कद्दू में धन
एक युवा माँ होकर, मैंने अपनी बेटी के पहले साल का सनद(document) रखा l हर महीने, मैंने उसमें बदलाव और विकास देखने के लिए उसके फोटो खींचे l एक पसंदीदा फोटो में वह स्थानीय किसान से ख़रीदे गए कद्दू में जो खोखला किया गया था बैठी खिलखिलाती दिखाई दे रही थी l मेरा जिगर का टुकड़ा उस बड़े कद्दू में बैठी हुयी थी l वह कद्दू बाद में सूख कर ख़त्म हो गया, किन्तु मेरी बेटी निरंतर उन्नति करती और बढ़ती गयी l
जिस प्रकार पौलुस यीशु कौन है की सच्चाई जानने का वर्णन करता है, उससे मैं उस फोटो को याद करती हूँ l वह यीशु का हमारे हृदय में वास करने को मिट्टी के बरतन में रखे धन से तुलना करता है l हमारे लिए यीशु के कार्य का स्मरण “चारों ओर से क्लेश . . . भोगने” (2 कुरिन्थियों 4:8) की स्थिति के बावजूद हमें संघर्षों में धीरज धरने में साहस और सामर्थ्य देता है l हमारे जीवनों में परमेश्वर की सामर्थ्य के कारण, जब हम “गिराए . . . जाते हैं, पर नष्ट नहीं होते हैं,” हम यीशु का जीवन प्रगट करते हैं (पद.9) l
उस कद्दू की तरह जो नष्ट हो गया, हम अपने संघर्षों में टूट-फूट महसूस करेंगे l किन्तु उन चुनौतियों के बावजूद यीशु में हमारा आनंद बढ़ता जाएगा l हमारा उसका जानना अर्थात् हमारे जीवनों में उसकी सामर्थ्य का कार्य वह धन है जो हमारे दुर्बल मिट्टी के शरीरों में है l हम कठिनाई में उन्नति कर सकते हैं क्योंकि उसकी सामर्थ्य हमारे अन्दर कार्य करती है l
मेरा वास्विक रूप
अतीत में धर्मनिष्ठ जीवन से निम्न आचरण के कारण अयोग्यता और लज्जा की भावनाएं, वर्षों तक, मेरे जीवन के प्रत्येक भाग पर विपरीत प्रभाव डालती रहीं l मेरे कलंकित नेकनामी की सीमा को यदि दूसरे जान जाते तो क्या होता? यद्यपि परमेश्वर ने मुझे साहस दिया जिससे मैं एक सेवा अगुवा(महिला) को दोपहर भोजन पर आमंत्रित कर सकी l मैंने सिद्ध दिखाई देने का प्रयास किया l मैंने अपने घर को साफ़ किया, तीन प्रकार का भोजन तैयार किया, और सबसे अच्छे वस्त्र पहने l
मैंने सामने के प्रांगन का फव्वारा(sprinkler) बंद कर दिया l रिसती हुयी टोंटी को बंद करते समय, अचानक पानी की तेज़ धार से पूरी तौर से भीगने पर मैं चिल्ला उठी l अपने बालों को तौलिये से लपेटकर और बिगड़े मेकअप के साथ, मैंने अपने कपड़े बदल लिए l और उसी समय दरवाजे की घंटी बजी l खीज कर, मैंने सुबह की अपनी सारी बेतुकी हरकत और उद्देश्य बताए l मेरी नयी सहेली ने अपने अतीत के पराजय से उत्पन्न दोष की भावना के कारण भय और असुरक्षा के साथ अपना संघर्ष बांटा l प्रार्थना करने के बाद, उसने परमेश्वर के अपूर्ण सेविकाओं की अपनी टीम में मेरा स्वागत किया l
