मदद के लिए पुकार
2016 की लिफ्ट दुर्घटनाओं में पांच की मृत्यु और इक्यावन घायल हुए, न्यूयॉर्क शहर में लोगों की जगुरकता के लिए विज्ञापन निकले कि शांत और सुरक्षित कैसे रहें। दुर्घटना के दौरान खुद को बचाने की कोशिश करने वालों के साथ सबसे बुरा हुआ था। अधिकारियों के अनुसार ऐसे समय में बेहतर होगा, "फोन करें, शांत रहें, और प्रतीक्षा करें।"
खुद को बचाने की कोशिश करने की गलती पर पतरस ने उपदेश दियाI लूका, कुछ उल्लेखनीय घटनाओं का वर्णन करता है जिसमें मसीही विश्वासी अन्य भाषाओं में बोल रहे थे जिन्हें वे नहीं जानते थे (प्रेरितों के काम 2:1-12)। पतरस ने यहूदी भाई-बहनों को समझाया कि यह सब एक प्राचीन भविष्यवाणी (योएल 2:28-32) की पूर्ति थी-आत्मा का उंडेला जाना और उद्धार का दिन। उन लोगों में पवित्र आत्मा का वरदान साक्षात् दिख रहा था जिन्होंने पाप और उसके प्रभाव से छुटकारा पाने के लिए यीशु को पुकाराI तब पतरस ने उन्हें बताया कि उद्धार सभी के लिए उपलब्ध है (21) हमारा परमेश्वर तक पहुंचना संभव है। व्यवस्था के पालन से नहीं वरन यीशु पर भरोसा करने और उन्हें प्रभु और मसीहा मानने द्वारा।
हम खुद को पाप से नहीं बचा सकते। हमारे छुटकारे की एकमात्र आशा है कि हम यीशु को प्रभु और मसीहा मानकर उन पर भरोसा करें।
चट्टान पर बना घर
मेरे मित्र के घर की बैठक धीरे-धीरे ज़मीन में घंस रही थी-दीवारों पर दरारें थीं और अब खिड़की नहीं खुलती थी। उन्हें पता चला कि इस कमरे की नींव नहीं थी। इसे सुधारने के लिए महीनों कार्य चला क्योंकि बिल्डर को नई नींव डालनी पड़ी।
बाद में देखा तो दरारें नहीं थीं और खिड़की खुल रही थी। तब मुझे एक ठोस नींव के मायने समझ आए।
यह हमारे जीवन में भी सत्य है।
यीशु ने उनकी बातों को अनसुना करने की मूर्खता को समझाने के लिए बुद्धिमान और मूर्ख बिल्डर का दृष्टान्त सुनाया (लूका 6:46-49)। उनकी बातें सुनकर पालन करने वाले उस व्यक्ति के समान होते हैं जो एक मजबूत नींव पर घर बनाते हैं। बजाय उसके जो सुनकर उनकी आज्ञाओं की अवहेलना करते हैं। यीशु ने अपने श्रोताओं को आश्वासन दिया कि तूफान आने पर उनका घर खड़ा रहेगा। उनका विश्वास न डिगेगा।
इस बात में हमें शांति मिलती है कि यीशु की बात सुनने और मानने से वह हमारे जीवन की नींव मजबूत बनाते हैं। बाइबिल पढ़ने, प्रार्थना करने और अन्य मसीहियों से सीखने द्वारा हम उनके लिए अपने प्रेम को मजबूत कर सकते हैं। फिर जब तूफान आएगा-चाहे विश्वासघात, पीड़ा या निराशा-हमें भरोसा रहेगा कि हमारी नींव मजबूत है। हमारा उद्धारकर्ता वह सहायता प्रदान करेगा जिसकी हमें जरूरत होगी।
क्या तुम मुझे प्रेम करते हो?
