Month: जून 2018

नाम लेकर बुलाया गया

विज्ञापनदाता यह मानते हैं कि सर्वाधिक ध्यान आकर्षित करनेवाला शब्द दर्शक का नाम ही होता है जिस पर दर्शक प्रतिक्रिया करते हैं l इस प्रकार यू के में एक टेलीविजन चैनल ने अपने ऑनलाइन चलनेवाली सेवाओं में व्यक्तिगत विज्ञापनों को तैयार किया है l

हम टेलीविजन पर अपना नाम सुनना पसंद करेंगे, किन्तु जब तक आपका कोई प्रिय जो आपका नाम लेकर आपसे प्रेम करता है आपको न पुकारे तब तक वह सार्थक महसूस नहीं होता है l

मरियम मगदलीनी का ध्यान उस कब्र के निकट ठहर गया, जहां क्रूसित होने के बाद यीश का  शव रखा गया था, जब यीशु ने मरियम का नाम लिया (यूहन्ना 20:16) l एक शब्द से उसने अपने गुरु को अविश्वास और आनंद के एक तीव्र प्रवाह द्वारा पहचान लिया जिससे वह प्रेम करती थी और जिसका वह अनुसरण करती थी l जिस लोकप्रियता से उसने उसका नाम पुकारा, उसने बगैर शक के मरियम को आश्वस्त कर दिया कि जो उसे पूरी तरह जानता था मृतक नहीं किन्तु जीवित था l

यद्यपि मरियम ने यीशु के साथ एक अनोखा और विशेष क्षण का आनंद उठाया, परमेश्वर हमें भी व्यक्तिगत रूप से प्रेम करता है l यीशु ने मरियम से कहा कि वह पिता के पास जाएगा (पद.17), किन्तु उसने अपने शिष्यों से यह भी कहा था कि वह उन्हें अकेले नहीं छोड़ेगा (यूहन्ना 14:15-18) l परमेश्वर पवित्र आत्मा को अपनी संतानों में निवास करने के लिए भेजेगा (देखें प्रेरितों 2:1-13) l

परमेश्वर की कहानी बदलती नहीं है l चाहे तब या वर्तमान में, वह जिनसे प्रेम करता है उनको जानता है (देखें यूहन्ना 10:14-15) l वह हमें नाम लेकर बुलाता है l

पिता की सलाह

“सम्पादकीय कार्य से मुक्त होने के बाद, मैंने परमेश्वर से एक नये कार्य के लिए प्रार्थना की l और नेटवर्किंग और आवेदन करने के मेरे प्रयास के बाद भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिलने की स्थिति में मैं खिजने लगी l “क्या आपको पता नहीं कि मेरे लिए नौकरी महत्वपूर्ण है?” यह महसूस करते हुए कि मेरी प्रार्थना सुनी नहीं गयी है, मैंने परमेश्वर से अपनी दोनों बाहें विरोध में मोड़ कर पूछा l

जब मैंने अपने पिता से, जिन्होंने मेरी नौकरी के विषय परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर विश्वास करने के विषय मुझे अक्सर याद दिलाया था, बातें की, तो उनका उत्तर था, “मेरी इच्छा है कि तुम परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर विश्वास करने की स्थिति में पहुँच जाओ l”

मेरे पिता की सलाह मुझे नीतिवचन 3 याद दिलाती है, जिसमें एक प्रिय बच्चे को एक अभिभावक की सलाह सम्मिलित है l यह परिचित परिच्छेद विशेषकर मेरी स्थिति के अनुकूल था : “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन् सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना l उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिए सीधा मार्ग निकलेगा” (नीतिवचन 3:5-6) l “सीधा मार्ग निकालेगा” का अर्थ है कि वह हमारी उन्नत्ति के लिए अपने लक्ष्य की ओर हमारा मार्गदर्शन करेगा l उसका अंतिम लक्ष्य है कि मैं और भी उसके समान बन जाऊं l

इसका अर्थ यह नहीं है कि उसके द्वारा चुना गया मार्ग सरल होगा l किन्तु मैं उस पर भरोसा कर सकती हूँ कि उसका मार्गदर्शन और समय अंततः मेरी भलाई के लिए ही होगा l

क्या आप उत्तर के लिए परमेश्वर के समक्ष ठहरे हुए हैं? उसके निकट रहने का चुनाव करें और भरोसा करें कि वह आपका मार्गदर्शन करेगा l

हार्दिक स्वागत

“कौन सबको गले लगाएगा?”

