माह: फ़रवरी 2017

यीशु पर निर्भरता

कभी-कभी रात में अपनी तकिया पर सिर रखकर प्रार्थना करते वक्त मैं कल्पना करता हूँ जैसे मैं यीशु पर टिका हुआ हूँ l ऐसा करते समय मैं परमेश्वर के वचन में वर्णित प्रेरित यूहन्ना को स्मरण करता हूँ l यूहन्ना खुद के विषय लिखता है कैसे अंतिम भोज में वह यीशु के निकट था l “उसके चेलों में से एक जिससे यीशु प्रेम रखता था, यीशु ... की ओर झुका हुआ बैठा था” (यूहन्ना 13:23) l

यूहन्ना “[चेला] जिससे यीशु प्रेम रखता था” शब्दों का प्रयोग अपना नाम लिए बगैर अपने लिए करता है l वह प्रथम-शताब्दी इस्राएल का एक ख़ास भोज विन्यास दर्शाता  है, जब मेज आज से नीचे, लगभग घुटने तक हुआ करता था l बिना कुर्सियों के मेज के चारों ओर चटाई अथवा गद्दियों पर बैठना स्वाभाविक था l यूहन्ना प्रभु के करीब बैठे हुए प्रश्न पूछते समय “यीशु की छाती की ओर झुका हुआ बैठा था” (यूहन्ना 13:23) l

उस समय यूहन्ना की यीशु से निकटता आज हमारे जीवनों के लिए एक उदाहरण है l हम यीशु को स्पर्श नहीं कर सकते किन्तु अपनी कठिनतम परिस्थितियाँ उसे सौंप सकते हैं l उसने कहा, “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरी पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा” (मत्ती 11:28) l हमारे हर परिस्थिति में हमारे साथ विश्वासयोग्य रहनेवाला उद्धारकर्ता पाकर हम धन्य हैं! क्या आज आप उस पर “टिके हुए” हैं?

सहायक

जून 1962 में फ्लोरिडा के एक कैदखाने से, क्लेरेंस अर्ल गिडियन ने अपने एक अपराध के लिए जो उसने नहीं किया था अमरीकी सर्वोच्च न्यायलय से पुनःविचार करने का आग्रह किया और वह वकील भी करने में असमर्थ है l

एक वर्ष के भीतर, गिडियन वी. वेनराईट  के ऐतिहासिक केस में, सर्वोच्च न्यायलय ने निर्णय सुनाया कि अपने बल पर अपना बचाव करने में अयोग्य लोगों को सरकार द्वारा एक वकील दिया जाए l इसके बाद न्यायलय द्वारा नियुक्त वकील की मदद से, क्लेरेंस गिडियन के केस पर पुनः विचार किया गया और वह दोषमुक्त हुआ l

किन्तु यदि हम निर्दोष नहीं हैं तो? प्रेरित पौलुस के अनुसार, हम सब दोषी हैं l किन्तु स्वर्ग का न्यायलय हमारा और हमारी आत्मा के बचाव हेतु परमेश्वर की कीमत पर एक वकील देता है (1 यूहन्ना 2:2) l अपने पिता की ओर से, यीशु एक स्वतंत्रता देता है जिसे कैदी भी किसी प्रकार की बाहरी स्थिति के अनुभव से बेहतर बताते हैं l यह हृदय और मन की स्वतंत्रता है l

यीशु हमारे द्वारा या हमारे विरुद्ध किए गए अन्याय के लिए दुःख उठाने में हम सब का प्रतिनिधि हो सकता है l वह सर्वोच्च अधिकार से करुणा, क्षमा, और विश्राम के लिए हमारे प्रत्येक निवेदन का उत्तर देता है l

हमारा सहायक, यीशु, खोई हुई आशा, भय, अथवा पछतावा के कैद को अपनी उपस्थिति का स्थान बना सकता है l

अच्छा, बुरा, और बदसूरत

मेरी एक प्रिय सहेली ने मुझे एक सन्देश भेजा जिसमें लिखा था, “मैं बहुत आनंदित हूँ कि हम एक दूसरे को अच्छी, बुरी, और बदसूरत बातें बता सकते हैं!” हम वर्षों से मित्र रहे हैं, और हमने अपना आनंद और पराजय बांटना सीख लिया है l हम मानते हैं कि हम सम्पूर्ण नहीं हैं, इसलिए हम अपने संघर्ष बांटे हैं, किन्तु परस्पर सफलताओं में आनंदित होते हैं l

