Month: जून 2018

समय बताना

“पश्चिम के देश के लोगों के पास घड़ियाँ होती हैं l अफ्रीकियों के पास समय होता है l” ऑस गिनिस ने अपनी पुस्तक इम्पॉसिबल पिपल में  एक अफ़्रीकी कहावत का सन्दर्भ देते हुए यह कहा l यह मुझे उन समयों पर विचार करने को विवश किया जब मैंने किसी निवेदन का उत्तर, “मेरे पास समय नहीं है” से दिया था l मैंने विचार किया कि किस तरह अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य पीड़ादायक होता है, और कार्यक्रम और काम को पूरा करने का निर्धारित समय जो मेरे जीवन पर अधिकार रखता है l 

मूसा ने भजन 90 में प्रार्थना की, “हम को अपने दिन गिनने की समझ दे कि हम बुद्धिमान हो जाएं” (पद.12) l और पौलुस लिखता है, “इसलिए ध्यान से देखो, कि कैसी चाल चलते हो . . . अवसर को बहुमूल्य समझो, क्योंकि दिन बुरे हैं” (इफिसियों 5:15-16) l

मेरा अनुमान है कि पौलुस और मूसा इस बात में सहमत होंगे कि हमारे द्वारा समय का बुद्धिमत्ता से उपयोग केवल घड़ी देखना नहीं है l स्थिति हमें एक सख्त कार्यक्रम के पालन करने को विवश करेगी या हम अपने समय के बढ़ाए हुए भाग का उपहार किसी को देंगे l

इस संसार में हमारे पास मसीह के लिए अंतर लाने के लिए बहुत थोड़ा समय है और हमें उस अवसर को बढ़ाने की ज़रूरत है l इसका मतलब है कि मसीह जिन व्यक्तियों को हमारे जीवनों में आने देता है उन तक मसीह के धीरजवंत प्रेम को दिखाने के लिए हमें अपने घड़ियों और अपनी योजनाओं को थोड़े समय के लिए अलग रखना होगा l

जब हम अनंत मसीह की सामर्थ और अनुग्रह में जीवन बिताते हैं, हम अनंत के लिए अपने समय को प्रभावित करते हैं l

हर क्षण विशेष है

जब मेरी मुलाकात एडा से हुई, उस वक्त तक उसके मित्रों और परिजनों की मृत्यु हो चुकी थी और वह एक नर्सिंग होम में रहती थी l वृद्धावस्था का यह सबसे कठिन भाग है,” उसने कहा “जब आपके देखते-देखते सभी आपको छोड़ गए और आप जीवित हैं l” एक दिन मैंने एडा से पूछा कि किस तरह अभी भी उनकी रूचि जीवित थी और वह अपना समय कैसे बिताती थी l उसने बाइबल से पौलुस की एक पत्री के एक परिच्छेद का सन्दर्भ देकर कहा (फ़िलि. 1:21) : “क्योंकि मेरे लिए जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है l” उसके बाद वह बोली, “ जब तक मैं जीवित हूँ, मेरे पास करने के लिए काम है l अपने अच्छे दिनों में, मैं लोगों को यीशु के विषय बताती हूँ; और कठिन दिनों में, मैं प्रार्थना कर सकती हूँ l”

सार्थक रूप से देखें तो, पौलुस कैद से यह पत्री लिख रहा था l और उसने एक सच को पहचाना जो अनेक मसीही अपनी नश्वरता का सामना करते हुए महसूस करते हैं  : यद्यपि स्वर्ग का आकर्षण अत्यधिक है, इस पृथ्वी पर का हमारा समय परमेश्वर के लिए विशेष है l

पौलुस की तरह, ऐडा ने पहचाना कि हर सांस परमेश्वर की सेवा और उसकी महिमा करने हेतु एक अवसर है l इस प्रकार ऐडा दूसरों से प्रेम करने और उनको अपने उद्धारकर्ता के विषय बताने में अपना समय बिताती थी l

