माह: अक्टूबर 2018

उसने हमारे बोझ को उठाया

आश्चर्यजनक रूप से उपयोगिता/बिजली-पानी(Utility) का बड़ा बिल आना असाधारण बात नहीं है l किन्तु नार्थ कैरोलाइना की किरेन हिली जल शुल्क(बिल) देखकर अत्यधिक घबरा गया l सूचना में उसे 100 करोड़ डॉलर का भुगतान करने को कहा गया था! हिली आश्वास्त होकर कि उसने पिछले महीने इतना  अधिक  जल उपयोग नहीं किया था, मजाकिए तरीके से पूछा कि क्या वह किश्तों में इस बिल का भुगतान कर सकता है l
100 करोड़ डॉलर का कर्ज डरानेवाला बोझ हो सकता है, किन्तु वास्तविक और अथाह पाप का बोझ जो हम सब उठाए हुए हैं की तुलना में यह अत्यधिक छोटा है l अपने ही पापों के बोझ और उसके परिणाम को लिए चलना, आख़िरकार हमें दोष और लज्जा से थका हुआ महसूस कराता है l सच्चाई यह है कि हम इस बोझ को उठाने में असमर्थ हैं l
और हमें इसे उठाने की भी ज़रूरत नहीं है l जिस प्रकार पतरस विश्वासियों को स्मरण दिलाता है, केवल परमेश्वर का निर्दोष पुत्र, यीशु ही, हमारे पापों का भारी बोझ और उसका गंभीर परिणाम उठा सकता था (1 पतरस 2:24) l यीशु ने, अपने क्रूसित मृत्यु में, हमारे सब पापों को ले लिया और हमें क्षमा दिया l उसके हमारे बोझ को उठाने के कारण, हमें दण्ड का भागदार नहीं होना है जिसके हम योग्य हैं l
भय या दोष में अर्थात् “तुम्हारा निकम्मा चाल-चलन जो बापदादों से चला आता है” (1:18), में रहने की अपेक्षा, हम प्रेम और स्वतंत्रता के नए जीवन का आनंद ले सकते हैं (पद.22-23) l

उसकी बाहों में सुरक्षित

बाहर का मौसम डरावना था, और मेरे मोबाइल फ़ोन में संभावित आकस्मिक बाढ़ की चेतवानी थी l पड़ोस में कारों की असामान्य संख्या थी जब स्कूल बस स्टॉप पर माता-पिता और अन्य लोग बच्चों को घर ले जाने आए हुए थे l बस आने से पहले बारिश होने लगी थी l उसी समय मैंने एक महिला को छाता लेकर कार से उतरते देखा l वह एक छोटी लड़की को बारिश से बचाते हुए कार में ले गयी l यह माता-पिता से सम्बंधित, सुरक्षात्मक देखभाल की “वास्तविक समय” की एक खूबसूरत तस्वीर थी जिसने मुझे हमारे स्वर्गिक पिता की देखभाल की ताकीद दी l
नबी यशायाह ने अनाज्ञाकारिता के लिए दण्ड के पश्चात् परमेश्वर के लोगों के लिए अनुकूल दिनों की भविष्यवाणी की (यशायाह 40:1-8) l पहाड़ों से सुनाया गया स्वर्गिक सुसमाचार (पद.9) ने इस्राएलियों को परमेश्वर की शक्तिशाली उपस्थिति और कोमल देखभाल के विषय आश्वास्त किया l सुसमाचार, तब और अब, यह है कि परमेश्वर की सामर्थ्य और राज्य करनेवाले अधिकार के कारण घबराए हुए हृदयों को भयभीत होने की ज़रूरत नहीं है (पद. 9-10) l प्रभु की सुरक्षा की उस सूचना में चरवाहों द्वारा दी गयी सुरक्षा शामिल थी (पद.11) : भेड़ के दुर्बल बच्चे चरवाहे की बाहों में सुरक्षा पाएंगे; बच्चे वाली माताओं की कोमलता से अगुवाई की जाएगी l
ऐसे संसार में जहां परिस्थितियाँ हमेशा सरल नहीं होंगी, सुरक्षा और देखभाल की ये तस्वीरें प्रभु की ओर दृढ़ता से देखने में हमें विवश करती हैं l जो प्रभु में पूरे हृदय से भरोसा करते हैं वे उसमें सुरक्षा और नयी ताकत पाते हैं (पद.31) l

