Month: नवम्बर 2017

चिनार के पेड़ के बीज

जब हमारे बच्चे छोटे थे, वे पड़ोस के चिनार के पेड़ के गिरते बीजों को पकड़ना पसंद करते थे l प्रत्येक बीज हेलीकॉप्टर के पंखों की तरह उड़ता हुआ नीचे गिरता था l इन बीजों का उद्देश्य उड़ना नहीं था, किन्तु भूमि पर गिरकर पेड़ के रूप में उगना था l

यीशु ने क्रूसित होने से पहले, अपने चेलों से कहा, “वह समय आ गया है कि मनुष्य के पुत्र की महिमा हो ... जब तक गेहूँ का एक दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है; परन्तु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है” (यूहन्ना 12:23-24) l

जब यीशु के चेले चाहते थे कि वह मसीह के रूप में सम्मानित किया जाए, उसने अपना जीवन बलिदान किया ताकि उसमें विश्वास करने के द्वारा हम क्षमा किए जाएँ और रूपांतरित किये जाएँ l यीशु के अनुयायी होकर, हम उसकी आवाज़ सुनते हैं, “जो अपने प्राण को प्रिय जानता है, वह उसे खो देता है; और जो इस जगत में अपने प्राण को अप्रिय जानता है, वह अनंत जीवन के लिए उस की रक्षा करेगा l यदि कोई मेरी सेवा करे, तो मेरे पीछे हो ले; और जहाँ में हूँ, वहाँ मेरा सेवक भी होगा l यदि कोई मेरी सेवा करे, तो पिता उसका आदर करेगा” (पद.25-26) l

चिनार पेड़ के बीज, उद्धारकर्ता, यीशु के आश्चर्यकर्म की ओर इशारा कर सकते हैं, जिसने मृत्यु सही कि हम उसके लिए जी सकें l

धीरज धरें

हमारे पीछे के आँगन में मकोय(Cherry)का एक पुराना पेड़ है जिसने अच्छे दिन देखे थे और अब मर रहा था, इसलिए मैंने पेड़ों में नयी जान डालनेवाले विशेषज्ञ को बुलाया l उसने जांच करके बताया कि वह पेड़ “अत्यंत थकान” में है और उसे तुरंत देख-रेख चाहिए l “धीरज रखो,” मेरी पत्नी, करोलिन जाते हुए उस पेड़ से बुदबुदाई l वह एक कठिन सप्ताह था l

वास्तव में, हम सब के पास चिंता भरे सप्ताह होते हैं-जिसमें हम अपनी संस्कृति को उद्देश्य से दूर जाते हुए अथवा अपने बच्चों के विषय, हमारे विवाह, व्यवसाय, धन, व्यक्तिगत सेहत और सुख के विषय चिंतित होते हैं l फिर भी, यीशु ने हमें भरोसा दिया है कि अशांत करनेवाली परिस्थितियों के बावजूद हम शांति से रह सकते हैं l उसने कहा, “मैं ... अपनी शांति तुम्हें देता हूँ” (यूहन्ना 14:27) l

यीशु के दिन संकट और अव्यवस्था से भरे थे : उसके शत्रुओं ने उसे घेरा और उसके  परिवार और मित्रों ने उसे गलत समझा l अक्सर उसके पास सिर रखने को जगह न थी l इसके बावजूद उसके अंदाज में चिंता अथवा अप्रसन्नता के संकेत नहीं थे l उसके अन्दर आन्तरिक स्थिरता और शांति थी l अतीत, वर्तमान, और भविष्य के विषय-उसने हमें इसी प्रकार की शांति दी है  l उसने अपनी  शांति प्रगट की है l

