अन्धकार में आशा
एक दन्त कथा के अनुसार, सात चीनी राज्यों के परस्पर लड़ाई और फूट (Warring States perios[475-246BC])के काल में क्यू युआन नमक एक बुद्धिमान और देशभक्त चीनी शासकीय अधिकारी था l ऐसा कहा जाता है कि उसने बारम्बार राजा को आसन्न आक्रमण के विषय चिताया जो उसके देश को नष्ट करने वाला था, किन्तु राजा ने उसकी सलाह को नज़रंदाज़ किया l अंत में, क्यू युआन को निर्वासित कर दिया गया l अपने प्रिय देश को शत्रु के आधीन जाने की खबर सुनकर, जिसकी चेतवानी उसने दी थी, उसने अपना जीवन समाप्त कर लिया l
क्यू युआन का जीवन कुछ हद तक नबी यिर्मयाह के जीवन के सदृश था l उसने भी राजाओं की सेवा की जो उसकी चेतावनियों का उपहास करते थे, और उसका देश लूट लिया गया l हालाँकि, जबकि क्यू युआन ने अपनी निराशा से हार मान लिया, यिर्मयाह ने वास्तविक आशा प्राप्त की l अंतर क्यों है?
यिर्मयाह सच्ची आशा देनेवाले प्रभु को जानता था l परमेश्वर ने नबी को निश्चय दिया, “तेरे वंश के लोग अपने देश में लौट आएँगे” (यिर्मयाह 31:17) l यद्यपि यरूशलेम ई.पू. 586 में नाश कर दिया गया, लेकिन बाद में पुनः निर्मित किया गया (देखें नहेम्याह 6:15) l
किसी बिंदु पर, हम अपने को ऐसी स्थितियों में पाते हैं जो हमें निराश कर सकता है l यह एक ख़राब चिकित्सीय रिपोर्ट, अचानक नौकरी का छूटना, परिवार की बर्बादी हो सकता है l किन्तु जब जीवन हमें गिरा दे, हम फिर भी ऊपर देख सकते हैं क्योंकि परमेश्वर सिंहासन पर विराजमान है! उसके हाथों में हमारे दिन हैं, और वह हमें अपने हृदय के निकट रखता है l
असहमति के लिए सहमत
मैंअपने पिता को बाइबल की विभिन्न व्याख्याओं पर ख़त्म न होनेवाले विवाद से अलग होने की कठिनाई के विषय बात करते हुए याद करता हूँ l तुलनात्मक तरीके से यह बात कितनी अच्छी होती थी जब वे असहमति के लिए सहमत होते थे l
किन्तु जब इतना कुछ दाँव पर लगा हो तो क्या परस्पर-विरोधी बातों को एक ओर करना वास्तविक है? यह अन्य प्रश्नों में से एक प्रश्न है जिसका उत्तर प्रेरित पौलुस नया नियम में अपनी रोमियों की पत्री में देता है l सामजिक, राजनैतिक, और धार्मिक प्रतिद्वन्द में लिप्त पाठकों को लिखते हुए, वह अत्यधिक फूट डालने की स्थितियों में भी सामान्य आधार खोजने के लिए अनेक सलाह देता है (14:5-6) l
पौलुस के अनुसार, असहमत होने के लिए सहमत होना याद दिलाता है कि हर एक केवल अपने विचारों के लिए प्रभु को हिसाब नहीं देगा किन्तु अपनी असमानताओं के बीच हमारा परस्पर आचरण कैसा है (पद.10) l
विरोध की स्थितियां वास्तव में याद करने के अवसर बन जाते हैं कि हमारे अपने विचारों से कुछ बातें अधिक विशेष हैं अर्थात् बाइबल की हमारी व्याख्याओं से भी अधिक विशेष l हममें से प्रत्येक इस बात का हिसाब देंगे कि जिस तरह मसीह ने हमसे प्रेम किया है, क्या हमने परस्पर प्रेम किया है, और अपने दुश्मनों को भी l
अब जबकि मैं इसके बारे में सोचता हूँ, मैं अपने पिता की बातें याद करता हूँ कि असहमति के लिए सहमत होना कितना अच्छा है किन्तु परस्पर प्रेम और आदर के साथ l
धन्यवाद की समझ