हमारे सबसे अन्धकारमय दिनों में भी, मसीही परमेश्वर की संगति में रहने के स्थायी आनंद की प्रतिज्ञा को थामे रह सकते हैं l और जब तक हम जीवित हैं, हम उसकी संगति का आनंद लेते हैं l वह हमारे हर क्षण को विशेष बनाता है l

बिगड़ा न्याय

मैं सड़क पर चलते हुए और हाथ में फ़ोन पकड़े हुए किसी पर भी दोष लगा देती हूँ l वे किस तरह उन कारों से बेखबर रह सकते हैं जो उनको टक्कर मार सकते हैं?  क्या वे अपनी सुरक्षा नहीं देखते हैं?  मैंने खुद से बोला है l किन्तु एक दिन, मैं एक गली का रास्ता पार करते समय, इतना अधिक टेक्स्ट मेसेज में डूबी हुई थी, कि मैं अपनी बाँयी ओर से आती हुई कार को देख न सकी l संयोग से मैं बच गयी, चालक ने मुझे देख लिया और तुरन्त गाड़ी रोक दी l किन्तु मैं शर्मिंदा हो गयी l मेरा स्वधर्मी होकर दूसरों में दोष ढूढ़ना मुझे ही परेशान करने लगा l मैंने दूसरों में दोष खोजा था, और अब मैं ही दोषी थी l

मेरा पाखंड वही सोच थी जिसे यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में संबोधित किया था : “हे कपटी, पहले अपनी आँख में से लट्ठा निकाल ले, तब तू अपने भाई कि आँख का तिनका भली भांति देखकर निकाल सकेगा”(मत्ती 7:5) l मेरी आँख में एक बड़ा “लट्ठा” – एक अंध बिंदु थी जिसमें से होकर मैंने अपने कमज़ोर न्याय से दूसरों का न्याय किया l

यीशु ने यह भी कहा, “जिस प्रकार तुम दोष लगते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा” (7:2) l उस दिन उस चालक का चिढ़ा हुए चेहरा याद करके, जिसने मेरे उसकी गाड़ी के सामने आने पर अचानक अपनी गाड़ी रोकनी पड़ी थी, मुझे भी ताकीद मिलती है कि लोग मुझे अपने फोन में मगन देखकर परेशान होते होंगे l

हममें से कोई पूर्ण नहीं है l किन्तु कभी-कभी मैं भूल जाती हूँ कि जल्दीबाजी में मुझे दूसरों पर दोष नहीं लगाना चाहिए l हम सभों को परमेश्वर का अनुग्रह चाहिए l

परेशानी के मध्य आशीष

मैं इस समस्या में फँस गयी हूँ, इसलिए मुझे इसमें से निकलना ही होगा, कभी-कभी मैं ऐसे सोचती हूँ l यद्यपि मैं परमेश्वर के अनुग्रह में विश्वास करती हूँ, फिर भी मैं ऐसा करने की ओर झुकती हूँ मानो उसकी सहायता केवल उसी समय उपलब्ध है जब मैं उसके योग्य होती हूँ l

परमेश्वर का याकूब के साथ पहली बार आमना-सामना एक खुबसूरत उदहारण है कि उपरोक्त बात कितनी गलत है l

इस प्रकार याकूब ने पिता की आशीष पाने के लिए वह सब कुछ किया जो वह कर सकता था l आख़िरकार, वह धोखा देकर सफल हो गया और अपने भाई की आशीष प्राप्त कर लिया (उत्पत्ति 27:19-29) l

उपरोक्त घटना का परिणाम एक विभाजित परिवार था, जब याकूब अपने क्रोधित भाई से भागा (पद. 41-43) l जब रात हुयी (पद.28:11), याकूब सदैव के लिए जीवन की एक आशीष से वंचित हो गया होता l

किन्तु आशीष एक निशानी छोड़ते हुए वहां पर थी, कि याकूब ने परमेश्वर से मुलाकात की थी l परमेश्वर ने उसे दिखा दिया था कि उसकी ज़रूरत जोखिम उठाकर आशीष पाना नहीं था; वह खुद ही  आशीष था l उसकी नियति का उद्देश्य भौतिक समृद्धि से कहीं महान था (पद.14) और परमेश्वर द्वारा सुरक्षित था जो उसे कभी नहीं छोड़ने वाला था (पद.15) l

