विश्वास-निर्माण की समृतियाँ
संगीत से भरपूर चर्च में प्रवेश करके, मैंने उस भीड़ को देखा जो नए वर्ष की संध्या उत्सव में इकट्ठा हुई थी l पिछले वर्ष की प्रार्थनाओं को याद करने पर आनंद ने मेरे हृदय को आशा से भर दिया l हमारी मंडली ने मिलकर बिगड़े बच्चों, प्रियों की मृत्यु, नौकरियों का छूटना, और टूटे संबंधों पर दुःख प्रगट किया l किन्तु हमने परमेश्वर का अनुग्रह भी अनुभव किया जब हमने परिवर्तित हृदय और व्यक्तिगत संबंधों को ठीक होते देखा था l हमने विजय, विवाह, दीक्षांत, और लोगों को बप्तिस्मा लेकर परमेश्वर के परिवार में आने का उत्सव मनाया l हमारे बीच बच्चों का जन्म हुआ, और बच्चे गोद लिए गए, अथवा प्रभु की उपस्थिति में समर्पित किये गए के साथ और बहुत कुछ l
कलीसिया परिवार द्वारा परीक्षा का सामना करने के इतिहास को याद करते समय, जैसे यिर्मयाह ने अपना “दुःख और मारा मारा फिरना” याद किया(विलाप. 3:29), मैंने माना कि “हम मिट नहीं गए; यह यहोवा की महकरुणा का फल है, क्योंकि उसकी दया अमर है”(पद.22) l जैसे नबी ने अपने को भरोसा दिलाया कि बीते दिनों में परमेश्वर की विश्वासयोग्यता अमर रही, उसके शब्दों ने मुझे भी आराम दिया : “जो यहोवा की बाट जोहते और उसके पास जाते हैं, उनके लिए यहोवा भला है” (पद.25) l
उस शाम, हमारी मण्डली का हर एक व्यक्ति परमेश्वर के जीवन परिवर्तन करने वाले प्रेम का एक प्रतीक था l हम आगे के वर्षों में मसीह की स्वतंत्र देह के सदस्य के रूप में जिस भी स्थिति का सामना करेंगे, हम प्रभु पर निर्भर रह सकते हैं l और जैसे हम लगातार उसे खोजते हुए एक दूसरे की सहायता करते हैं, हम भी, यिर्मयाह की तरह, परमेश्वर का न बदलनेवाला चरित्र और निर्भरता में अपनी आशा को विश्वास निर्माण की स्मृतियों द्वारा प्रमाणित होते देख सकते हैं l
पूरा करने का समय
साल के अंत में अपूर्ण कार्य हमें दबा सकते हैं l घर की और नौकरी की जिम्मेदारियों का अंत नहीं हैं, और आज के अपूर्ण कार्य काल की सूची में चले जाते हैं l किन्तु हम अपने विश्वास की यात्रा में ठहरकर परमेश्वर की विश्वासयोग्यता और पूर्ण कार्यों का उत्सव मनाएं l
पौलुस और बरनबास अपनी प्रथम प्रचार यात्रा के बाद, “वहां से वे जहाज़ पर अन्ताकिया गए, जहाँ वे उस काम के लिए जो उन्होंने पूरा किया था परमेश्वर के अनुग्रह में सौंपें गए थे” (प्रेरितों 14:26) l जबकि अधिकतर काम दूसरों को यीशु के विषय बताना थे, उन्होंने ठहरकर पूर्ण किये गए काम के लिए धन्यवाद दिया l “उन्होंने कलीसिया इकट्ठी की और बताया कि परमेश्वर ने उनके साथ होकर कैसे बड़े-बड़े काम किये, और अन्यजातियों(गैरयहूदियों) के लिए विश्वास का द्वार खोल दिया”(पद.27) l
बीते वर्ष परमेश्वर ने आपके द्वारा कौन से काम किये हैं? जिसे आप जानते हैं और प्रेम करते हैं, उसके लिए उसने विश्वास का द्वार किस तरह खोला है? उन तरीकों से जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं, वह हमसे ऐसे कार्य करवाता है जो महत्वहीन अथवा अपूर्ण जान पड़ते हैं l
जब हम प्रभु की सेवा करते हुए अपूर्ण कार्य से दुखित होते हैं, हम ठहरकर उन बातों के लिए धन्यवाद देना न भूलें जिनमें परमेश्वर ने हमें उपयोग किया है l परमेश्वर ने अपने अनुग्रह से जो किया है उसके लिए आनंदित होना हमारे आनेवाले कार्यों के लिए मार्ग तैयार करता है!
जो याद रहती हैं
फुलचुसनी चिड़िया को अंग्रेजी में हमिंगबर्ड कहते हैं क्योंकि वह अपने पंख बहुत तीव्रता से फड़फड़ाती है l पुर्तगाली भाषा में इसे फुलचुसनी अथवा स्पेनी में “उड़ती मणि” कहते हैं l इस चिड़िया को मैं ब्युलू पुकारता हूँ, अर्थात् “जो सदा याद रहे l
जी. के. चेस्टरन लिखते हैं, “इस संसार में कभी भी अजूबों की कमी नहीं होगी, किन्तु अजीब बातों की इच्छा बनी रहेगी l” फुलचुसनी उनमें से एक अजूबा है l इन छोटे प्राणियों में कौन सी बातें रोमांचित करनेवाली हैं? शायद उनका छोटा आकार(औसत दो से तीन इंच) अथवा उनके पंख जो एक सेकंड में 50 से 200 बार फड़फड़ाते हैं l
हम नहीं जानते कि भजन 104 किसने लिखा, किन्तु अवश्य ही वह प्रकृति की सुन्दरता से मोहित था l सृष्टि की अनेक अबिबो-गरीब बातें जैसे लबानोन के देवदार और जंगली गदहों का वर्णन करने के बाद, वह गीत गाता है, “यहोवा अपने काम से आनंदित होवे”(पद.31) l उसके बाद वह प्रार्थना करता है, “मेरा ध्यान करना उसको प्रिय लगे” (पद.34) l
प्रकृति में अनेक बातें याद रहने लायक हैं क्योंकि वे सुन्दर और सम्पूर्ण हैं l हम उन पर ध्यान करके किस तरह परमेश्वर को खुश कर सकते हैं? जब हम उसके कार्य पर विचार करते हैं और चकित करनेवाली बातों का पुनः अनुभव करते हैं, हम उन पर ध्यान दे सकते हैं, आनंदित हो सकते हैं और परमेश्वर को धन्यवाद दे सकते हैं l
दैनिक क्षण
मैंने अपनी कार में किराने का सामन लादकर पार्किंग स्थल से निकला ही था कि अचानक एक व्यक्ति सड़क के किनारे से मेरे सामने आ पहुंचा l मैंने कार के ब्रेक्स लगाए और उसको बचा लिया l वह चौंककर मुझे घूरने लगा l उस क्षण, मैं अपनी आँखों को घुमाकर निराशा से उसे देख सकता था अथवा मुस्कराते हुए उसे क्षमा कर सकता था l मैं मुस्करा दिया l
उसके चेहरे पर शांति और उसके होठों पर धन्यवाद था l
नीतिवचन 15:13 कहता है, “मन आनंदित होने से मुख पर भी प्रसन्नता छा जाती है, परन्तु मन के दुःख से आत्मा निराश होती है l” क्या लेखक जीवन की हरेक बाधा, निराशा, और असुविधा में हमारे चेहरे पर मुस्कराहट चाहता है? शायद नहीं! वास्तविक शोक, निराशा, और अन्याय के प्रति क्रोध का समय होता है l किन्तु हमारे दैनिक क्षणों में, मुस्कराहट से आशा उत्पन्न होती है और आगे बढ़ने के लिए अनुग्रह मिलता है l
शायद नीतिवचन का इशारा है कि मुस्कराहट हमारे भीतरी व्यक्तित्व की स्थिति का स्वाभाविक परिणाम होता है l एक “आनंदित मन” शांत, संतुष्ट, और परमेश्वर से सर्वोत्तम पाने के प्रति समर्पित होता है l पूरी तौर से आनंदित हृदय द्वारा, हम चकित करनेवाली परिस्थितियों में भी वास्तविक मुस्कराहट से प्रतिउत्तर देकर, दूसरों को परमेश्वर के साथ आशा और शांति प्राप्त करने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं l