यही सवाल उन अनेक सवालों में से एक था जो हमारे मित्र स्टीव ने तब पूछा जब उसे पता चला कि उसे कैंसर हो गया है और उसे जान पड़ा कि वह थोड़े समय के लिए हमारे चर्च में अनुपस्थित रहेगा l यदि हम रोमियों 16:16 को लागू करें जिसके अनुसार, “आपस में पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो” लिखा है, तो, स्टीव सबके साथ मित्रवत भाव रखते हुए अभिनन्दन करता था,  गर्मजोशी से हाथ मिलाता था, और “पवित्र चुम्बन” से बहुतों को गले भी लगाता था l

और अब जब हम सब स्टीव की चंगाई के लिए परमेश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं, वह इस बात से चिंतित है कि जब उसकी शल्यचिकित्सा और इलाज होता है और वह हमारे चर्च से कुछ समय के लिए अनुपस्थित रहेगा, हम उसके अभिवादन करने की कमी को महसूस करेंगे l

शायद हम सब स्टीव की तरह एक दूसरे का अभिवादन खुलकर नहीं कर सकते, किन्तु लोगों की चिंता करने का उसका नमूना हमारे लिए ताकीद है l स्मरण करें कि पतरस कहता है, “बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे का अतिथि-सत्कार करो,” अथवा जिसका केंद्र प्रेम हो (1 पतरस 4:9; देखें फ़िलि. 2:14) l जबकि प्रथम शताब्दी की पहुनाई में यात्रियों को रहने की व्यवस्था करना होता था, तो उसमें भी गर्मजोशी से स्वागत सम्मिलित होता था l

जब हम दूसरों के साथ प्रेम से व्यवहार करते हैं, चाहे गले लगाकर या मित्रवत मुस्कराहट के द्वारा, हम “सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्वर की महिमा प्रगट [करें]” (1 पतरस 4:11) l

सिद्ध पिता

भीड़ भरे एक स्टोर के गलियारे में खड़ी, मैं पिता दिवस का सबसे अच्छा कार्ड खोज रही थी l यद्यपि वर्षों बाद हम दोनों बाप बेटी ने एक तनावपूर्ण सम्बन्ध के बाद मेल-मिलाप कर लिया था, किन्तु मैं कभी भी अपने पिता से निकट सम्बन्ध नहीं रख पायी थी l

मेरे निकट खड़ी उस महिला ने आह भरकर उस कार्ड को फिर से उस शेल्फ में रख दिया l “वे उन लोगों के लिए कार्ड क्यों नहीं बनाते जिनका सम्बन्ध अपने पिता से ठीक नहीं है, किन्तु सही सम्बन्ध बनाने का प्रयास कर रहे हैं?”

मेरे उत्तर देने से पहले ही वह जल्दी से दूकान से बाहर चली गयी, इसलिए मैंने उसके लिए प्रार्थना किया l मैंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया कि केवल वही सिद्ध पिता है l मैंने उससे अपने पिता से सम्बन्ध मजबूत करने के लिए सामर्थ्य मांगी l

मैं अपने स्वर्गिक पिता से गहरा सम्बन्ध रखने की भी चाहत रखती हूँ l मैं परमेश्वर की नित्य उपस्थिति, सामर्थ्य, और सुरक्षा के लिए दाऊद का भरोसा चाहती हूँ (भजन 27:1-6) l

