर दिया।
इस बात से कलीसिया के सदस्यों में भिन्न प्रतिक्रियाएं उत्पन्न हो गईं। कुछ लोग उनके द्वारा पीछे छोड़े जाने वाले गंदगी की बात पर कुडकुडा रहे थे। अन्य इसे परदेसियों को आतिथ्य प्रदान करने का एक दिव्य अवसर मान रहे थे-बिना कलीसिया के मैदान को छोड़े।
नई भूमि में बसने पर दूसरों के साथ ताल-मेल बैठाने में इस्राएलियों को भी समस्याएं आई होंगी। परमेश्वर ने उन्हें विदेशियों के साथ वैसा ही व्यवहार करने की स्पष्ट आज्ञा दी जैसा वे अपने लोगों के साथ करते थे। और वैसा ही प्रेम करने की आज्ञा दी जैसा वे स्वयं से करते थे (लैव्यवस्था 19:34)। उनकी कई व्यवस्थाओं में विदेशियों का विशेष उल्लेख था। उनके साथ दुर्व्यवहार या उनका दमन नहीं किया जाना चाहिए, उनसे प्रेम करना और उनकी मदद करना (निर्गमन 23:9; व्यवस्थाविवरण 10:19)। सदियों बाद, यीशु हमें ऐसा ही करने का आदेश देंगे: अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करो। (मरकुस 12:31)
हमें याद रखन चाहिए कि हम लोग भी इस पृथ्वी पर प्रवासी हैं। तो भी हमसे परमेश्वर के लोगों के रूप में प्रेम और व्यवहार किया गया है।
जहाँ वह अगुवाई करें उसका अनुसरण करना
बचपन में रविवार की संध्या में होने वाली कलीसिया की सभा बहुत रोमांचक होती थी। इसमें प्रायः परिवारों, मित्रों और घर और व्यवसाए आदि को छोड़कर परमेश्वर की सेवा करने वाले मिशनरी आकर प्रेरणादायक सन्देश देते थे।
एलीशा ने भी परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए बहुत कुछ छोड़ा था। जब एल्लियाह नबी की उनसे भेंट हुई तब वह खेत में हल जोत रहे थे, उन्होंने अपने चौगे को एलीशा के कंधों पर डाल दिया (जो नबी के रूप में उनकी भूमिका का प्रतीक था) और उन्हें अपने पीछे हो लेने को कहा। माता और पिता को चूमकर विदा लेने के मात्र एक ही आवेदन के साथ एलीशा ने तुरंत अपने बैलों की बलि चढ़ाई और हल को जलाकर और अपने माता पिता से विदा लेकर उनके पीछे हो लिए।
हम में से अनेकों को अपने परिवारों और मित्रों को छोड़कर पूर्णकालिक रूप से परमेश्वर की सेवा की बुलाहट नहीं मिली है। तो भी परमेश्वर की इच्छा है कि हम सब विश्वासी के समान जैसे परमेश्वर ने [हमें] बुलाया है और जैसी भी स्थिति प्रभु ने [हमें] सौंपी है उसमें उनका अनुसरण करें।(1 कुरिन्थियों 7:17) परमेश्वर की सेवा रोमांच और चुनौतियों से भरा हो सकता है फिर चाहे हम कहीं भी हों-चाहे हम अपने घर भी ना छोड़ें।
अग्रिम टीम
हाल ही में, मेरी एक मित्र अपने वर्तमान गृहनगर से दूर एक अन्य नगर में शिफ्ट करने की तैयारी कर रही थी। समय बचाने के लिए उसने और उसके पति ने कामों को बाँट लिया। पति ने नए घर की व्यवस्थाओं के प्रबंध किए, जबकि उसने सामान पैक किया। बिना घर देखे शिफ्ट करने के लिए उसका तैयार हो जाना हैरानी की बात थी, मैंने उससे पूछा कि वह ऐसा कैसे कर लेती है, उसने कहा कि इतने वर्षों से साथ रहते, उसकी पसंद-नापसन्द और ज़रूरतों का इतना ध्यान रखे जाने के कारण वह अपने पति पर विश्वास करती थी।
ऊपरी कक्ष में, यीशु ने अपनी मृत्यु के विषय में चेलों को बताया। यीशु के सांसारिक जीवन की और उनके चेलों की भी, सबसे अंधकारपूर्ण घड़ी आने वालीं थी। उन्होंने उन्हें आश्वस्त किया कि वे स्वर्ग में उनके लिए एक स्थान तैयार करेंगे, चेलों के प्रश्न पूछने पर, उन्होंने उनके साथ बिताए समय और उन चमत्कारों की बातें कहीं जिन्हें उन्होंने यीशु को करते देखा था। यद्यपि उन्हें यीशु की मृत्यु का और ना रहने का दुःख होगा, उन्होंने उन्हें याद दिलाया कि जैसा उन्होंने कहा था वैसा करने के लिए वे उनपर विश्वास कर सकते हैं।
हमारे सबसे अंधकारपूर्ण घड़ियों में भी, हम उस पर भरोसा कर सकते हैं।
आशीषों का प्याला
