सबसे अच्छा उपहार
उत्तरी इंगलैंड में एक शीतकालीन सभा में, एक व्यक्ति ने पूछा, “अभी तक आपका सर्वोत्तम क्रिसमस उपहार क्या रहा है?”
एक स्पोर्ट्स मैन अपने मित्र की ओर देखकर बोलना चाहा l “यह सरल है, कुछ वर्ष पूर्व, कॉलेज समाप्त करने के बाद मैं व्यवसायिक फूटबाल खेलने के लिए आश्वस्त था l असफल होने पर, मैं खीज गया l कड़वाहट ने मुझे कुतर दिया, और मैंने हर मददगार के साथ कड़वाहट बांटी l”
उसने कहा, “अगले क्रिसमस में-एक दूसरा मौसम फूटबाल के बगैर-मैं इस मित्र के चर्च में क्रिसमस नाटक देखने गया, और अपने मित्र की ओर इशारा किया l “मैं यीशु को चाहता था, इसलिए नहीं, किन्तु अपनी भांजी को क्रिसमस नाटक में देखने के लिए l वहाँ की बातें मुर्खता लगी, किन्तु बच्चों के नाटक के मध्य, मुझ में उन चरवाहों और स्वर्गदूतों के साथ यीशु से मिलने की चाहत जागी l जब लोग ‘पावन रैन’ गीत समाप्त किये मैं वहाँ बैठकर रो रहा था l
उसने कहा, “उस रात मुझे क्रिसमस का सर्वोत्तम उपहार मिला,” और वह पुनः अपने मित्र की ओर इशारा किया, “जब इसने अपने परिवार को अकेले घर भेज दिया कि वह मुझे यीशु से मुलाकात करना सिखाए l”
और तब उसका मित्र बोल पड़ा : “और मित्रों, वह मेरा सर्वोत्तम क्रिसमस उपहार था l”
इस क्रिसमस में, यीशु के जन्म की आनंदमय सरलता की वह कहानी ही हम दूसरों को बताएँ l
एक व्यक्तिगत कहानी
न्यू यॉर्क चर्च के बाहर क्रिसमस झाँकी के पास चरनी में एक नवजात बालक को कोई छोड़कर चला गया l किसी परेशान युवा माँ ने उसे गर्म कपड़ो में लपेटकर ऐसे स्थान पर रख दिया था जहाँ वह दिखाई दे जाए l यदि हम उसका न्याय करन चाहते हैं, इसके बदले हम धन्यवाद दें कि इस शिशु को अब जीवन मिल सकता है l
यह मेरे लिए व्यक्तिगत है l खुद एक दत्तक संतान होकर, मैं अपने जन्म के विषय अज्ञान हूँ l किन्तु मैं कभी परित्यक्त महसूस नहीं किया l मैं इतना जानता हूँ, मेरी दो माताएं हैं जो मुझे जीवित चाहती थीं l एक ने मुझे जन्म दिया, और दूसरे ने अपना जीवन मुझमें निवेश किया l
हम निर्गमन में एक परेशान प्रेमी माँ को देखते हैं l फिरौंन ने सभी यहूदी लड़कों को मारने की आज्ञा दी थी (1:22) l मूसा की माँ ने उसको जब तक छिपा सकी छिपाया l मूसा के तीन माह का होने पर उसने उसे एक सुरक्षित टोकरी में रखकर नील नदी में छोड़ दिया l यदि योजना राजकुमारी द्वारा बच्चे को बचाना थी, फिरौंन के महल में परवरिश थी, और आख़िरकार लोगों को दासत्व से छुड़ाना थी, यह बिलकुल पूरी हुई l
जब एक परेशान माँ अपने बच्चे को एक मौका देती है, परमेश्वर वहाँ से उसे उठा लेता है l उसकी ऐसी आदत है-अत्यधिक अकल्पनीय रचनात्मक तरीकों से l
आनंद फैलाना
जब जेनेट विदेश में एक स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाने गयी, वातावरण मनहूस और निराशाजनक था l लोग अपने कार्य करते थे, लेकिन कोई खुश नहीं लगते थे l वे परस्पर मदद या उत्साहित नहीं करते थे l किन्तु, परमेश्वर के समस्त प्रावधानों के लिए कृतघ्न, जेनेट, अपने कार्यों में दर्शाती थी l वह मुस्कराती और मित्रवत थी l वह आगे बढ़कर लोगों की मदद करती थी l वह गाने और गीत गुनगुनाती थी l
धीरे-धीरे, जेनेट द्वारा अपना आनंद बांटते समय, स्कूल का वातावरण बदल गया l एक-एक करके लोग मुस्कराने और परस्पर मदद करने लगे l जब एक अतिथि प्रशासनिक अधिकारी प्राचार्य से पूछा क्यों उसका स्कूल भिन्न है, प्राचार्य जो विश्वासी नहीं था, जवाब दिया, “यीशु आनंद लता है l” जेनेट प्रभु के उमंडनेवाले आनंद से पूर्ण थी और यह उसके चारों ओर के लोगों तक छलक रहा था l
लूका का सुसमाचार हमें बताता है कि परमेश्वर ने स्वर्गदूत को साधारण चरवाहों तक असाधारण जन्म की घोषणा करने हेतु भेजा l स्वर्गदूत ने चकित करनेवाली घोषणा की कि नवजात शिशु “सबके लिए आनंद लेकर आएगा” (लूका 2:10), जो उसने किया l
उस समय से यह सन्देश सदियों से हम तक पहुँच रहा है, और अब हम आनंद फैलानेवाले मसीह के संदेशवाहक हैं l अंतर्निवास करनेवाले पवित्र आत्मा द्वारा, हम यीशु के आदर्श पर चलकर और दूसरों की सेवा करके उसका आनंद फैलाते हैं l
शत्रु प्रेम
1950 में युद्ध छिड़ने पर, 15 वर्षीय किम चीन-क्युंग ने अपने देश की रक्षा के लिए दक्षिण कोरियाई सेना में भर्ती हुआ l जल्द ही वह समझ गया कि वह युद्ध की विभीषिका के लिए तैयार नहीं था l अपने चारों ओर अपने मित्रों को मरते देखकर उसने परमेश्वर से आग्रह किया कि जीवन मिलने पर वह अपने शत्रुओं से प्रेम करना सीखेगा l
65 वर्ष बाद, डॉ. किम ने प्रार्थना का उत्तर देखा l दशकों, अनाथों की सेवा और उत्तर कोरियाई और चीनी युवकों की शिक्षा में सहयोग द्वारा उन्होंने अनेक शत्रुओं को मित्र बनाया था l आज वे राजनैतिक उपनाम से दूर रहकर, यीशु में विश्वास के होकर खुद को प्रेम करनेवाला पुकारते हैं l
योना नबी ने एक भिन्न विरासत छोड़ा l एक महामच्छ के पेट से नाटकीय बचाव पश्चात भी उसका हृदय नहीं बदला l यद्यपि आखिर में वह परमेश्वर का आज्ञाकारी बना, उसने कहा कि परमेश्वर द्वारा उसके शत्रु पर दया करते देखने की बजाए उसके लिए मरना ही अच्छा है (योना 4:1-2, 8) l
योना निनवे के लोगों से प्रेम करना सीखा या नहीं, हम केवल अनुमान लगा सकते हैं l किन्तु हम अपने विषय सोचें l क्या हम उनके प्रति योना का आचरण अपनाएंगे जिनसे हम डरते हैं और घृणा करते हैं? या अपने शत्रु से प्रेम करने की योग्यता मांगेंगे जैसे परमेश्वर ने हम पर करुणा की है l
तुम उसे क्या कहते हो?
