Month: सितम्बर 2017

पहला कदम

थाम दाशु ने अपने जीवन में कुछ कमी महसूस करके अपनी बेटी के चर्च जाने लगा l किन्तु वे अलग-अलग जाते थे l कुछ दिन पहले वह अपनी बेटी को ठेस पहुँचाया था, जिससे दोनों के बीच अलगाव हो गया था l इसलिए, थाम गीत आरंभ होने के बाद चुपचाप अन्दर जाकर आराधना समाप्ति के तुरंत बाद निकल आता था l

कलीसिया के सदस्यों ने थाम को सुसमाचार बताया, किन्तु वह यीशु पर विश्वास करने  का उनका निमंत्रण नम्रता के साथ टाल जाता था l किन्तु, वह चर्च जाता रहा l  

एक दिन थाम काफी बीमार हो गया l उसकी बेटी ने हिम्मत जुटाकर उसको पत्र लिखी l उसने बताया किस तरह मसीह ने उसका जीवन बदल दिया था, और उसने अपने पिता से मेल-मिलाप किया l उस रात, थाम यीशु पर विश्वास किया और परिवार में मेल हो गया l कुछ दिन बाद, थाम की मृत्यु हो गयी और वह यीशु की उपस्थिति में प्रवेश करके परमेश्वर और अपने प्रियों के साथ शांति पाया l

प्रेरित पौलुस ने लिखा कि हम भी परमेश्वर के प्रेम और क्षमा की सच्चाई “लोगों को समझाते हैं” (2 कुरिन्थियों 5:11) l मेल-मिलाप की सेवा हेतु “मसीह का प्रेम [ही] हमें विवश कर देता है” (पद.14) l

दूसरों को क्षमा करने की हमारी इच्छा उनको समझने में सहायता करेगा कि परमेश्वर हमसे मेल-मिलाप करना चाहता है (पद.19) l क्या आप परमेश्वर की सामर्थ्य पर भरोसा करके उनको उसका प्रेम दिखाएँगे?

समझनेवाला

टेक्सास शहर समुदाय में पुलिस और अग्निशमन विभाग के पास्टर जॉन बैबलर, अपने कार्य से बाईस सप्ताह के विश्राम अवकाश के दौरान, क़ानून-व्यवस्था अमल में लानेवाले अफसरों द्वारा सामना की जानेवाली स्थितियों को समझने हेतु पुलिस अकादमी प्रशिक्षण लिया l दूसरे सैन्य विद्यार्थियों के साथ समय बिताकर और पेशे के अत्यंत चुनौतियों के विषय सीखकर, उनको दीनता और सहानुभूति का नया अनुभव मिला l भविष्य में, वे भावनात्मक तनाव, थकावट, और हानि के साथ संघर्ष कर रहे पुलिस अफसरों को सलाह देने में अधिक प्रभावशाली होने की आशा करते हैं l

हम जानते हैं कि परमेश्वर हमारी स्थिति जानता है  क्योंकि उसने हमें बनाया और हमारे साथ होनेवाली सभी बातें देखता है l और हम यह भी जानते हैं कि वह समझता है क्योंकि उसने पृथ्वी पर मानव जीवन जीया l वह “देहधारी हुआ और ... हमारे बीच में [यीशु मसीह में] डेरा किया” (यूहन्ना 1:14) l

यीशु का सांसारिक जीवन कठिन था l उसने सूर्य की गर्मी, खाली पेट का दर्द, बेघर होने का अनिश्चिय अनुभव किया l उसने भावनात्मक रूप से, विरोध का तनाव, धोखे की दाग़, और हिंसा की लगातार धमकी सही l

यीशु ने हमारी तरह मित्रता का आनंद और पारिवारिक प्रेम के साथ-साथ संसार की सबसे बुरी परेशानियाँ अनुभव की l गहरी जानकारी और देखभाल के साथ हमारी चिंता करनेवाला अद्भुत सलाहकार ही (यशा.9:6) बोल सकता है, “मैंने उसका अनुभव किया है l मैं समझता हूँ l”

पत्र लेखन

मेरी माँ और उनकी बहने शीघ्र लुप्त हो रही कला रूप - पत्र लेखन करती हैं l  दोनों ही लगातार एक दूसरे को व्यक्तिगत पत्र लिखतीं हैं इस कारण पत्र नहीं होने पर डाकिया चिंतित होता है! उनके पत्र में जीवन, आनंद और दुःख के साथ-साथ मित्रों और परिवार में होनेवाली दैनिक घटनाएँ होती हैं l