कंप्यूटर पर काम करते हुए एक ईमेल ने मेरा ध्यान खींच लिया जिसकी सब्जेक्ट लाइन थी: “आप एक आशीष हैं”। उत्सुकतावश मैंने ईमेल खोला जिसमें मेरी मित्र ने लिखा था कि मैं तुम्हारे परिवार के लिए प्रार्थना कर रही हूँ। “मैं जब जब तुम्हें स्मरण करती हूं...” (फिल्लिपियों 1:3)। और फिर उसने परमेश्वर के प्यार को दूसरों के साथ बांटने के हमारे प्रयासों की सराहना लिखी थी। अपने किचन टेबल पर रखे आशीषों के प्याले में वह हर सप्ताह किसी परिवार का चित्र रख कर उसके लिए प्रार्थना करती है।
मेरी मित्र के शब्द, मेरे मन में वैसा आनन्द भर रहे थे जैसा फिल्लिपियों को प्रेरित पौलुस के पहली सदी के धन्यवाद नोट से मिला होगा। पौलुस ने अपने सहकर्मियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की आदत बना ली थी। उनके पत्र ऐसे ही वाक्यांश से आरंभ होते हैं: “मैं तुम सब के लिये यीशु मसीह के द्वारा अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं...” (रोमियो 1:8)।
पहली सदी में, पौलुस ने अपने सह-कार्यकर्ताओं को एक प्रार्थनापूर्ण धन्यवाद-नोट के साथ आशीषित किया, इक्कीसवीं शताब्दी में, मेरी मित्र ने एक आशीष के प्याले का उपयोग मेरे दिन में आनन्द लाने के लिए किया। हम कैसे उन लोगों का धन्यवाद कर सकते हैं जो हमारे साथ परमेश्वर के मिशन में सेवा करते हैं।
मुझ पर विश्वास करो
ग्रैजूएशन के बाद, कम वेतन की नौकरी के कारण कभी-कभी अगले भोजन के लिए भी पैसे पर्याप्त नहीं होते थे। अपनी आवश्यकताओं के लिए मैंने परमेश्वर पर विश्वास करना सीख लिया।
एलिय्याह के अनुभव के समान जिन्होंने अपनी आवश्यकताओं के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना सीख लिया था। इस्राएल में आने वाले सूखे की घोषणा करने के बाद परमेश्वर ने उन्हें करीत नामक नाले के निर्जन स्थान पर भेजा जहां उन्होंने उनके प्रतिदिन के भोजन के लिए कौवों का प्रयोग किया और नाले के पानी से उन्हें तरोताज़ा किया (1 राजा 17:1–4)।
सूखा शुरू हुआ और नाला पहले एक धारा में और फिर कुछ बूंदों में सिकुड़ गया। नाला सूख जाने पर परमेश्वर ने कहा: “चलकर सीदोन के सारपत नगर में जा ...” (9)। सारपत फीनीके में था, जिसके निवासी इस्राएलियों के शत्रु थे। क्या कोई एलिय्याह को आश्रय को देगा? और क्या बाँटने के लिए एक गरीब विधवा के पास भोजन होगा?
अधिकतर लोग चाहेंगे कि प्रतिदिन के बजाय परमेश्वर सब कुछ एकसाथ ही हमें दे दें। परंतु पिता कहते हैं, मुझ पर विश्वास रख। जैसे एलिय्याह के लिए उन्होंने कौवों और विधवा का उपयोग किया, वैसे ही उनके लिए कुछ भी करना असंभव नहीं है। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हम उनपर विश्वास कर सकते हैं।
कच्ची दरारें
हमारे समुदाय में शरणार्थियों की संख्या बढ़ने के परिणामस्वरूप क्षेत्रीय कलीसियाओं में वृद्धि हुई है। ऐसी वृद्धि चुनौतियां लेकर आती हैं। कलीसिया के सदस्यों को सीखना चाहिए कि नए लोगों का कैसे स्वागत करें, जिससे वे अलग संस्कृति, भाषा और आराधना की भिन्न शैली से समायोजित हो सकें। यदि हम अपने बीच के अंतर को एक स्वस्थ तरीके से नहीं संभालते तो यह गंभीर और कठोर हो कर मनमुटावों में बदल जाते हैं।
यरूशलेम में प्रारंभिक कलीसिया में एक टकराव उठ कर खड़ा हुआ जिसकी जड़ सांस्कृतिक मतभेद पर थी। खिलाने पिलाने की सेवा में यूनानी विज्ञान शास्त्रियों की विधवाओं की सुधि नहीं ली जा रही थी (प्रेरितों के काम 6:1)। प्रेरितों ने कहा, “अपने में से सात सुनाम पुरूषों को जो पवित्र आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण हों, चुन लो” (पद 3)। चुने गए सदस्य यूनानी थे (पद 5), उस समूह के सदस्य जिनकी सुधि नहीं ली जा रही थी। समस्या की समझ उन्हें बेहतर थी। प्रेरितों ने प्रार्थना करके उन पर हाथ रखे और कलीसिया फैलता गया (पद 6–7)।
विकास में चुनौतियों आती हैं, क्योंकि इससे परस्पर संपर्क बढ़ता है। परंतु जब हम पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन पर निर्भर करेंगे तो उनके रचनात्मक समाधान से ऐसी समस्याएं विकास के अवसरों में बदली जाएंगी।