Month: अगस्त 2018

हमारे लिए परमेश्वर की परवाह

मेरे नाती, जो अभी नन्हें हैं, उन्हें अपने कपड़े खुद पहनना पसंद है। वे अक्सर अपनी कमीज़ पीछे ज्यादा खींच देते हैं और अपने जूते उल्टे पहन लेते हैं। मुझे उनकी गलती सुधारने का मन नहीं करता क्योंकि मुझे उनकी मासूमियत और दुनिया को उनकी आंखों से देखना पसंद है।

उनके लिए सब कुछ एक नया अनुभव हैI, टूटे पेड़ पर चलना, कछुए की जासूसी करना, या उत्साह से दमकल ट्रक गुजरते देखना। वास्तव में मेरे नन्हें नाती इतने मासूम नहीं हैं। बिस्तर पर ना जाने के उनके पास दर्जन बहाने होते हैं और वो दूसरे का खिलौना झटपट छीन लेते हैं। फिर भी मैं उनसे बहुत प्रेम करती हूँ।

पहले मानव आदम-हव्वा कई मायनों में मेरे नातियों के समान थे।I परमेश्वर के साथ बगीचे में चलते हुए हर चीज़ उनके लिए आश्चर्यजनक रही होगी। परन्तु एक दिन उन्होंने मनमानी और अवज्ञा की और उस पेड़ का फल खा लिया जिसकी मनाही थी (उत्पत्ति 2:15-17;3:6)। परिणामस्वरूप वह झूठ बोलने और दोष लगाने लगे (3:8-13)।

फिर भी, परमेश्वर ने उनसे प्रेम किया और उनकी परवाह करते रहे। उन्होंने चमड़े के अंगरखे बना कर उन्हें पहिना दिए (पद 21)-और आगे चलकर अपने पुत्र के बलिदान द्वारा सभी पापियों के लिए उद्धार का मार्ग प्रदान किया (यूहन्ना 3:16)। वह हमें बहुत प्रेम करते हैं!

घर की ओर इशारा करने की प्रार्थना

बचपन में मैंने अपने माता-पिता से पहली प्रार्थना सीखी कि "हे प्रभु, मैं सोने जाता हूँ, मैं अपनी आत्मा को तेरे ही हाथ में सौंप देता हूं।" जिसे मैंने अपने बच्चों को सिखाया। सोते समय इस प्रार्थना द्वारा अपने आप को परमेश्वर के हाथों में सौंपना मुझे तस्सली देता था।

बाइबिल की "प्रार्थना पुस्तक", भजन संहिता में ऐसी प्रार्थना है। "मैं अपनी आत्मा...;" (भजन संहिता 31:5) विद्वानों का मानना है कि यह "सोने के समय" की प्रार्थना थी जिसे यीशु के दिन में बच्चों को सिखाया जाता था ।

क्रूस पर यीशु की अंतिम पुकार से हम इसे पहचान सकते हैं। यीशु ने इसमें "पिता " शब्द जोड़ा: (लूका 23:46)। मृत्यु से पूर्व इन शब्दों के साथ प्रार्थना करते हुए, यीशु ने पिता के साथ अपने घनिष्ठ संबंध और ऐसे स्थान की ओर इशारा किया जहाँ विश्वासी उनके साथ रहेंगे (यूहन्ना 14:3)।

यीशु के क्रूस पर जान देने से परमेश्वर के साथ हमारा संबंध स्वर्गीय पिता के रूप में हो गया। यह जानकर कितनी तस्सली मिलती है कि यीशु के बलिदान से, हम परमेश्वर की सन्तान बनकर उनकी परवाह में विश्राम पा सकते हैं! हम निडर सो सकते हैं क्योंकि हमारा पिता इस वादे के साथ हम पर दृष्टि लगाए है कि वह मसीह के साथ हमें जी उठाएगें (1 थिस्सलुनीकियों 4:14)।

कार्य प्रगति पर या सम्पन्न?