यह एक ऐसा पाठ था जो याकूब अपनी पूरी ज़िन्दगी सीखने वाला था l

और हम भी सीखेंगे l चाहे हम जितनी बार खेद प्रगट करें या परमेश्वर हमसे दूर नज़र आए, वह उपस्थित है और हमें परेशानियों में से निकालकर अपनी आशीष देना चाहता है l

हमारा सुरक्षित स्थान

मेरी पहली नौकरी एक फास्टफूड रेस्टोरेंट में थी l शनिवार की शाम को, एक व्यक्ति मेरे लिए इंतज़ार करते हुए मुझसे पूछता था कि मैं काम से कब छुट्टी पाऊँगी l इससे मैं असहज महसूस करती थी l विलम्ब होने पर वह चिप्स आर्डर करता था, फिर कोई पेय, ताकि होटल का प्रबंधक उस से बाहर जाने को न कह दे l यद्यपि मेरा घर निकट ही था, फिर भी मैं कुछ पार्किंग स्थलों से और एक रेतीले मैदान से होकर निकलने से डरती थी l आख़िरकार, मध्यरात्रि में, मैंने ऑफिस के अन्दर जाकर फ़ोन किया l

और जिस व्यक्ति ने फोन का उत्तर दिया वह थे मेरे पिता, जिन्होंने बिना दोबारा सोचे अपने गरम बिस्तर से उठकर पांच मिनट के अंतराल में मुझे घर ले जाने आ गए l

उस रात मेरे पिता का आकर मेरी मदद करने की निश्चयता मुझे भजन 91 में वर्णित आश्वासन की याद दिलाता है l हमारे भ्रमित, भयभीत अथवा ज़रूरत में होने पर हमारे स्वर्गिक पिता हमेशा हमारे साथ रहते हैं l वे कहते हैं : “जब वह मुझ को पुकारेंगे, तब मैं उनकी सुनूँगा” (भजन 91:15) l वह केवल एक स्थान  नहीं है जहाँ हम सुरक्षा के लिए जाते हैं l वह हमारा आश्रय है (पद.1) l वह हमारा गढ़ है जिस पर हम भरोसा कर सकते हैं (पद.2) l

भय, खतरा, अथवा अनिश्चितता में, हम परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर भरोसा कर सकते हैं कि जब हम उसे पुकारेंगे, वह हमारी सुनकर हमारी परेशानियों में हमारे साथ रहेगा (पद.14-15) l परमेश्वर हमारा सुरक्षित स्थान है l

जैसे विज्ञापित किया गया

छुट्टियों में, हम दोनों पति-पत्नी ने जॉर्जिया के शाताहुची नदी में रबर के बने नौका से सैर करने का फैसला किया l सैर की तैयारी में सैंडल, ग्रीष्मकालीन कपड़े, और एक चौड़ी टोपी पहनने के बाद हमनें पाया कि विज्ञापन के विपरीत हमारे सैर में थोड़ी गति से नौकायन करना भी शामिल था l यह तो भला था कि हम झागदार पानी में एक अनुभवी जोड़े के साथ नौकायन कर सके l उन्होंने मेरे पति को चप्पु चलाने की मूल बातें सिखाई और गंतव्य तक सुरक्षित पहुँचाने का वादा किया l मैं अपने जीवन रक्षक जैकेट के लिए धन्यवाद देती हूँ l नदी के निचले भाग के दलदली तट पर पहुँचने तक मैं चिल्लाती रही और नौका के प्लास्टिक हैंडल को जोर से पकड़ी रही l मैं नौका से तट पर उतरकर अपने थैले से पानी निचोड़ती रही और मेरे पति ने मेरे गीले कपड़ों को निचोड़ने में सहायता की l हम दोनों खूब खुश हुए, यद्यपि हमारा सैर विज्ञापन के विपरीत था l