युवावस्था में मैं मां का विद्रोह कर चुकी हूँ। मेरी किशोरावस्था से पहले मेरे पिता की मृत्यु हो गई इसलिए माँ को मेरी परवरिश का बोझ अकेले उठाना पड़ा था।
मुझे लगता था कि माँ नहीं चाहती कि मुझे मज़ा मिले-शायद उन्हें मुझसे प्यार नहीं था-क्योंकि वो हर बात के लिए मुझे मना कर देती थी। अब समझ आता है, मुझसे प्रेम करने के कारण वह उन बातों के लिए मना करती थी जो सही नहीं थी।
बाबुल में बंधुवाई के कुछ समय बाद इस्राएलियों ने परमेश्वर के प्रेम पर सवाल उठाया। परन्तु वास्तव में उनके निरंतर विद्रोह के कारण परमेश्वर ने उन्हें बंधुवाई में भेजा था। फिर, उनके पास परमेश्वर ने मलाकी को भेजा (मलाकी 1:2)। परमेश्वर ने कहा, "मैंने तुमसे प्रेम किया है"। इस्राएल ने संदेहपूर्वक पूछा कि परमेश्वर ने किस बात में उन से प्रेम किया है? मलाकी के माध्यम से परमेश्वर ने उन्हें याद दिलाया कि उन्होंने उस प्रेम को किस तरह दिखाया था: उन्हें एदोमियों के ऊपर चुनकर।
जीवन के मुश्किल मौसम से गुजरने पर हम परमेश्वर के प्रेम पर प्रश्न उठाने को प्रलोभित हो जाते हैं। याद रखें कि परमेश्वर ने हम पर अपना अचूक प्रेम किस प्रकार दर्शाया है। उनकी भलाई पर विचार करके हम देखते हैं कि वह वास्तव में एक प्रेमी पिता हैं।
भरोसा करना सीखना
किशोरावस्था में जब मां मुझे परमेश्वर पर विश्वास करने के लिए प्रोत्साहित करती तो मैं विरोध करता था। वो कहती थीं, "परमेश्वर पर भरोसा रखो, वह तुम्हे संभालेंगे”, "यह इतना सरल नहीं है, माँ!" मैं पलटकर कहताI "परमेश्वर उनकी सहायता करता है जो स्वयं अपनी सहायता करते हैं!"
ये शब्द, कि "परमेश्वर उनकी सहायता करता है जो स्वयं अपनी सहायता करते हैं" बाइबिल में नहीं हैं इसके बजाए, परमेश्वर का वचन हमें अपनी दैनिक जरूरतों के साथ उन पर निर्भर करना सिखाता है।I यीशु ने कहा, "आकाश के पक्षियों को देखो!...?" (मत्ती 6:26-27)।
हर ऐसी चीज़ जिसका हम आनंद लेते हैं, यहां तक कि जीविका कमाने का सामर्थ जिससे हम“अपनी सहायता" करते हैं – एक ऐसे स्वर्गीय पिता का उपहार हैं जो हमारी समझ से बढ़कर हमसे प्रेम करते हैं और हमें कीमती जानते हैं।
जीवन के अंत के निकट आने पर मानसिक रोग के कारण माँ की सोच-समझने की शक्ति और यादाश्त जाती रही, परन्तु परमेश्वर पर उनका विश्वास बना रहा। कुछ समय हमारे वह घर में रही, तब मैंने करीब से देखा कि परमेश्वर कैसे अप्रत्याशित तरीकों से उनकी ज़रूरतों को पूरा करते थे। चिंता करने की बजाय, उन्होंने स्वयं को उसे सौंप दिया था जिसने उनकी देखभाल करने का वादा किया था। और उन्होंने दिखाया कि वह विश्वासयोग्य हैं।
निरन्तर सेवा करो
जब शिक्षा मनोवैज्ञानिक बेंजामिन ब्लूम ने शोध की कि कैसे युवाओं में प्रतिभा विकसित की जाए, तो 120 विशिष्ट अदाकारों-धावकों, कलाकारों और विद्वानों-के बचपन में देखकर पाया कि सबमें एक समानता थी: उन्होंने लंबे समय तक कठोर अभ्यास किया था।
उनके अनुसार जीवन के किसी भी क्षेत्र में बढ़ने के लिए अनुशासन आवश्यक है। परमेश्वर के साथ संबंध में भी नियमित रूप से उनके साथ समय बिताने के आत्मिक अनुशासन से हम विश्वास में बढ़ सकते हैं।