हर महीने "कार्य प्रगति पर" से "कार्य सम्पन्न” तक मेरी जिम्मेदारियां बदलती रहती हैं। मुझे कार्य “सम्पन्न” का बटन दबाना पसंद है। सोचता हूँ, काश इतने ही सहज रूप से मैं अपने विश्वास की खामियों पर भी विजय पा सकता! मसीही जीवन प्रगति पर होता है, सम्पन्न नहीं।

"क्योंकि उस ने... (इब्रानियों 10:14)”। अर्थात एक मायने में, "कार्य सम्पन्न बटन" दबा दिया गया है । यीशु की मृत्यु ने हमारे लिए वह किया जिसे हम स्वयं के लिए नहीं कर सकते थे: जब हम उन पर विश्वास करते हैं वह हमें परमेश्वर की दृष्टि में स्वीकार्य बनाते हैं। “पूरा हुआ”, जैसा कि यीशु ने कहा (यूहन्ना 19:30)। विडंबना यह है कि भले ही उनका बलिदान पूर्ण और सम्पन्न है, हमें अपना जीवन इस आत्मिक वास्तविकता में जीना होता है कि "हम पवित्र किए जाते हैं"।

यह समझना जटिल है कि, जिस कार्य को यीशु ने पूरा किया उसका सम्पन्न होना हमारे जीवन में अब भी प्रगति पर है। अपने आत्मिक संघर्ष में यह याद रखना उत्साहजनक है कि मेरे लिए और आपके लिए यीशु का बलिदान- पूरा हो चुका है...भले ही जीवन-भर `उसके सम्पन्न होने का कार्य प्रगति पर रहे’। परमेश्वर के प्रयोजनों के अंततः पूरा होने तक: हम उसी तेजस्वी रूप में अंश-अंश कर बदलते जाते हैं (2 कुरिन्थियों 3:18 देखें )।   

अद्भुत निर्माता

एक शौकिया फोटोग्राफर होने के नाते, मैं कैमरे में परमेश्वर की रचनात्मकता की तस्वीरें खींचने का आनंद लेती हूं। फूल की कोमल पंखुड़ियों में, सूर्योदय-सूर्यास्त में, और आकाश रूपी कैनवास पर रंगे बादलों में और झिलमिलाते तारों में मैं उनकी उँगलियों के निशान देखती हूँ।

कैमरे से मैंने चेरी के पेड़ पर चहचहाती गिलहरी, खिलते हुए फूल पर मंडराती तितली, और समुद्र के तट पर धूप सेंकते हुए कछुओं की तस्वीरें ली हैं। हर तस्वीर मुझे अपने अद्भुत निर्माता की आराधना करने के लिए प्रेरित करती है।

भजन संहिता 104 का लेखक परमेश्वर के प्रकृति में बसी कला के कामों का स्तुति गान करता है (पद 24)। वह "विशाल समुद्र, की सराहना करता है जिसमें अनगिनत जलचर हैं" (पद 25) और उनकी निरंतर परवाह करने के लिए वह परमेश्वर में अनन्दित होता है (27-31)। भजनकार अपने चारों तरफ परमेश्वर की सृष्टि की महिमा देखते हुए, उनकी आराधना में कहता है:"मैं जीवन भर यहोवा ...।" (पद 33)।
परमेश्वर की भव्य और विशाल सृष्टि पर मनन करते हुए, हम उनके हाथों की रचनात्मकता और उनके विस्तार को ध्यान से देख सकते हैं। और भजनकार के समान, हम अपने सृष्टिकर्ता को धन्यवाद के साथ आराधना की भेंट दे सकते हैं क्योंकि वह कितने सामर्थशाली, प्रतापी, और प्रेममयी हैं और सर्वदा रहेंगे। हल्लिलूय्याह!

स्काई गार्डन

जब मैं लंदन में था तो एक मित्र ने मेरी पत्नी मार्लीन और मेरे लिए स्काई गार्डन की यात्रा की व्यवस्था की। यह गार्डन पैंतीस मंजिला इमारत की छत पर बना है जिसका ढांचा (छत और दीवारें) कांच की हैं और वहां पौधे, पेड़ और फूल हैं। वहां 500 फीट की ऊंचाई से नीचे देखते हुए हम सेंट पॉल कैथेड्रल, टॉवर ऑफ लन्दन, और अन्य दृश्यों की सराहना कर रहे थे। यह लुभावना दृश्य हमारे देखने के नजरिए पर एक उपयोगी सबक दे रहा था।