मुझे अपने परिवार की इन महिलाओं के साप्ताहिक अभ्यास पर विचार करना पसंद है l इससे मैं प्रेरित पौलुस के शब्दों को कि यीशु के विश्वासी “मसीह की पत्री” हैं जो “स्याही से नहीं परन्तु जीवते परमेश्वर के आत्मा से ... लिखी है” की प्रशंसा कर पाता हूँ (2 कुरिं. 3:3) l उसके सन्देश को नहीं माननेवाले झूठे शिक्षकों के प्रतिउत्तर में (देखें 2 कुरिं. 11), पौलुस ने कुरिन्थुस की कलीसिया को उसके उपदेश के अनुसार सच्चे और जीवते परमेश्वर का अनुसरण करने हेतु उत्साहित किया l ऐसा करके, उसने यादगार ढंग से विश्वासियों को मसीह का पत्र कहा, जो किसी और लिखित पत्र की तुलना में पौलुस की सेवा द्वारा अपने बदले हुए जीवनों से पवित्र आत्मा के अधिक सामर्थी गवाह थे l

कितना अद्भुत है कि परमेश्वर का आत्मा हममें अनुग्रह और छुटकारे की कहानी लिखता है! हमारे जीवन लिखित अर्थपूर्ण शब्दों से अधिक सुसमाचार की सच्चाई का सबसे उत्तम साक्षी है, क्योंकि वे हमारी दयालुता, सेवा, धन्यवाद, और आनंद द्वारा अत्यधिक बोलते हैं l हमारे शब्द और कार्य द्वारा, प्रभु जीवनदायक प्रेम फैलता है l आज आप क्या सन्देश फैला रहे हैं?

परमेश्वर को देखना

लेखक और पासवान इरविन लूज़र एक टेलेविज़न कार्यक्रम में मेज़बान आर्ट लिंकलेटर और एक छोटे बच्चे की परमेश्वर की तस्वीर बनाने की कहानी बताते हैं l लिंकलेटर, खुश होकर, बोले, “तुम नहीं बना पाओगे क्योंकि कोई नहीं जानता कि परमेश्वर कैसा है l”

“मेरे बनाने के बाद वे जान जाएंगे!” बच्चे ने कहा l

हम सोच सकते हैं, परमेश्वर कैसा है? क्या वह अच्छा है, दयालु है, चिंता करता है?  फिलिप्पुस के निवेदन पर यीशु का प्रतिउत्तर इसका उत्तर था : “हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे l” यीशु ने उत्तर दिया, “हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है” (यूहन्ना 14:8-9) l

परमेश्वर को देखने की कभी इच्छा हो तो यीशु को देखें l “वह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप है,” पौलुस ने कहा (कुलुस्सियों 1:15) l मत्ती, मरकुस, लूका, और यूहन्ना, चारों सुसमाचार पढ़कर यीशु के कार्य और वचन पर ध्यान दें l “पढ़ते समय अपने परमेश्वर का दिमागी चित्र “बनाएं l” पूरा पढ़ने के बाद, वह कैसा है, आप बहुत कुछ जान जाएंगे l

एक बार मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा कि यीशु में दिखाई देनेवाले एकमात्र परमेश्वर में ही वह विश्वास करता है l निकट से देखने पर आप भी मानेंगे l उसके विषय पढ़ने पर आपका हृदय बहुत खुश होगा, क्योंकि यद्यपि आप जानते नहीं, यीशु ही वह परमेश्वर है जिसे आप सम्पूर्ण जीवन खोज रहें हैं l

पूरी तरह संभाला गया

हाल ही में मुझे कॉलेज की अपनी कुछ डायरी मिली जिसे मैं दोबारा पढ़ने के लिए मजबूर हुयी l लेखों को पढ़ते हुए, मैंने महसूस किया कि मैं उस समय खुद के विषय ऐसा महसूस नहीं करती थी l इस समय मैं खुद को अकेलेपन से संघर्ष करते हुए और अपने विश्वास पर शक करते हुए देखकर हरी हुई महसूर करती होती हूँ, किन्तु मुझे याद है कि किस तरह परमेश्वर मुझे बेहतर स्थान पर ले गया था l उन दिनों में परमेश्वर की अगुवाई याद करके आज मैं मजबूत महसूर करती हूँ जो एक दिन उसके चंगा करनेवाले प्रेम की बड़ी कहानी का भाग होगा l

