Month: अक्टूबर 2017

अन्य प्रकार का प्रेम

अनेक वर्ष पूर्व मेरा एक पसंदीदा चर्च पूर्व-कैदियों के बीच एक सेवा के रूप में आरंभ हुआ जो समाज की मुख्य धारा में लौट रहे थे l वर्तमान में उस कलीसिया में समाज के हर क्षेत्र के लोग हैं l मैं उस कलीसिया को पसंद करता हूँ क्योंकि वह स्वर्ग की एक तस्वीर है-जिसमें विभिन्न तरह के लोग हैं, बचाए गए पापी, यीशु के प्रेम से बंधे हुए लोग l

कभी-कभी, यद्यपि, मुझे कलीसिया क्षमा प्राप्त पापियों के लिए एक सुरक्षित-आश्रय की जगह एक विशेष क्लब की तरह लगती है l जब लोग स्वाभाविक रूप से खींचकर “ख़ास प्रकार के” समूहों और झुंडों में उन लोगों के चारों ओर इकट्ठे हो जाते हैं जिनके साथ वे आरामदायक महसूस करते हैं, तब दूसरें अपने को अधिकार विहीन समझने लगते हैं l किन्तु जब यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि “जैसे मैंने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम घी एक दूसरे से प्रेम रखो” (यूहन्ना 15:12) उसके मस्तिष्क में उपरोक्त बात नहीं थी l उसकी कलीसिया को उसके प्रेम का विस्तार  होना था जिसमें सभी परस्पर भागीदार थे l

यदि दुखित, उपेक्षित लोग यीशु में स्नेही शरण, आराम, और क्षमा प्राप्त कर सकते हैं, उनको कलीसिया से कम अपेक्षा नहीं करनी चाहिए l इसलिए हम सभी के सामने यीशु के प्रेम को प्रदर्शित करें-विशेष रूप से उनके सामने जो हमसे भिन्न हैं l हमारे चारों ओर लोग हैं जिन्हें यीशु हमारे द्वारा प्रेम करना चाहता है l प्रेम में एक साथ आराधना करना कितना आनंदायक है-स्वर्ग का एक टुकड़ा जिसका आनंद हम पृथ्वी पर ले सकते हैं l

आपका सुरक्षित स्थान

मेरी बेटी और मैं एक बड़े पारिवारिक उत्सव के लिए तैयारी कर रहे थे l इसलिए कि वह उत्सव के विषय घबरायी हुई थी मैंने कहा कि मैं गाड़ी ड्राइव करुँगी l “ठीक है l किन्तु मैं अपनी कार में सुरक्षित महसूस करती हूँ l क्या आप चलाएंगी?” उसने पुछा l यह महसूस करके कि उसे मेरी गाड़ी छोटी लगती है, मैंने पूछा कि क्या मेरी गाड़ी बहुत छोटी थी l उसका उत्तर था, “नहीं, बस मेरी गाड़ी मुझे सुरक्षित लगती है l पता नहीं क्यों, मैं अपनी गाड़ी में आरामदायक महसूस करती हूँ l”

उसकी टिप्पणी ने मुझे मेरे “सुरक्षित स्थान” के सम्बन्ध में मुझे सोचने की चुनौती दी l तुरंत ही मैंने नीतिवचन 18:10 के विषय सोची, “यहोवा का नाम दृढ़ गढ़ है, धर्मी उसमें भागकर सब दुर्घटनाओं से बचता है l” पुराने नियम के काल में, दीवारें और पहरे की मीनार लोगों को बाहरी खतरों की चेतावनी के साथ-साथ उनकी रक्षा भी करती थीं l लेखक बताना चाहता है कि परमेश्वर का नाम, जो उसका चरित्र है, व्यक्तित्व और सब कुछ है जो वह है, उसके लोगों को वास्तविक सुरक्षा देती है l

ख़ास भौतिक स्थान खतरनाक क्षणों में इच्छित सुरक्षा देने का वादा करते हैं l तूफ़ान के मध्य एक मजबूत छत l चिकित्सीय सहायता देनेवाला एक हॉस्पिटल l एक प्रिय का गले लगाना l

आपका “सुरक्षित स्थान” क्या है? हम जहाँ भी सुरक्षा खोजते हैं, उस स्थान पर हमारे साथ परमेश्वर की उपस्थिति ही है जो हमारी ज़रूरत में हमें ताकत और सुरक्षा देती है l

जब खूबसूरती ख़त्म नहीं होती

मुझे ग्रैंड घाटी देखना पसंद है l जब मैं घाटी के किनारे खड़ा होता हूँ, मैं परमेश्वर की चौंकानेवाली कृति देखता हूँ l 