प्रेरित पौलुस मसीह में अपने नए जीवन को स्वीकार किया, अपने अतीत का इनकार नहीं किया अथवा प्रभु की सेवा करने में उसे आड़े नहीं आने दिया (1 तीमुथियुस 1:12-14) l क्योंकि पौलुस जानता था कि क्रूस पर यीशु के कार्य ने उसे अर्थात् सबसे अधम पापी को बचाया और रूपांतरित किया था, इसलिए उसने परमेश्वर की प्रशंसा की और दूसरों को उसका आदर करने और आज्ञा मानने के लिए उत्साहित किया (पद.15-17) l
जब हम परमेश्वर का अनुग्रह और क्षमा स्वीकार करते हैं, हम अपने अतीत से स्वतंत्र हो जाते हैं l हम दोषपूर्ण हैं किन्तु तीक्ष्णता से प्रेम किए गए हैं, और जब हम परमेश्वर से प्राप्त अपने वरदानों द्वारा दूसरों की सेवा करते हैं, हमें अपने वास्तविक रूप से लज्जित होने की ज़रूरत नहीं है l
सर्वदा स्वीकार्य
अनेक वर्षों तक एंजी अपनी पढ़ाई में संघर्ष करती रही, जिसके बाद उसे, सर्वोत्कृष्ट प्रार्थमिक स्कूल से निकाल कर एक “साधारण” स्कूल में भर्ती कर दिया गया l सिंगापुर में जहां बहुत ही प्रतियोगी शिक्षा का परिदृश्य है, जहां एक “अच्छे” स्कूल में किसी की भावी संभावनाएं सुधर सकती है, अनेक लोगों ने इसे पराजय के रूप में देखा l
एंजी के माता-पिता निराश थे, और एंजी ने भी खुद के विषय सोचा मानो उसे नीचे उतार दिया गया है l किन्तु नये स्कूल में जाने के शीघ्र बाद, नौ वर्ष की एंजी समझ गयी कि औसत विद्यार्थियों की क्लास में पढ़ने का क्या अर्थ होता है l उसने कहा, “माँ, मैं सही जगह पर हूँ, यहाँ मैं स्वीकारी गयी हूँ!”
मैंने इस बात को याद किया कि जक्कई कितना उत्साहित हुआ होगा जब यीशु ने खुद ही उस चुंगी लेनेवाले के घर में जाने को तैयार हुआ होगा (लूका 19:5) l मसीह ने उन लोगों के साथ भोजन करने में रूचि लिया जिन्हें मालूम था कि वे दोषपूर्ण हैं और परमेश्वर के अनुग्रह के योग्य नहीं (पद.10) l हम जैसे भी हैं, यीशु हमें खोजकर और हमसे प्रेम करके अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान द्वारा पूर्ण करने की प्रतिज्ञा देता है l हम उसके अनुग्रह द्वारा ही सिद्ध बनाए जाते हैं l
यह जानते हुए कि मेरा जीवन परमेश्वर के मानक के बराबर नहीं है, मैंने अक्सर अपनी आत्मिक यात्रा को संघर्षशील पाया है l यह जानना कितना आरामदायक है कि हम सर्वदा स्वीकार्य हैं, क्योंकि पवित्र आत्मा हमें यीशु की तरह बनाने में लगा हुआ है l
अपने नावें ले आओ
2017में तूफ़ान हार्वे(Hurricane Harvey) के कारण पूर्वी टेक्सास में विनाशकारी बाढ़ आ गयी l बारिश से हजारों लोग अपने घरों में घिर गए, और बाढ़ के पानी से भाग नहीं सके l “टेक्सास नेवी” नाम से अनेक साधारण नागरिकों ने राज्य और राष्ट्र के दूसरे भाग से नाव लाकर घिरे हुए लोगों को निकालने में मदद की l