पुरानी दर्द और निराशाओं के कारण वर्षों की थकान के साथ सीमित गतिशीलता ने आखिरकार मुझे अपनी पकड़ में ले लिया था l अपने असंतोष में, मैं अत्यधिक रौब जमानेवाली और कृतघ्न हो गयी l मेरे पति की मेरी देखभाल करने के कौशल के विषय मैं शिकायत करने लगी थी l घर की सफाई के उसके तरीके से मैं नाखुश हुयी l यद्यपि मैं जानती हूँ कि वह सबसे अच्छा भोजन बनाता है, मैं भोजन की विविधता की कमी पर कोलाहल मचाने लगी थी l अंततः उसके बताने पर कि मेरा कुड़कुड़ाना उसकी भावनाओं को ठेस पहुँचा रहे हैं, मैं क्रोधित हो गयी l आखिरकार, परमेश्वर ने मुझे अपनी गलतियाँ समझने में मेरी मदद की, और मैंने अपने परमेश्वर और पति से क्षमा मांग ली l
भिन्न परिस्थितियों की इच्छा करना हमें शिकायत, और सम्बन्ध बिगाड़ने वाले आत्म-केन्द्रितता की ओर ले जाता है l इस्राएली इस दुविधा से परिचित थे l ऐसा महसूस होता है मानो वह हमेशा असंतुष्ट रहते थे और परमेश्वर के प्रबंध के लिए कभी भी धन्यवादी नहीं थे (निर्गमन 17:1-3) l यद्यपि प्रभु ने “आकाश से भोजन वस्तु” (16:4) देकर बियाबान में अपने लोगों की देखभाल की थी, वह अन्य प्रकार का भोजन खाना चाहते थे (गिनती 11:4) l इस्राएली परमेश्वर की विश्वासयोग्यता और प्रेमपूर्ण देखभाल के दैनिक आश्चकर्म के लिए आनंदित होने के बदले, और भी कुछ चाहते थे, कुछ बेहतर, कुछ भिन्न, या कुछ जो पहले खाते थे (पद.4-6) l वे अपनी कुण्ठा मूसा पर निकालते थे (पद.10-14) l
परमेश्वर की भलाई और विश्वासयोग्यता पर भरोसा रखने से धन्यवाद की समझ बढ़ती है l आज हम उसकी असंख्य देखभाल के लिए उसे धन्यवाद दे सकते हैं l
आपका तरीका, मेरा नहीं
जब केमिल और जोएले को पता चला कि उनकी आठ वर्षीय बेटी, रीमा को असाधारण कैंसर (leukemia) हो गया है, वे पूरी तौर से टूट गए l इस बिमारी के कारण उसे मस्तिष्क ज्वर(meningitis) हो गया और एक दौरा पड़ा, और रीमा अचेतन अवस्था(coma) में चली गयी l हॉस्पिटल की मेडिकल टीम ने उसके माता-पिता से रीमा के जीवित रहने की हर आशा छोड़कर उसका अंतिम संस्कार करने की तैयारी करने को कहा l
केमिल और जोएले ने आश्चर्यकर्म के लिए उपवास और प्रार्थना की l केमिल ने कहा, “प्रार्थना करते समय, हमें हर स्थिति में परमेश्वर पर भरोसा रखना होगा l और अपना तरीका नहीं बल्कि यीशु की तरह प्रार्थना करें, पिता, किन्तु तेरी इच्छा l” “किन्तु मैं पूरी तौर से चाहता हूँ कि परमेश्वर उसको चंगा कर दे!” जोएले ने इमानदारी से उत्तर दिया l “हाँ! और हमें माँगना चाहिए!” केमिल ने प्रतिउत्तर दिया l “कठिन समय में खुद को परमेश्वर को सौंपने से उसे आदर मिलता है, क्योंकि यीशु ने भी ऐसा ही किया l”
क्रूस पर जाने से पहले, यीशु ने प्रार्थना की : “हे पिता, यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो” (लूका 22:42) l “इस कटोरे को हटा दे,” इस प्रकार प्रार्थना करने से यीशु ने क्रूस पर नहीं जाने की विनती की, किन्तु उसने प्रेम में खुद को पिता के सामने समर्पित कर दिया l
अपनी इच्छाओं को परमेश्वर को समर्पित करना सरल नहीं है, और चुनौतीपूर्ण पलों में उसकी बुद्धिमत्ता को समझना कठिन हो सकता है l केमिल और जोएले की प्रार्थना अद्भुत रीति से सुनी गयी – रीमा आज पंद्रह वर्ष की स्वस्थ बेटी है l
यीशु प्रत्येक संघर्ष को समझता है l उस समय भी, जब हमारे लिए, उसकी विनती सुनी नहीं गयी, उसने हर एक ज़रूरत के लिए अपने परमेश्वर पर भरोसा रखना दिखा दिया l