यद्यपि वह भूमि में एक (बहुत बड़ा) “गड्ढा” है, ग्रैंड घाटी मुझे स्वर्ग पर विचार करने हेतु विवश करता है l एक बारह वर्षीय ईमानदार युवक ने एक बार मुझ से पूछा, “क्या स्वर्ग अरुचिकर नहीं होगा? क्या आप नहीं सोचते कि हम हमेशा परमेश्वर की प्रशंसा करते हुए थक जाएंगे?” किन्तु यदि भूमि में एक “गड्ढा” इतना जबरदस्त खुबसूरत है और हम उसे देखते नहीं थकते हैं, हम खूबसूरती के श्रोत-हमारे प्रेमी सृष्टिकर्ता-को नयी सृष्टि के सम्पूर्ण असली आश्चर्य में एक दिन देखने की कल्पना ही कर सकते हैं l

“एक वर मैंने यहोवा से माँगा है, उसी के यत्न में लगा रहूँगा; कि मैं जीवन भर यहोवा के भवन में रहने पाऊं, जिससे यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए रहूँ,” (भजन 27:4) दाऊद ने इन शब्दों को लिखते हुए यह इच्छा प्रगट की l परमेश्वर की उपस्थिति से सुन्दर कुछ नहीं, जो इस पृथ्वी पर हमारे निकट आती है जब हम भविष्य में उसका चेहरा आमने-सामने देखने की चाह में उसे विश्वास से खोजते हैं l

उस दिन हम अपने अद्भुत प्रभु की प्रशंसा करते हुए नहीं थकेंगे, क्योंकि हम उसकी उत्तम भलाई और उसके हाथों के कार्य के आश्चर्य की तरोताज़गी, और नयी खोज के अंत में कभी नहीं पहुंचेंगे l उसकी उपस्थिति उसकी खूबसूरती और उसके प्रेम का असाधारण प्रकाशन प्रगट करेगी l

हमारे पास सामर्थ्य है

कड़कड़ाहट की आवाज़ ने मुझे चौंका दिया l मैं आवाज़ को पहचानकर रसोई की ओर भागी l मैंने भूल से कॉफ़ी बनाने वाला बिजली का उपकरण ऑन कर दिया था l मैंने उपकरण का प्लग हटाकर, उसके तले को छूकर देखना चाही कि टाइल का काउंटर पैर रखने लायक बहुत गर्म तो नहीं है l उसके चिकने भाग से मेरी उंगलियाँ जल गयीं, और मेरे कोमल पैरों में छाले हो गए l

मेरे पति द्वारा मेरे घाव में दावा लगाते समय मैंने अपना सिर हिलाया l मैं जानती थी कि कांच गरम होगा l “मैं ईमानदारी से कहती हूँ, मुझे नहीं मालुम मैंने उसे क्यों छू दिया,” मैं बोली l

मेरी गलती ने मुझे वचन में एक गंभीर विषय, पाप के स्वभाव के विषय पौलुस का प्रतिउत्तर याद दिलाया l

प्रेरित स्वीकारता है कि जो वह करता है उस को नहीं जानता; क्योंकि जो वह चाहता है वह नहीं करता (रोमि. 7:15) l स्वीकार करते हुए कि वचन सही और गलत को निश्चित करता है (पद.7), वह पाप के विरुद्ध शरीर और आत्मा के बीच निरंतर चलनेवाली जटिल और वास्तविक युद्ध को पहचानता है (पद.15-23) l वह अपनी दुर्बलता स्वीकारते हुए, वर्तमान और सर्वदा की विजय की आशा प्रस्तुत करता है (पद.24-25) l

जब हम मसीह को अपना जीवन समर्पित करते हैं, वह हमें पवित्र आत्मा देता है जो हमें सही करने के लिए सामर्थी बनाता है (8:8-10) l जब वह हमें परमेश्वर का वचन मानने के लिए आज्ञाकारी बनाता है, हम झुलसाने वाले पाप से दूर हो सकते हैं जो हमें उस बहुतायत के जीवन से दूर करता है जो परमेश्वर अपने प्रेम करनेवाले को देने की प्रतिज्ञा की है l

पत्थरों से सामना

शताब्दियों के युद्ध और विनाश के बाद, यरूशलेम का आधुनिक शहर वस्तुतः अपने ही मलबा पर बना है l एक पारिवारिक भ्रमण पर, हम विया दोलोरोसा अर्थात् दुःख के मार्ग पर चले, परंपरा अनुसार वह मार्ग जिसपर यीशु क्रूस लेकर चला था l दिन गर्म था, इसलिए हम विश्राम के लिए ठहरकर सिस्टर्स के मठ के ठन्डे तलघर घूमें l वहाँ मैंने रास्ते के प्राचीन पत्थर देखे जो हाल ही के निर्माण के समय खोद कर निकले गए थे-ऐसे पत्थर जिनपर खेल खुदे हुए थे जो रोमी सिपाही अपने खाली समय में खेलते थे l