भजन 30 उत्सव भजन है जो आश्चर्य और धन्यवाद के साथ बीते समय में परमेश्वर की सामर्थी चंगाई को याद करता है : रोग से आरोग्यता तक, मृत्यु के डर से जीवन तक, परमेश्वर के न्याय से उसकी कृपादृष्टि तक, विलाप से आनंद तक (पद.2-3,11) l

हम इस भजन में, दाऊद का दर्द-भरा शोक देखते हैं l किन्तु दाऊद ने असाधारण चंगाई का अनुभव भी प्राप्त किया जिसे वह बता पाया, “कदाचित् रात को रोना पड़े, परन्तु उसकी प्रसन्नता जीवन भर की होती है” (पद.5) l समस्त दुःख उठाने के बाद भी, दाऊद ने और भी बड़ी बात खोज ली अर्थात् परमेश्वर का चंगा करनेवाला हाथ l

यदि आज आप दुखित हैं और आपको उत्साह चाहिए, अतीत को याद करें जब परमेश्वर ने आपको चंगाई के स्थान पर लिए चला l भरोसा के लिए प्रार्थना करें कि वह आज भी करेगा l

एक साल में बाइबिल

2002 में मेरी बहन मार्था और उसके पति, जिम की एक दुर्घटना में मृत्यु के कुछ महीनों बाद एक मित्र ने मुझे हमारे चर्च में “दुःख द्वारा उन्नति” कार्यशाला में बुलाया l मैं अपनी इच्छा के विरुद्ध पहले सत्र में गया किन्तु वापस जाने का मन न था l मैंने परवाह करनेवाले एक सामाजिक समूह को परमेश्वर और दूसरों की सहायता से अपने जीवनों में एक ख़ास हानि का विवेकपूर्ण हल निकालने का प्रयास करते हुए देखकर चकित हुआ l मैं बार-बार परस्पर दुःख बांटने की प्रक्रिया द्वारा स्वीकार किये जाने और शांति के लिए वहाँ गया l 

किसी प्रिय अथवा मित्र की अचानक मृत्यु की तरह, आरंभिक कलीसिया को यीशु के लिए सक्रिय, स्तिफनुस की मृत्यु, द्वारा आघात और दुःख पहुँचा (प्रेरितों 7:57-60) l सताव के मध्य, “भक्तों ने स्तिफनुस को कब्र में रखा और उसके लिए बड़ा विलाप किया” (8:2) l इन्होंने एक साथ दो काम किये : उन्होंने स्तिफनुस को दफ़न किया, जो अंतिम कार्य और हानि थी l और सभों ने विलाप किया, जो दुःख का सामूहिक प्रदर्शन था l

यीशु के अनुयायी के रूप में हमें अपनी हानि के लिए अकेले विलाप नहीं करना है l  हम सच्चाई और प्रेम के साथ दुखित लोगों तक पहुँच सकते हैं और दीनता में हमारे साथ खड़े होनेवालों को स्वीकार सकते हैं l

एक साथ विलाप करते हुए, हम यीशु द्वारा उस समझ और शांति में उन्नति कर सकते हैं जो हमारे गंभीर दुखों से परिचित है l

परमेश्वर को दे दें

किशोरावस्था में, बड़ी चुनौतियों अथवा जोखिम भरे बड़े फैसलों से परेशान होने पर, मेरी माँ ने दृष्टिकोण प्राप्त करने हेतु उन्हें लिख लेने के फाएदे सिखाए l किसी ख़ास अध्ययन अथवा कार्य के विषय अनिश्चित होने पर अथवा वयस्क होने की अवस्था की डरावनी सच्चाइयों से कैसे निपटा जाए, मैंने अपनी माँ की तरह उनकी मूल सच्चाइयों, उसके उपयुक्त परिणामों के साथ संभव कार्यवाही योजनाओं को लिखने की आदत बनायी l उस पृष्ठ पर मन लगाते हुए, मैं परेशानी से कदम पीछे हटाते हुए उन्हें अपनी भावनाओं की बजाए सच्चाइयों पर आधारित होकर देख पाती थी l

जिस तरह कागज़ पर विचारों को अंकित करने से मुझे नए दृष्टिकोण मिलते थे, प्रार्थना में परमेश्वर के सामने मन लगाने से उसका दृष्टिकोण प्राप्त होता है और हम उसकी सामर्थ्य याद कर पाते हैं l मनहूस शत्रु से एक चुनौतीपूर्ण पत्र प्राप्त करने के बाद राजा हिजकिय्याह ने ऐसा ही किया l अशुरों ने अनेक राष्ट्रों की तरह यरूशलेम को भी नाश करने की धमकी दी l हिजकिय्याह ने पत्र को प्रभु के आगे फैलाकर प्रार्थनापूर्वक अपने लोगों के छुटकारे के लिए प्रार्थना की ताकि संसार पहचान जाए कि  वह “केवल यहोवा” है (2 राजा 19:19) l