गोलियत पर दाऊद के विजय वाले अच्छे दिनों के आरम्भ से, दाऊद और योनातान भी घनिष्ठ मित्र थे (1 शमूएल 18:1-4) l उन्होंने योनातान के पिता के ईर्ष्या के बुरे दिनों में परस्पर भय बांटे (18:6-11; 20:1-2) l आख़िरकार, उन्होंने दाऊद की हत्या की शाऊल की योजना के बदसूरत दिनों में दुःख उठाया (20:42) l

अच्छे मित्र हमें बाहरी स्थितियों के बदलने पर त्यागते नहीं l वे अच्छे और बुरे दिनों में साथ रहते हैं l बदसूरत दिनों में परमेश्वर से दूर जाने की परीक्षा आने पर वह हमें परमेश्वर की ओर इशारा करते हैं l

सच्ची मित्रता परमेश्वर का उपहार है क्योंकि वह सिद्ध मित्र का उदाहरण है, जो अच्छे, बुरे, और बदसूरत दिनों में वफादार रहता है l जैसे प्रभु हमें याद दिलाता है, “मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी त्यागूँगा” (इब्रानियों 13:5) l

क्या यह आनंद देता है?

व्यवस्था एवं संगठन विषय पर एक युवा जापानी स्त्री की पुस्तक की लाखों प्रतियां संसार में बिक गयीं l मारी कोंडो का मुख्य सन्देश घरों और आलमारियों में अनावश्यक वस्तुएँ- जो वस्तुएं उनके लिए बोझ हैं-को हटाने में लोगों को मदद करना है l वह कहती हैं, “हर एक को ऊपर उठाकर पूछिये, “क्या यह आनंद देता है?” यदि उत्तर हाँ है, रख लीजिये l यदि नहीं, तो हटा दीजिये l

प्रेरित पौलुस फिलिप्पी के मसीहियों को मसीह के साथ सम्बन्ध में आनंद खोजने को कहा l “प्रभु में सदा आनंदित रहो; मैं फिर कहता हूँ, आनंदित रहो” (फ़िलि. 4:4) l चिंता ग्रस्त जीवन के बदले, उसने उनको हर बात के लिए प्रार्थना करने को कहा और तब परमेश्वर की शांति उनके हृदय एवं विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी (पद.6-7) l

हमारे दैनिक कार्यों एवं जिम्मेदारियों में, सब कुछ आनंदायक नहीं है l किन्तु हम पूछ सकते हैं, “यह किस तरह परमेश्वर और मेरे हृदय में आनंद उत्पन्न कर सकता है? काम करने के कारण में परिवर्तन उनके विषय हमारे अहसास को रूपांतरित कर सकता है l

इसलिए हे भाइयों, जो जो बातें सत्य हैं, ... आदरणीय हैं, ... उचित हैं, ...पवित्र हैं, ... सुहावनी हैं, ... मनभावनी हैं,  अर्थात् जो भी सद्गुण और प्रशंसा की बातें हैं उन पर ध्यान लगाया करो l (पद.8) l

पौलुस के अंतिम शब्द विचार के लिए भोजन और आनंद का नुसखा है l

आजमाया हुआ और पवित्र

एक साक्षात्कार में, गायिका और गीत लेखिका मेरेडिथ एंड्रूज ने सुसमाचार प्रचार, रचनात्मक कार्य, विवाह विषय, और मातृत्व के बीच संतुलन बनाने में खुद को अभिभूत पाया l अपनी कठिनाई के विषय सोचकर, वह बोली, “मैंने महसूस किया कि परमेश्वर मुझे दमित प्रक्रिया द्वारा संशोधन ऋतू से गुज़ार रहा है l  

अय्यूब अपनी जीविका, स्वास्थ्य, और परिवार खोकर अभिभूत हुआ l इससे भी बदतर, परमेश्वर का दैनिक उपासक होकर भी, उसने अहसास किया कि परमेश्वर सहायता हेतु उसके निवेदन नज़रन्दाज़ कर रहा है l परमेश्वर उसके जीवन के दृश्य में अनुपस्थित दिखाई दिया l अय्यूब ने दावा किया कि वह परमेश्वर को किसी भी दिशा में देख नहीं पा रहा है (अय्यूब 23:2-9) l