धन्यवादी दैनिकी
जब मैं यीशु में नयी विश्वासिनी थी, एक आत्मिक सलाहकार ने मुझ से धन्यवादी दैनिकी रखने को कहा l एक छोटा नोटबुक जिसे मैं अपने साथ हर जगह ले जाती थी l कभी-कभी मैं धन्यवाद की बात को तुरंत लिख लेती थी l अन्य समयों में, मैं सप्ताह के अंत में मनन के समय के बाद उसे लिखती थी l
प्रशंसा की बातों पर ध्यान देना एक अच्छी बात है, जो मैं अपने जीवन में फिर से स्थापित करना चाहती हूँ l यह मुझे परमेश्वर की उपस्थिति और उसके प्रावधान और देखभाल के लिए सचेत रहने में मदद करेगा l
सबसे छोटे भजन, भजन 117 में, लेखक सभी को प्रभु की प्रशंसा करने के लिए उत्साहित करता है क्योंकि “उसकी करुणा हमारे ऊपर प्रबल हुई है” (पद.2) l
इसके विषय सोचे : प्रभु ने आपसे आज, इस सप्ताह, इस महीना, और इस साल किस तरह प्रेम किया है? असाथारण की आशा न करें l उसका प्रेम साधारण, जीवन की दैनिक स्थितियों में दिखाई देता है l उसके बाद अनुभव करें कि आपके परिवार के प्रति, आपकी कलीसिया, और दूसरों के प्रति उसका प्रेम कैसे प्रगट हुआ है l हम सब के प्रति उसके प्रेम के विस्तार में डूब जाएं l
भजन यह भी कहता है कि “यहोवा की सच्चाई सदा की है”(पद.2 में ज़ोर दिया गया है) l अर्थात् वह हमेशा हमसे प्रेम करता रहेगा! इसलिए हम भविष्य में भी अनेक बातों के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करते रहेंगे l उसके प्रिय बच्चों की तरह परमेश्वर की स्तुति करना और धन्यवाद देना ही हमारे जीवन का चरित्र हो!
कौन सा काम?
अपना मोबाइल फोन समुद्र तट पर खोने के बाद एंड्रू शिएटेल को लगा जैसे उसने हमेशा के लिए उसे खो दिया l हालाँकि, लगभग एक सप्ताह के बाद, मछुआरा, ग्लेन करले उसे पुकारकर उसका फ़ोन वापस कर दिया, जो सूखने के बाद ठीक काम कर रहा था l यह मोबाइल फोन एक 25 पौंड रेहू मछली के पेट से निकला था l
जीवन अनेक अजीब कहानियों से भरा पड़ा है, और हमें बाइबिल में अनेक कहानियाँ मिलती हैं l एक बार कर अधिकारी पतरस से मांग करने लगे, “क्या तुम्हारा गुरु मंदिर का कर नहीं देता?”(मत्ती 17:24) l यीशु ने सिखाने के लिए उस पल का उपयोग किया l वह चाहता था कि पतरस राजा के रूप में उसकी भूमिका को समझ ले l कर राजा के पुत्रों से नहीं वसूले जाते थे, और प्रभु ने स्पष्ट कर दिया कि न वह और न ही उसकी संतान कर देने के लिए बाध्य थे (पद.25-26) l
फिर भी यीशु किसी को “ठोकर (नहीं)” देना चाहता था(पद.27), इसलिए उसने पतरस को मछली पकड़ने भेजा l (यह कहानी का विचित्र हिस्सा है l) पकड़ी गयी पहली मछली के पेट में पतरस को एक सिक्का मिला l
यीशु यहाँ पर क्या करना चाहता है? एक बेहतर प्रश्न होगा, “यीशु परमेश्वर के राज्य में क्या करना चाहता है?” वह अधिकृत राजा है-उस समय भी जब अनेक उसे राजा के रूप में नहीं पहचान रहे हैं l जब हम अपने जीवन में उसे प्रभु स्वीकारते हैं, हम उसकी संतान बन जाते हैं l
जीवन हमसे बहुत कुछ मांगेगा, किन्तु यीशु हमारी ज़रूरतों को पूरा करेगा l जैसे कि भूतपूर्व पास्टर डेविड पोम्पो कहते हैं, “जब हम अपने पिता के लिए मछली पकड़ते हैं, हम अपनी ज़रूरतों की पूर्ति के लिए उस पर भरोसा कर सकते हैं l”
परम्पराएं और क्रिसमस
इस क्रिसमस के समय जब आप कैंडी(टॉफी) खाते हैं, जर्मनी के लोगों से कहिये, “डंके स्कोन,”क्योंकि यह मिठाई सबसे पहले क्लोन में बनी थी l जब आपको पोइंसेटिया(एक प्रकार का पौधा) अच्छा लगे तो मेक्सिको वासियों से बोलिए “ग्रेसियास,” क्योंकि यह पौधा इसी देश का है l फ्रांस के लोगों से नोएल शब्द के लिए “मर्सीबियाउकूप” बोलें, और अपने मिसलटो(अमर बेल) के लिए अंग्रेजों की “प्रशंसा” करें l
किन्तु क्रिसमस के मौसम की अपनी परम्पराओं और उत्सवों अर्थात ऐसी रीति-रिवाजों को मानते हुए जो पूरे संसार में हैं, हम अपने भले, करुणामय, और प्रेमी परमेश्वर को अपना सबसे सच्चा और हृदयस्पर्शी “धन्यवाद” ज़रूर दें l 2,000 वर्ष से अधिक पहले यहूदा के चरनी में उस बालक के जन्म के कारण हम क्रिसमस उत्सव मानते हैं l एक स्वर्गदूत ने यह कहकर मानव जाति के लिए इस उपहार की घोषणा की थी, “मैं तुम्हें बड़े आनंद का सुसमाचार सुनाता हूँ ... तुम्हारे लिए एक उद्धारकर्ता जन्मा है” (लूका 2:10-11) l
इस बार क्रिसमस में, क्रिसमस ट्री की जगमगाती रोशनी में और उसके चारों ओर रखे नए उपहारों के बीच, अपना ध्यान यीशु बालक की ओर करने से ही सच्ची ख़ुशी मिलती है, जो “अपने लोगों का उनके पाप से उद्धार” करने आया” (मत्ती. 1:21) l उसका जन्म परम्पराओं से परे है : जब हम इस अवर्णनीय उपहार के लिए परमेश्वर को धन्यवाद देते हुए उसकी प्रशंसा करते हैं वही हमारा केंद्र बिंदु है l
आशा की उत्तेजना
रेजिनाल्ड फेस्सेनडेन ने बेतार रेडियो संचार में सफलता हासिल करने में वर्षों तक कार्य किया l दूसरे वैज्ञानिकों ने उसके विचारों को सनकी और अपरम्परागत मानकर उसकी सफलता पर शक किया l किन्तु उसका दावा था कि दिसंबर 24, 1906 में, रेडियो पर संगीत बजाने वाला वह प्रथम व्यक्ति था l
फेस्सेनडेन ने एक फल कंपनी से अनुबंध किया जिसने केले की खेती करने और उसे बेचने के लिए लगभग बारह नाकाओं में बेतार प्रणालियाँ लगायी थी l उस क्रिसमस की शाम को, फेस्सेनडेन ने नौकाओं में बेतार के चलानेवालों से ध्यान देने को कहा l 9 बजे उन्होंने उसकी आवाज़ सुनी l