उस सैर के विज्ञापन के विपरीत, जिसमें सैर के विषय ख़ास जानकारी नहीं थी, यीशु ने स्पष्ट रूप से अपने शिष्यों को बता दिया था कि भविष्य में कठिन दिन आएँगे l उसने उनसे कह दिया था कि वे सताए जाएंगे और शहीद भी होंगे और कि वह मृत्यु सहकर जी उठेगा l उसने अपनी विश्वसनीयता की गारन्टी देकर उन्हें आश्वस्त भी किया था कि वह निर्विवाद विजय और अनंत आशा की ओर उनकी अगुवाई करेगा (यूहन्ना 16:16-33) l

काश यीशु का अनुकरण करते समय जीवन सरल होता, किन्तु उसने स्पष्ट कर दिया था कि उसके शिष्य समस्याओं का सामना करेंगे l किन्तु उसने उनके साथ रहने का वादा किया है l परीक्षाएं हमारी सीमाओं को परिभाषित नहीं करेंगी, अथवा हमारे लिए परमेश्वर की योजना को नष्ट नहीं करेंगी, क्योंकि यीशु के पुनरुत्थान ने हमें अनंत विजय में पहुँचा दिया है l

“मनभावन!”

“मनभावन!”

एक सुबह मेरी बेटी तैयार होते समय उपरोक्त विस्मयबोधक शब्द कहे l मैं नहीं जानता वह क्या कहना चाहती थी l उसके बाद उसने अपने चचेरे भाई से मिली शर्ट को थपथपाया l उस शर्ट के सामने “मनभावन” शब्द अंकित था l मैंने उसे गले लगाया, और वह पवित्र प्रेम से मुस्करा दी l “तुम मनभावन हो!” मैंने दोहराया l उसकी मुस्कराहट और बड़ी हो गयी होती, और अगर ऐसा संभव होता, और वह उन शब्दों को दोहराते हुए कूदती हुयी चली गयी l

मैं एक सिद्ध पिता नहीं हूँ l किन्तु वह क्षण सिद्ध था l उस स्वाभाविक, खूबसूरत बातचीत में, मैंने अपनी बेटी के दीप्तिमान चेहरे में शर्तहीन प्रेम को परिभाषित देखा l वह ख़ुशी की छवि थी l उसे मालूम था कि उसके शर्ट पर अंकित शब्द उसके विषय उसके पिता की भावना से पूरी तरह मेल खा रहा था l

हममें से कितनों को गहराई से मालूम है कि हमारे स्वर्गिक पिता हमसे असीमित प्रेम करते हैं? कभी-कभी हम सच्चाई से संघर्ष करते हैं l इस्राएली संघर्ष करते थे l उनकी सोच थी कि उनकी परीक्षा का अर्थ था कि अब परमेश्वर उनसे प्रेम नहीं करता है l किन्तु यिर्मयाह 31:3 में, नबी, अतीत में परमेश्वर द्वारा कही गयी बातें याद दिलाता है : “मैं तुझ से सदा प्रेम रखता आया हूँ l” हमें भी ऐसा शर्तहीन प्रेम चाहिए l फिर भी चोट, निराशाएँ, और गलतियां हमें मनभावन महसूस होने नहीं देती l किन्तु सिद्ध परमेश्वर अपनी बाहें फैलाकर हमें अपने प्रेम का अनुभव करने और उसमें विश्राम करने को आमंत्रित करता है l

आलोचक को शांत करना

मैं एक समूह के साथ मिलकर वार्षिक समुदायिक कार्यक्रम आयोजित करती हूँ l हम आयोजन की सफलता के लिए ग्यारह महीने योजना बनाते और तैयारी करते हैं l हम तिथि और स्थान का चुनाव करते हैं l हम टिकट की कीमत निर्धारित करते हैं l हम भोजन बिक्रेता से लेकर ध्वनि टेक्नीशियन तक, सभी बातों का चुनाव करते हैं l आयोजन के निकट आने पर, हम लोगों के प्रश्नों का उत्तर देते हैं और उनको जानकारी भी देते हैं l बाद में हम उनसे भी प्रतिउत्तर लेते हैं l हमारी टीम को उपस्थित लोगों से उत्साहमयी प्रसन्नता और क्षेत्र से शिकायतें भी सुनने को मिलती हैं l नकारात्मक प्रतिउत्तर निराशाजनक हो सकती हैं और कभी-कभी हमारे सामने पराजित होने की परीक्षा भी आती है l  