वे ख़ास पत्थर, जो संभवतः यीशु के काल के बाद के थे, ने मुझे मेरे आत्मिक जीवन पर विचार करने को विवश किया l एक थका हुआ और व्यर्थ समय बिताते हुए रोमी सिपाही की तरह, मैं परमेश्वर और दूसरों के प्रति लापरवाह और अस्नेही हो गया था l मैं याद करके द्रवित हुआ कि उस स्थान के निकट जहाँ में खड़ा था, प्रभु पर मार पड़ी, उसका उपहास किया गया, उसकी निंदा की गयी, और उसे अपमानित किया गया जब उसने मेरे समस्त पराजय और विरोध को अपने ऊपर ले लिए l

“वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया; हमारी ही शांति के लिए उस पर ताड़ना पड़ी, कि उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो जाएँ” (यशा. 53:5) l

उन पत्थरों से मेरा सामना अभी भी मुझसे यीशु के स्नेही अनुग्रह की बात करता है जो मेरे समस्त पापों से महान है l

अदृश्य प्रभाव

वाशिंगटन डी सी, में राष्ट्रीय कला भवन का सैर करते हुए मैंने अति उत्तम रचना “द विंड” देखा l तस्वीर में एक जंगल में आंधी चल रही थी l ऊंचे, पतले पेड़ बायीं ओर झुक रहे थे l झाड़ियाँ उसी दिशा में गिर रहीं थीं l

इससे भी अधिक सामर्थी भाव में, पवित्र आत्मा विश्वासियों को परमेश्वर की भलाई और सच्चाई की ओर झुका सकता है l पवित्र आत्मा के साथ चलकर, हम अधिक साहसी और प्रेमी बन सकते हैं l हम अधिक समझदारी से अपनी इच्छाओं को सँभाल सकेंगे (2 तीमु. 1:7) l

कुछ एक स्थितियों में, हालाँकि, पवित्र आत्मा हमें आत्मिक उन्नत्ति और बदलाव की ओर ले जाता है, किन्तु हम “नहीं” कहते हैं l वचन लगातार इस दृढ़ विश्वास में अवरोध उत्पन्न करने को “आत्मा को” बुझाना कहती है (1 थिस्स. 5:19) l समय के साथ, जिन बातों को हम गलत मानते थे अब उतने बुरे नहीं लगते l

परमेश्वर के साथ हमारा सम्बन्ध दूर और टूटा महसूस होता है, क्योंकि आत्मा के दृढ़ निश्चय को बारम्बार किनारे किया गया है l जितने लम्बे समय तक ऐसा होगा, समस्या का कारण जानना उतना ही कठिन होगा l धन्यवाद हो, हम प्रार्थना करके परमेश्वर से हमारे पाप प्रगट करने का आग्रह कर सकते हैं l यदि हम पाप से मन फिराकर स्वयं को पुनः उसके सामने समर्पित करते हैं, परमेश्वर हमें क्षमा करके हमारे अन्दर अपनी आत्मा की सामर्थ और प्रभाव को जागृत करेगा l

कमरा नंबर 5020

जे बफन ने अपने हॉस्पिटल के कमरे को एक प्रकाशस्तंभ में बदल दिया l

बावन वर्षीय वृद्ध पति, पिता, हाई स्कूल शिक्षक, और कोच कैंसरग्रस्त था, किन्तु उसका कमरा नंबर 5020 मित्र, परिवार, और हॉस्पिटल कार्यकर्ताओं के लिए आशा का प्रकाशस्तंभ बन गया l उसके आनंदित आचरण और मजबूत विश्वास के कारण नर्सेज चाहती थीं कि उनकी ड्यूटी जे के कमरे में लगायी जाए l कुछ एक तो ड्यूटी समाप्त होने पर भी उससे मिलने आती थीं l

यद्यपि एक समय उसका मजबूत शरीर दुर्बल होता जा रहा था, वह सभी से मुस्कराकर  और उत्साह के साथ मिलता था l एक मित्र ने कहा, “जे से हर मुलाकात के समय वह प्रसन्न, सकारात्मक और आशापूर्ण दिखाई देता था l कैंसर और मृत्यु सामने होने पर भी वह अपने विश्वास को जी रहा था l”