घबराहट, डर, या गहरी जानकारी वाली स्थितियों का सामना करते हुए हमें अपनी योग्यता से बढ़कर चाहिए l हिजकिय्याह की तरह प्रभु के पास जाएँ l उसकी तरह हम भी परमेश्वर के समक्ष अपनी समस्या रखकर अपने बेचैन हृदयों के लिए उसके मार्गदर्शन पर भरोसा रखें l

स्वर्ग की झलक

मैं अपने अध्ययन कमरे की खुली खिड़की के बाहर चिड़ियों को चहकते और पेड़ों पर मंद-मंद हवा चलते देखती हूँ l मेरे पड़ोसी के जोते हुए खेत में पुआल के ढेर, और चमकदार नीले आसमान के विपरीत सफ़ेद बादल दिखाई देते हैं l

मेरे घर के निकट निरंतर यातायात का शोर और मेरे पीठ में हलके दर्द को छोड़ दें तो मैं स्वर्ग का अल्प आनंद उठा रही हूँ l मैं स्वर्ग  शब्द को हलके तौर पर उपयोग कर रही हूँ क्योंकि यद्यपि हमारा संसार एक समय पूरी तौर से अच्छा था, अब नहीं है l मानवता के पापी होने के बाद, हमें अदन के बाग़ से निष्कासित कर दिया गया और भूमि को “श्रापित” किया गया (देखें उत्प.3) l उस समय से पृथ्वी और उसमें की हर वस्तु “पतन के आधीन” है l” पीड़ा, बीमारी, और हमारी मृत्यु मानव के पाप में गिरने का परिणाम है (रोमियों 8:18-23) l

फिर भी परमेश्वर सब कुछ नया कर रहा है l एक दिन उसका निवास उसके लोगों के बीच और पुनःस्थापित संसार में होगा-“एक नया आकाश और एक नयी पृथ्वी”-जहाँ मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहली बातें जाती रहीं” (प्रकाशित 21:1-4) l हम उस दिन तक चमकीले रंग और कभी-कभी अपने संसार के विस्तृत अद्भुत खूबसूरती का आनंद ले सकते हैं, जो आनेवाले “स्वर्ग” की एक झलक है l

सामर्थ्य में प्रवेश

क्या हमें साँप दिखेंगे?

हमारा पड़ोसी युवक, एलन घर के निकट एक नदी के किनारे हमारे साथ पैदल घूमते हुए पूछा l

“हमने पहले कभी नहीं देखा, मैंने कहा, “किन्तु देख सकते हैं l इसलिए परमेश्वर से सुरक्षा मांगे l” हम प्रार्थना करके आगे चले l

कुछ मिनट बाद मेरी पत्नी, केरी, अचानक पीछे हटी, और सड़क पर एक कुंडलित जहरीले साँप से बची l हमने उसको जाने दिया l तब हमने परमेश्वर को धन्यवाद दिया l मुझे विश्वास है कि एलन के प्रश्न द्वारा, परमेश्वर ने हमें इस घटना के लिए तैयार किया था, और प्रार्थना उसके शुभ देखभाल का हिस्सा था l

उस शाम हमारा खतरे से बचना दाऊद के शब्द याद दिलाता है : “यहोवा और उसकी सामर्थ्य की खोज करो; उसके दर्शन के लिए लगातार खोज करो” (1 इतिहास 16:11) l यह सलाह यरूशलेम में वाचा के संदूक की वापसी का उत्सव मनानेवाले भजन का हिस्सा है l यह सम्पूर्ण इतिहास में परमेश्वर के लोगों का उनके संघर्ष में परमेश्वर की विश्वासयोग्यता स्मरण करने, उनको उसे सदा उसकी प्रशंसा करने और उसे “पुकारने” को कहता है (पद.35) l

“[परमेश्वर] के दर्शन के लिए .... खोज करो” का अर्थ क्या है? अर्थात् सबसे साधारण क्षणों में भी उसको खोजो l कभी-कभी प्रार्थनाओं के उत्तर हमारे मांगने से भिन्न होते हैं, किन्तु परमेश्वर हमेशा विश्वासयोग्य है l हमारा अच्छा चरवाहा मार्गदर्शन करते हुए हमें अपनी करुणा, सामर्थ्य, और प्रेम में रखेगा l हम उस पर निर्भर रहें l