यरूशलेम की दीवार की मरम्मत के समय नहेम्याह और उसकी टीम की आलोचना भी हुई l  उन्होंने नहेम्याह और उसके साथ कार्यरत टीम का यह कहकर ठठ्ठा उड़ाया, “जो कुछ वे बना रहे हैं, यदि कोई गीदड़ भी उस पर चढ़े, तो वह उनकी बनायी हुई पत्थर की शहरपनाह को तोड़ देगा” (नहेम्याह 4:3) l आलोचकों के प्रति उसका उत्तर मेरी भी मदद करता है : निरुत्साहित होने अथवा उनकी आलोचनाओं का खण्डन करने की जगह, उसने परमेश्वर से सहायता मांगी l उसने सीधे तौर पर प्रतिउत्तर देने की अपेक्षा, परमेश्वर से उसके लोगों की दशा समझने और जानने और उनकी रक्षा करने को कहा (पद.4) l उन चिंताओं को परमेश्वर को सौंपने के बाद, वह और उसके साथियों का “मन उस काम में नित लगा रहा” (पद.6) और वे निरंतर दीवार की मरम्मत करते चले गए l

हमारे कार्य की आलोचना करनेवालों से हम विचलित न हों, यह हम नहेम्याह से सीख सकते है l जब हमारी आलोचना हो या हमारा मज़ाक उड़ाया जाए, पीड़ा या क्रोध के साथ अपने आलोचकों को उत्तर देने की अपेक्षा, हम परमेश्वर से प्रार्थनापूर्वक निराशा से हमारा बचाव करने को कहें ताकि हम पूरे मन से आगे बढ़ते रहें l

विनम्र प्रेम

बेंजामिन फ्रैंकलिन ने अपने युवावस्था में बारह सद्गुणों की सूची बनाए थे जिनमें वे अपने जीवन काल में उन्नत्ति करना चाहते थे l उन्होंने उस सूची को अपने मित्र को दिखाया, जिसने उन्हें उसमें “विनम्रता” जोड़ने को कहा l फ्रैंकलिन को यह विचार पसंद आ गया l उनके मित्र ने हर एक गुण में उसकी सहायता के लिए कुछ मार्गदर्शिका भी जोड़ दीं l विनम्रता के सम्बन्ध में फ्रैंकलिन के विचारों में, उसने उसका अनुकरण करने के लिए यीशु का उदहारण दिया l

यीशु हमें विनम्रता का सर्वश्रेष्ठ नमूना देता है l परमेश्वर का वचन हमें बताता है, “जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो; जिसने परमेश्वर के स्वरुप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा l वरन् अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरुप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया” (फ़िलि.2:5-5) l

यीशु ने सबसे महान विनम्रता प्रस्तुत की l पिता के साथ अनंतता से होने के बावजूद, उसने प्रेम में क्रूस के नीचे झुकने का चुनाव किया कि अपनी मृत्यु के द्वारा वह हर एक को उन्नत कर सके जो उसके प्रेम की उपस्थिति में उसे स्वीकार करता है l

हम दूसरों की सेवा करके अपने स्वर्गिक पिता की सेवा करने का प्रयास करते हैं और इस तरह यीशु की विनम्रता का अनुसरण करते हैं l यीशु की दया हमें दूसरों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अलग करके अलगाव की सुन्दरता का असाधारण  झलक लेने देता है l “सर्व प्रथम मैं” [अहम्] वाले संसार में विनम्र बनना सरल नहीं है l किन्तु हमारे उद्धारकर्ता के प्रेम में विश्राम करते समय, वह हमें उसका अनुसरण करने के लिए सब कुछ देगा l