शिविर-स्थल भजन
जब हम पति-पत्नी प्रकृति देखने जाते हैं, हम अपने कैमरे से अपने पाँवों के निकट संसार का सूक्ष्म रूप समान दिखाई दिखनेवाले पौधों के भी फ़ोटो पास से खींचते हैं l रात-ही-रात में उगने वाले, जंगलों में चमकीले नारंगी, लाल, और पीले रंगों की छठा बिखेरते कुकुरमुत्ते में हम अदभुत विविधता और सुन्दरता देखते हैं!
जीवन के चित्र मुझे अपनी आँखें केवल कुकुरमुत्ते को नहीं किन्तु आसमान के तारों को निहारने की प्रेरणा देते हैं l उसने अनंत विस्तार और विविधता का संसार अभिकल्पित किया l और उसने हमें इस खूबसूरती का आनंद लेने और इसको अपने अधिकार में करने हेतु रचकर इसके बीच रखा (उत्पत्ति 1:27-28; भजन 8:6-8) l
मेरा ध्यान हमारे परिवार के एक शिविर-स्थल भजन-जिसे हम आग के चारों ओर बैठकर पढ़ते हैं-की ओर जाता है l “हे यहोवा हमारे प्रभु, तेरा नाम सारी पृथ्वी पर क्या ही प्रतापमय है! तू ने अपना वैभव स्वर्ग पर दिखाया है . . . जब मैं आकाश को, जो तेरे हाथों का कार्य है, और चन्द्रमा और तारागन को जो तू ने नियुक्त किए हैं, देखता हूँ; तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे, और आदमी क्या है कि तू उसकी सुधि ले?” (भजन 8:1-4) l
यह कितना अदभुत है कि समस्त भव्यता के इस संसार का सृष्टिकर्ता आपकी और मेरी चिंता करता है!
सलाहकार
मैं हवाई जहाज़ से घर से हजारों मील दूर एक शहर में अध्ययन करने हेतु जाते समय घबराई हुई और अकेली महसूस कर रही थी l किन्तु हवाई जहाज़ में मुझे यीशु के अपने शिष्यों को दी गई पवित्र आत्मा की शांतिदायक उपस्थिति की प्रतिज्ञा याद आई l
“मेरा जाना तुम्हारे लिए अच्छा है” (यूहन्ना 16:7), यीशु के मित्र उसके इस कथन से चकित हुए होंगे l किस तरह वे उसके आश्चर्यकर्मों की साक्षी और उसकी शिक्षा से सीखकर उसके बिना अच्छे रहेंगे? किन्तु यीशु ने उनसे कहा कि उसका उनसे अलग होने के बाद, सहायक-पवित्र आत्मा-आएगा l
यीशु संसार से अपने प्रस्थान के अंतिम घंटों से पूर्व अपने शिष्यों को अपनी मृत्यु और स्वर्गारोहण समझने में सहायता की (यूहन्ना 14-17 में), जिसे आज “अंतिम संवाद” कहा जाता है l इस संवाद का केंद्र उनके साथ रहनेवाला, पवित्र आत्मा था (14:16-17), एक सहायक जो उनके साथ रहकर (14:16-17), उनको सिखाएगा (15:15), गवाही देगा (पद.26), और उनका मार्गदर्शन करेगा (16:13) l
हम जिन्होंने परमेश्वर के नए जीवन की पेशकश को स्वीकारा है, में उसका आत्मा निवास करता है l उससे हम बहुत पाते हैं : वह हमें पाप के प्रति निरुत्तर करके हमें पश्चाताप तक पहुंचता है l वह हमारे दुःख में सान्त्वना, कठिनाई सहने में सामर्थ, परमेश्वर की बातें समझने में बुद्धिमत्ता, भरोसा करने में आशा और विश्वास, और बांटने में प्रेम देता है l
वायलेट के साथ गाना
जमाइका के एक अस्पताल में कुछ किशोरों ने एक वृद्ध महिला, वाएलेट को अपने बिस्तर पर बैठे मुस्कराते देखा l उसके छोटे समूह निवास में गर्म, चिपचिपी दोपहर की हवा पूरे आवेश में आ रही थी, किन्तु उसने शिकायत नहीं की किन्तु एक गीत गाना चाही l और उसने मुस्कराकर गाया, “मैं दौड़ती, उछलती, कूदती हुई प्रभु की स्तुति कर रही हूँ!” गाते समय वह अपनी बाहों को आगे पीछे हिला रही थी, मानो वह दौड़ रही हो l लोगों की आँखें नम हुईं, क्योंकि वायलेट के पास पैर नहीं थे l वह गाती हुए बोली, “यीशु मुझसे प्रेम करता है- और स्वर्ग में दौड़ने के लिए मेरे पास पैर होंगे l”
जब फिलिप्पियों 1 में पौलुस जीवन और मृत्यु की बात करता है वाएलेट का आनंद और आशापूर्ण प्रत्याशा उसके शब्दों को नयी गूंज देती है l उसने कहा, “यदि शरीर में जीवित रहना ही मेरे काम के लिए लाभदायक है तो मैं नहीं जानता कि किसको चुनूँ l ...जी तो चाहता है कि कूच करके मसीह के पास जा रहूँ, क्योंकि यह बहुत ही अच्छा है” (पद.22-23) l
हममें से प्रत्येक कठिन अवस्था में स्वर्गिक विश्राम चाहते हैं l किन्तु जैसे वाएलेट ने अपनी स्थिति में आनंद प्रगट किया, हम भी “दौड़ते, उछलते, और कूदते हुए प्रभु की प्रशंसा कर सकते हैं-वर्तमान के बहुतायत के जीवन के लिए और भावी आनंद के लिए l
अँधेरे पथ
पारिवारिक अवकाश से घर लौटते समय, सड़क मध्य ऑरेगन के कुछ विरान भाग से होकर थी l लगभग दो घंटों तक हम गहरी घाटियों और मरुभूमि के पठारी क्षेत्रों से होकर निकले l अन्धकार में दस से भी कम गाड़ियों की हेड लाइट्स दिखाई दीं l आख़िरकार, पहाड़ों के बीच-बीच क्षितिज पर चाँद दिखाई दिया, किन्तु निचले क्षेत्रों से जाते समय छिप गया l मेरी बेटी ने चाँद के प्रकाश को परमेश्वर की उपस्थिति का ताकीद कहा l मैं परमेश्वर की उपस्थिति बताने हेतु उससे उसे देखने के लिए कहा l उत्तर था, “नहीं, किन्तु यह अवश्य ही लाभदायक रहेगा l
मूसा की मृत्यु पश्चात, यहोशू को परमेश्वर की चुनी हुई इस्राएली प्रजा को प्रतिज्ञात देश में ले जाने हेतु नेतृत्व मिला l दिव्य अधिकार-पत्र प्राप्ति बाद भी, यहोशू कार्य के चुनौतीपूर्ण स्वभाव से चुनौती महसूस किया होगा l परमेश्वर ने भविष्य की यात्रा में यहोशू के साथ रहने का आश्वासन दिया (यहोशू 1:9) l
जीवन का मार्ग अनिश्चित क्षेत्र से गुज़रता है l हम अस्पष्ट मार्गों में भिन्न स्थितियों में गुज़रते हैं l परमेश्वर का मार्ग सर्वदा दिखाई नहीं देता, किन्तु उसने “जगत के अंत तक सदा” साथ रहने की प्रतिज्ञा की है (मत्ती 28:20) l चाहे कोई भी अनिश्चितता या चुनौती हो हमारे पास महान आश्वासन है l अँधेरे मार्ग में भी, ज्योति हमारे साथ है l
अत्यधिक अच्छा, बाँटना ही होगा
कचहरी की कार्यवाही के मध्य, दर्शकों से अधिक संख्याओं में गवाह होते हैं l किसी केस का परिणाम निर्धारित करने में ये क्रियाशील भागीदारी निभाते हैं l मसीह के लिए हम गवाहों के साथ भी ऐसा ही है l हमें निरपेक्ष महत्त्व अर्थात् यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान के विषय क्रियाशील भागीदार बनना है l
यूहन्ना बपतिस्मादाता लोगों को जगत की ज्योति, यीशु के विषय बताते हुए यीशु के विषय अपने ज्ञान द्वारा घोषणा किया l और इन घटनाओं का लेखक, शिष्य यूहन्ना, ने यीशु के साथ अपने अनुभव की गवाही दी : “वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उसकी ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा” (यूहन्ना 1:14) l प्रेरित पौलुस अपने युवा शिष्य, तीमुथियुस को बताया, “और जो बातें तू ने बहुत से गवाहों के सामने मुझ से सुनी हैं, उन्हें विश्वासी मनुष्यों को सौंप दे; जो दूसरों को भी सिखाने के योग्य हों” (2 तीमू. 2:2) l
मसीही के रूप में हम भी संसार की कचहरी में उपस्थित हैं l बाइबिल अनुसार हम भागिदार हैं l यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान की सच्चाई के गवाह हैं l यूहन्ना बपतिस्मादाता मरुभूमि में पुकारनेवाली एक आवाज़ था l हमारी आवाज़ हमारे कार्यस्थल, पड़ोस, चर्च और परिजनों और मित्रों में सुनाई दे l हम अपने जीवनों में यीशु की सच्चाई के क्रियाशील गवाह हो सकते हैं l
इंतज़ार का बोझ
पिछले कुछ वर्षों में, मेरे परिवार के दो लोगों ने घातक बिमारियों का सामना किया l मेरे लिए उनके इलाज में सहयोग का कठिनतम भाग निरंतर अनिश्चितता रही है l मैं हमेशा डॉक्टर के निश्चित उत्तर के विषय निराश रहा हूँ, किन्तु शायद ही स्थितियाँ रही हों l स्पष्टता की जगह, हमें ठहरने को कहा जाता है l
अनिश्चितता का बोझ उठाना कठिन है, सर्वदा अगली जांच के लिए उत्सुक l क्या हमें मृत्यु द्वारा अलगाव से पूर्व सप्ताह, महिना, साल, या दशक का समय मिलेगा? किन्तु बिमारी और इलाज के बावजूद, एक दिन हमारी मृत्यु होगी-कैंसर जैसी बातें हमारी नश्वरता को हमारे मस्तिष्क के रिक्त स्थानों में छिपाने की जगह हमारे सामने ला देती हैं l
हमारी नश्वरता की ऐसी गंभीर ताकीद से सामना होने पर, मैं मूसा की प्रार्थना करने लगता हूँ l भजन 90 हमसे कहता है कि यद्यपि हमारे जीवन घास के समान मुर्झा और सुख जाती है(पद.5-8), हमारे पास परमेश्वर के साथ अनंत निवास है(पद.1) l मूसा के समान, हम बुद्धिमान निर्णय लेने हेतु, परमेश्वर से अपने दिन गिनने की (पद.12), और अपने कार्यों द्वारा अपने संचिप्त जीवनों को उसके सामने महत्वपूर्ण बनाने हेतु समझ मांगे(पद.17) l अनन्तः, यह भजन ताकीद देता है कि डॉक्टर के इलाज पर हमारी आशा नहीं किन्तु “अनादिकाल से अनंतकाल तक” के परमेश्वर पर है l
अँधेरे में स्तुति
अपनी आखों की रोशनी जाते देख कर भी मेरा मित्र मिकी ने कहा, “मैं प्रतिदिन परमेश्वर की स्तुति करता रहूँगा, क्योंकि उसने मेरे लिए बहुत किया है l”
यीशु ने मिकी और हमें निरंतर स्तुति करने का परम कारण किया है l मत्ती 26 अध्याय हमें बताता है कि यीशु किस तरह क्रूसित होने से पूर्व अपने शिष्यों के साथ फसह का भोज खाया l पद 30 हमें भोज का अंत बताता है : “फिर वे भजन गाकर जैतून पहाड़ पर गए l”
यह भजन कोई और नहीं स्तुति का भजन था l हजारों वर्षों से, यहूदियों ने फसह के समय “हल्लेल” [Hallel] नमक भजनों का एक समूह गाते आएं हैं (इब्री भाषा में हल्लेल अर्थात “स्तुति” है l) भजन 113-118 में पायी जानेवाली प्रार्थनाएं और गीत हमारे उद्धारक परमेश्वर के आदर में है (118:21) l वह निकम्मा ठहराए गए पत्थर का सन्दर्भ देता है जो कोने का सिरा हो गया (पद. 22) और जो प्रभु के नाम में आता है (पद.26) l वे यह भी गा सकते थे, “आज वह दिन है जो यहोवा ने बनाया है; हम इसमें मगन और आनंदित हों” (पद.24) l
यीशु ने अपने शिष्यों के साथ स्तुति करके, हमें हमारे तात्कालिक स्थितियों से ऊपर नज़र उठाने का अंतिम कारण दे रहा था l वह हमारे परमेश्वर के अविरल प्रेम और विश्वासयोग्यता की प्रशंसा में अगुवाई कर रहा था l
क्या मैं क्षमा करूँ?
मैं एक घटना की तैयारी हेतु अपने चर्च में जल्दी पहुँच गयी l अतीत में मेरे प्रति क्रूर और आलोचनात्मक रही एक स्त्री चर्च की वेदी के दूसरी ओर खड़ी रो रही थी l इसलिए मैंने जल्द ही वैक्युम क्लीनर की आवाज़ में उसकी सिसकियों को दबा दिया l मुझे पसंद नहीं करने वाले की चिंता मैं करूँ क्यों?
पवित्र आत्मा ने मुझे परमेश्वर की बड़ी क्षमा स्मरण करायी l मैं उसके पास गयी l उस स्त्री ने बताया कि उसका बच्चा हॉस्पिटल में महीनों से भरती है l हम रोए, गले मिले, और उसकी बेटी के लिये प्रार्थना की l अपने मतभेदों को मिटाकर, अब हम अच्छे मित्र थे l
मत्ती 18 में, यीशु स्वर्गिक राज्य की तुलना एक राजा से करता है जो हिसाब करना चाहता है l एक अत्यधिक कर्ज़दार दास ने दया माँगी l राजा द्वारा क्षमा मिलने पर उसने अपने एक कर्ज़दार व्यक्ति को दोषी ठहराया जो राजा के प्रति उससे कम कर्ज़दार था l राजा ने, क्षमा नहीं करने के कारण दुष्ट दास को कैद कर दिया (पद. 23-34) l
क्षमा करने का चुनाव पाप की अनदेखी नहीं है, गलतियों को बहाना नहीं मानता, अथवा हमारी क्षति को कम नहीं करता l क्षमा केवल परमेश्वर की अनर्जित करुणा का आनंद लेने में मदद करता है, जब हम उसको अपने जीवनों और हमारे संबंधों में शांति अर्थात अनुग्रह के कार्य करने देते हैं l
स्मृति की सेवा
हानि, और निराशा के हमारे अनुभव हमें क्रोधित, दोषी और भ्रमित करते हैं l चाहे हमारे चुनावों के कारण कुछ दरवाज़े नहीं खुलेंगे अथवा, हमारे दोष के बगैर, त्रासदी हमारे जीवनों में है, परिणाम अक्सर वही है जिसे ऑस्वाल्ड चेम्बर्स कहते हैं ‘हो सकता है’ का “अगाध दुःख l” हम दर्दनाक स्मृति को दबाने में असफल होंगे l
चैम्बर्स हमें याद दिलाते हैं कि परमेश्वर हमारे जीवनों में क्रियाशील है l “जब परमेश्वर अतीत को वापस लाए कभी भयभीत न होना,” उसने कहा l “स्मृति को कार्य करने दें l यह डांट, दंड और दुःख के साथ परमेश्वर का मंत्री है l परमेश्वर ‘हो सकता है’ को भविष्य हेतु एक अदभुत संस्कृति [उन्नति का स्थान] में बदल देगा l
जब परमेश्वर ने पुराने नियम के समय इस्राएलियों को बेबिलोन के निर्वासन में भेजा, उनको वापस उनके घर लाने तक उसने उनको उस विदेशी भूमि पर अपने विश्वास में बढ़ने को कहा l “क्योंकि यहोवा की यह वाणी है, कि जो कल्पनाएँ मैं तुम्हारे विषय करता हूँ उन्हें मैं जानता हूँ, वे हानि की नहीं, वरन् कुशल ही की हैं, और अंत में तुम्हारी आशा पूरी करूँगा” (यिर्मयाह 29:11) l
परमेश्वर ने उनको अतीत की घटनाओं को नज़रंदाज़ नहीं करने अथवा उनमें फंसने के बदले उस पर केन्द्रित होकर आगे देखने को कहा l परमेश्वर की क्षमा हमारे दुःख की स्मृति को उसके अनंत प्रेम में भरोसा में बदल सकती है l