निराशा में, अय्यूब को क्षणिक स्पष्टता मिली l उसका विश्वास एक अँधेरे कमरे में मोमबत्ती की तरह टिमटिमाया l उसने कहा, “[परमेश्वर] जानता है कि मैं कैसी चाल चलता हूँ; और जब वह मुझे ता लेगा मैं सोने के समान निकलूँगा” (पद.10) l मसीही आजमाए और शुद्ध किये जाते हैं जब परमेश्वर हमारे आत्मनिर्भरता, अहंकार, और सांसारिक ज्ञान को हटाने के लिए कठिनाई का उपयोग करता है l यदि इस प्रक्रिया में परमेश्वर शांत दिखाई दे और मदद की पुकार न सुने, वह हमें हमारे विश्वास में सामर्थी बनने का एक अवसर दे रहा होगा l

दुःख और समस्याएँ दीप्तिमान, चट्टान सा मजबूत चरित्र देती हैं जो जीवन की कठिनाई में परमेश्वर पर भरोसे से आती है l

जहाँ आप हैं वहीं से आरम्भ करें

आज मैंने अपने खलिहान में एकलौता फूल देखा-एक छोटा बैगनी फूल “रेतीले स्थान में अपना मिठास बिखेरते हुए” कवि थॉमस ग्रे की खूबसूरत पंक्तियाँ हैं l निश्चित तौर पर इस ख़ास फूल को पहले किसी ने नहीं देखा था, और शायद आगे भी कभी नहीं देखेगा l यह ख़ूबसूरती ऐसी जगह क्यों? मैं विचारा l

प्रकृति बर्बाद नहीं होती l प्रतिदिन यह अपने सृष्टिकर्ता की सच्चाई, भलाई, और सुन्दरता दर्शाती है l प्रतिदिन प्रकृति परमेश्वर की महिमा को नए और निर्मल तरीके से प्रगट करती है l क्या मैं उसको उस खूबसूरती में देखता हूँ, अथवा उस पर सरसरी नज़र डालकर उसको नज़रन्दाज़ कर देता हूँ l

समस्त प्रकृति सृष्टिकर्ता की खूबसूरती फैलाती है l हमारा प्रतिउत्तर उपासना, प्रशंसा, और धन्यवाद हो सकता है-मक्के के फूल की चमक, सूर्योदय के प्रताप, और एक खास वृक्ष की बनावट के लिए l

सी.एस.ल्युईस गर्मी के एक दिन जंगल में टहलने का वर्णन करते हैं l उसने अभी-अभी अपने मित्र को परमेश्वर के प्रति धन्यवादी होना सिखाया था l उसके पैदल साथी ने निकट की एक छोटी नदी में जाकर झरने में अपना चेहरा और हाथ धोकर पुछा, “क्यों न इसी से आरंभ की जाए?” ल्युईस के अनुसार उसने उस क्षण एक महान सिद्धांत सिखा : “जहाँ आप हैं वहीं से आरम्भ करें l”

एक टपकती जलधारा, वृक्षों के मध्य बहती हवा, एक छोटी चिड़िया, एक छोटा फूल l  क्यों नहीं हम इनसे धन्यवाद आरंभ करें?

सभी परिस्थितियों में

हम अपने उपनगर में निरंतर बिजली कटौती के विषय शिकायत करते हैं l  सप्ताह में तीन बार चौबीस घंटों के लिए, हमारा पड़ोस अन्धकार में डूबा होता है l घरेलु उपकरण उपयोग नहीं कर पाने की स्थिति में यह असुविधा अत्यंत असहनीय है l

मेरी मसीही पड़ोसन अक्सर पूछती है, “क्या हम इसके लिए भी धन्यवाद दें?” वह 1 थिस्सलुनीकियों 5:18  दोहराती है : “हर बात में धन्यवाद करो; क्योंकि तुम्हारे लिए मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्छा है l” हम हमेशा कहते हैं, “बिल्कुल सच, हम हर बात में धन्यवाद देते हैं l” किन्तु जिस आधे मन से हम ऐसा कहते हैं, हर बार बिजली जाने पर हमारा  कुड़कुड़ाना इसका खण्डन करता है l

एक दिन, हालाँकि, हर बात में परमेश्वर को धन्यवाद देने  के हमारे विश्वास ने नया अर्थ हासिल किया l कार्य से घर लौटने पर मैंने अपने पड़ोसन को वास्तव में कांपते हुए कहते देखा, “यीशु आपका धन्यवाद कि बिजली बंद थी l मेरे घर के साथ हम सब नाश हो जाते !”