परमेश्वर हमारे हर अनुभव को अपने नज़रिए से देखते हैं। भजनकार ने लिखा, "क्योंकि यहोवा ने अपने ऊंचे और पवित्र स्थान से दृष्टि ...; "(भजन संहिता 102:19-20 )

भजन संहिता 102 में वर्णित लोगों के समान, हम भी अक्सर निराशा से "तड़पते हुए" अपने संघर्षों के साथ वर्तमान में कैद हो जाते हैं, ऐसा संभव नही कि परमेश्वर न जानते हों कि हमारेजीवन में क्या होने वाला है। जैसे भजनकार ने आशा की, कि परमेश्वर का नज़रिया ऐसा छुटकारा देगा  जो अंत में “घात होन वालों: को भी छुड़ा लेगा" (पद 20, 27-28)।

कठिन क्षणों में, याद रखें: भले ही आगे होने बातों की हमें जानकारी न हो, परन्तु हमारे परमेश्वर को निश्चय है।  हम हर आने वाले क्षण के लिए उन पर भरोसा कर सकते हैं।

यीशु ने थाम लिया

कभी-कभी जीवन व्यस्त होता है-कक्षाएं कठिन और काम थकाऊ लगते हैं, बाथरूम साफ करना, और किसी से मिलने जाना। मैं इतनी व्यस्त हो जाती हूँ कि कुछ मिनट बाइबिल पढ़ने के लिए खुद को मजबूर करती हूँ, फिर खुद से वादा करती हूं कि अगले सप्ताह परमेश्वर के साथ अधिक समय बिताऊँगी। परन्तु ध्यान भटक जाता है, दिनभर काम से भरा रहता है, और परमेश्वर से मदद मांगना याद नहीं रहता।

जब पतरस यीशु के पास जाने को पानी पर चलने लगा, तो जल्द ही हवा और लहरों से डर गया। मेरी तरह वह डूबने लगा (मत्ती 14:29-30) पतरस के पुकारते ही "यीशु ने तुरन्त..." (पद 30-31)।

लगता है कि इस तरह व्यस्त रहने की और परमेश्वर की ओर से ध्यान भटकाने की भरपाई करने के लिए मुझे परमेश्वर के लिए कुछ करना पड़ेगा। परन्तु परमेश्वर ऐसे कार्य नहीं करते। जैसे ही हम सहायता के लिए उनके पास जाते हैं, यीशु तुरंत थाम लेते हैं।

जीवन की भाग-दौड़ जब हमें भटकाती हैं, तो हम सहज ही भूल जाते हैं कि हमारे तूफान के बीच परमेश्वर हमारे साथ हैं। यीशु ने पतरस से पूछा, "तू ने क्यों...?" (पद 31) हम चाहे जिस स्थिति से गुजर रहे हों, वह यहीं हैं। वह हर क्षण हमारे साथ हैं, हमें थाम कर बचाने के लिए तैयार हैं।

मन की भूख

जब मैं अपने पति के साथ कुछ काम से बाहर थी तब फोन पर उस मिठाई की दुकान के विज्ञापन का ईमेल को देख कर  हैरान थी, जिसे हमने अभी पार ही किया था। अचानक मेरे पेट से चूहे दौड़ने लगे। मैं हैरान थी कि दुकानदार अपने सामानों से हमें लुभाने के लिए टेक्नालजी का कैसे प्रयोग करते हैं।

विज्ञापन बंद कर मैं सोचने लगी कि किस प्रकार परमेश्वर मुझे अपनी निकटता का अहसास देते  हैं। उन्हें हमेशा पता होता है कि मैं कहां हूं और मुझे क्या पसंद है। मैं सोचने लगी कि, क्या मेरा मन परमेश्वर के लिए इतना ही भूखा है जितना मेरा पेट खाने के लिए?

यूहन्ना 6 में, पांच हजार को खिलाने के आश्चर्यकर्म के बाद, चेलों ने बेसब्री से यीशु से सर्वदा "जीवन देने वाली रोटी उन्हें देने को कहा" (पद 33-34)। पद 35 में यीशु ने उत्तर दिया, "जीवन की रोटी...।" कितनी अद्भुत बात है कि यीशु के साथ संबंध होना हमारे रोजमर्रा के जीवन में लगातार पोषण प्रदान कर सकता है!

विज्ञापन का लक्ष्य मेरे मेरे पेट की भूख को जगाना था, परन्तु परमेश्वर का मेरे मन की स्थिति को निरंतर जानना मुझे बाध्य करता है कि मैं समझ सकूं कि मुझे उनकी जरूरत है और वह मन्ना पाऊँ जिसे केवल वो दे सकते हैं।

प्रभु बोलते हैं

दुनिया में दुख क्यों है इसपर लगभग प्रत्येक तर्क हमें अय्यूब की पुस्तक में मिल जाएगा, परन्तु तर्क करना अय्यूब की मदद नहीं करता। उसका संकट संदेह से बढ़कर है-संबंधों का।  क्या वह परमेश्वर पर भरोसा कर सकता है? सब से बढ़कर अय्यूब चाहता है: ऐसा कोई जो उसके दुर्भाग्य का कारण बता सके।  वह परमेश्वर से स्वयं मिलना चाहता है, आमने-सामने।

अंततः, परमेश्वर स्वयं अय्यूब  से मिलते हैं (अय्यूब 38:1)। जब एलीहू विस्तार से अय्यूब को समझा रहा था कि उसे परमेश्वर से मिलने की इच्छा करने का अधिकार क्यों नहीं है तभी  परमेश्वर आते हैं।

न तो अय्यूब-नाही उसका कोई मित्र- उसके लिए तैयार है जो परमेश्वर कहने जा रहे हैं। अय्यूब के प्रश्नों की सूची लंबी थी, परन्तु प्रश्न पूछने वाले परमेश्वर हैं, अय्यूब नहीं। आरंभ करते हुए वह कहते हैं "पुरुष की नाईं अपनी...(पद 3) "। दुख की समस्या पर पैंतीस अध्यायों तक चलने वाली बहस के उत्तर में, परमेश्वर प्राकृतिक संसार में बसे चमत्कारों पर एक भव्य कविता कहते हैं।

परमेश्वर का वचन सृष्टि के रचयिता और अय्यूब जैसे निर्बल व्यक्ति के बीच के विशाल अंतर को परिभाषित करता है। उनकी उपस्थिति अय्यूब के सबसे बड़े प्रश्न का उत्तर देती है: क्या कोई है? अब अय्यूब केवल यही कह सकता है, "परन्तु मैं ने तो..." (42:3) "।

रैपिड्स पर सवारी

नदी के किनारे पहुंच कर राफ्टिंग गाइड ने हमारे समूह को लाइफ जैकेट पहनने और पतवार पकड़ने के निर्देश दिए। नदी में आने वाले रैपिड्स (क्षिप्रिकाओं) का सामना करते समय स्थिरता बनाए रखने के लिए उसने नौका पर हमरी सीटें बांट लीं। आगे की जलयात्रा के रोमांच और चुनौतियों के बारे में बता कर, उसने निर्देशों को विस्तार से समझाया जिसे हमारा ध्यानपूर्वक सुनना जरूरी था-ताकि हम प्रभावी तरीके से नाव नियंत्रित कर सकें। उसने आश्वासन दिया कि हालांकि तनावपूर्ण क्षण होंगे, हमारी जलयात्रा रोमांचकारी और सुरक्षित दोनों होगी।

कभी-कभी जीवन एक रिवर राफ्टिंग की तरह होता है, जिसमें अपेक्षा से अधिक रैपिड्स आते हैं। जब समय सबसे बुरा लगे, तो यशायाह द्वारा इस्राएल को दिए परमेश्वर का वादा हमारी भावनाओं का मार्गदर्शक कर सकता है: "जब तू जल में हो कर..." (यशायाह 43:2)। पाप के परिणामस्वरूप जब इस्राएलियों को निर्वासित होना पड़ा, उन्हें परमेश्वर द्वारा त्यागे जाने का भय था। पर इसके बजाय उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया और उनसे अपने प्रेम के कारण उनके साथ रहने का वादा किया (2-4)।

बुरे समय में परमेश्वर हमें छोड़ते नहीं हैं। जब हम-भय से और पीड़ादायक परेशानियों से-गुजरते हैं तो मार्गदर्शन के लिए हम उन पर भरोसा कर सकते हैं-क्योंकि वह हमसे भी प्रेम करते हैं और हमारे साथ रहने का वादा करते हैं।