अनपेक्षित दयालुता
मेरी सहेली किराने की दूकान का भुगतान करने के लिए खड़ी थी जब एक व्यक्ति ने उसे 10 पौण्ड(14 डॉलर) दिए l उसकी नींद पूरी नहीं होने के कारण, वह उसकी दयालुता के कार्य के कारण रोने लगी; और उसके बाद अपने रोने पर हँसने लगी l यह अनपेक्षित दयालुता उसके हृदय को छु गया था और थकान में उसे आशा मिली थी l दूसरे व्यक्ति द्वारा भलाई के लिए उसने प्रभु का धन्यवाद दिया l
इफिसुस के गैर-यहूदी मसीहियों को लिखे अपने पत्र में प्रेरित पौलुस का प्रमुख विचार देने के सम्बन्ध में था l उसने यह कहकर कि वे अनुग्रह से बचाए गए हैं, उनसे पुराने जीवनों को पीछे छोड़कर नए जीवन को गले लगाने को कहा l उसने समझाया कि इस बचाने वाले अनुग्रह से, “भले काम” करने की इच्छा निकलती है क्योंकि हम परमेश्वर के स्वरुप में बनाए गए हैं और उसके हाथ की “कारीगिरी हैं” (2:10) l सुपर मार्केट में उस व्यक्ति की तरह, हम अपने दैनिक कार्यों के द्वारा परमेश्वर का प्रेम फैला सकते हैं l
निस्संदेह, ज़रूरी नहीं कि हम परमेश्वर का अनुग्रह बाँटने के लिए भौतिक वस्तुएँ दें; हम उसके प्रेम को दूसरे कार्यों द्वारा दर्शा सकते हैं l जो हमसे बात करना चाहता है, हम समय निकालकर उसकी सुन सकते हैं l जो हमारी सेवा करते हैं हम उनका हाल चाल पूछ सकते हैं l हम ठहरकर किसी की ज़रूरत पूरी कर सकते हैं l जब हम दूसरों को देंगे, हम बदले में आनंद प्राप्त करेंगे (प्रेरितों 20:35) l
प्रमुख उत्कर्ष
मेरे माता-पिता ने मुझे सभी प्रकार का संगीत पसंद करना सिखाया-देसी से लेकर शास्त्रीय संगीत तक l इसलिए जब मैं मास्को राष्ट्रीय सिम्फनी(सम स्वरता) सुनने के लिए रूस के एक सबसे बड़े संगीत हॉल, मास्को कन्सरवेटरी(रक्षा गृह) में गया मेरा हृदय गति से धड़कने लगा l जब संचालक ने संगीतकारों को कुशल काइकोफस्की(प्रसिद्ध रुसी गीतकार एवं संगीतकार) अंश बजाने को कहा, धुन विकसित होकर धीरे-धीरे एक प्रबल अर्थात् एक गहन/प्रगाढ़ और नाटकीय संगीत उत्कर्ष में बदल गया l
वचन इतिहास के सबसे प्रबल उत्कर्ष की ओर बढ़ता है : यीशु मसीह का क्रूस और उसका पुनरुत्थान l अदन के बगीचे में आदम और हव्वा के पाप में गिर जाने के बाद, परमेश्वर ने एक उद्धारकर्ता के आने की प्रतिज्ञा दी (उत्पति 3:15)), और पूरा पुराना नियम में यह मुख्य विषय आगे बढ़ता गया l यह प्रतिज्ञा फसह के मेमने में (निर्गमन 12:21), नबियों की आशा में (1 पतरस 1:10), और परमेश्वर के लोगों की चाहतों में गुंजायमान हुयी l
1 यूहन्ना 4:14 उस कहानी के लक्ष्य को प्रमाणित करता है : “हम ने देख भी लिया और गवाही देते हैं कि पिता ने पुत्र को जगत का उद्धारकर्ता करके भेजा है l” कैसे? परमेश्वर ने अपने टूटे संसार के लिए अपनी बचाव प्रतिज्ञा को पूरा किया जब यीशु हमें क्षमा देने के लिए और हमारे सृष्टिकर्ता के साथ हमारे सम्बन्ध को पुनःस्थापित करने के लिए मृत्यु सहा और जी उठा l और एक दिन वह पुनः वापस आएगा और अपने सम्पूर्ण सृष्टि को पुनःस्थापित कर देगा l
जब हम हमारे लिए परमेश्वर पुत्र का कार्य याद करते हैं, हम परमेश्वर का अनुग्रह अर्थात् यीशु का महान उत्कर्ष और अपने लिए और उसके संसार के लिए बचाव का उत्सव मानते हैं l
शांति कहाँ है?