परमेश्वर के साथ अनुशासित संबंध होने का दानिय्येल एक अच्छा उदाहरण हैं। युवावस्था में ही वह चौकस और बुद्धिपूर्ण निर्णय लेने लगा (1:8)। वह नियमित रूप से “परमेश्वर को धन्यवाद" देते हुए प्रार्थना करता था (6:10)। परमेश्वर की खोज में नित रहने के परिणाम स्वरूप उसके आस-पास लोग उसके विश्वास को पहचान लेते थे। वास्तव में, राजा ने दानिय्येल को "जीवित परमेश्वर का दास" और "निरन्तर" परमेश्वर की सेवा करने वाला व्यक्ति कहा ((पद 16, 20)।
हमें भी परमेश्वर की आवश्यकता है। परमेश्वर हमारे भीतर कार्य करते हैं जिससे हमारे भीतर उनके साथ समय बिताने का प्रभाव उत्पन हो! (फिलिप्पियों 2:13)। आइए हम प्रतिदिन इस विश्वास से परमेश्वर के सामने आयें, कि उसके साथ बिताए समय के परिणाम स्वरूप हमें अधिक उमड़ता प्रेम मिलेगा और मुक्तिदाता को जानने और समझने में हम बड़ेंगे (1:9-11)।
समय में दब जाना
सुलह पर वार्ता के दौरान, किसी बुद्धिमान ने कहा, "लोगों को समय में मत रोको" उसने कहा कि लोगों की गलतियां याद रखने की प्रवृति उनसे सुधरने का अवसर छीन लेती है।
कई बार परमेश्वर पतरस को समय में रोक सकते थे। परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया।I पतरस, यीशु को “सुधारने” की कोशिश करने वाला-एक आवेगी शिष्य-जिसने प्रभु की डांट भी खायी (मत्ती 16:21-23)। उसने पहले मसीह का इंकार किया (यूहन्ना 18:15-27) फिर अपनी गलती सुधार ली (21:15-19)। उसके कारण कलीसिया में जातीय मतभेद भी खड़ा हुआ था।
पतरस (कैफ़ा) उन अन्यजातियों से अलग हो गया था (गलातियों 2:11-12) जिनके साथ पहले मेलजोल रखता था, उसने कुछ यहूदियों के यह कहने पर कि विश्वासियों का खतना आवश्यक था, खतनारहित अन्यजातियों से दूरी बना ली। यह मूसा की व्यवस्था में लौटने की खतरे की घंटी थी। पौलुस ने पतरस के व्यवहार को "पाखंड" बताकर (पद 13) निर्भीकता से उसका विरोध किया जिससे इस मुद्दे का समाधान हो पाया। जिस एकता की इच्छा परमेश्वर हमसे रखते हैं उसमें पतरस उनकी सेवा में फिर लग गया।
अपने बुरे समय में रुकने की किसी को आवश्यकता नहीं। परमेश्वर के अनुग्रह में हम एक-दूसरे को अपना सकते हैं, सीख सकते हैं, और आवश्यकता पड़ने पर विरोध कर सकते हैं, और मिलकर बढ़ सकते हैं।
उदार दानी
हमारी कलीसिया में परमेश्वर के कार्यों की समीक्षा के बाद, अगुओं ने समुदाय की बेहतर सेवा के लिए एक जिम निर्माण का प्रस्ताव रखा। अगुओं ने निर्माण राशी पहले देने की प्रतिज्ञा की। मेरे पति और मैं इस प्रोजेक्ट के लिए प्रार्थना करने लगे। परमेश्वर निरंतर हमारी ज़रूरतों को पूरा करते आए हैं इस पर विचार कर हमने प्रत्येक माह भेंट देने का निर्णय किया। कलीसिया के भेंट देने द्वारा पूरी इमारत का भुगतान चुकता हो गया।
जिम का उपयोग सामुदायिक कार्यक्रमों के लिए होते देख मैं परमेश्वर का आभार मानती हूं। मुझे एक और उदार दानी-राजा दाऊद का स्मरण आता है।mयद्यपि परमेश्वर ने उसे अपना मंदिर बनाने के लिए नहीं चुना था, तौभी दाऊद ने अपने सभी संसाधन मंदिर निर्माण के कार्य मे लगा दिए (1 इतिहास 29:1-5) I अगुओं और अन्य लोगों ने भी उदारता पूर्वक दिया (6-9)। राजा ने स्वीकार किया कि उन्हें देने वाला पहले परमेश्वर ही था-सृष्टिकर्ता, पालनहार, और हर वस्तु का स्वामी (पद 10-16)।