एक कचरा-वाहन के घर के सामने लगे बिजली खम्भे से टकराने से हाई-टेंशन तार अनेक घरों पर गिरे l बिजली रहने से, विनाश हो सकता था l

कठिन परिस्थितियाँ “धन्यवाद प्रभु” कहने में कठिनाई उत्पन्न करती हैं l हम परमेश्वर को धन्यवाद दें जो हर स्थिति को उस पर भरोसा करने का अवसर बनाता है–चाहे हम उसके  उद्देश्य को देखें या न देखें l

मैं आपको देखता हूँ

एक ऑनलाइन लेखक समूह में जहाँ हम परस्पर सहयोग और प्रोत्साहित करते हैं एक सहेली बोली, “मैं आपको देख सकती हूँ l तनाव और चिंता महसूस करते हुए, मैं उसके शब्दों से शांति और सुख महसूस करती हूँ l उसने मुझे “देखा”-मेरी आशाएँ, भय, संघर्ष, और सपने-और मुझसे प्रेम किया l

अपनी सहेली के सरल किन्तु सामर्थी प्रोत्साहन को सुनकर, मैंने अब्राहम के घर की दासी, हाजिर पर विचार किया l सारै और अब्राम के अनेक वर्षों तक वारिस की चाह में, सारै ने संस्कृति का अनुसरण करके अपने पति से हाजिर द्वारा संतान उत्पन्न करने को कहा l किन्तु हाजिरा गर्भवती होकर सारै को तिरस्कार की निगाहों से देखा, बदले में सारै के दुर्व्यवहार से हाजिरा दूर मरुभूमि की ओर भागी l

प्रभु ने हाजिरा को दुःख और भ्रम में देखकर उसे अनेक वंश देने की प्रतिज्ञा की l इस सामना के बाद, हाजिरा ने प्रभु को “एल रोई,” अर्थात् सर्वदर्शी ईश्वर पुकारा (उत्प. 16:13), क्योंकि उसे मालुम था कि वह अकेली और त्यागी हुई नहीं है l

हाजिरा की तरह हम भी देखे गए और प्रेम प्राप्त किये l मित्र अथवा परिवार द्वारा हम उपेक्षित अथवा अस्वीकृत किये जा सकते हैं, फिर भी हमारा पिता हमारे बाहरी चेहरे को नहीं, किन्तु हमारे समस्त भीतरी भावनाओं और भय को जानता है l वह हमें जीवन देनेवाले शब्द बोलता है l

अवसर क्या है?

चार-वर्षीय आशेर का मुस्कराता चेहरा उसके पसंदीदा टोपीवाली व्यायाम-कमीज़ से झाँका l मुलायम जबड़ों वाली घड़ियाल के सिर वाली  उसकी कमीज़ मानो उसके सिर को निगलने वाली थी! उसकी माँ निराश हुई l वह एक परिवार को प्रभावित करना चाहती थी जिनसे वह हाल में नहीं मिली थी l

“अरे, हौन,” वह बोली, “इस अवसर के लिए यह ठीक नहीं है l”

“बिल्कुल है !” आशेर ख़ुशी से बोला l

“हूँ ..., और वह कौन सा अवसर हो सकता है?” उसने पुछा l आशेर बोला, “तुम जानती हो l जीवन!” उसे कमीज़ पहनना होगा l

यह बच्चा सभोपदेशक 3:12 का सत्य जानता है – “मनुष्यों के लिए आनंद करने और जीवन भर भलाई करने के सिवाय, और कुछ भी अच्छा नहीं l” सभोपदेशक निराशा और अक्सर ग़लतफ़हमी उत्पन्न कर सकता है क्योंकि यह परमेश्वर की नहीं किन्तु मानवीय दृष्टिकोण है l लेखक, राजा सुलेमान, पूछता है, “काम करनेवाले को अपने परिश्रम से क्या लाभ होता है? (पद.9) l फिर भी आशा दिखती है l वह यह भी लिखता है : “और यह भी परमेश्वर का दान है कि मनुष्य खाए-पीए और अपने सब परिश्रम में सुखी रहे” (पद.13) l

हम ऐसे परमेश्वर के सेवक हैं जो आनंद हेतु हमें अच्छी वस्तुएं देता है l जो कुछ वह करता है “सदा स्थिर रहेगा” (पद. 14) l उसको पहचानकर और उसकी प्रेमी आज्ञाएँ मानने पर  वह हमारे जीवनों को उद्देश्यपूर्ण, अर्थपूर्ण, और आनंदित  बनाता है l