“क्याआप अभी भी शांति की आशा करते हैं” 1984 में एक संवाददाता ने बॉब डिलन (एक अमरीकी गायक, गीतकार, संगीतकार) से पूछा l
“कोई शांति नहीं होगी,” डिलन ने उत्तर दिया l उसके उत्तर की आलोचना हुयी, फिर भी यह इनकार नहीं किया जा सकता कि शांति निरंतर दुष्प्राप्य है l
मसीह से 600 वर्ष पूर्व, अधिकतर नबी शांति की भविष्वाणी कर रहे थे l परमेश्वर का नबी उनमें से एक नहीं था l यिर्मयाह ने लोगों को स्मरण दिलाया कि परमेश्वर ने कहा है, “मेरे वचन को मानो, तब मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँगा, और तुम मेरी प्रजा ठहरोगे” (यिर्मयाह 7:23) l फिर भी बार-बार उन्होंने प्रभु और उसकी आज्ञाओं की अवहेलना की l उनके झूठे नबियों ने कहा, “शांति है, शांति” (8:11), किन्तु यिर्मयाह ने विनाश की नबूवत की l ई.पु. 586 में यरूशलेम नष्ट हो गया l
शांति दुर्लभ है l किन्तु यिर्मयाह की खौफनाक नबुवतों के मध्य हम निरंतर एक प्रेम करनेवाले परमेश्वर को देखते हैं l प्रभु ने अपने अवज्ञाकारी लोगों से कहा, “मैं तुम से सदा प्रेम रखता आया हूँ . . . मैं तुझे फिर बसाऊंगा” (31:3-4) l
परमेश्वर प्रेम और शांति का परमेश्वर है l उसके प्रति हमारे विद्रोह के कारण विरोध उत्पन्न होता है l पाप संसार की शांति को नष्ट करता है और हमारी भीतरी शांति छीन लेता है l यीशु हमारे संसार में हमें परमेश्वर से मिलाने और हमें वही भीतरी शांति देने आया l पौलुस ने लिखा, “इसलिए विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाकर अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर से हमारा मेल है” (रोमियों 5:1) l उसके लिखे शब्द सबसे अधिक आशा से पूर्ण हैं l
चाहे हम प्रतिरोधक क्षेत्र में रहते हों या शांत पड़ोस में जहां लड़ाई की फुसफुसाहट मात्र भी न हो, मसीह हमें अपनी शांति देने के लिए आमंत्रित करता है l
वश में रखना असम्भव
मेक्सिको की खाड़ी में अपने मित्रों के साथ तैरती हुयी, कैत्लिन का एक शार्क से सामना हुआ, जो उसके पैरों पर झपटकर उसे खींचने लगा l कैत्लिन ने जवाबी हमले में शार्क के नाक पर एक जोर का घूँसा मारा l हिंसक शार्क हारकर उसके पाँवों को छोड़कर चला गया l यद्यपि उसके काटने के कारण उसे 100 से अधिक टाँके लगे, शार्क कैत्लिन को अपने पकड़ में नहीं ले सका l
यह कहानी मुझे यह सच्चाई याद दिलाती है कि यीशु ने मृत्यु पर वार करके, उसके अनुयायियों को डराने और उन्हें पराजित करने की उसकी शक्ति समाप्त कर दी l पतरस के अनुसार, “क्योंकि मृत्यु के वश में रहना उसके लिए असम्भव था” (प्रेरितों 2:24) l