इन बहादुर, दयालु पुरुष और महिलाएँ नीतिवचन 3:27 का उत्साह याद दिलाते हुए सीख देते हैं कि जब भी अवसर मिले हम दूसरों की मदद करें l उनके पास आवश्यक्तामंद लोगों के लिए अपनी नावों को लाकर मदद करने की ताकत थी l और उन्होंने ऐसा किया l उनकी क्रियाएँ दर्शाती हैं कि वे अपने संसाधन दूसरों के लाभ के लिए उपयोग करना चाहते थे l
जो कार्य हाथ में है उसे करने में हम अपने को हमेशा सक्षम नहीं पाते हैं; अक्सर हम दूसरों की मदद करने में खुद में कौशल, अनुभव, साधन, या समय की कमी महसूस करते हैं l ऐसे समय में, हम जल्दी ही अपने साधनों को जो दूसरों की मदद कर सकता है, नज़रंदाज़ करते हुए अपने को किनारे कर लेते हैं l टेक्सास नेवी बाढ़ के बढ़ते पानी को रोक नहीं सकते थे, और न ही सरकारी मदद के लिए कानून बना सकते थे l किन्तु उन्होंने अपने पड़ोसियों की गंभीर ज़रूरतों में अपनी सामर्थ्य की सीमा में अपने साधनों का अर्थात् नाव का उपयोग किया l काश हम सब भी अपनी “नावें” लाकर लोगों को ऊँची भूमि पर ले जा सकें l
चुभनेवाला काँटा
काँटा मेरी तर्जनी(Index finger) में चुभ गया, जिससे खून निकल आया l मैं जोर से चिल्लाया और फिर कराहते हुए सहज-ज्ञान से अपनी उँगली पीछे खींच ली l किन्तु मुझे चकित होना नहीं चाहिए था : जो कुछ हुआ वह बाग़बानी दास्तान पहने बगैर एक कटीली झाड़ी को काटने का परिणाम था l
मेरी उँगली में दर्द और उसमें से खून बहना की ओर ध्यान देना ज़रूरी था l और पट्टी खोजते समय, मैं अचानक अपने उद्धारकर्ता के विषय सोचने लगा l आखिरकार, सिपाहियों ने यीशु को काँटों का एक मुकुट पहनने को विवश किया (यूहन्ना 19:1-3) l अगर एक काँटे से इतनी तकलीफ़ होती है, मैंने सोचा, तो पूरे काँटों के एक ताज से कितना दर्द हुआ होगा? और यह शारीरिक दुःख का केवल एक छोटा सा भाग था l उसकी पीठ पर कोड़े मारे गए l कीलें उसकी हथेली और पैरों में ठोंके गए l एक भाला उसके पंजर में बेधा गया l
किन्तु यीशु आत्मिक दुःख भी सहा l यशायाह 53 का पद 5 हमसे कहता है, “परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया; हमारी ही शांति के लिए उस पर ताड़ना पड़ी l ”जिस “शांति” की बात यशायाह यहाँ करता है वह क्षमा ही है l यीशु ने खुद को बेधने दिया-एक तलवार से, कीलों से, काँटों के ताज से-ताकि हम परमेश्वर की ओर से आत्मिक शांति पा सकें l वह बलिदान, हमारे पक्ष में उसके मरने की इच्छा, पिता के साथ सम्बन्ध बनाने का मार्ग तैयार कर दिया l और वचन कहता है कि उसने ऐसा किया मेरे लिए, आपके लिए l
प्रार्थना
मैंअपनी आंटी ग्लैडिस की बेबाक़ स्वाभाव का आदर करती हूँ यद्यपि कभी-कभी वह मेरे विषय होता है l आंटी ने ई-मेल भेजा, “कल मैंने अखरोट का पेड़ काट दिया” जिससे मैं चिंतित हुयी l
