पेड़ के ऊपर
मेरी माँ ने मेरी बिल्ली, वेलवेट को रसोई के चौके पर घर में बनी ब्रेड खाते देखा l उससे तंग आकर, उन्होंने उसे दरवाजे से बाहर कर दिया l कुछ घंटों बाद, हमने उस खोयी हुई बिल्ली को ढूंढा पर वह नहीं मिली l उसकी हलकी सी आवाज़ सुनाई दी, और मैंने उसे एक पोपुलर पेड़ की चोटी पर एक झुकी हुई डाली पर बैठे देखा l
मेरी माँ ने जब उसकी आदत से तंग आकर उसे घर के बाहर किया, वेलवेट(बिल्ली) ने एक खतरनाक चुनाव किया l क्या यह संभव नहीं कि हम भी कभी-कभी कुछ वैसा ही करते हैं – अपनी गलती से भाग कर खुद को खतरे में डालते हैं? ऐसे समय में भी परमेश्वर हमें बचाने आता है l
योना नबी अनाज्ञाकारिता में नीनवे में प्रचार करने की परमेश्वर की बुलाहट से भागा, और एक महामच्छ ने उसे निगल लिया l “तब योना ने उसके पेट में से अपने परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना की l ‘मैं ने संकट में पड़े हुए यहोवा की दोहाई दी, और उस ने मेरी सुन ली है’” (योना 2:1-2) l परमेश्वर ने योना का निवेदन सुनकर मच्छ को आज्ञा दी, और उसने योना को स्थल पर उगल दिया” (पद.10) l उसके बाद परमेश्वर ने योना को एक और अवसर दिया (3:1) l
वेलवेट को नीचे उतारने के लिए काफी प्रयास करने के बाद, हमने स्थानीय अग्निशमन सेवा(फायर ब्रिगेड) को बुलाया l सबसे लम्बी सीढ़ी की सहायता से, एक दयालु व्यक्ति ऊपर चढ़कर मेरी बिल्ली को नीचे मेरे सुरक्षित बाहों में दे दिया l
परमेश्वर अपने बचानेवाले प्रेम से ऊँचाइयों और गहराइयों में जाकर हमें बचाता है!
क्षमा की याचना
1960 में, छः वर्ष की रूबी ब्रिड्जेस पहली अफ़्रीकी अमरीकी लड़की थी जिसको अमरीका के दक्षिणी भाग के एक पब्लिक प्राथमिक विद्यालय में दाखिला मिला जिसमें केवल श्वेत बच्चे ही पढ़ सकते थे l कई महीनों तक, शासकीय उच्च अधिकारी रूबी को स्कूल पहुंचाते थे l सड़क पर क्रोधित अभिभावक उसे श्राप देते थे, धमकाते थे और उसको अपमानजनक शब्दों से संबोधित करते थे l अन्दर कक्षा में वह सुरक्षित रहकर शिक्षिका बारबरा हेनरी से पढ़ती थी जो उसे पढ़ाने को सहमत थी, जबकि अभिभावक अपने बच्चों को रूबी के साथ पढ़ाना नहीं चाहते थे l
बच्चों के मशहूर मनोचिकित्सक रोबर्ट कोल्स कई महीनों तक रूबी को भय और तनाव के अनुभव से निकलने में सहायता करते रहे l वे रूबी की प्रार्थना से बहुत अधिक प्रभावित थे जो वह स्कूल जाते समय और लौटते समय करती थी l “परमेश्वर, कृपया, आप उन्हें क्षमा करें क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं” (देखें लूका 23:34) l
क्रूस पर से यीशु के शब्द लोगों के घृणा और अपमान के शब्दों से ताकतवर थे l जीवन के सबसे अधिक पीड़ादायक क्षण में, यीशु ने स्वाभाविक प्रतिउत्तर दिया जो उसने अपने शिष्यों को सिखाये थे : “अपने शत्रुओं से प्रेम रखो; जो तुम से बैर करें, उनका भला करो l जो तुम्हें श्राप दें, उनको आशीष दो; जो तुम्हारा अपमान करें, उनके लिए प्रार्थना करो l जैसा तुम्हारा पिता दयावंत है, वैसे ही तुम भी दयावंत बनो” (लूका 6:27-28, 36) l