पतरस ने यरूशलेम में एक भीड़ से यह शब्द कहे l शायद उनमें से कईयों ने यीशु को दण्डित करने के लिए चिल्लाए होंगे, “वह क्रूस पर चढ़ाया जाए” (मत्ती 27:22) l परिणामस्वरूप, रोमी सैनिकों ने उसे मरने तक क्रूस पर टंगा हुआ रखा l परमेश्वर द्वारा यीशु को जिलाए जाने तक उसका शरीर तीन दिनों तक कब्र में रखा रहा l उसके पुनरुत्थान के बाद, पतरस और अन्य लोग उससे बात और उसके साथ भोजन किया, और चालीस दिनों के बाद वह स्वर्ग पर उठा लिया गया (प्रेरितों 1:9) l
पृथ्वी पर यीशु का जीवन शारीरिक दुःख और मानसिक पीड़ा के मध्य बीता, इसके बावजूद परमेश्वर की सामर्थ्य ने कब्र को पराजित कर दिया l इसके कारण, मृत्यु या कोई और संघर्ष/पीड़ा हमें सर्वदा अपने पकड़ में नहीं रख सकती l एक दिन सभी विश्वासी परमेश्वर की उपस्थिति में अनंत जीवन और परिपूर्णता का अनुभव करेंगे l उस भविष्य पर केन्द्रित होकर हम वर्तमान में स्वतंत्रता का अनुभव कर सकते हैं l
मार्ग का चुनाव
मेरे पास शरद ऋतु की एक खूबसूरत तस्वीर है जिसमें कोलोराडो पहाड़ों पर एक युवा घोड़े पर बैठा हुआ सोच रहा है आगे कौन सा मार्ग चुनना है l यह मुझे रोबर्ट फ्रॉस्ट की कविता “द रोड नॉट टेकेन” (The Road Not Taken) की याद दिलाता है l उसमें फ्रॉस्ट अपने आगे दो मार्गों पर विचार करता है l दोनों लुभावने हैं, किन्तु उसे शक है वह पुनः इस स्थान पर लौटेगा, और उसे एक मार्ग चुनना होगा l फ्रॉस्ट लिखते हैं, “दो मार्ग भिन्न दिशाओं में जंगल में जाते हैं, और मैंने, हाँ मैंने उस मार्ग का चुनाव किया जिसपर कम लोग चलते हैं, और इस चुनाव ने सम्पूर्ण परिवर्तन ला दिया l”
यीशु के पहाड़ी उपदेश में (मत्ती 5-7), प्रभु ने अपने सुननेवालों से कहा, “सकेत मार्ग से प्रवेश करो, क्योंकि चौड़ा है वह फाटक और सरल है वह मार्ग जो विनाश को पहुंचता है; और बहुत से हैं जो उस से प्रवेश करते हैं l क्योंकि सकेत है वह फाटक और कठिन है वह मार्ग जो जीवन को पहुंचता है; और थोड़े हैं जो उसे पाते हैं” (7:13-14) l
जीवन की हमारी यात्रा में, किस मार्ग पर चलना है के विषय हमारे पास अनेक चुनाव होते है l बहुत से मार्ग भरोसा देनेवाले और आकर्षक होते हैं किन्तु जीवन का मार्ग केवल एक ही है l यीशु हमसे परमेश्वर के वचन के प्रति शिष्यता और आज्ञाकारिता का मार्ग चुनने को कहता है अर्थात् भीड़ की अपेक्षा उसका अनुसरण करना l
जब हम आगे के मार्ग पर विचार करते हैं, परमेश्वर हमें उसके मार्ग पर अर्थात् जीवन के मार्ग पर चलने में बुद्धिमत्ता और साहस दे l यह हमारे लिए और जिनसे हम प्रेम करते हैं उनके लिए सम्पूर्ण बदलाव लेकर आएगा l