Month: मार्च 2018

मिलजुल कर काम करना

हर साल लाखों लोग बाधा खेलों पर कई मील दौड़ने के लिए पैसा खर्च करते हैं, जहां उन्हें पानी की बौछारों को झेलते हुए सीधी सपाट दीवारों पर चढ़ना, कीचड़ में दौड़ना, और खड़े पाइपों के अन्दर चढ़ना होता है? अपनी सहनशक्ति की सीमा को बढ़ाने या अपने भय को जीतने के लिए कुछ लोग इसे व्यक्तिगत चुनौती के रूप में देखते हैं। दूसरों के लिए, यह आकर्षण एक टीम वर्क है जहां प्रतिस्पर्धी एक-दूसरे की मदद और सहयोग करते हैं। किसी व्यक्ति ने इसे "एक नो-जजमेंट ज़ोन" कहा है, जहां अन्जान व्यक्ति मिल कर दौड़ समाप्त करने में एक दूसरे की मदद करते हैं (स्टेफ़नी कानोवित्ज़, द वॉशिंगटन पोस्ट)।

बाइबल हमें मिल जुल कर कार्य करने के लिए प्रेरित करती है, जो यीशु पर विश्वास करते हुए जीवन जीने का एक मॉडल है। प्रेम, और भले कामों में उक्साने के लिये ... (इब्रानियों 10:24–25)।

हमारा लक्ष्य विश्वास की दौड़ "पहले समाप्त" करने का नहीं है, बल्कि उदाहरण बन कर ठोस तरीकों में दूसरों को प्रोत्साहित करने और मार्ग में मदद करने वाले हाथ को बढ़ाने का है।

वह दिन आएगा जब हम पृथ्वी पर अपना जीवन पूरा करेंगे। तब तक, हम एक-दूसरे को प्रोत्साहित करें, मदद के लिए तैयार रहें, और रोज मिल जुल कर कार्य करते रहें।

तीन-अक्षर का विश्वास

निराशावादी होने कारण मैं जीवन की स्थितियों के प्रति नकारात्मक धारणा शीघ्र बना लेती हूँ। यदि मुझे एक प्रोजेक्ट में असफलता मिले तो मैं मान लेती हूँ कि सारे प्रोजेक्ट फेल हों जाएँगे-भले ही वह आपस में संबंधित ना हों। धिक्कार है मुझ पर! मैं एक खराब माँ हूँ, जो कुछ ठीक नहीं करती। एक क्षेत्र में असफलता अनावश्यक रूप से कई क्षेत्रों में मेरी भावनाओं को प्रभावित करती है।

वह देखकर हबक्कूक की प्रतिक्रिया क्या रही होगी जो परमेश्वर ने उन्हें दिखाया था, मैं कल्पना कर सकती हूँ। परमेश्वर के लोगों पर कठिनाइयां आते देख उसके पास निराश होने का कारण था; लंबे और कठिन वर्ष आगे खड़े थे। सब अंधकारमयी लग रहा था: फल, मांस, प्राणी और सुख कुछ न होगा। ये शब्द निराशापूर्ण हैं, पर तीन अक्षर इसे बदल देते हैं:तौभी मैं। "तौभी मैं यहोवा के कारण आनन्दित और मग्न रहूंगा" (हबक्कूक 3:18)। आने वाली कठिनाईयों के बावजूद, हबक्कूक को आनन्दित होने का कारण इस में मिला कि परमेश्वर कौन हैं। कठिनाएयों को हम बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं। परन्तु यदि कठिनाईयों के बावजूद हबक्कूक परमेश्वर की स्तुति कर सकते हैं, तो कदाचित हम भी कर सकते हैं। निराशा के भंवर में फंस जाने पर, हम परमेश्वर की ओर देख सकते हैं जो हमें ऊपर खींच लेते हैं।