इस प्रकार का स्वभाव केवल वहां संभव है जहाँ हम यीशु द्वारा प्राप्त सामर्थी प्रेम पर विचार करते हैं – वह प्रेम जो गहरे से गहरे घृणा से भी ताकतवर है l
रूबी ब्रिड्जेस ने हमें मार्ग दिखाया है l
एक नया समुदाय
मेरी सहेली कैरी की पांच वर्षीय बेटी, माइजा का खेल के समय के विषय अलग तरीका था l वह अलग-अलग गुड़ियों को मिलाकर उनका एक अलग समूह बनाती थी l कल्पना के संसार में, सब कुछ को एक साथ लाया जा सकता है l गुड़ियाँ उसकी थीं l उसका मानना है कि अलग-अलग आकार और प्रकार के बावजूद भी साथ रहने से वे सभी सबसे अधिक प्रसन्न रहती हैं l
परमेश्वर की रचनात्मकता मुझे कलीसिया के विषय उसका उद्देश्य याद दिलाता है l लूका कहता है, पिन्तेकुस्त के दिन “आकाश के नीचे की हर एक जाति में से भक्त यहूदी यरूशलेम में रह रहे थे” (प्रेरितों 2:5) l यद्यपि ये लोग भिन्न संस्कृति से आते थे और अलग-अलग भाषा बोलते थे, पवित्र आत्मा के आगमन ने उन्हें एक नूतन समुदाय बना दिया, अर्थात् कलीसिया l उसके बाद से, वे एक देह कहलाने वाले थे, जिन्हें यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान ने एक किया था l
इस नए देह के अगुए लोगों का एक समूह अर्थात् चेले थे जिन्हें यीशु ने इस पृथ्वी पर रहते हुए जोड़ा था l यदि यीशु उन्हें नहीं जोड़ा होता, तो ऐसा बहुत हद तक संभव था कि वे एक समूव बन ही नहीं पाते l अब और लोग भी अर्थात् “तीन हज़ार” (2:41) मसीह के अनुयायी बन गए l पवित्र आत्मा को धन्यवाद, जो एक समय विभाजित समूह थे अब “उनकी सब वस्तुएं साझे में थीं” (पद.44) l जो कुछ उनके पास था वह एक दूसरे के साथ बांटने के लिए तैयार थे l
आज भी पवित्र आत्मा मानव समूहों के बीच अंतर को पाट रहा है l हर समय हमारे विचार समान नहीं होंगे, न ही हमारी समझ l किन्तु मसीह के विश्वासी होने के कारण, हम एक दूसरे के अंग है l
के बावजूद भी
कभी-कभी ज़िन्दगी हम पर भयानक वार करती है l अन्य समयों में आश्चर्यजनक होता है l
बेबीलोन में तीन युवक, उस देश के भयंकर राजा के सामने साहसपूर्वक डटे रहे और अपने सामने खड़ी सोने की बड़ी मूरत को किसी भी स्थिति में दण्डवत् करने से इनकार किया l वे एक साथ बोले : “इस विषय में तुझे उत्तर देने का हमें कुछ प्रयोजन नहीं जान पड़ता l हमारा परमेश्वर, जिसकी हम उपासना करते है वह हम को उस धधकते हुए भट्ठे की आग से बचाने की शक्ति रखता है; वरन् हे राजा, वह हमें तेरे हाथ से भी छुड़ा सकता है l परन्तु यदि नहीं, तो हे राजा, तुझे मालूम हो, कि हम लोग . . . उपासना नहीं करेंगे, और न तेरी खड़ी कराई हुई . . . मूरत को दण्डवत् करेंगे” (दानिय्येल 3:16-27) l
ये तीन युवक – शद्रक, मेशक, और अबेदनगो – धधकते हुए भट्ठे में फेंक दिए गए; और परमेश्वर ने आश्चर्जनक रूप से उनको छुड़ाया और उनके सिर का एक बाल भी न झुलसा और न ही उनके कपड़ों से जलने की गंध आई (पद.19-27) l वे मृत्यु के लिए तैयार किये गए थे किन्तु परमेश्वर में उनका विश्वास अटल था – यदि वह उनको नहीं बचाता “तो भी l”