जब दाऊद ने सहायता माँगी, वह परमेश्वर के उत्तर की आशा रखता था (पद.7-9) l यद्यपि संसार के माता-पिता अपने बच्चों को त्याग देते हैं, छोड़ देते हैं अथवा उनकी उपेक्षा करते हैं, दाऊद ने परमेश्वर की शर्तहीन स्वीकार्यता की घोषणा करता है (पद.10) l वह परमेश्वर की भलाई की निश्चितता में जीता था (पद.11-13) l हममे से कईयों की तरह, दाऊद भी संघर्ष करता था, किन्तु पवित्र आत्मा उसे भरोसा रखने और प्रभु पर निर्भरता कायम रखने में उसकी सहायता करता था (पद.14) l

अनंत के इस ओर हम सब कठिन संबंधों का सामना करेंगे l किन्तु जब लोग चूक करें, हमें छोड़ दें, उस स्थिति में भी हमारा एक मात्र सिद्ध पिता हमसे पूर्ण प्रेम करता है और सुरक्षा देता है l

चेहरे

जब हमारी पौत्री सारा छोटी थी, उसने मुझे समझाया कि मृत्यु के बाद क्या होता है : “केवल आपका चेहरा स्वर्ग जाता है, आपका शरीर नहीं l आपको नया शरीर मिलता है, किन्तु चेहरा वही होता है l”

वास्तव में, हमारे अनंत की स्थिति के विषय में सारा का विचार एक बच्चे की समझ थी, किन्तु वह एक विशेष सच्चाई समझ गयी थी l एक अर्थ में, हमारे चेहरे अदृश्य आत्मा का दृश्य प्रतिबिम्ब है l

मेरी माँ कहती थी कि किसी दिन क्रोधित रूप मेरे चेहरे पर ठहर जाएगा l वह अपने ज्ञान से बुद्धिमान थी l एक चिंतित ललाट, हमारा क्रोधित चेहरा, हमारी आँखों में एक कुटिल दृष्टि एक दयनीय आत्मा को दर्शाती है l  दूसरी ओर, झुर्री, दाग़, और अन्य कुरूपता के बावजूद दयालु आँखें, एक कोमल दृष्टि, स्नेही और स्वागत करनेवाली मुस्कराहट आंतरिक रूपांतरण के चिन्ह बन जाते हैं l

जिस चेहरे के साथ हम जन्म लिए हैं उसके विषय में हम अधिक कुछ नहीं कर सकते हैं, किन्तु हम जिस तरह के व्यक्ति बन रहे हैं उसके विषय ज़रूर कुछ कर सकते हैं l हम नम्रता, धीरज, दयालुता, धीरज, कृतज्ञता, क्षमा, शांति, और प्रेम के लिए प्रर्थना कर सकते हैं (गलातियों 5:22-26) l

परमेश्वर की सहायता से, और उसके नाम में, आप और मैं अपने प्रभु के आंतरिक स्वरुप में बढ़ते जाएं, एक सादृश्यता जो दयालु, वृद्ध चेहरे में झलकता है l इसलिए, जिस तरह अंग्रेजी कवी जॉन डॉन (1572-1631) ने कहा है, कि उम्र “आखिरी दिन में सबसे खुबसूरत” हो जाती है l

और सच्चाई में

वर्षों पूर्व, मैं एक ऐसे विवाह में शामिल हुआ जिसमें भिन्न देशों के दो लोगों का विवाह हुआ l संस्कृतियों का ऐसा मिलन खुबसूरत हो सकता है, किन्तु इस समारोह में मसीही परम्पराओं के साथ ऐसे विश्वास की रीति रिवाजों का समावेश था जिसमें अनेक देवताओं की उपासना शामिल थी l