1929 के एक शनिवार संध्या अखबार के साक्षात्कार में, अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा, “बचपन में मैं बाइबिल और तालमूद(यहूदी धर्म साहित्य) दोनों ही की शिक्षा प्राप्त की, किन्तु मैं नासरी . . . . के प्रकाशमान रूप द्वारा सम्मोहित हूँ l कोई भी यीशु की उपस्थिति की वास्तविकता अनुभव किये बगैर सुसमाचारों को नहीं पढ़ सकता l उसका व्यक्तित्व प्रत्येक शब्द में धड़कती है l ऐसे जीवन में कोई मिथ्या नहीं है l”
नया नियम हमें यीशु के देशवासियों का उदहारण देता है जो उसके विषय कुछ विशेष पाते थे l जब यीशु ने अपने अनुयायियों से पुछा, “लोग मनुष्य के पुत्र को क्या कहते हैं?” उनके उत्तर थे कि कुछ यूहन्ना बप्तिस्मा देनेवाला, दूसरे कहते हैं वह एलिय्याह है, और अन्य उसे यिर्मयाह अथवा कोई और नबी (मत्ती 16:14) l इस्राएल के महान नबियों के साथ गिनती वास्तव में एक सम्मान था, किन्तु यीशु को सम्मान नहीं चाहिए था l वह उनकी समझ देखना चाहता था और विश्वास खोज रहा था l इसलिए उसने दूसरा प्रश्न किया : “परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो? (16:15) l
पतरस की घोषणा ने पूरी तरह यीशु की पहचान बता दी: “तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है” (पद.16) l
यीशु चाहता है कि हम उसको और उसके बचानेवाले प्रेम को जाने l इसलिए हममें से प्रत्येक को इस प्रश्न का उत्तर देना ही होगा, “आप के लिए यीशु कौन है?”
हमारा आवरण
मसीह में विश्वास के विषय संवाद करते समय, हम कभी-कभी शब्दों का उपयोग बगैर समझ और बिना समझाए करते हैं l उनमें से एक शब्द धर्मी है l हम कहते हैं कि परमेश्वर में धार्मिकता है और कि वह लोगों को धर्मी बनाता है, किन्तु यह विचार समझने में कठिन है l
चीनी भाषा में जिस तरह शब्द धार्मिकता लिखी हुई है सहायक है l यह दो शब्दों का मेल है l उपरी शब्द है भेड़ l नीचला शब्द है मुझे l भेड़ ढांकता है या व्यक्ति के ऊपर है l
यीशु के इस संसार में आने के बाद यूहन्ना बप्तिस्मादाता ने उसे “परमेश्वर का मेमना,’ पुकारा “ जो जगत का पाप उठा ले जाता है” (यूहन्ना 1:29) l हमारे पापों को जाना ही होगा क्योंकि यह हमें सिद्ध और सही परमेश्वर से अलग करता है l क्योंकि उसका प्रेम हमारे लिए अत्याधिक है, परमेश्वर ने अपने पुत्र यीशु को “जो पाप से अज्ञात था, उसी को उसने हमारे लिए पाप ठहराया कि हम उसमें होकर परमेश्वर की धार्मिकता बन जाएं” (2 कुरिं.5:21) l
मेमना यीशु, ने खुद को बलिदान करके अपना लहू बहाया l वह हमारा “बचाव” बना l वह हमें धर्मी बनाता है, जो हमें परमेश्वर के साथ सही सम्बन्ध में पहुंचाता है l
परमेश्वर के साथ सही होना उसकी ओर से उपहार है l मेमना यीशु, हमें ढंकने का परमेश्वर का तरीका है l
सुख का दूसरा पहलु
हमारे व्यस्क कैंप की विषय-वस्तु थी, “मेरे लोगों को सुख दें l” सभी उपदेशकों ने आश्वास किया l किन्तु अंतिम उपदेशक का स्वर कठोर था l उन्होंने यिर्मयाह 7:1-11 से कहा “नींद से जागें l” उन्होंने स्पष्टता और प्रेम से, नींद से जागकर पाप से फिरने की चुनौती दी l
उन्होंने नबी यिर्मयाह समान नसीहत दी, “परमेश्वर के अनुग्रह के पीछे न छिपें और गुप्त पाप छोड़ें l” “हम गर्व करते हैं, ‘मैं मसीही हूँ; परमेश्वर मुझसे प्रेम करता है; मैं बुराई से डरता नहीं,’ फिर भी हम बुराईयाँ करते हैं l”
हमें ज्ञात था वह हमारे विषय चिंतित था, फिर भी हम उसकी घोषणा से अपनी सीटों पर बेचैन थे, “परमेश्वर प्रेमी और भस्म करनेवाली आग भी है! (देखें इब्रा. 2:29) l वह पाप को माफ़ नहीं करेगा!”
प्राचीन यिर्मयाह लोगों को घबरा किया, “तुम जो चोरी, हत्या और व्यभिचार करते, झूठी शपथ खाते ...दूसरे देवताओं के पीछे ... चलते हो, तो क्या यह उचित है कि तुम इस भवन में आओ जो मेरा कहलाता है, और मेरे सामने ... कहो, ‘हम छूट गए हैं,’ कि ये सब घृणित काम करें?” (7:9-10) l
इस उपदेशक का किस्म “मेरे लोगों को सुख दें” परमेश्वर के सुख का दूसरा पहलु था l जैसे एक कड़वी औषधि मलेरिया ठीक करती है, उसके शब्द आत्मिक स्वास्थ्य देनेवाले थे l कठोर शब्द सुनते समय, मुहं न फेरकर, उसके स्वास्थ्यवर्धक प्रभाव को अपनाएं l
अल्प निद्रा
एक अन्य युग के स्कॉटलैंड के पास्टर, हेनरी दर्बनविले, स्कॉटलैंड के एक सुदूर इलाके में रहनेवाली अपनी ही कलीसिया की एक वृद्ध महिला के विषय बताते हैं l वह एडिनबर्ग शहर देखना चाहती थी, किन्तु उस लम्बे, अँधेरे सुरंग से भय खाती थी जिसमें से होकर ट्रेन जाती थी l
एक दिन, हालाँकि, अवस्था ने उसे एडिनबर्ग जाने को मजबूर किया, और ट्रेन तेज गति से शहर की ओर चली जिससे उसकी घबराहट बढ़ गई l किन्तु ट्रेन के सुरंग में पहुँचने से पूर्व उसकी आँख लग गई और वह गहरी नींद में सो गई l जागने पर उसने खुद को शहर में पाया!
यह संभव है कि हम सब मृत्यु का अनुभव नहीं करेंगे l यीशु के लौटने पर यदि हम जीवित रहेंगे, हम “हवा में प्रभु से [मिलेंगे]” (1 थिस्स. 4:13-18) l किन्तु हममें से अनेक मृत्यु द्वारा प्रभु से मिलेंगे और यह विचार बहुत घबराहट पैदा करती है l हमारी चिंता है कि मृत्यु की प्रक्रिया सहना बहुत कठिन है l
अपने उद्धारकर्ता यीशु के आश्वासन द्वारा हमें भरोसा है कि पृथ्वी पर अपनी आँखें बंद करके मृत्यु से गुजरने पर हम परमेश्वर की उपस्थिति में अपनी आँखें खोलेंगे l “हमारी अल्प निद्रा पश्चात हम अनंत में जागेंगे,” जॉन डॉन कहते हैं l
ज्योति में रहना
अंधकारमय सुबह, आसमान में स्टील के रंग के बादल, वातावरण अँधेरा होने के कारण मुझे पुस्तक पढ़ने के लिए बत्ती जलानी पड़ी l मेरे कमरे में आराम करने आया ही था जब कमरा प्रकाशित हो गया l मैंने देखा कि हवा बादलों को पूरब की ओर उड़ा ले जा रही थी, आकाश साफ़ हो रहा था और सूरज दिखाई देने लगा था l
जब मैं यह दृश्य देखने खिड़की तक गया, एक विचार आया : “अन्धकार मिटता जाता है और सत्य की ज्योति अब चमकने लगी है” (1 यूहन्ना 2:8) l प्रेरित यूहन्ना ने विश्वासियों को प्रोत्साहित करने हेतु ये शब्द लिखे l वह आगे कहता है, “जो कोई अपने भाई से प्रेम रखता है वह ज्योति में रहता है, और ठोकर नहीं खा सकता” (पद.10) l तुलनात्मक रूप से, उसने घृणा करने वालों की तुलना अँधेरे में चलनेवालों से किया l घृणा दिशा भ्रमित करता है; वह हमारी नैतिक दिशा बोध छीन लेता है l
लोगों से प्रेम करना सरल नहीं है l किन्तु खिड़की से देखते हुए मैंने निराशा, क्षमा, और विश्वासयोग्यता को परमेश्वर के प्रेम और ज्योति में बने रहने का परिणाम महसूस किया l घृणा के बदले प्रेम का चुनाव करके, हम उसके साथ अपने सम्बन्ध दर्शाते हैं और अपने चारों ओर के संसार तक उसका प्रकाश चमकाते हैं l “परमेश्वर ज्योति है और उसमें कुछ भी अन्धकार नहीं” (1 यूहन्ना 1:5) l