किसी भी स्थिति में, चाहे वह कितनी भी खौफ़नाक अथवा मामूली हो, हम प्रार्थना में यीशु की ओर मुड़ सकते हैं l हम उसकी उपस्थिति में अपनी चिंता और भय उसको बता सकते हैं l और, पौलुस हमें भरोसा देता है कि परमेश्वर की शांति हमारे “हृदय और [हमारे] विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी” (फ़िलि. 4:7) l “उस प्रकार का कोई सप्ताह” होने के बावजूद, हमेंउसकी  शांति मिल सकती है l

उत्कृष्ट कृतियाँ देखना

मेरे पिता तीरंदाजों के लिए तीर रखने हेतु उनकी पसंदीदा तरकश बनाते हैं l  असली चमड़े के तरकश को सिलने से पहले वे उस पर विस्तारपूर्वक वन्य-जीव जंतुओं की तस्वीरें खोद कर बनाते हैं l

एक बार मैंने उनको अपनी एक कलाकृति बनाते देखा l उनके सावधान हाथों ने नरम चमड़े पर तेज़ चाकू से ठीक दबाव डालकर विभिन्न आकृतियाँ बनायीं l उसके बाद उन्होंने सुर्ख लाल रंग में कपड़े का एक टुकड़ा डुबोकर चमड़े पर बराबर रेखाएं खींचकर अपनी रचना की खूबसूरती को बढ़ाया l

अपने पिता की विश्वासपूर्ण शिल्पकारिता की प्रशंसा करते हुए, मैंने जाना कि कई बार मैं दूसरों में और खुद में अपने स्वर्गिक पिता की दिखाई देनेवाली रचनात्मकता को निहारने से चूक जाती हूँ l प्रभु की अद्भुत शिल्पकारिता पर विचार करते हुए, मैं राजा दाऊद की समर्थन को याद करती हूँ कि परमेश्वर ने हमारे “आन्तरिक अस्तित्व” को रचता है और कि हम “भयानक और अद्भुत रीति से” रचे गए हैं (भजन 139:13-14) l

हम भरोसे से अपने सृष्टिकर्ता की प्रशंसा कर सकते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि उसके कार्य “आश्चर्य के हैं” (पद.14) l और हम अपना और दूसरों का अधिक आदर करने के लिए उत्साहित होंगे, विशेषकर जब हम स्मरण करेंगे कि विश्व का सृष्टिकर्ता हमें पूरी तरह जानता था और हमें “[रचने] से पहले” उसने हमारे सब दिन ठहराए (पद.15-16) l

मेरे पिता के कुशल हाथों द्वारा बनाए गए उस चमड़े के तरकश की तरह, हम सब बस इसलिए सुन्दर और मूल्यवान हैं क्योंकि हम परमेश्वर की सृष्टि में अद्भुत हैं l हममें से हर एक, सोची समझी अद्वितीय और उद्देश्पूर्ण बनावट परमेश्वर की प्रिय सर्वश्रेष्ठ कलाकृति हैं, जो परमेश्वर का वैभव प्रगट करते हैं l

लुका छुपी

“आप मुझे नहीं देख सकते हैं!”

छोटे बच्चे “लुका छुपी” खेलते समय विश्वास करते हैं कि अपनी आँखों को बंद करने से वे छिप जाते हैं l वे मानते हैं कि यदि वे आपको नहीं देख सकते हैं, तो आप भी उन्हें नहीं देख सकते हैं l

चाहे वयस्कों को वह जितना भी भोला महसूस हो, हम कभी-कभी परमेश्वर के साथ भी ऐसा ही करते हैं l जब हम जानते हुए कुछ गलत करने की इच्छा करते हैं, हमारा अभिप्राय अपने मन की करते हुए परमेश्वर को अलग करना हो सकता है l

नबी यहेजकेल ने परमेश्वर से दर्शन में बेबीलोन में निर्वासित अपने लोगों के विषय यह देखा l प्रभु ने उससे कहा, “क्या तूने देखा है कि इस्राएल के घराने के पुरनिये अपनी नक्काशीवाली कोठरियों के भीतर अर्थात् अंधियारे में क्या कर रहे हैं? वे कहते हैं कि यहोवा हम को नहीं देखता” (यहेज. 8:12) l