नबी सपन्याह ने एक सच्चे परमेश्वर में विश्वास के साथ दूसरे धर्मों की मिलावट(जिसे कभी-कभी समन्वयता[syncretism] कहा जाता है) की स्पष्ट रूप से निंदा की l यहूदा के लोग एक सच्चे परमेश्वर की उपासना के साथ-साथ मोलेक देवता पर भी  भरोसा करते थे (स्पन्याह 1:5) l स्पन्याह उनके द्वारा मूर्तिपूजक संस्कृति को अपनाने का वर्णन करते हुए(पद.8) चेतावनी देता है कि इसके परिणाम स्वरुप परमेश्वर यहूदा के लोगों को उनके अपने देश से निर्वासित कर देगा l
इसके बावजूद भी परमेश्वर ने अपने लोगों से प्रेम करना नहीं छोड़ा l उसका न्याय यह प्रगट कर रहा था कि उनको उसकी ओर लौटना होगा l इसलिए स्पन्याह यहूदा के लोगों से कहता है “धर्म को ढूढों, नम्रता को ढूढों” (2:3) l उसके बाद परमेश्वर ने कोमल शब्दों में उनकी पूर्ण पुनर्स्थापन की प्रतिज्ञा की : “उसी समय मैं तुम्हें ले जाऊँगा, और उसी समय मैं तुम्हें इकठ्ठा करूँगा” (3:20) l
जिस विवाह में मैं शामिल हुआ था उसमें प्रगट धर्मों की मिलावट के उदहारण की निंदा करना सरल है l किन्तु वास्तविकता में, हम सभी  परमेश्वर की सच्चाई को हमारी संस्कृति की मान्यताओं के साथ सरलता से मिला देते हैं l हमें सच्चाई पर भरोसा और प्रेम के साथ खड़े रहने हेतु अपने विश्वास की जांच पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन में और परमेश्वर के वचन की सत्यता के प्रकाश में करनी होगी l हमारा पिता हरेक को गले लगाता है जो आत्मा और सच्चाई से उसकी उपासना करता है (देखें यूहन्ना 23-24) l

साथ-साथ

प्राचीन काल में, टूटी दीवारों वाला शहर खतरा और शर्म के साथ-साथ पराजित लोगों का चिन्ह होता था l इसी कारण यहूदियों ने यरूशलेम की दीवारों का पुनः निर्माण किया l कैसे? पास-पास रहकर कार्य करते हुए, जो नहेम्याह 3 में खूबसूरती से व्यक्त है l

पहली झलक में, अध्याय 3 पुनः निर्माण में किसने क्या किया का उबाऊ वर्णन महसूस हो सकता है l हालांकि, निकट अवलोकन स्पष्ट करता है कि लोग किस तरह एक दुसरे के निकट  रहकर कार्य किए l याजक लोग शासकों के निकट रहकर कार्य कर रहे थे l इत्र बनानेवालों के साथ-साथ सुनारों ने भी कार्य किया l निकट के शहरों के लोग भी सहायता करने आ गए l दूसरों ने अपने घरों के सामने मरम्मत की l जैसे, शल्लूम की बेटियों ने पुरुषों के साथ कार्य में सहयोग दिया (3:12), और तकोइयों की तरह, कुछ लोगों ने दो भागों की मरम्मत की (पद.5,27) l

इस अध्याय से दो  बातें स्पष्ट हो जाती हैं l पहली, एक सामूहिक कार्य के लिए सभी ने  साथ-साथ काम किया l दूसरी बात, दूसरों की तुलना में किसने कितना अधिक अथवा कम किया की जगह उस काम को पूर्ण करने के लिए सभी की सराहना की गयी है l

आज हम बिगड़े परिवार और टूटा समाज देखते हैं l किन्तु यीशु लोगों के जीवन को बदल कर  परमेश्वर के राज्य को बनाने आया था l हम लोगों को, यीशु में आशा और नया जीवन देकर अपने पड़ोस का पुनः निर्माण कर सकते हैं l हम सभी को कुछ करना ही है l इसलिए काम छोटा या बड़ा हो, हम साथ-साथ रहकर अपना उत्तरदायित्व पूरा करते रहें जिससे हम प्रेमी समाज की रचना कर पाएंगे जहाँ लोग यीशु से मिल सकेंगे l

एक अंधे का आग्रह

कुछ वर्ष पूर्व, एक सह-यात्री ने ध्यान दिया कि मुझे दूर की वस्तुएं देखने में कठिनाई हो रही है l उसके बाद जो उसने किया वह सरल किन्तु जीवन बदलने वाला था l उसने अपना चश्मा उतार कर मुझे दिया और कहा, “इनको पहनकर देखिये l” उसका चश्मा पहनकर, मेरी धुंधली दृष्टि स्पष्ट हो गयी l मैं आँखों के डॉक्टर के पास गया जिसने मेरी दृष्टि की समस्या को ठीक करने के लिए मुझे चश्मा पहनने का सुझाव किया l

आज के पाठ लुका 18 में एक दृष्टिहीन व्यक्ति दिखाई देता है जो पूर्ण अन्धकार में रहते हुए अपनी जीविका के लिए भीख मांगने को मजबूर था l लोकप्रिय शिक्षक और आश्चर्यकर्म करनेवाले, यीशु की खबर उस अंधे भिखारी के कानों तक पहुँच गयी थी l इसलिए जब यीशु उस मार्ग पर गया जहां वह दृष्टिहीन भिखारी बैठा हुआ था, उसके मन में आशा जाग उठी l उसने पुकारा, “हे यीशु, दाऊद की संतान, मुझ पर दया कर!” (पद.38) l शारीरिक रूप से दृष्टिहीन होने के बावजूद, इस व्यक्ति में आत्मिक अंतर्दृष्टि थी कि यीशु कौन है और वह उसकी ज़रूरत पूरा कर सकता है l विशवास से विवश होकर, “वह और भी चिल्लाने लगा, ‘हे दाऊद की संतान, मुझ पर दया कर!’” (पद.39) l परिणाम? उसकी दृष्टिहीनता चली गयी, और अब वह अपनी जीविका के लिए भीख नहीं मांगता था और दृष्टि प्राप्त करके दूसरों के लिए परमेश्वर की आशीष बन गया था (पद.43) l

अन्धकार के क्षण और काल में, आप किस दिशा में मुड़ते हैं? आप किस पर भरोसा करते हैं और किसको पुकारते हैं? दृष्टि में सुधार के लिए चश्मा है, किन्तु परमेश्वर के पुत्र यीशु का स्पर्श ही है, जो लोगों को आत्मिक दृष्टिहीनता से प्रकाश में लाता है l

हमारी आँखें खोल दीजिए

जब मैं पहली बार इस्तांबुल में अत्यधिक खुबसूरत चोरा चर्च देखने गयी, मैं चर्च के छत पर बनी यूनानी साम्राज्य के दिनों की भित्तिचित्रों और मोज़ाइक चित्रों को पहचाना जो बाइबल की कहानियाँ बता रहीं थीं l किन्तु मैं बहुत कुछ देखने से रह गयी l हलाकि, दूसरी बार, एक गाइड की सहायता से मैंने सभी विवरण जान लिए और तब अचानक पूरी बातें समझ में आ गयीं l जैसे, पहला गलियारा लूका रचित सुसमाचार में वर्णित यीशु का जीवन प्रदर्शित कर रहा था l

कभी-कभी बाइबल पढ़ते समय हम मौलिक कहानियों को समझते हैं, किन्तु उन कहानियों के बीच सम्बन्धों के विषय में भी समझना होगा जो बाइबल को एक कहानी में बांधती हैं? बिलकुल, हमारे पास बाइबल टिकाएं और अध्ययन करने के सहायक साधन हैं, किन्तु हमें एक गाइड चाहिए अर्थात् कोई जो हमारी आँखें खोल सके और हमें  परमेश्वर के लिखित प्रकाशन में अद्भुत बातें दिखा सके l पवित्र आत्मा हमारा गाइड है जो “सब बातें” समझाता है (यूहन्ना 14:26) l पौलुस कहता हैं कि वह “पवित्र आत्मा की सिखाई हुई बातों में आत्मिक बातें, आत्मिक बातों से मिला मिलकर सुनाते हैं” (1 कुरिं. 2:13) l  

बाइबल के लेखक द्वारा हमें उसमें की अद्भुत बातें बताना कितना अद्भुत है! परमेश्वर ने हमें केवल लिखित वचन और अपना प्रकाशन ही नहीं दिया है किन्तु वह उसे समझने और उससे सीखने में मदद करता है l  इसलिए हम भजनकार के साथ प्रार्थना करें, “मेरी आँखें खोल दे, कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्भुत बातें देख सकूँ” (भजन 119:18) l