प्रार्थना का सदैव उपयोग करनेवाली मेरी आंटी छिहत्तर वर्ष की हैं! अखरोट का वह पेड़ उनके गेराज के पीछे उग गया था l जब उसके जड़ से गेराज की कंक्रीट के फटने का डर उत्पन्न हो गया, उन्होंने उसे काटने का निर्णय किया l किन्तु उन्होंने हमें बताया, “मैं उस तरह का काम करने से पूर्व प्रार्थना करती हूँ l”
इस्राएल के निर्वासन के समय फारस के राजा का पियाऊ होकर सेवा करते हुए, नहेम्याह को यरूशलेम लौट आए लोगों के विषय खबर मिली l कुछ काम होना ज़रूरी था l “यरूशलेम की शहरपनाह टूटी हुयी, और उसके फाटक जले हुए हैं” (नहेम्याह 1:3) l टूटी दीवारों के कारण वे दुश्मनों के आक्रमण की संभावनाओं से असुरक्षित थे l नहेम्याह अपने लोगों पर तरह खाकर भागीदारी करने का मन बनाया l किन्तु प्रार्थना प्राथमिक बात थी, क्योंकि नए राजा ने पत्र भेजकर यरूशलेम के निर्माण प्रयास को रोकना चाहा था (देखें एज्रा 4) l नहेम्याह ने अपने लोगों के लिए प्रार्थना की(नहेम्याह 1:5-10), और राजा से अनुमति माँगने से पूर्व परमेश्वर से सहायता मांगी (पद.11) l
क्या प्रार्थना आपका प्रतिउत्तर है? जीवन में किसी कार्य या परीक्षा का सामना करते समय यह हमेशा सबसे अच्छा तरीका है l
भयानक और खूबसूरत बातें
भय हमें स्तंभित कर सकता है l हम सब भयभीत होने के कारण जानते हैं-सबकुछ जिसने अतीत में हमें हानि पहुंचायी है, और सबकुछ जो आसानी से पुनः हमें नुक्सान पहुँचा सकती है l इसलिए कभी-कभी हम अटक जाते हैं-लौटने में असमर्थ, आगे बढ़ने में अत्यधिक भयभीत l मैं बिलकुल असमर्थ हूँ l मैं इतना तीव्र बुद्धि वाला नहीं हूँ, इतना ताकतवर नहीं हूँ, अथवा मैं पुनः इस तरह की हानि को नहीं संभाल सकता हूँ l
लेखक फ्रेडरिक बुएच्नेर जिस प्रकार परमेश्वर के अनुग्रह का वर्णन करते हैं उससे मैं मुग्द हूँ :
“एक धीमी आवाज़ जो कहती है, “यहाँ यह संसार है l भयानक और खूबसूरत बातें होंगी l भयभीत न होना l मैं तुम्हारे साथ हूँ l”
भयानक बातें होंगीं l हमारे संसार में, चोटिल लोग दूसरों को चोट पहुंचाते हैं, कभी-कभी अत्यधिक चोट l भजनकार दाऊद की तरह, हमारे चारोंओर की बुराइयों की हमारी अपनी कहानियाँ हैं, जब, “सिंहों,” की तरह अन्य लोग हमें हानि पहुंचाते हैं (भजन 57:4) l और इसलिए हम दुखित होते हैं; हम पुकारते हैं (पद.1-2) l
किन्तु इसलिए कि परमेश्वर हमारे साथ है, हमारे साथ खूबसूरत बातें भी होंगी l जब हम अपनी चोट और भय के साथ उसके निकट जाते हैं, हम खुद को ऐसे महान प्रेम से घिरा हुआ पाते हैं जहां कोई भी ताकत हमारी हानि नहीं कर सकती(पद.1-3), ऐसी करुणा जो स्वर्ग तक है (पद.10) l विनाश के हमारे चारों ओर होने के बावजूद, उसका प्रेम हमारे हृदयों के लिए स्थिर आश्रय है (पद.1,7) l उस दिन तक जब हम नूतन साहस प्राप्त करके, उसकी विश्वासयोग्यता का गीत गाकर उस दिन का स्वागत करेंगे (पद.8-10) l
पहले उस पर भरोसा करें
पापा, मुझे मत छोड़िए!”
“मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा l मैं तुम्हें थामे हुए हूँ l मैं वादा करता हूँ l”
मैं छोटा था और मुझे जल से डर लगता था; किन्तु मेरे पिता चाहते थे कि मैं तैरना सीख जाऊं l वे जानबूझकर मुझे तरणताल के गहरे हिस्से में ले जाते थे, जहां पर वे ही मेरा एकमात्र सहारा होते l तब वे मुझे तनाव मुक्त होना और तैरना सिखाते थे l
यह केवल तैरना सीखना नहीं था; यह भरोसा रखने की सीख थी l मेरे पिता मुझसे प्रेम करते थे, यह मैं जानता था और वे जानबूझकर मुझे हानि कभी भी नहीं पहुँचाएंगे, किन्तु मैं फिर भी डरता था l मैं कस कर उनके गले से लिपट जाता था जब तक कि मुझे उनकी ओर से सुरक्षा का निश्चय नहीं मिलता था l अंततः उनके धीरज और कोमलता के कारण मैं तैरना सीख गया l किन्तु पहले मुझे उनपर भरोसा करना ज़रूरी था l
जब मैं कठिनाई में डूबा हुआ महसूस करता हूँ, मैं उन बीते हुए पलों को स्मरण करता हूँ l वे मुझे परमेश्वर का अपने लोगों के लिए आश्वासन याद दिलाते हैं : “तुम्हारे बुढ़ापे में भी मैं . . . तुम्हें उठाए रहूँगा l मैं ने तुम्हें बनाया और मैं तुम्हें उठाए रहूँगा” (यशायाह 46:4) l
शायद हम हमेशा परमेश्वर की भुजा को अपने नीचे महसूस नहीं करेंगे, किन्तु प्रभु की प्रतिज्ञा है कि वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा (इब्रानियों 13:5) l जब हम उसकी देखभाल और प्रतिज्ञाओं में विश्राम करते हैं, वह हमें उसकी विश्वासयोग्यता में भरोसा करना सिखाता है l वह हमें हमारी चिंताओं से उबारता है कि हम उसमें नयी शांति पा सकें l
पशुओं से पूछो
बचाए गए एक चील/गरुड़(Bald Eagle) को देखकर हमारे नाती-पोते भावविभोर हो उठे l वे उसे स्पर्श भी कर सके l चिड़ियाघर के स्वयंसेविका ने बाँह पर बैठाए उस शक्तिशाली पक्षी के विषय बताया कि इस नर पक्षी के पंखों का फैलाव साढ़े छह फीट है, फिर भी खोखली हड्डियों के कारण उनका वजन केवल आठ पौंड है l यह सुनकर मैं चकित हुआ l
उपरोक्त बात से मैंने एक गरुड़ को याद किया जिसे मैंने झील के ऊपर उड़ते देखा था और जो गति से नीचे आकर शिकार को अपने चंगुल में लेनेवाला था l और मैंने कल्पना किया कि लम्बे टांगों वाला एक बगुला एक तालाब के किनारे स्थिर खड़ा हुआ अपनी लम्बी चोंच से जल के अन्दर शिकार करने को तैयार है l हमारे सृष्टिकर्ता की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करनेवाले लगभग 10,000 प्रजातियों में से ये केवल दो ही हैं l
अय्यूब की पुस्तक में, अय्यूब के मित्र उसके दुःख के कारण पर तर्क-वितर्क करते हुए पूछते हैं, “क्या तू परमेश्वर का गूढ़ भेद पा सकता है?” (देखें 11:5-9) l प्रतिउत्तर देते हुए अय्यूब स्पष्ट करता है, “पशुओं से तो पूछ और वे तुझे सिखाएँगे; और आकाश के पक्षियों से, और वे तुझे बताएँगे” (अय्यूब 12:7) l परमेश्वर की अभिकल्पना, देखभाल, और सृष्टि पर नियंत्रण की सच्चाई को पशु सत्यापित करते हैं : “उसके हाथ में एक एक जीवधारी का प्राण, और एक एक देहधारी मनुष्य की आत्मा भी रहती है” (पद.10) l
क्योंकि परमेश्वर पक्षियों की देखभाल करता है (मत्ती 6:26; 10:29), हम भी आश्वास्त हैं कि वह आपसे और मुझसे प्रेम करता है और हमारी देखभाल करता है, उस समय भी जब हम अपनी परिस्थितियों को नहीं समझते हैं l चारोंओर देखें और उससे सीखें l