संकोचहीन निष्ठा

खेल प्रशंसक अपनी प्रिय टीम की प्रशंसा में बहुत कुछ करते हैं। टीम का प्रतीक चिन्ह पहनना, फेसबुक में पोस्ट डालना, मित्रों से चर्चा करना, उनकी निष्ठा पर कोई संदेह नहीं छोड़ता। मेरी प्रिय tiटीम की अपनी टोपी, टीशर्ट और बातें दिखाती है कि मैं भी इनमें शामिल हूं। खेलों में हमारी निष्ठा याद दिलाती है कि हमारी सच्ची और महान निष्ठा परमेश्वर के प्रति होनी चाहिए। भजन संहिता 34 में परमेश्वर के प्रति संकोचहीन निष्ठा के बारे में सोचिए, जो पृथ्वी पर किसी चीज़ से अधिक महत्वपूर्ण है।

दाऊद कहता है, "मैं हर समय यहोवा को धन्य कहा करूंगा" (पद 1), और हम अपने जीवन की कमियों को लेकर बैठ जाते हैं तो हम जीवन ऐसे जीते हैं मानो हमारे सत्य, प्रकाश और उद्धार का स्रोत परमेश्वर हैं ही नहीं। वह कहता है, "उसकी प्रशंसा सदा मेरे मुख पर होगी" (पद 1) और हम संसार की चीजों की प्रशंसा उनसे अधिक करते हैं। दाऊद कहता है, "मैं यहोवा पर घमण्ड करूंगा" (पद 2), हम जानते हैं कि जितना यीशु ने हमारे लिए किया, उससे अधिक हम अपनी सफलताओं का घमण्ड करते हैं।

अपनी प्रिय टीमों, रुचियों, और उपलब्धियों का आनन्द लेना गलत नहीं है। लेकिन हमारी सर्वोच्च प्रशंसा परमेश्वर को जाती है, "मेरे साथ यहोवा की बड़ाई करो...(पद 3)"।

मुझे चट्टान पर ले चलो

वायु को नम रखने वाला उपकरण खरीदते समय मेरी भेंट एक स्त्री से हुई जो शायद वही उपकरण लेने स्टोर में आई थी। शीघ्र ही हम आपस में अपने शहर में चल रहे फ्लू वायरस के बारे में बात करने लगे जिसके कारण उसे सर्दी नजला और सरदर्द हो गया था। वह कड़वे शब्दों में वायरस के अतिक्रमण की निंदा कर रही थी। मैं असमंजस में, चुपचाप सुनती जा रही थी । नाराज़ और निराश ही वह स्टोर से निकल गई। अफ़सोस, उसकी पीड़ा कम करने के लिए मैं कुछ न कर सकी!

परमेश्वर के समुख अपने क्रोध और निराशा को व्यक्त करने के लिए दाऊद ने भजन लिखे। वह जानता था कि परमेश्वर न केवल सुनेंगे परन्तु उसके दर्द के लिए कुछ करेंगे। उसने लिखा, मूर्छा खाते समय...(भजन संहिता 61:2-3)।

जब हमें या किसी अन्य को पीड़ा हो, तो दाऊद के अच्छे उदाहरण का अनुसरण कर सकते हैं। उस चट्टान पर, जो हमसे ऊंची है, हम जा सकते हैं या किसी को वहाँ ले जा सकते हैं। काश, मैंने उस स्त्री को परमेश्वर के विषय में बाताया होता। यदि परमेश्वर हमारा दर्द कम न भी करें तो भी उनकी शांति में हम विश्राम पा सकते हैं। वे हमें आश्वासन देते हैं कि वह हमारी पुकार सुनते हैं।

स्पष्ट निर्देश

मेरी दूसरी बेटी अपनी बड़ी बहन के बिस्तर पर सोने के लिए बैचेन थी। ब्रिट्टा को बिस्तर से न निकलने की चेतावनी देकर मैं कहती कि अगर उसने उलंघन किया तो उसे अपने बिछौने पर जाना पड़ेगा। हर रात उसे गलियारे में देख मैं अपनी निरुत्साहित बेटी को उसके बिछौने पर सुला देती। वर्षों बाद मैंने जाना कि मेरी बड़ी बेटी को कमरे में रूममेट पसंद नहीं था। वह उसे कहती कि मैं उसे बुला रही हूँ, उसकी बात सुनकर ब्रिट्टा कमरे से निकल आती और उसे अपने बिछौने पर जाना पड़ता।

गलत बात मानने के परिणाम हो सकते हैं। जब यहोवा से वचन पाकर परमेश्वर का जन बेतेल गया, तो उसे स्पष्ट आज्ञा थी, न तो रोटी खाना...(1 राजा 13:9)। भविष्यवक्ता ने राजा यारोबाम के आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। एक बड़े नबी के आमंत्रण पर उसने पहले मना किया, बाद में सहमत हो गया। नबी ने यह कहकर उसे धोखा दिया, कि स्वर्गदूत ने उसे बताया है कि इसमें कुछ गलत नहीं। जैसे ब्रिट्टा को "बड़े बिस्तर" का आनंद देने की मेरी इच्छा थी, वैसे परमेश्वर को दुःख पहुंचा होगा कि उसने उनकी आज्ञा को न माना।

हमें परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए। उनका वचन हमारे जीवन का मार्ग है, जिसे सुनने और पालन करने में बुद्धिमानी है।

उम्र का ज्ञान

2010 में सिंगापुर के एक समाचारपत्र में 8 वरिष्ठ नागरिकों की जीवन-शिक्षा पर एक विशेष रिपोर्ट प्रकाशित हुई:जहां उम्र बड़ने से मानव शरीर और मन के लिए चुनौतियां आती हैं वहां यह दूसरे क्षेत्र में विस्तार भी होता है। इसमें भावनात्मक और सामाजिक समझ से भरा ऐसा गुण है जिसे वैज्ञानिक ज्ञान के रूप में परिभाषित करते हैं...उम्र का ज्ञान।

जीवन के बारे में सिखाने को बुद्धिमान बूढ़ों के पास बहुत कुछ होता है। परंतु बाइबिल में हम ऐसे नए राजा से मिलते हैं जो यह नहीं समझ सका।

सुलेमान की मृत्यु के बाद इस्राएल की समस्त सभा रहूबियाम के पास जाकर यों कहने लगी... (1 राजा 12:3-4)। पहले उसने बूढ़ों से सम्मति ली फिर उसे छोड़कर उन जवानों की सम्मति मान कर जो उसके संग बड़े हुए थे, वह लोगों का बोझ और बढ़ा देता है (पद 6,8)। जिस मूर्खता के लिए उसने अपने राज्य का एक बड़ा भाग खो दिया।

हम सबको उस सम्मति की आवश्यकता होती है जो वर्षों के अनुभव से आती है। विशेषकर उनकी जो परमेश्वर के साथ चले हैं और उनकी सम्मति मान चुके हैं। उस ज्ञान के बारे में सोचिए जो परमेश्वर ने उन्हें दिया है! हमारे साथ बाँटने के लिए उनके पास बहुत कुछ है। आइए उन्हें खोजें और उनके ज्ञान से सीखें।

अभी के लिए अलविदा

विदा लेते समय मेरी पोती और मेरा नियम है, हम गले मिलकर 20 सेकिंड के लिए दहाड़ मार कर रोते हैं और अलग होने पर कहते हैं “फिर मिलेंगे” और लौट जाते हैं। हम सदा यह आशा करते हैं कि हम एक दूसरे से फिर मिलेंगे-जल्द ही।

परंतु कभी-कभी अपने प्यारों से बिछुड़ना कठिन होता है। पौलुस के इफिसुस के प्राचीनों से विदा लेने पर वे उसके गले लिपट कर उसे चूमने लगे...वे उस बात का शोक करते थे, जो उस ने कही थी, कि तुम मेरा मुंह फिर न देखोगे (प्रेरितों के काम 20:37–38)।

तथापि गहरा दुःख तब होता है जब हम मौत से अलग हो जाते हैं और इस जीवन में आखिरी बार अलविदा कहते हैं। यह कल्पना से भी बाहर है। हम शोक मनाते और रोते हैं। उन्हें दोबारा गले न लगा पाने के दिल तोड़ने वाले दुःख को हम झेलेंगे?

फिर भी...हम उन लोगों के समान शोक नहीं करते हैं जिनके पास कोई आशा नहीं है। पौलुस उनके लिए भविष्य में पुनर्मिलन के बारे में लिखते है जो "विश्वास करते हैं कि यीशु मरा और फिर जी भी उठा..और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे। (1 थिस्सलुनीकियों 4:13-18)। क्या पुनर्मिलन है! और हम सर्वदा यीशु के साथ रहेगें-यह एक शाश्वत आशा है।

एक बालक की नाई

आराधना के समय वो नन्हीं सी लड़की गलियारे में बड़ी प्रसन्नता और शालीनता से अकेली ही नाच रही थी। उसकी माँ मुस्कुरा रही थी और उसे रोका नहीं।

उसे देख कर मेरा दिल बहुत उत्साहित हो गया, मैं उसका साथ देना चाहती थी लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। बचपन के उस आनन्द और विस्मय की अभिव्यक्ति को मैं कुछ समय पहले खो चुकी हूँ। यद्यपि हमें बचपना छोड़कर परिपक्व बनना चाहिए, तो भी हमें अपने आनंद और विस्मय को नहीं खोना चाहिए, विशेषकर परमेश्वर के साथ हमारे संबंध में।

यीशु के सांसारिक जीवन में उन्होंने छोटे बच्चों का खुली बाहों से स्वागत किया और अपनी शिक्षाओं में उनका उदाहरण दिया (मत्ती 11:25; 18:3;21:16)।  एक अवसर पर उसने अपने चेलों को फटकार लगाई जब वह किसी माता-पिता को अपने बच्चे को उनके पास लाने से रोक रहे थे। बालकों को मेरे पास आने दो... (मरकुस 10:14) यीशु बच्चों के बाल गुणों के बारे में कह रहे थे जो हमें मसीह को ग्रहण करने के लिए तैयार करते हैं -आनन्द और विस्मय, साथ ही सादगी, निर्भरता, विश्वास और विनम्रता।

बच्चों जैसा आनन्द और विस्मय (और इससे भी बड़कर) हमारे हृदय को यीशु को ग्रहण करने के लिए खोलता है वह हमें अपनी बाहों में लेने की प्रतीक्षा करते हैं।

अधिग्रहण या अनुग्रह

छुट्टियों मनाकर घर लौटकर मेरे मित्र आर्ची ने देखा कि उसके पड़ोसी ने एक बाड़ लगाई थी जो उसकी जमीन की सीमा के पांच फुट अंदर थी। उसने हफ्तों कोशिश की, बाड़ हटवाने में मदद करने और लागत बांट लेने की भी पेशकश की, परंतु, पड़ोसी नहीं माना। आर्ची नागरिक प्राधिकारी से अपील कर सकता था। परंतु अपने पड़ोसी को परमेश्वर की कृपा दिखाने के लिए उसने ऐसा न करने का निर्णय किया।

“आर्ची डरपोक है”! आप कहेंगे। नहीं। वह ताकतवर व्यक्ति है। परन्तु उसने अधिग्रहण के उपर अनुग्रह को चुना।

पशु बढ़ जाने के कारण अब्राहम और लूत के बीच झगड़ा हो गया था। तब अब्राहम और लूत...(उत्पत्ति 13:7)। लूत ने उत्तम तराई को चुना और अंत में सब कुछ गवा दिया। अब्राहम ने बचे खुचे को चुना और वायदे का देश पाया (12-17)।

हमारे अधिकार होते हैं और हम उनकी मांग कर सकते हैं। विशेषकर जब दूसरों के अधिकार की बात हो। कभी-कभी हमें उन पर ज़ोर भी देना चाहिए। महायाजक के व्यवस्था के विरूद्ध जाने पर पौलुस ने भी यही किया (प्रेरितों के काम 23:1-3)। परंतु संसार को एक बेहतर तरीका दिखाने के लिए हम अधिकारों को छोड़ने का चुनाव कर सकते हैं। इसे बाइबिल दुर्बलता  नहीं “विनम्रता” कहती है जो परमेश्वर के नियंत्रण की ताकत है।