किन्तु परमेश्वर सब कुछ देखता है, और यहेजकेल का दर्शन इसका प्रमाण है l फिर भी उनके पाप करने पर, परमेश्वर ने अपने पश्च्तापी लोगों को एक नयी प्रतिज्ञा दी :  “मैं तुमको नया मन दूँगा, और तुम्हारे भीतर नयी आत्मा उत्पन्न करूँगा” (36:26) l

हमारे लिए, परमेश्वर ने क्रूस पर पूर्ण दंड चुकाकर अपनी कोमल करुणा से टूटापन और पाप का विद्रोह ख़त्म किया l यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर हमें केवल नया आरंभ ही नहीं देता है, किन्तु जब हम उसके पीछे चलते हैं वह हमारे हृदय परिवर्तन के लिए हमारे अन्दर काम भी करता है l परमेश्वर कितना अच्छा है! जब हम खोए हुए थे और अपने पाप में छिपे हुए थे, परमेश्वर, यीशु के द्वारा, हमें “ढूढ़ने और [हमारा] उद्धार करने आया” (लूका 19:10; रोमि. 5:8) l

सेवा करें और सेवा लें

मारिलिन कई हफ़्तों तक बीमार रही थी, और अनेक लोगों ने उसे इस कठिन समय में उत्साहित किया था l मैं उनकी नेकी का बदला कैसे दूँगी?  उसकी चिंता थी l तब एक दिन उसने एक लिखित प्रार्थना पढ़ी : “प्रार्थना करें कि [दूसरे] दीनता को बढ़ाएं, केवल सेवा करने के लिए नहीं, किन्तु सेवा लेने के लिए भी l” मारिलिन ने तुरंत महसूस किया कि बराबर करने की ज़रूरत नहीं, किन्तु केवल धन्यवादी होकर दूसरों को सेवा करने का आनंद अनुभव करने दें l

फिलिप्पिय्यों 4 में, पौलुस ने “[उसके] क्लेश में ... सहभागी” होनेवाले सभी को धन्यवाद दिया (पद.14) l वह सुसमाचार प्रचार करते समय और सिखाते समय लोगों की सहायता पर निर्भर था l वह समझ गया कि ज़रूरत के समय मिला उपहार केवल परमेश्वर के प्रेमी लोगों के प्रेम का प्रसार था : “[तुम्हारा उपहार] तो सुखदायक सुगंध, ग्रहण करने योग्य बलिदान है, जो परमेश्वर को भाता है” (पद.18) l

प्राप्त करनेवाला बनना सरल नहीं है-विशेषकर यदि आमतौर पर आप दूसरों को मदद करने में प्रथम रहे हैं l किन्तु दीनता से, हमारी ज़रूरत के समय हम परमेश्वर को अनेक माध्यमों से हमारी देखभाल करने की अनुमति दें l

पौलुस ने लिखा, “मेरा परमेश्वर ... तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेगा” (पद.19) l यह कुछ ऐसा था जो उसने क्लेश से पूर्ण जीवन में सीखा था l परमेश्वर विश्वासयोग्य है और उसका श्रोत असीमित है l

उसकी उपस्थिति में

अपने समुदाय में रसोइया का कार्य करनेवाला, 17वीं शताब्दी का मठवासी/साधु ब्रदर लॉरेन्स, दिन का काम आरंभ करने से पूर्व, प्रार्थना करता था, “हे मेरे परमेश्वर ... आपकी उपस्थिति में रहने के लिए मुझे अनुग्रह दीजिए l मेरे कार्य में मेरी मदद कीजिए l मेरे सम्पूर्ण मोह को अपना बना लीजिए l” कार्य करते हुए, वह परमेश्वर से निरंतर बातें करता था, उसके मार्गदर्शन पर ध्यान देते हुए अपना काम उसको समर्पित करता था l वह अपनी व्यस्तता में भी, बीच के संतुलित शांत समय में उससे अनुग्रह माँगता था l चाहे कुछ भी होता रहे, उसने अपने सृष्टिकर्ता के प्रेम को ढूंढा और महसूस किया l

भजन 89 के अनुसार, समुद्र पर राज्य करनेवाले और स्वर्गदूतों की सेना द्वारा उपासना प्राप्त करनेवाले सबके सृष्टिकर्ता के प्रति अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करना ही सटीक प्रतिउत्तर होगा l परमेश्वर कौन है, उसकी खूबसूरती समझने के बाद हम “आनंद की ललकार को” हर समय और हर जगह “दिन भर” सुनते हैं l (पद. 15-16) l

चाहे हम किसी दूकान में अथवा एअरपोर्ट/बस की पंक्ति में खड़े हों, अथवा अपने फ़ोन होल्ड किये हों, हमारे जीवन ऐसे क्षणों से भरे हैं, जब हम परेशान भी हो सकते थे l अथवा हम इन क्षणों को “[उसके] प्रकाश में” चलनेवाले क्षण बना सकते हैं (पद.15) l

हमारे जीवनों के “बर्बाद” किये हुए क्षण, जब हम इंतज़ार करते हैं, बीमार होते हैं अथवा विचारते हैं कि क्या करें, उसकी उपस्थिति के प्रकाश में रहने के पल हो सकते हैं l

और कितना!

अक्टूबर 1915 में, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ऑस्वाल्ड चैम्बर्स ब्रिटिश राष्ट्रमंडल सैनिकों के लिए, YMCA की ओर से पादरी की सेवा करने मिस्र में काहिरा के निकट एक सेना प्रशिक्षण शिविर, जीटोन  शिविर पहुंचे l चैम्बर्स के द्वारा एक सप्ताह की रात्री धार्मिक सेवा की घोषणा पर, 400 लोग उस बड़े YMCA  झोपड़े में उसका उपदेश सुनने आ गए जिसका शीर्षक था, “प्रार्थना की अच्छाई क्या है?” बाद में, युद्ध के मध्य परमेश्वर को ढूँढ़ने वाले लोगों से व्यक्तिगत रूप से बातें करते हुए, ऑस्वाल्ड ने अक्सर लूका 11:13 का सन्दर्भ दिया, “अतः जब तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो स्वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा” (लूका 11:13) l

परमेश्वर के पुत्र, यीशु के द्वारा मुफ्त उपहार क्षमा, आशा, और पवित्र आत्मा द्वारा हमारे जीवनों में उसकी जीवित उपस्थिति है l “क्योंकि जो कोई मांगता है, उसे मिलता है; और जो कोई ढूंढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाएगा” (पद.10) l

नवम्बर 15, 1917 को अचानक अपेंडिक्स(बड़ी आंत का एक अतिरिक्त भाग) के फूटने से ऑस्वाल्ड चैम्बर्स की मृत्यु हो गयी l ऑस्वाल्ड की सेवा के परिणामस्वरुप विश्वास करनेवाला एक सैनिक संगमरमर पत्थर की बनी खुली बाइबिल की एक प्रतिरूप पर लूका 11:13 खुदवाकर उसके कब्र के निकट रख दिया : “स्वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा!”