यीशु की कहानियाँ

मुझे बचपन में स्थानीय छोटा पुस्तकालय जाना पसंद था l एक दिन, पुस्तकों के नवयुवक भाग को देखते हुए मैंने महसूस किया कि मैं लगभग सभी पुस्तक पढ़ सकती हूँ l अपनी उत्सुकता में मैं एक सच्चाई भूल गयी कि नयी पुस्तकें निरंतर पुस्तकालय में जुड़ती रहती थीं l मेरे साहस करने के बावजूद भी पुस्तकें बहुत अधिक थीं l
नयी पुस्तकें निरंतर पुस्तक की आलमारियाँ भर्ती रहती हैं l प्रेरित यूहन्ना नए नियम की अपनी पाँच पुस्तक- यूहन्ना का सुसमाचार; 1, 2, 3 यूहन्ना और प्रकाशितवाक्य जो हाथ से लिपटे हुए चर्म पत्रों पर लिखे गए गए थे को देखकर अवश्य ही वर्तमान में पुस्तकों की उपलब्धता से चकित हुआ होता l
यूहन्ना ने पवित्र आत्मा से विवश होकर यीशु का जीवन व सेवा का आखों देखा हाल मसीहियों को लिखा (1 यूहन्ना 1:1-4) l किन्तु यीशु के कार्य और शिक्षा का एक अंश मात्र ही यूहन्ना के लेखों में है l वास्तव में, यूहन्ना कहता है, यदि यीशु के समस्त कार्य लिखे जाते तो “वे संसार में भी न समातीं” (यूहन्ना 21:25) l
यूहन्ना का दावा वर्तमान में भी सच है l यीशु के विषय जितनी भी पुस्तकें लिखीं गयी हैं, के  बाद भी, संसार के पुस्तकालय उसके प्रेम और अनुग्रह की कहानियाँ अपने में समा नहीं सकती हैं l हम इस बात का भी उत्सव मना सकते हैं कि हमारे पास भी बाँटने और आनन्दित होने के लिए व्यक्तिगत कहानियाँ हैं जो हम निरंतर बताते रहेंगे ! (भजन 89:1)

सैनिक दल के लिए गीत गाना

दोलोगों को नशीली वस्तुओं की तस्करी में दोषी पाए जाने पर एक दशक से मृत्यु पंक्ति में रखा गया था l जेल में रहते हुए उन्होंने यीशु में परमेश्वर के प्रेम को पहचान लिया, और उनका जीवन रूपांतरित हो गया l जब फायरिंग दल का सामना करने का वक्त आया, उन्होंने प्रभु की प्रार्थना बोलते हुए और “फज़ल अजीब क्या खुशलिहान” गीत गाते हुए   जल्लादों का सामना किया l उन्होंने परमेश्वर में विश्वास करने के कारण, पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के द्वारा असाधारण साहस के साथ मृत्यु का सामना किया l
उन्होंने अपने उद्धारकर्ता द्वारा प्रदत्त विश्वास के नमूना का अनुसरण किया l जब यीशु को अपनी निकट मृत्यु का पता चला, उसने संध्या का कुछ समय अपने मित्रों के साथ गीत गाकर बिताया l यह अद्भुत है कि वह ऐसी स्थिति में गीत गा सकता था, किन्तु उसके द्वारा गाया गया गीत और भी अद्भुत है l उस रात, यीशु और उसके मित्रों ने फसह का भोज खाया, जिसका अंत भजन 113-118 तक की भजनों की श्रृखला से होता है और जिसे हल्लेल, कहा जाता है l उस रात मृत्यु का सामना करते हुए, यीशु ने “मृत्यु की रस्सियाँ” जो उसके चारों और थीं के विषय गाया (भजन 116:3) l फिर भी उसने परमेश्वर के विश्वासयोग्य प्रेम की प्रशंसा की(117:2) और उद्धार के लिए उसको धन्यवाद दिया (118:14) l निश्चित तौर पर उसके क्रुसीकरण से पहले इन भजनों ने उसको दिलासा दिया होगा l
परमेश्वर में उसका भरोसा इतना महान था कि अपनी मृत्यु का सामना करते हुए भी अर्थात् निर्दोष की मृत्यु!-उसने परमेश्वर का प्रेम गाने का चुनाव किया l यीशु के कारण, हम भी भरोसा कर सकते हैं कि जिसका भी हम सामना करते हैं, परमेश्वर हमारे साथ है l