परमेश्वर की यह इच्छा है कि हम उससे लिपटे रहें –मेरे किसी प्रिय को चंगाई नहीं मिलने के बावजूद भी, हमारी नौकरी चले जाने के बावजूद भी, हमारे सताए जाने के बावजूद भी l कभी-कभी इस जीवन में परमेश्वर हमें बचाता है, और कभी-कभी नहीं भी बचाता है l लेकिन हमें इस सच्चाई पर अडिग रहना है : “परमेश्वर जिसकी हम सेवा करते हैं वह सक्षम है, और . . . . के बावजूद भी “हमें प्यार करता है, और हमारे कठिनतम परीक्षा में हमारे साथ है l
उमड़ना (परिपूर्ण)
“नहीं! नहीं! नहीं! नहीं!” मैं चिल्लाया l मुझे किसी प्रकार की मदद नहीं मिली l बिलकुल नहीं l मैंने अपनी तेज़ बुद्धि से अपने फ्लश शौचालय की टंकी की मरम्मत की किन्तु पानी का बहना नहीं रुका l
कितनी बार हमारे बच्चे दूध ढालते समय गिरा देते हैं, और वह सब जगह फ़ैल जाता है l अथवा हमारी भूल से सोडा की 2 लीटर की बोतल बॉक्स में खुल जाती है जिसका परिणाम चौंकानेवाला होता है l
किसी तरल वस्तु का छलककर फ़ैल जाना अच्छी बात नहीं l बिलकुल नहीं l किन्तु एक अपवाद हो सकता है l पौलुस ऐसे लोगों के लिए परिपूर्णता(उमड़ना) का चित्र उपयोग करता है जो परमेश्वर की आत्मा से उमड़ रहे हैं और जिसका स्वाभाविक परिणाम आशा है (रोमियों 15:13) l हमारे जीवनों में परमेश्वर की प्रबल उपस्थिति के कारण आनंद, शांति, और विश्वास से भरे होने के चित्र को मैं पसंद करता हूँ l इस सीमा तक, वास्तव में, हम अपने स्वर्गिक पिता में बहुतायत का और सुखद भरोसा दर्शा सकते हैं l यह हमारे जीवनों के खूबसूरत, प्रसन्नचित्त काल में हो सकता है l अथवा जब हमारे जीवनों को झटका लगता है l दोनों में से कोई भी, उमड़ कर गिरनेवाला ही हमारे चारो-ओर के लोगों को आशा देता है जिससे वे “सराबोर” हो जाते हैं l
परमेश्वर की भलाइयों की प्रशंसा
हमारे बाइबल अध्ययन समूह के एक व्यक्ति ने सलाह दी, “आइये हम अपने भजन लिखें!” पहले तो कुछ लोगों ने विरोध किया कि उनके पास लिखने का गुण नहीं है, किन्तु कुछ प्रोत्साहन के बाद हर एक ने अपने जीवन में परमेश्वर के कार्य का वर्णन करते हुए एक मार्मिक काव्यात्मक गीत लिखा l परीक्षा, सुरक्षा, प्रबन्ध, पीड़ा और आँसू के परिणाम स्वरुप निकले स्थायी संदेशों ने हमारे भजनों को चिताकर्षक प्रसंग दिए l भजन 136 की तरह, प्रत्येक भजन ने दर्शाया कि परमेश्वर की करुणा सदा की है l
हममें से हर एक के पास परमेश्वर के प्रेम की कहानी है – चाहे हम उसे लिखते हैं या गाते हैं या बताते हैं l कुछ लोगों के लिए, हमारे अनुभव रोमांचक अथवा भावुक हो सकते हैं – भजन 136 के लेखक की तरह जिसने याद किया कि किस तरह परमेश्वर ने अपने लोगों को दासत्व से छुड़ा कर अपने दुश्मनों पर विजय प्राप्त की (पद.10-15) l अन्य लोग केवल परमेश्वर की अद्भुत सृष्टि का वर्णन करेंगे; जिसने “अपनी बुद्धि से आकाश बनाया . . . पृथ्वी को जल के ऊपर फैलाया . . . बड़ी बड़ी ज्योतियाँ बनायीं, - . . . दिन पर प्रभुता करने के लिए सूर्य को बनाया . . . और रात पर प्रभुता करने के लिए चंद्रमा और तारागन को बनाया” (पद.5-9) l