परमेश्वर सब वस्तुओं के स्वामी हैं, यह जानकर हम दूसरों के लाभ के लिए आभार और उदारता से दान दे सकते हैं। और हम परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं कि वह हमारी आवश्यकता को पूरा-और हमारी मदद हेतु दूसरों का उदारता पूर्वक प्रयोग भी कर सकते हैं।
हम यीशु से भेंट करना चाहते हैं
मंच से गाड़ने की प्रार्थना करते हुए मैंने पीतल की पट्टिका पर यूहन्ना 12:21 लिखा देखा: "श्रीमान् हम यीशु...। मैंने सोचा कि जिस स्त्री के जीवन का समारोह हम आंसुओं और मुस्कुराहटों के साथ मना रहे थे उसमें हमने यीशु को कैसे देखा था? यद्यपि उसका जीवन चुनौतियों और निराशाओं से भरा था, उसने मसीही विश्वास कभी नहीं छोड़ा। उसमें परमेश्वर की आत्मा होने के कारण, हम उसमें यीशु को देख सकते थे।
यूहन्ना में यीशु के सवारी पर यरूशलेम पहुचने के उपरांत (12:12-16) कुछ यूनानियों ने फिलिपुस से कहा, "श्रीमान, हम यीशु..." (21) उनकी उत्सुकता का कारण कदाचित यीशु के चंगाई और अश्चार्य्कर्म थे, परन्तु यहूदी न होने के कारण, उन्हें भीतर जाने की अनुमति नहीं थी। जब यीशु को बताया गया तो उन्होंने कहा कि उनके महिमावंत होने का समय आ गया है (23)। अर्थात बहुतों के पापों के लिए वह मरेंगे। न केवल यहूदियों, परन्तु अन्यजातियों (20 पद में "यूनानियों") के लिए अपने मिशन को पूरा करेंगे, और फिर वे भी यीशु से भेंट कर सकेंगे।
मरणोपरांत, यीशु ने पवित्र आत्मा भेजी कि वह चेलों के साथ रहे (14:16-17)। इसलिए यीशु से प्रेम और उनकी सेवा करने पर हम उन्हें अपने जीवन में सक्रिय देख सकते हैं। और अद्भुत रूप से अन्य लोग हममें यीशु को देख सकते हैं!
चिरस्थाई सुख
हम अक्सर सुनते हैं कि काम अपने तरीके से करो तो ही सुख मिलती है। इसमें कुछ सच्चाई नहीं है। ऐसी मानसिकता से केवल ख़ालीपन, चिंता और दिल दुखाता है।
खालीपन भरने के लिए भोग विलास में पड़े लोगों के विषय में कवि डब्लू एच ऑदेन लिखते हैं: "अँधेरे के डर से भटके लोग / जो न खुश न भले हैं।"
हमारे डर और दुख के उपाय में भजनकार गाता है, "मैं यहोवा के पास...। " (भजन संहिता 34:4)। सुख कार्य को परमेश्वर के तरीके में करने से मिलती है, इस तथ्य की पुष्टि हर दिन की जा सकती है। "जिन्होंने उसकी ओर...(पद 5);"I इसे आजमाने पर हम जानेंगे कि उनके कहने का यही अर्थ था कि "परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है!"(पद 8)।
हम कहते हैं, "देखना विश्वास है।" देखकर हम इस दुनिया के बारे में जानते हैं। प्रमाण दो और मैं विश्वास करूंगा। इसे परमेश्वर दूसरी तरह से कहते हैं, विश्वास करना देखना है "परखो और फिर तुम देखोगे।"
प्रभु के वचन पर विश्वास करो। वह करो जो परमेश्वर आप से करने को कह रहे हैं और आप देखेंगे कि वह सही करने का आपको अनुग्रह और उससे भी बढ़कर स्वयं को–जो सब भलाई का एकमात्र स्रोत हैं-दे देंगे और साथ ही चिरस्थाई सुख भी।