शब्दों से कहीं बढ़कर

एक स्थानीय अफ़्रीकी भाषा में अनुदित बाइबल के समर्पण समारोह में, उस क्षेत्र के मुखिया को उनकी प्रति भेंट की गयी l प्रशंसा में, उन्होंने बाइबल को स्वर्ग की ओर ऊपर उठाकर चिल्लाया, “अब हम जान गए हैं कि परमेश्वर हमारी भाषा समझता है! हम अपनी मातृभाषा में बाइबल पढ़ सकते हैं l”
हमारी भाषा से हटकर भी, हमारा स्वर्गिक पिता समझता है l किन्तु अक्सर हम अपनी गहरी इच्छाएँ उसको बताने में अक्षम होते हैं l प्रेरित पौलुस हमें अपनी भावनाओं से ऊपर उठकर प्रार्थना करने के लिए उत्साहित करता है l पौलुस हमारे दुखी संसार और हमारे दुःख के विषय कहता है : “सारी सृष्टि अब तक मिलकर कराहती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है” (रोमियों 8:22), और वह उसकी तुलना हमारे पक्ष में पवित्र आत्मा के कार्य के साथ करता है l वह लिखता है, “आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है : क्योंकि हम नहीं जानते कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए, परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर, जो ब्यान से बाहर है, हमारे लिए विनती करता है” (पद.26) l
परमेश्वर का पवित्र आत्मा हमें निकटता से जानता है l वह हमारी इच्छाएं, हमारे मन की भाषा, और हमारे अनकहे शब्दों को जानता है, और परमेश्वर के साथ हमारी बातचीत में सहायता करता है l उसका आत्मा हमें परमेश्वर पुत्र की छवि में रूपांतरित होने के लिए अपनी ओर आकर्षित करता है (पद.29) l
हमारा स्वर्गिक पिता हमारी भाषा समझता है और हमसे अपने वचन के द्वारा बातचीत करता है l जब हमें हमारी प्रार्थनाएं दुर्बल या बहुत छोटी महसूस हो, उसका आत्मा हमारे द्वारा पिता से बातचीत करने में हमारी मदद करता है l उसकी इच्छा है कि हम प्रार्थना में उससे बातचीत करें l

हमारा गानेवाला पिता

तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे बीच में है, वह उद्धार करने में पराक्रमी है; वह तेरे कारण आनंद से मगन होगा, वह अपने प्रेम के मारे चुपका रहेगा; फिर ऊँचे स्वर से गाता हुआ तेरे कारण मगन होगा l सपन्याह 3:17
गीत गाना कितना विशेष है, हमारे परिवार में बच्चों के जन्म से पूर्व किसी ने हमें यह नहीं बताया l अब मेरे बच्चे छः, आठ, और दस वर्ष के हैं l किन्तु उन सभी को छोटी उम्र में नींद की समस्या थी l प्रति रात्रि, बारी-बारी से हम दोनों पति-पत्नी अपने छोटे बच्चों को अपनी बाहों में डोलाते थे और प्रार्थना करते थे कि वे सो जाएँ l मैंने इस आशा से कि वे जल्दी सो जाएँ उनको सैंकड़ों घंटे अपनी बाहों में डोलाया है और लोरियाँ सुनायी है l किन्तु हर रात्रि में बच्चों को लोरियाँ सुनाते समय कुछ आश्चर्यजनक हुआ : मेरी कल्पना से अधिक मेरा प्रेम और आनंद उनके प्रति गहरा होता गया l
क्या आप जानते हैं कि वचन स्वर्गिक पिता का अपने बच्चों के लिए गीत गाने का वर्णन करता है? जिस प्रकार मैं गीत गाकर अपने बच्चों को शांत कर रहा था, उसी प्रकार सपन्याह स्वर्गिक पिता को अपने लोगों के लिए गाने वाले के रूप को दर्शा कर अपने पुस्तक का अंत  करता है : “वह तेरे कारण आनंद से मगन होगा, वह अपने प्रेम के मारे . . . ऊँचे स्वर से गाता हुआ तेरे कारण मगन होगा” (3:17) l
सपन्याह की भविष्यसूचक पुस्तक का अधिक भाग परमेश्वर का तिरस्कार करनेवाले लोगों को आसन्न न्याय की चेतावनी देता है l किन्तु पुस्तक वहां पर समाप्त नहीं होता l सपन्याह आसन्न न्याय के साथ समाप्त नहीं करता है किन्तु अपने लोगों को उनके दुःख से बचाने के साथ-साथ (पद.19-20) गीत गाकर कोमल प्रेम और आनंद प्रगट करते हुए समाप्त करता है (पद.17) l
हमारा परमेश्वर केवल “उद्धार करने में पराक्रमी” (पद.17) नहीं है किन्तु एक प्रेमी पिता है जो हमारे लिए कोमलता से प्रेम गीत भी गाता है l

सुस्वागतम्

हाल ही की छुट्टियों में, हम दोनों पति-पत्नी एक प्रसिद्ध एथलेटिक काम्प्लेक्स घूमने गए l उसके फाटक पूरी रीति से खुले थे, और ऐसा अहसास हो रहा था मानों हमें उसे देखने के लिए बुलाया जा रहा है l हमने मैदान और सजे हुए स्पोर्ट्स फ़ील्ड्स को देखने का आनंद उठाया l लौटते समय किसी ने हमें रोक कर हमसे कठोरतापूर्वक कहा कि हमें वहां नहीं होना था l अचानक हमने याद किया कि हम बाहरी लोग थे और हम असहज हो गए l  
उसी मौके पर हम एक चर्च देखने गए l पहले की तरह, दरवाजे खुले थे, इसलिए हम अन्दर गए l कितना अंतर था! कई लोगों ने गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया और हमें अपने घर जैसा महसूस कराया l
दुःख की बात है, बाहरी लोगों के लिए चर्च में प्रवेश पर, “आप यहाँ नहीं आ सकते” जैसे अनकहे शब्दों से सामना असाधारण बात नहीं है l किन्तु वचन हमसे सबके प्रति पहुनाई दिखाने को कहता है l यीशु ने हमसे अपने पड़ोसियों को अपने समान प्रेम करने को कहा है, अर्थात् उन्हें अपने जीवनों में और हमारे कलीसियाओं में स्वीकार करना है (मत्ती 22:39) l इब्रानियों में, हमें “अतिथि सत्कार करना न भूलना” (13:2) याद दिलाया गया है l लूका और पौलुस दोनों ही हमें सामजिक और भौतिक आवश्यकताओं वाले लोगों से क्रियाशील प्रेम करने की शिक्षा देते हैं (लूका 14:1313-14; रोमियों 12:13) l और विश्वासियों के परिवार में, हमारे पास प्रेम प्रगट करने की विशेष जिम्मेदारी है (गलातियों 6:10) l
जब हम गर्मजोशी से और मसीह के प्रेम से सब लोगों का स्वागत करते हैं, हम उद्धारकर्ता का प्रेम और तरस प्रगट करते हैं l