यह याद करना कि परमेश्वर कौन है और उसने क्या किया प्रशंसा और धन्यवाद लेकर आता है जिससे उसकी महिमा होती है l तब हम प्रभु की भलाइयों के विषय जिसकी करुणा सदा की है - “आपस में भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत” गाते हैं (इफिसियों 5:19) l
परमेश्वर और उसके कार्यों को स्मरण करने का परिणाम प्रशंसा और धन्यवाद होता है जिससे वह महिमामंडित होता है l तब हम प्रभु की भलाइयों का जिसकी करुणा सदा की है “आपस में भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाया [करें]” (इफि.5:19) l परमेश्वर के प्रेम के अपने अनुभव को अपनी प्रशंसा के गीत बनाइये और उसके अनवरत भलाइयों का आनंद उठाइये l
अनुसरण करने की स्वतंत्रता
एक बार मेरे स्कूल के कोच ने मुझे एक दौड़ के पहले कहा, “आगे-आगे मत दौड़ना l आगे दौड़ने वाले जल्द ही थक जाते हैं l” इसके बदले उनकी सलाह थी कि मैं सबसे तेज दौड़ने वाले के निकट रहूँ l तेज दौड़ने वालों द्वारा गति बनाए रखने के कारण मैं अपने मानसिक और शारीरिक ताकत को बनाए रख सकूँगा और दौड़ भी अच्छी तरह पूरी कर लूँगा l
नेतृत्व थका सकता है; अनुसरण स्वतंत्र रखता है l इसको जानकार मेरा दौड़ना और बेहतर हो गया, किन्तु मसीही शिष्यता में यह लागू कैसे होता है, जानने में समय लगा l मेरे खुद के जीवन में, मेरी सोच थी कि यीशु का विश्वासी होने का अर्थ है सश्रम कोशिश करना l एक मसीही को कैसा होना चाहिए के विषय अपनी थकाऊ इच्छा का पीछा करने के द्वारा, मैं सरलता से उसका अनुसरण करने की जगह गलती से आनंद और स्वतंत्रता को खो रहा था (यूहन्ना 8:32,36) l
किन्तु हमें अपने जीवनों को चलाने कि ज़रूरत नहीं है, और यीशु ने आत्म-सुधार कार्यक्रम आरंभ नहीं किया था l इसके बदले, उसकी प्रतिज्ञा थी कि उसका अनुसरण करके हम उस शांति को प्राप्त करेंगे जिसकी हम इच्छा करते हैं (मत्ती 11:25-28) l अन्य धार्मिक शिक्षकों के विपरीत जो वचन के कठोर अध्ययन अथवा नियम पालन पर बल देते हैं, यीशु की शिक्षा थी कि उसको जानने के द्वारा हम परमेश्वर को जान सकते हैं (पद.27) l उसको खोजने से, हमारे भारी बोझ उतर जाएंगे (पद.28-30) और हमारे जीवन बदल जाएंगे l
क्योंकि नम्र और दीन अगुए के पीछे चलना सरल है (पद.29) – यह आशा और चंगाई का मार्ग है l उसके प्रेम में विश्राम करने से हम स्वतंत्र रहते हैं l
कार्य में व्यस्त परमेश्वर
“अभी हाल में क्या आपने परमेश्वर को कार्य करते हुए देखा है?” मैंने अपने कुछ मित्रों से पूछा l एक का उत्तर था, “प्रति भोर को बाइबल पढ़ते समय मैं उसे कार्य करते हुए पाता हूँ; मैं उसे कार्य करते हुए देखता हूँ जब वह मुझे नए दिन का सामना करने में सहायता करता है; मैं उसे मार्ग में मेरे हर कदम पर मदद करते हुए देखता हूँ l मैंने मेहसूस किया है कि उसने मुझे आनंद देते हुए हर चुनौती का सामना करने में मदद की है l” मुझे उसका उत्तर पसंद है क्योंकि उससे पता चलता है कि किस तरह परमेश्वर का वचन और अन्दर निवास करने वाला पवित्र आत्मा के द्वारा, परमेश्वर उससे प्रेम करनेवालों के निकट रहता है, उनमें काम करता है l