जे के अंतिम संस्कार के समय, एक वक्ता ने ध्यान दिया कि कमरा नंबर 5020 विशेष रूप से अर्थपूर्ण था l उसने उत्पत्ति 50:20 की ओर इशारा किया, जिसमें युसूफ कहता है कि यद्यपि उसके भाइयों ने उसे दासत्व में बेच दिया, परमेश्वर ने मेज को पलट दिया और कुछ भला संपन्न किया : “बहुत से लोगों के प्राण बचे l” जे को कैंसर हुआ, किन्तु परमेश्वर के कार्य को पहचानकर जे कह सका कि “परमेश्वर ने ... भलाई का विचार किया l” इसीलिए जे कैंसर के विनाश का उपयोग दूसरों को यीशु के विषय बताने में किया l

द्वार पर मृत्यु के दस्तक के बीच, हमारे उद्धारकर्ता में अडिग भरोसा की कितनी बड़ी विरासत! हमारे भले और भरोसेमंद परमेश्वर में भरोसे की कितनी बड़ी साक्षी!

प्रकृति देखभाल

बड़ी भूरी ट्राउट मछलियाँ शरद ऋतू की अपनी क्रियापद्धति अनुसार ओविही नदी में अंडे दे रही हैं l आप उन्हें छिछले कंकरीले जल में अपना घोंसला बनाते देख सकते हैं l

बुद्धिमान मछुए यह जानकार कि मछलियाँ अंडे पर हैं उन्हें परेशान नहीं करते l अंडे न दब जाएँ, वे कंकरीली जगहों पर पाँव नहीं रखते अथवा अण्डों के स्थान से धारा के प्रतिकूल नहीं जाते जहाँ पथरीले टुकड़े बिखरकर अण्डों को दबा न दें l और मछली पकड़ने के प्रलोभन के बावजूद, वे घोंसलों के निकट ट्राउट मछलियों का शिकार नहीं करते हैं l

ये बचाव जिम्मेदार मछली पकड़ने की नियम नीतियाँ हैं l किन्तु और गंभीर और बेहतर कारण भी हैं l

वचन कहता है कि परमेश्वर ने हमें पृथ्वी दी है (उत्पत्ति 1:28-30) l यह हमारे उपयोग के लिए है, किन्तु हम इससे प्रेम करनेवाले की तरह इसका उपयोग करें l

मैं परमेश्वर के हाथों के कार्यों पर विचार करता हूँ : एक तीतर का घटी में बोलना, एक बारहसिंघा का लड़ाई आरंभ करना, दूर एक हिरन का झुण्ड, एक ट्राउट मछली और रंग बदलते उसके गुलाबी बच्चे, झरने में अपने बच्चों के साथ खेलती हुई एक माता उदबिलाऊ -मैं इनको पसंद करता हूँ, क्योंकि मेरे पिता ने अपने महान प्रेम में इन्हें मेरे आनंद के लिए मुझे दिए हैं l

और जिनसे मैं प्रेम करता हूँ, उनकी सुरक्षा भी करता हूँ l

परमेश्वर द्वरा थामा गया

एक दोपहर अपनी बहन और उसके बच्चों के संग भोजन समाप्त करते समय, मेरी बहन ने मेरी तीन वर्षीय भांजी, अनिका से कहा कि दोपहर में उसके सोने का समय हो गया है l वह चौंक गयी l “किन्तु मोनिका आंटी ने आज मुझे गोद में नहीं लिया!” वह आँसुओं से बोली l मेरी बहन मुस्कराकर बोली l “ठीक है, तुम कितनी देर तक चाहती हो कि वह तुम्हें गोद में उठाए?” उसका उत्तर था, “पाँच मिनट l”

अपनी भांजी को गोद में लेकर, मैं कृतज्ञ हूँ कि प्रयास के अभाव में भी, वह मुझे याद दिलाती है प्रेम करना और प्रेम पाने का अनुभव क्या होता है l मेरी सोच में हमारी विश्वास यात्रा कल्पना से परे परमेश्वर का प्रेम अनुभव करने का है (इफि.3:18) l अपना ध्यान खोने पर हम यीशु के उड़ाऊ पुत्र के दृष्टान्त में जेठा पुत्र स्वरुप होते हैं, और भूलकर कि हमारे पास सब कुछ है, परमेश्वर का समर्थन पाने की कोशिश करते हैं (लूका 15:25-32) l

भजन 131 वचन में एक प्रार्थना है जो हमें “बालकों के समान”(मत्ती. 18:3) बनने में मदद करता है और हमें हमारे मस्तिष्क के नहीं समझने वाले द्वन्द से दूर करता है (भजन 131:1) l इसके बदले, हम समय के साथ उसमें शांति स्थान में लौट सकते हैं (पद.2),उसके प्रेम में आवश्यक आशा प्राप्त कर सकते हैं (पद.3)-जैसे हम शांति और चैन से अपनी माता के बाहों में हों (पद.2) l