बताया जाता है कि उसने संगीत-नाटक का रिकॉर्ड किया हुआ एक लय बजाया, और उसी वक्त उसने अपना वायलिन निकालकर, “ओ पवित्र रात” बजाते हुए उसके अंतिम अन्तरा तक साथ में गाया l आखिरकार, उसने क्रिसमस की शुभकामनाएं देते हुए लूका 2 में उस कहानी को बताया जहाँ बेतलेहम में स्वर्गदूत एक उद्धारकर्ता के जन्म के विषय चरवाहों को बताते हैं l
दो हज़ार वर्ष पहले बेतलहेम के चरवाहे और 1906 में यूनाइटेड कंपनी शिप्स के जहाज़ के नाविकों ने एक अँधेरी रात में आशा के विपरीत एक चकित करनेवाला आशा का सन्देश सुना l हमारे लिए एक उद्धारकर्ता जन्म लिया है जो मसीह प्रभु है!(लूका 2:11) l हम “आकाश में परमेश्वर की महिमा और पृथ्वी पर उन मनुष्यों में जिनसे वह प्रसन्न है शांति मिले”(पद.14) के स्वर द्वारा स्वर्गदूतों और सदियों के विश्वासियों के संगीत मण्डली का साथ दे सकते हैं l
परमेश्वर हमारे साथ
“मसीह हमारे साथ, मसीह हमारे आगे, मसीह हमारे पीछे, मसीह हमारे अन्दर, मसीह हमारे नीचे, मसीह हमारे ऊपर, मसीह हमारे दाहिने, मसीह हमारे बाएँ ... l” यीशु के जन्म के विषय मत्ती का वर्णन पढ़ते समय मुझे, पांचवी शताब्दी के केल्ट मसीही (यूरोपीय लोगों का एक सदस्य जो किसी समय ब्रिटेन और स्पेन और गौल में रहते थे) संत पैट्रिक द्वारा लिखे हुए इस गीत के शब्द याद आते हैं l मैं महसूस करता हूँ जैसे कोई मुझे गले लगा रहा है और याद दिला रहा है कि मैं कभी भी अकेला नहीं हूँ l
मत्ती का वर्णन हमें बताता है कि परमेश्वर का अपने लोगों के बीच निवास करना ही क्रिसमस का केंद्र है l यशायाह का एक बालक के विषय नबूवत का सन्दर्भ देते हुए जो इम्मानुएल, अर्थात् “परमेश्वर हमारे साथ” कहलाएगा(यशायाह 7:14), मत्ती नबूवत की अंतिम पूर्णता बताता है अर्थात् यीशु, जो पवित्र आत्मा की सामर्थ से जन्म लेकर परमेश्वर हमारे साथ निवास किया l इस सच्चाई की विशेषता इस बात में है कि मत्ती इसी से अपने सुसमाचार का आरंभ और अंत करते हुए यीशु द्वारा अपने शिष्यों को कहे शब्दों से समाप्त करता है : “और देखो, मैं जगत के अंत तक सदैव तुम्हारे संग हूँ” (मत्ती 28:20) l
संत पैट्रिक का गीत मुझे याद दिलाता है कि मसीह हमेशा अपनी आत्मा के द्वारा हममें बसते हुए हमारे साथ है l जब मैं घबराता या भयभीत होता हूँ, मैं उसकी प्रतिज्ञाओं को थामें रह सकता हूँ क्यों वह मुझे कभी नहीं छोड़ेगा l जब मैं बेखबर सो रहा होता हूँ, मैं उसकी शांति पर भरोसा कर सकता हूँ l जब मैं उत्सव मनाता हूँ और आनंदित होता हूँ, मैं अपने जीवन में उसके अनुग्रहकारी कार्य के लिए धन्यवाद दे सकता हूँ l
यीशु, इम्मानुएल – परमेश्वर हमारे साथ l