चमक

“ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार” अंग्रेजी की एक लोरी है l जेन टेलर ने इसे एक कविता के रूप में लिखा था जो परमेश्वर की सृष्टि के आश्चर्य को आकर्षित करता है जहाँ तारे “पृथ्वी से बहुत ऊपर आसमान में लटके हुए दिखाई देते हैं l” बाद के अंतरा में जो कभी प्रकाशित हुआ, तारे मार्गदर्शक का काम करते हैं : “तुम्हारे चमकीले और छोटी किरण अँधेरे में राहगीर को मार्ग दिखाते हैं l”
फिलिप्पियों की पत्री में, पौलुस फिलिप्पी के विश्वासियों को निर्दोष और पवित्र रहने की चुनौती देता है जब वे अपने चारोंओर के लोगों को सुसमाचार बांटते हुए “आसमान में तारों की तरह चमकते हैं (2:15-16) l हम सोचते हैं कि हम किस प्रकार तारों की तरह चमक सकते हैं l हम अक्सर अक्षम महसूस करते हैं और हमारा प्रकाश अंतर लाने में दीप्तिमान है, इसके विषय संघर्ष करते हैं l किन्तु तारे, तारे बनने की कोशिश  नहीं करते हैं l वे तारे हैं l प्रकाश हमारे संसार को बदल देता है l और वह हमें बदलता है l परमेश्वर हमारे संसार में भौतिक प्रकाश लेकर आया (उत्पत्ति 1:3); और यीशु के द्वारा, परमेश्वर आत्मिक प्रकाश हमारे जीवनों में लाता है (यूहन्ना 1:1-4) l
हम जिनके पास परमेश्वर का प्रकाश है, को अपने चारोंओर के लोगों के समक्ष इस तरह चमकना है कि वे प्रकाश को देखकर उसके श्रोत की ओर आकर्षित हो जाएँ l एक तारे के समान जो रात में सहजता से आसमान में चमकता है, हमारा जीवन भी अपने व्यक्तित्ब के कारण स्वतः अंतर लाता है : प्रकाश! जब हम स्वाभाविक रूप से चमकते हैं, हम पौलुस के “वचन को दृढ़ता से थामे” रहने की निर्देशों को अंधकारमय संसार में मानते हैं, और दूसरों को हमारी आशा के श्रोत, यीशु की ओर आकर्षित करते हैं l

सर्वोत्तम

मछुआरों की एक कहानी बतायी जाती है जो पूरे दिन मछली पकड़ने के बाद स्कॉटलैंड के एक होटल में इकट्ठे हुए l जब एक मछुआरा अपने मित्रों से मछली पकड़ने की एक घटना का वर्णन कर रहा था, उसका हाथ मेज़ पर रखी एक कांच की गिलास से टकराया और टूटा गिलास दीवार से टकराकर सफ़ेद दीवार पर एक दाग छोड़ गया l वह व्यक्ति अपनी गलती स्वीकार कर होटल के मालिक को उस हानि की भरपाई करना चाही, किन्तु वह कुछ करने में असमर्थ था; दीवार ख़राब हो चुकी थी l निकट बैठे एक व्यक्ति ने कहा, “चिंता न करें l” उठकर, उसने अपने पॉकेट से एक चित्रकारी उपकरण निकालकर उस कुरूप दाग़ के चारों ओर कुछ बनाने लगा l धीरे-धीरे एक शानदार बारहसिंगा का सिर उभर आया l वह व्यक्ति स्कॉटलैंड के  सर्वश्रेष्ठ प्राणी कलाकार, सर ई. एच. लैंडसिअर थे l
भजन 51 का लिखनेवाला इस्राएल का प्रसिद्ध राजा, दाऊद, अपने पापों के कारण खुद के लिए और अपने राष्ट्र के लिए लज्जा का कारण बना l उसने अपने एक मित्र की पत्नी के साथ व्यभिचार किया और मित्र की हत्या भी करवा दी-दोनों ही कृत्य मृत्यु के योग्य थे l ऐसा महसूस हो रहा था मानों उसका जीवन नष्ट हो गया हो l किन्तु उसने परमेश्वर से अनुनय-विनय की : “अपने किये हुए उद्धार का हर्ष मुझे फिर से दे, और उदार आत्मा देकर मुझे संभाल” (भजन 51:12) l
दाऊद की तरह अतीत के हमारे लज्जाजनक कार्य और उनकी यादें हमें मध्य रात्रि में परेशान करती हैं l हमें बहुत कुछ सुधारने की इच्छा होती है l
अनुग्रह है जो केवल हमें क्षमा ही नहीं करता किन्तु हमें पहले से बेहतर बनाता है l परमेश्वर कुछ भी बर्बाद नहीं करता है l