प्रतिदिन परमेश्वर का यह अद्भुत उपहार हमारे लिए उपलब्ध है l

महान प्रेम

हाल ही में हमने अपनी बाईस महीने की नातिन, मोरिया को उसके बड़े भाइयों के बिना रात भर के लिए अपने घर ले गए l हमनें अधिक प्रेम के साथ उसका ध्यान दिया, और हम उसकी इच्छा पूरी करने में आनंदित हुए l अगले दिन उसको वापस घर पहुंचाने के बाद, हम अलविदा कहकर घर के बाहर निकलने लगे l ऐसा करते समय, मोरिया ने चुपचाप अपना बैग उठाकर(जो अभी भी दरवाजे के निकट बैठी हुयी थी) हमारे पीछे चलने लगी l

वह तस्वीर मेरी यादों में बैठ गयी : मोरिया अपनी चड्डी में और दो अलग-अलग सैंडल पहनी हुयी पुनः नाना-नानी के साथ जाने को तैयार थी l मैं इसके विषय सोचकर मुस्कराती हूँ l वह मेरे संग जाने को उत्सुक, और अधिक व्यक्तिगत ध्यान पाने के लिए तैयार थी l

यद्यपि हमारी नातिन अभी बता नहीं पाती है, वह प्रेम और उसका महत्व अनुभव करती है l एक छोटे रूप से, मोरिया के लिए हमारा प्रेम हमारे लिए अर्थात् उसकी संतान के लिए परमेश्वर के प्रेम की तस्वीर है l “देखो, पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है कि हम परमेश्वर की संतान कहलाएं; और हम हैं भी” (1 यूहन्ना 3:1) l

हम यीशु पर अपने उद्धारकर्ता के रूप में विश्वास करके, उसकी संतान बन जाते हैं और हमारे लिए उसकी क्रूसित मृत्यु द्वारा उसके उदार प्रेम को समझने लगते हैं (पद.16) l हमारी इच्छा अपने वचन और कार्यों द्वारा उसको प्रसन्न करने(पद.6)-और उसको प्रेम करने और उसके साथ समय बिताने की होती है l

गुणित उदारता

शेरिल अपनी अगली पिज़्ज़ा पहुंचाते समय चकित हुयी l उसे किसी घर में पहुँचने की आशा थी, किन्तु चर्च में पहुंच गयी l शेरिल पेपरौनी पिज़्ज़ा चर्च में पहुँचा दी, जहाँ उसकी मुलाकात पास्टर से हुयी l

“क्या यह कहना उचित होगा कि तुम्हारे लिए जीवन अच्छा रहा है? पास्टर ने शेरिल से पुछा l शेरिल ने कहा कि नहीं रहा है l इसके साथ, पास्टर दो थालियाँ लेकर आये जिसे चर्च के विश्वासियों ने दान से भर दिए थे l तब पास्टर ने बख्शिश के तौर पर 750 डॉलर शेरिल के  पिज़्ज़ा पहुंचाने वाले थैले में डाल दिया! शेरिल को न बताते हुए, पास्टर ने पिज़्ज़ा की दूकान से सबसे अधिक आर्थिक तंगी में रहनेवाले डेलिवरी मैन को भेजने को कहा था l शेरिल चौंक गयी l वह कई भुगतान करने में असमर्थ थी l

जब यरूशलेम के प्रथम मसीही गरीबी का सामना कर रहे थे, वह तुरंत सहायता पहुँचाने वाला एक चर्च ही था l खुद ज़रूरत में रहने के बावजूद, मेसिडोनिया के मसीही अवसर जानकर उदारता से दान दिए (2 कुरिन्थियों 8:1-4) l पौलुस ने उनकी उदारता को कुरीन्थियों और हमारे अनुसरण के लिए एक नमूना बताया l  जब हम अपनी अधिकता में से दूसरों की सहायता करते हैं, हम यीशु को प्रगट करते हैं, जिसने हमारी आत्मिक गरीबी को मिटाने के लिए अपना धन त्याग दिया (पद.9) l

शेरिल ने उस दिन चर्च की उदारता अपने सभी ग्राहकों को बतायी, और, उस नमूना का अनुसरण करते हुए उस दिन की बख्शिश सभी ज़रुरतमंदों में बाँट दी l उदारता का एक कार्य गुणित हुआ l और मसीह को महिमा मिली l