परमेश्वर का अपने अनुयायियों में कार्य करना एक अद्भुत सेवा है जिसके विषय इब्रानियों का लेखक अपनी पत्री के समापन आशीष में लिखते हुए इस प्रकार कहता है : “ . . . जो कुछ उसको भाता है उसे यीशु मसीह के द्वारा हम में उत्पन्न करे” (इब्रानियों 13:21) l इस समापन के साथ, लेखक अपने विशेष सन्देश पर बल देता है – कि परमेश्वर उसका अनुसरण करने में अपने लोगों को सज्जित करेगा और कि वह अपनी महिमा के लिए उनमें होकर और उनके द्वारा कार्य करेगा l
परमेश्वर का वरदान जो हममें कार्य करता है हमें चकित कर सकता है; शायद हम किसी को क्षमा करते हैं जिसने हमारी हानि की है अथवा किसी कठिन व्यक्ति के साथ उसने हमें धीरज रखने में सहायता की है l हमारा “शांति का परमेश्वर” हममें होकर और हमारे द्वारा अपना प्रेम और शांति प्रगट करता है l अभी हाल में आपने परमेश्वर को किस तरह कार्य करते हुए देखा है?”
वो नहीं जो प्रतीत हो
“सुनो!” मेरी पत्नी ने मुझसे फोन पर बोलीl “हमारे अहाते में एक बन्दर घुस आया है!” उसने फोन को रख दिया और मैंने बन्दर ही सुना l यह बहुत ही अजीब प्रतीत हो रहा था, क्योंकि जंगली बन्दर 2,000 मील दूर थे l
बाद में मेरे ससुर ने रहस्य खोल दी, “वह एक ख़ास प्रकार का उल्लू(Barred Owl) था l” वास्तविकता वह नहीं थी जो प्रतीत हो रही थी l
जब राजा सन्हेरिब की सेना ने यहूदा के राजा हिजकिय्याह को यरूशलेम की शहरपनाह के भीतर कैद कर दिया, अशूरों ने सोचा कि जीत उनकी है l सच्चाई भिन्न थी l यद्यपि अशूरों के क्षेत्र सेनापति ने मीठे शब्दों का उपयोग किया और परमेश्वर की ओर से बातें करने का ढोंग रचा, प्रभु का हाथ प्रभु के लोगों पर था l
“क्या मैं ने यहोवा के बिना कहे, इस स्थान को उजाड़ने के लिए चढ़ाई की है?” सेनापति ने पूछा (2 राजा 18:25) l यरूशलेम को हथियार डालने के लिए लुभाते समय, उसने यह भी कहा, “. . . तुम मरोगे नहीं, जीवित रहोगे” (पद.32) l
यह तो परमेश्वर के शब्द प्रतीत हो रहे थे l किन्तु यशायाह नबी ने इस्राएलियों से प्रभु के वास्तविक शब्द कहे l परमेश्वर ने कहा, “[सन्हेरिब] इस नगर में प्रवेश करने, वरन् इस पर एक तीर भी मारने न पाएगा . . . मैं इस नगर की रक्षा करके इसे बचाऊंगा” (19:32-34; यशायाह 37:35) l उसी रात “यहोवा के दूत ने” अशूरों को नाश किया (पद.35) l
समय समय से, हमें मीठी बातें करनेवाले लोग मिलेंगे जो परमेश्वर की सामर्थ्य का इनकार करते हुए हमें “सलाह” देंगे l ये आवाज़ परमेश्वर की नहीं है l वह अपने वचन द्वारा बात करता है और पवित्र आत्मा द्वारा मार्गदर्शन देता है l उसका हाथ उसके अनुयायियों पर रहता है, और वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा l